*जीवन क्या है? आनंद या कांटो का ताज, खुशियों का झरना या दुःख का पहाड़?*
ये कुछ इस तरह हो गया कि गाड़ी चलाना आनन्ददायक है या दुःखदायक? जिसे गाड़ी चलानी आ गयी उसे गाड़ी आनन्द देगी, जिसे नहीं गाड़ी चलानी आती तो गाड़ी चलाना दुःखदायक लगेगा..
कुछ महान विचारक/सन्त जीवन को दुःखमय मानते हैं वहीं कुछ महान विचारक/सन्त/योगी इसे आनन्दमय मानते है। जो आत्मबोध करके मन रूपी गाड़ी चलाना सीख गए, वो जीवन को आनन्दमय कहेंगे, जो मन को नहीं साध पाए, वो जीवन को दुःखमय कहेंगे। क्योंकि हमने और आपने परमानन्द का अमृत चखा ही नहीं, मन हमारा नियंत्रण में नही, इसलिए आनन्दमय जीवन को कहने वाले को हम भाव नहीं देते और दुःखमय जीवन को कहने वाले को चढ़ावा चढ़ा के पूजते है।
दुःखमय जीवन को बताने वाले एक काल्पनिक स्वर्ग/जन्नत के बारे में ज्ञान देते है। वो कहते है कि स्वर्ग में मौसम में एयरकंडीशनर लगा है, खूबसूरत नज़ारे है, लड़को के लिए अप्सराएं/हूरें और लड़कियों के लिए देवदूत मौजूद है। शहद और दूध की नदी है और करोड़ो प्रकार के व्यजन उपलब्ध है। 7 स्टार होटल की मार्केटिंग एड को बढ़ा चढ़ा कर स्वर्ग की मार्केटिंग करते है। धरती के 7 स्टार में पैसा लगेगा जैसे वैसे ही स्वर्ग/जन्नत रूपी होटल में पुण्य का डेबिट कार्ड चलता है। अब ये पुण्य को कमाने का भी शॉर्टकट बता देते है, कौन घण्टों ध्यान और मंन्त्र जप अनुष्ठान करे और मन को साधे, टाइम टेकिंग प्रोसेस, धैर्य किसके पास है? इसलिए आसान तरीका बता दिया या तो बकरा मार दो और स्वर्ग का टिकट ले लो या जो तुम्हारा धर्म न माने उस इंसान को मार दो, आतंकवाद फैलाओ और स्वर्ग के होटल की बुकिंग करवा लो।
इनका धंधा चलेगा ही, क्योंकि स्वर्ग/जन्नत का ऑडिट जीवित व्यक्ति कर नहीं सकता, स्वर्ग होता है या नहीं ये कोई दावे के साथ कह नहीं सकता, मरने के बाद वो बकरा और इंसान मारने वाली आतंकी की आत्माएं नर्क /दोखज़ गयी या स्वर्ग/जन्नत पता लगाने का कोई उपाय नहीं है। जनता अंधविश्वास में लुटती रहेगी, ये तबाही तब तक चलती रहेगी जब तक जनता को आत्मबोध न हो? आत्मबोध के लिए ध्यान-स्वाध्याय-प्राणायाम-योग करना पड़ेगा। तब जाकर अक्ल से पर्दा उठेगा औऱ स्वर्ग रूपी होटल का गोरखधंधा रुकेगा। आतंकवाद बिजनेस रुकेगा।
#श्वेता #DIYA
ये कुछ इस तरह हो गया कि गाड़ी चलाना आनन्ददायक है या दुःखदायक? जिसे गाड़ी चलानी आ गयी उसे गाड़ी आनन्द देगी, जिसे नहीं गाड़ी चलानी आती तो गाड़ी चलाना दुःखदायक लगेगा..
कुछ महान विचारक/सन्त जीवन को दुःखमय मानते हैं वहीं कुछ महान विचारक/सन्त/योगी इसे आनन्दमय मानते है। जो आत्मबोध करके मन रूपी गाड़ी चलाना सीख गए, वो जीवन को आनन्दमय कहेंगे, जो मन को नहीं साध पाए, वो जीवन को दुःखमय कहेंगे। क्योंकि हमने और आपने परमानन्द का अमृत चखा ही नहीं, मन हमारा नियंत्रण में नही, इसलिए आनन्दमय जीवन को कहने वाले को हम भाव नहीं देते और दुःखमय जीवन को कहने वाले को चढ़ावा चढ़ा के पूजते है।
दुःखमय जीवन को बताने वाले एक काल्पनिक स्वर्ग/जन्नत के बारे में ज्ञान देते है। वो कहते है कि स्वर्ग में मौसम में एयरकंडीशनर लगा है, खूबसूरत नज़ारे है, लड़को के लिए अप्सराएं/हूरें और लड़कियों के लिए देवदूत मौजूद है। शहद और दूध की नदी है और करोड़ो प्रकार के व्यजन उपलब्ध है। 7 स्टार होटल की मार्केटिंग एड को बढ़ा चढ़ा कर स्वर्ग की मार्केटिंग करते है। धरती के 7 स्टार में पैसा लगेगा जैसे वैसे ही स्वर्ग/जन्नत रूपी होटल में पुण्य का डेबिट कार्ड चलता है। अब ये पुण्य को कमाने का भी शॉर्टकट बता देते है, कौन घण्टों ध्यान और मंन्त्र जप अनुष्ठान करे और मन को साधे, टाइम टेकिंग प्रोसेस, धैर्य किसके पास है? इसलिए आसान तरीका बता दिया या तो बकरा मार दो और स्वर्ग का टिकट ले लो या जो तुम्हारा धर्म न माने उस इंसान को मार दो, आतंकवाद फैलाओ और स्वर्ग के होटल की बुकिंग करवा लो।
इनका धंधा चलेगा ही, क्योंकि स्वर्ग/जन्नत का ऑडिट जीवित व्यक्ति कर नहीं सकता, स्वर्ग होता है या नहीं ये कोई दावे के साथ कह नहीं सकता, मरने के बाद वो बकरा और इंसान मारने वाली आतंकी की आत्माएं नर्क /दोखज़ गयी या स्वर्ग/जन्नत पता लगाने का कोई उपाय नहीं है। जनता अंधविश्वास में लुटती रहेगी, ये तबाही तब तक चलती रहेगी जब तक जनता को आत्मबोध न हो? आत्मबोध के लिए ध्यान-स्वाध्याय-प्राणायाम-योग करना पड़ेगा। तब जाकर अक्ल से पर्दा उठेगा औऱ स्वर्ग रूपी होटल का गोरखधंधा रुकेगा। आतंकवाद बिजनेस रुकेगा।
#श्वेता #DIYA
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