*युगनिर्माण के तीन मुख्य कार्यक्रम- गर्भसँस्कार, बालसंस्कार शाला और जन्मदिन सँस्कार*
हमारे आत्मीय बंधुओं,
काल अर्थात समयानुसार युग को चार भागों में बांटा गया है:-
युग अर्थात जिस समयावधि में अधिकतर लोगों की सोच स्थूल और सूक्ष्म पुण्यात्मक या पापात्मक होती है। उसी के आधार पर युग बांटा जाता है। एक तरह से संसद समझो, चुनाव में दो पार्टी खड़ी है पुण्य और पाप। उनके समर्थक पुण्यात्मा और पापात्मा। जिसका बहुमत उसकी सरकार।
सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग
👉🏼 *सतयुग में 90% से 80% लोग पुण्यात्मक सोच वाले लोगों का राज़*, सर्वत्र लोककल्याण का भाव और सुख शांति। यहां देवत्व स्वर्ग और धरती में राज करता था। पापी पाताल लोक में भय से छुपे रहते थे।
👉🏼 *त्रेता में 80% से 70% लोग पुण्यात्मक सोच* वाले लोगों का राज़, सर्वत्र लोककल्याण का भाव और सुख शांति। यहां देवत्व स्वर्ग और धरती में राज करता था। पापी पाताल लोक से बाहर आकर धरती पर रहने लगें। उन्हें पुनः खदेड़ कर पाताल भेज दिया गया। वो पुनः आये लेकिन फिर भी देशों में बंटे थे।
👉🏼 *द्वापर में 60% से 40% लोग पुण्यात्मक सोच* वाले लोगों का राज़, सर्वत्र लोककल्याण का भाव और सुख शांति में बाधा पहुंचने लगी। यहां देवत्व स्वर्ग और धरती में राज उखड़ने लगा था। पापी पाताल लोक से बाहर आकर अब पापी और पुण्यात्मा एक ही परिवार में मिलने लगे। अब अपनों के बीच ही महाभारत शुरू हो गयी। बड़ी कठिनाई से पुनः धर्म स्थापना संभव हुई।
👉🏼 *कलियुग में 40% से 20% लोग पुण्यात्मक सोच वाले लोग बचे*, सर्वत्र लोककल्याण का अभाव और सुख शांति का अभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। अब पाप मन मे भी छाने लगा, मन मे ही महाभारत शुरू हो गया। विकृत चिंतन का बोलबाला हो गया, घर मे ही बहन बेटी असुरक्षित हो गयी, अब तो नन्ही कन्या का भी रेप की घटना आम हो गयी। भ्र्ष्टाचार और पाप का साम्राज्य चल रहा है।
🙏🏻 *भगवान ने प्रॉमिस/वादा किया है, कि मनुष्यता जब जब भी संकट में होगी वो अंशावतार लेकर उसे उबारेंगे*। 🙏🏻
इस बार भी वादा निभाया और प्रज्ञावतार के रूप में अवतरित हुए। सतयुग, त्रेता और द्वापर में, राजा के आधार पर प्रजा चलती थी। दुष्ट राजा मार दो, नए अच्छे राजा के आते ही युगनिर्माण हो जाता था।
लेकिन कलियुग में सत्ता को चुनने का अधिकार जनता के हाथ मे है। पाप बाहर नहीं मन के भीतर है। एक रावण को मारने के लिए एक राम काफी है। लेकिन करोड़ो रावण बुद्धि है, कितने करोड़ राम जन्मेंगे, तो परिवर्तन हेतु सद्बुद्धि की स्थापना हेतु सद विचारो का प्रवेश जन जन में करवाना होगा।
भगवान कभी अकेले नहीं जन्मते, उनके अनुचर भी साथ जन्मते है। *प्रज्ञावतार युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने युगसाहित्य का भंडार दिया और शत सूत्रीय मानसिक देवासुर संग्राम हेतु दिए। उनके अनुचर देवतागण/ऋषिसत्ताएँ युगनिर्माणियो के रूप में कार्य कर रहे हैं*।
*बाल मन की दीवार कोरी होती है, लेकिन वयस्क मन विभिन्न आस्थाओं और मान्यताओं से मन की दीवार भर देता है। अतः वयस्क में युगनिर्माण में अतिरिक्त मेहनत पुरानी रूढ़िवादी मान्यताओं और आस्थाओं को मिटाने में खर्च होता है*।
इसलिए युगनिर्माण, सतयुग की वापसी और युगपरिवर्तन का मुख्य कार्य गर्भ से ही प्रारम्भ होगा। *जब गर्भ में मन की दीवार का निर्माण प्रारम्भ होता है, तभी उसके मन मे देवत्व की स्थापना का सही वक्त होता है। गर्भसंस्कार द्वारा माइंड प्रोग्रामिंग देवत्व के लिए शुरू कर दी जाती है।*
*सारे विद्यालय और स्कूल का पाठ्यक्रम बदलना जो कि धर्म निरपेक्ष (अर्थात धर्म विहीन) है, जहां केवल शरीर विज्ञान और शिक्षा मिलती है। मन प्रबंधन और आत्मा की प्योरिटी को आत्मसात नहीं करवाया जाता। शिक्षित व्यक्ति शिक्षा को आतंक फैलाने, भ्र्ष्टाचार में उपयोग करेगा या सृजन में कोई गारण्टी वारण्टी स्कूल नहीं दे सकता।*
उन्हें सम्पूर्ण बदलना आसान नहीं। अतः समानांतर वैकल्पिक व्यवस्था बालसंस्कार शाला को शुरू किया गया। जो मन की गुणवत्ता बढ़ाते हुए देवत्व की स्थापना के लिए चलाया जा रहा है।
*जन्मदिन सँस्कार के माध्यम से सबको मनुष्यता से अवगत करवा कर उन्हें श्रेष्ठता की ओर मोड़ने की मांइड प्रोग्रामिंग की जाती है।* यह छोटा सा सँस्कार एक तरह से मनुष्य के मन में देवत्व का बीजारोपण करने हेतु उपयोग किया जाता है।
देवत्व विचार धारा को सूक्ष्म स्तर पर प्रेषित करने के लिए गायत्री मंत्र और यज्ञ रूपी आध्यात्मिक विधिव्यवस्था और उपकरणों की सहायता ली जा रही है। आध्यात्मिक विचारो के हथियार रूप में सत्साहित्य का विस्तार कर रहे हैं।
सभी देवात्माये जो अंगअवयव है देवदूत है, वो जुट गए है मिशन सतयुग की वापसी और युगनिर्माण में, यह अभियान अवश्य सफल होगा।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
हमारे आत्मीय बंधुओं,
काल अर्थात समयानुसार युग को चार भागों में बांटा गया है:-
युग अर्थात जिस समयावधि में अधिकतर लोगों की सोच स्थूल और सूक्ष्म पुण्यात्मक या पापात्मक होती है। उसी के आधार पर युग बांटा जाता है। एक तरह से संसद समझो, चुनाव में दो पार्टी खड़ी है पुण्य और पाप। उनके समर्थक पुण्यात्मा और पापात्मा। जिसका बहुमत उसकी सरकार।
सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग
👉🏼 *सतयुग में 90% से 80% लोग पुण्यात्मक सोच वाले लोगों का राज़*, सर्वत्र लोककल्याण का भाव और सुख शांति। यहां देवत्व स्वर्ग और धरती में राज करता था। पापी पाताल लोक में भय से छुपे रहते थे।
👉🏼 *त्रेता में 80% से 70% लोग पुण्यात्मक सोच* वाले लोगों का राज़, सर्वत्र लोककल्याण का भाव और सुख शांति। यहां देवत्व स्वर्ग और धरती में राज करता था। पापी पाताल लोक से बाहर आकर धरती पर रहने लगें। उन्हें पुनः खदेड़ कर पाताल भेज दिया गया। वो पुनः आये लेकिन फिर भी देशों में बंटे थे।
👉🏼 *द्वापर में 60% से 40% लोग पुण्यात्मक सोच* वाले लोगों का राज़, सर्वत्र लोककल्याण का भाव और सुख शांति में बाधा पहुंचने लगी। यहां देवत्व स्वर्ग और धरती में राज उखड़ने लगा था। पापी पाताल लोक से बाहर आकर अब पापी और पुण्यात्मा एक ही परिवार में मिलने लगे। अब अपनों के बीच ही महाभारत शुरू हो गयी। बड़ी कठिनाई से पुनः धर्म स्थापना संभव हुई।
👉🏼 *कलियुग में 40% से 20% लोग पुण्यात्मक सोच वाले लोग बचे*, सर्वत्र लोककल्याण का अभाव और सुख शांति का अभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। अब पाप मन मे भी छाने लगा, मन मे ही महाभारत शुरू हो गया। विकृत चिंतन का बोलबाला हो गया, घर मे ही बहन बेटी असुरक्षित हो गयी, अब तो नन्ही कन्या का भी रेप की घटना आम हो गयी। भ्र्ष्टाचार और पाप का साम्राज्य चल रहा है।
🙏🏻 *भगवान ने प्रॉमिस/वादा किया है, कि मनुष्यता जब जब भी संकट में होगी वो अंशावतार लेकर उसे उबारेंगे*। 🙏🏻
इस बार भी वादा निभाया और प्रज्ञावतार के रूप में अवतरित हुए। सतयुग, त्रेता और द्वापर में, राजा के आधार पर प्रजा चलती थी। दुष्ट राजा मार दो, नए अच्छे राजा के आते ही युगनिर्माण हो जाता था।
लेकिन कलियुग में सत्ता को चुनने का अधिकार जनता के हाथ मे है। पाप बाहर नहीं मन के भीतर है। एक रावण को मारने के लिए एक राम काफी है। लेकिन करोड़ो रावण बुद्धि है, कितने करोड़ राम जन्मेंगे, तो परिवर्तन हेतु सद्बुद्धि की स्थापना हेतु सद विचारो का प्रवेश जन जन में करवाना होगा।
भगवान कभी अकेले नहीं जन्मते, उनके अनुचर भी साथ जन्मते है। *प्रज्ञावतार युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने युगसाहित्य का भंडार दिया और शत सूत्रीय मानसिक देवासुर संग्राम हेतु दिए। उनके अनुचर देवतागण/ऋषिसत्ताएँ युगनिर्माणियो के रूप में कार्य कर रहे हैं*।
*बाल मन की दीवार कोरी होती है, लेकिन वयस्क मन विभिन्न आस्थाओं और मान्यताओं से मन की दीवार भर देता है। अतः वयस्क में युगनिर्माण में अतिरिक्त मेहनत पुरानी रूढ़िवादी मान्यताओं और आस्थाओं को मिटाने में खर्च होता है*।
इसलिए युगनिर्माण, सतयुग की वापसी और युगपरिवर्तन का मुख्य कार्य गर्भ से ही प्रारम्भ होगा। *जब गर्भ में मन की दीवार का निर्माण प्रारम्भ होता है, तभी उसके मन मे देवत्व की स्थापना का सही वक्त होता है। गर्भसंस्कार द्वारा माइंड प्रोग्रामिंग देवत्व के लिए शुरू कर दी जाती है।*
*सारे विद्यालय और स्कूल का पाठ्यक्रम बदलना जो कि धर्म निरपेक्ष (अर्थात धर्म विहीन) है, जहां केवल शरीर विज्ञान और शिक्षा मिलती है। मन प्रबंधन और आत्मा की प्योरिटी को आत्मसात नहीं करवाया जाता। शिक्षित व्यक्ति शिक्षा को आतंक फैलाने, भ्र्ष्टाचार में उपयोग करेगा या सृजन में कोई गारण्टी वारण्टी स्कूल नहीं दे सकता।*
उन्हें सम्पूर्ण बदलना आसान नहीं। अतः समानांतर वैकल्पिक व्यवस्था बालसंस्कार शाला को शुरू किया गया। जो मन की गुणवत्ता बढ़ाते हुए देवत्व की स्थापना के लिए चलाया जा रहा है।
*जन्मदिन सँस्कार के माध्यम से सबको मनुष्यता से अवगत करवा कर उन्हें श्रेष्ठता की ओर मोड़ने की मांइड प्रोग्रामिंग की जाती है।* यह छोटा सा सँस्कार एक तरह से मनुष्य के मन में देवत्व का बीजारोपण करने हेतु उपयोग किया जाता है।
देवत्व विचार धारा को सूक्ष्म स्तर पर प्रेषित करने के लिए गायत्री मंत्र और यज्ञ रूपी आध्यात्मिक विधिव्यवस्था और उपकरणों की सहायता ली जा रही है। आध्यात्मिक विचारो के हथियार रूप में सत्साहित्य का विस्तार कर रहे हैं।
सभी देवात्माये जो अंगअवयव है देवदूत है, वो जुट गए है मिशन सतयुग की वापसी और युगनिर्माण में, यह अभियान अवश्य सफल होगा।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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