Tuesday 20 November 2018

कैदियों के बीच उद्बोधन

*कैदियों के बीच उद्बोधन*

आत्मीय भाइयों बहनों,

कर्म की गति गहन है, हमारे प्रारब्धवश भूलें होती है, जो जाने अनजाने हमें ऐसी परिस्थिति में लाकर पटक देती है कि हम फंस जाते है। 90% लोग तो केवल भावनात्मक आवेग कामना, मोह, क्रोध इत्यादि के वेग को नियंत्रित नहीं कर पाने के कारण इस समस्या में गलती से इस चक्रव्यूह में फंसते है।

अब जो हो गया सो हो गया, अब वर्तमान परिस्थितियों में जिस मन को नियंत्रण न कर पाने के कारण हम यहां पहुंचे, अब इसी मन को नियंत्रित करके हम शांति प्राप्त कर सकते हैं।

दुनियाँ का कानून केवल शरीर को बन्धन में कैद करके रख सकता है, लेकिन मन तो इन चार दीवारों से बाहर हिमालय और उससे आगे ईश्वर तक भी पहुंच सकता है। रूह/आत्मा को भला कौन कब कैद कर सका है?

आईए इस कैद के दुर्भाग्य को आनंदमय तप के सौभाग्य में कैसे बदले जानते है...समझते है... आइये युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा जी आचार्य के बताए कुछ सूत्र समझते है...

भाइयों बहनों जो शरीर हम और आप एक दूसरे का देख रहे हैं, वो स्थूल शरीर है। इसके अंदर दो और शरीर है वो है सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर।

जब तक चेतना को स्थूल जगत और स्थूल शरीर तक सीमित रखोगे, तो स्थूल जगत के कष्टों से दुःखी और संतप्त रहोगे। जब चेतना को सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर तक ले चलोगे तो कीचड़ में कमल के फूल की तरह ही खिल जाओगे।

फूल के पौधे को कीचड़ में लगाओ या घर के बगीचे में, उसके उल्लास में और पुष्प की रंगत में फर्क नहीं पड़ता। उसी तरह योगी को जेल से बाहर रखो या जेल के अंदर उसे फर्क नहीं पड़ता। वो तो अंतर्जगत में बहते अमृत का पान करता रहता है।

योगी अरविंद को जब जेल हुई तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्होंने जेल को तप साधना के लिए उत्तम अवसर माना, समस्त जन्मों के प्रारब्ध को काटने और नए तप अर्जन का सुअवसर माना।

जो कम्बल ओढ़ने को मिलता, उस पर बैठकर घण्टों ध्यानस्थ रहते। संसार मे परिवार में जो लोगो द्वारा डिस्टर्ब करने की संभावना होती है, वो यहां नहीं थी। भक्त और भगवान के मिलन में यहां कोई बाधा नहीं थी। कहते है उन्होंने जेल में वो तप साधना कर ली, जिसके लिए लोग हिमालय जाकर तप करते है। हिमालय का एकांत को उन्होंने जेल के एकांत में बदल दिया। जब वो जेल से निकले तो उनके चेहरे में इतनी दिव्य आभा थी कि लोग सहज ही मंत्रमुग्ध हो रहे थे।

जेल रूपी हिमालयीन एकांत का फायदा आप भी तपसाधना हेतु उठा सकते है। जन्म जन्मांतर के प्रारब्ध को नष्ट कर सकते है। तप के द्वारा ध्यान जगत में सूक्ष्म मन से मनचाही जगहों का भ्रमण बिन पैसे का कर सकते हैं।

हम आपके शरीर को तो जेल के बाहर नहीं ले जा सकते, लेकिन आपके मन को और आपकी आत्मा को जेल के बाहर विभिन्न स्थानों में ध्यान द्वारा घुमा सकते है और आनंद की अनुभूति करवा सकते है।

हम आपको गायत्री अनुष्ठान रुपी सौभाग्य की चाबी दे सकते है, जिसके उपयोग से आप अपने अंतर्जगत में पहुंच सकते हो, और जन्मों के प्रारब्ध का सफाया कर सकते हो।

जेल से बाहर निकल कर अमुक से बदला लेना, जिसने आपको फंसाया उसे दंडित करने का विचार मन से त्याग दो, क्योंकि प्रेम और घृणा दोनों ही दिमाग को अपनी ओर खींचती है। यह जो बदले की भावना है यह जन्मजन्मांतर तक भटकाती है, जब जिससे घृणा करते हो उसके साथ दुबारा जन्म के आवागमन में क्यों पड़ना चाहोगे। दुसरो पर कीचड़ उछालने के लिए पुनः हाथ कीचड़ में डालोगे?

सबके कर्मो का हिसाब ऊपरवाला रख रहा है, जो गलत करेगा उसको दण्ड मिलेगा वो चाहे इस जन्म में मिले या अगले जन्म में, मिलेगा जरूर। अतः पुनः उस बदले की भावना के दलदल की ओर मत जाइए।

याद रखिये, इस शरीर से जुड़े रिश्ते चिता के साथ ही जल जाते है, जब हमारे पूर्वज मरे तो भी हमारा जीवन नहीं रुका, तो फिर हमारे न रहने पर भी किसी और का जीवन नहीं रुकने वाला। शरीर सराय है और हम आत्मा है, हम आत्मस्वरूप अनन्त यात्री है।

हिमालय की तरफ चेतना की शिखर यात्रा शुरू कीजिए। चेतना के इस सफर मे हम आपकी पूरी सहायता करेंगे। आत्मा स्वयंमेव आनन्दस्वरूप है, अंतर्जगत में प्रवेश के बाद आनन्द ही आनन्द है।

तो क्या सूक्ष्म मन से चेतना के इस अनूठे दिव्य सफर पर हमारे साथ आप चलने को तैयार है?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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