प्रश्न - *सभी साधनाओं में ब्रह्मचर्य पालन पर बल दिया जाता है। क्या इसके पीछे कोई विज्ञान है?*
उत्तर - जब भी हम कुछ खाते हैं तो हमारे आहार से क्रमशः रस👉🏼 रक्त👉🏼 माँस👉🏼 अस्थि👉🏼 मज्जा👉🏼 भेद👉🏼 धातु रजस (अंडज या वीर्य) 👉🏼 सूक्ष्मीकृत होकर 👉🏼 ओजस 👉🏼 तेजस👉🏼वर्चस इत्यादि बनता है।
चेहरे पर चमक, नसों में स्फूर्ति, मन में उमंग, अंतरंग में आकांक्षाएं, स्वभाव में दृढ़ता और शौर्य यह सारे चमत्कार शरीर और मन के क्षेत्र में काम करने वाले ओजस के हैं जो तेजस की ही परिणति है।
किशोर और कुमार अवस्था मे यह तत्व बढ़ता है और सुरक्षित रहता है। इसलिए किशोर युवक युवतियां चंचल, सक्रीय, उमंग, उत्साह, शौर्य, विनोद इत्यादि से भरे चेहरे पर चमक लिए होते हैं। विवाह के बाद लड़के और माँ बनने के बाद लड़कियां ओजस और तेजस तत्व से वंचित होने लगते हैं। इसका लक्षण उत्साह और उमंग का अभाव, अन्य मनयस्कता, आलस्य, बोरडम और जैसे तैसे जिंदगी गुजारने की मानसिकता पनपती है।
तपस्या और अनुष्ठान द्वारा हमें तेजस, ओजस और वर्चस अर्जित करना होता है, जिसे संक्षेप में आत्मबल कहते हैं। प्राण शक्ति का केंद्र मूलाधार है।प्राण शरीर मे सक्रियता स्फूर्ति एवं रोगनिवारणी जीवनी-शक्ति के रूप में चमकता है।
प्राण प्रवाह उर्ध्वगामी हो, प्राण का क्षरण रूके, जब तक साधना कर रहे है तब तक ओजस तेजस में जो भी सात्विक आहार लें वो परिणित होता जाय। इस हेतु ब्रह्मचर्य व्रत पालन की सलाह साधना, तपस्या, अनुष्ठान के समय दी जाती है। तपस्या से ओजस की कमाई और ब्रह्मचर्य से ओजस की बचत की जाती है। बचत भी एक तरह की कमाई होती है।
*सन्दर्भ पुस्तक* - सावित्री कुंडलिनी एवं तंत्र, पेज नम्बर 5.108 से 15.110
उत्तर - जब भी हम कुछ खाते हैं तो हमारे आहार से क्रमशः रस👉🏼 रक्त👉🏼 माँस👉🏼 अस्थि👉🏼 मज्जा👉🏼 भेद👉🏼 धातु रजस (अंडज या वीर्य) 👉🏼 सूक्ष्मीकृत होकर 👉🏼 ओजस 👉🏼 तेजस👉🏼वर्चस इत्यादि बनता है।
चेहरे पर चमक, नसों में स्फूर्ति, मन में उमंग, अंतरंग में आकांक्षाएं, स्वभाव में दृढ़ता और शौर्य यह सारे चमत्कार शरीर और मन के क्षेत्र में काम करने वाले ओजस के हैं जो तेजस की ही परिणति है।
किशोर और कुमार अवस्था मे यह तत्व बढ़ता है और सुरक्षित रहता है। इसलिए किशोर युवक युवतियां चंचल, सक्रीय, उमंग, उत्साह, शौर्य, विनोद इत्यादि से भरे चेहरे पर चमक लिए होते हैं। विवाह के बाद लड़के और माँ बनने के बाद लड़कियां ओजस और तेजस तत्व से वंचित होने लगते हैं। इसका लक्षण उत्साह और उमंग का अभाव, अन्य मनयस्कता, आलस्य, बोरडम और जैसे तैसे जिंदगी गुजारने की मानसिकता पनपती है।
तपस्या और अनुष्ठान द्वारा हमें तेजस, ओजस और वर्चस अर्जित करना होता है, जिसे संक्षेप में आत्मबल कहते हैं। प्राण शक्ति का केंद्र मूलाधार है।प्राण शरीर मे सक्रियता स्फूर्ति एवं रोगनिवारणी जीवनी-शक्ति के रूप में चमकता है।
प्राण प्रवाह उर्ध्वगामी हो, प्राण का क्षरण रूके, जब तक साधना कर रहे है तब तक ओजस तेजस में जो भी सात्विक आहार लें वो परिणित होता जाय। इस हेतु ब्रह्मचर्य व्रत पालन की सलाह साधना, तपस्या, अनुष्ठान के समय दी जाती है। तपस्या से ओजस की कमाई और ब्रह्मचर्य से ओजस की बचत की जाती है। बचत भी एक तरह की कमाई होती है।
*सन्दर्भ पुस्तक* - सावित्री कुंडलिनी एवं तंत्र, पेज नम्बर 5.108 से 15.110
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