*किशोरसँस्कार शाला - आस्था संकट*
आत्मीय बच्चों, एक प्रश्न का उत्तर दो:-
यदि घर में कुछ सड़न की दुर्गंध आ रही है, कृमि कीट मच्छर विषाणु रोगाणु उतपन्न हो रहे हैं, तो तुम लोगों के हिसाब से कौन सा उपाय बेहतर है।
*उपाय - 1*: मार्किट से अच्छा अच्छा रूम फ्रेशनर लाकर घर में छिड़कना, हाथ पैर में लगाने को अच्छी रोगाणु नाशक क्रीम लगाना, गुडनाईट जलाना इत्यादि।
*उपाय- 2*: सड़न की दुर्गंध का पता लगा के, नाली, डस्टबिन और घर रेगुलर साफ रखना। दुर्गंध और रोगाणु उतपन्न करने के कारण को ही हटा देना।
हाँजी सही उत्तर दिया आप सबने, पहले हमें दूसरा उपाय अपनाना होगा, उसके बाद यदि आवश्यक हो तो पहला उपाय भी कर सकते हैं। दोनों ही जरूरी है, लेकिन केवल पहले उपाय से समस्या न सुलझेगी।
बच्चों, आज देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं की जड़ विकृत चिंतन से उपजा आस्था संकट है। *युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते है कि आस्था संकट के निवारण का एकमात्र उपाय अध्यात्म है। विवेक अर्थात दूरदर्शिता और सद्बुद्धि और श्रद्धा अर्थात उच्चस्तरीय आस्थाओं को अन्तःकरण में आरोपित करना, इन दोनों का युग्म ही अध्यात्म है।*
आज बंदूकें केवल बॉर्डर पर नहीं तनी हैं, आज घर घर में और मनुष्य के मन मन में अदृश्य बंदूकें तनी है, युद्ध चल रहा है। मनुष्य स्वयं का और समाज का दुश्मन बन बैठा है।
शरीर को भगवान का मंदिर मानने की आस्था समाप्त हुई, तो असंयम रूपी असुरत्व का शरीर पर राज हुआ। शरीर रोगों का घर बन गया। शरीर में जहर नशे का प्रवेश तक अधिकतर लोगों ने करा दिया।
माता-पिता को धरती का प्रथम पूज्य भगवान मानने की आस्था समाप्त हुई तो वृद्धाश्रम खुल गए।
पत्नी को अर्धांगिनी गृह लक्ष्मी, पति को अर्धांग परमेश्वर मानने की, गृहस्थ तपोवन की आस्था खत्म हुई तो तलाक़ केस और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की समस्या शुरू हुई।
मातृ भूमि अर्थात देश को माता मानकर सेवा करने की आस्था खत्म हुई तो भ्र्ष्टाचार दुराचार आतंकवाद पनप गया।
समाज ऋण उतारने की आस्था खत्म हुई तो समाज को खोखला करने की परंपरा शुरू हो गयी।
ईश्वरीय न्याय और कर्मफ़ल पर आस्था खत्म हुई तो जनता स्वार्थप्रेरित हो गयी। अंधाधुंध प्रकृति का दोहन, जल-वायु-अन्न प्रदूषित कर डाला। इससे सर्वत्र अशांति फैल गयी। लड़कियां और बच्चे इस देश मे असुरक्षित हो गए, देहव्यापार और नशे का व्यापार का वर्चस्व हो गया।
चाणक्य ने देश की अर्थ व्यवस्था के दो सूत्र कर(TAX) और दान को बताया था। ईश्वर भक्ति और देश भक्ति के अभाव में दोनों ही गड़बड़ा गए।
जब भगवान पर आस्था खत्म होती है तो इंसानियत पर से भी आस्था खत्म हो जाती है। फिर केवल हैवानियत शेष रह जाती है।
विवेकानन्द जी ने कहा था, भारत की आत्मा अध्यात्म है। लेकिन हमारे देश के दुर्बुद्धि से प्रेरित राजनेताओं ने देश आजाद होते ही बच्चो के पाठ्यक्रम(education system) से अध्यात्म को हटा दिया। पिता को डैड (Dead) कर दिया और माता को ममी(Dead body) कर दिया, परिवार के प्रति सम्वेदना की हत्या(murder) कर दी। और स्कूल में सहयोग (co-operation) की जगह प्रतिस्पर्धा (Competition) करवा दिया। भारतीय अध्यात्म स्त्री पुरुष को एक दूसरे का पूरक मानता है। लेकिन मूर्ख राजनीति प्रेरित शिक्षाविदों ने इसे विरोधी-उल्टा (opposite) बता दिया। बचपन से पढ़ाया गया - दिन का उल्टा रात, लड़के का उल्टा लड़की, माता का उल्टा पिता, स्त्री का उल्टा पुरुष। आज सब उल्टे टँगे है, युद्ध कर रहे हैं।
दुर्बुद्धि प्रेरित निर्णय धर्मनिरपेक्षता का लिया गया। धर्मनिरपेक्ष अर्थात इस देश का कोई धर्म और ईमान नहीं होगा, अर्थात बिना धर्म का देश - अधर्म। जब धर्म नहीं होगा तो शेष अधर्म ही बचेगा है न, जैसे प्रकाश न हुआ तो शेष अंधकार ही बचेगा है न...
जब नंन्हे बालको को अध्यात्म की शिक्षा देकर धर्मशील बनाया नहीं, तो फिर उनसे अच्छे चरित्र की उम्मीद भी क्यों करते हो।
विदेशों में आप किसी भी स्कूल कॉलेज में जाकर अध्यात्म पढ़ा सकते हो, सब स्वागत करेंगे। भारत इतना दुर्भाग्यशाली देश है जिसे दुर्बुद्धि युक्त नेता मिले जो शरीर से भारतीय और दिलो-दिमाग से विदेशी थे।
राजनेता विकृत चिंतन की सड़ी नाली साफ नहीं कर रहे, कानून का रूम फ्रेशनर लेकर घूम रहे हैं। इतना नहीं समझते कोर्ट और कानून अपराध के बाद एक्शन में आता है, लेकिन अध्यात्म अपराध होने ही नहीं देता। कोर्ट में गीता की जरूरत नहीं है, गीता की जरूरत तो क्लासरूम में है।
वर्तमान समस्याओं का एकमात्र समाधान है- अध्यात्म।
सन्दर्भ पुस्तक - प्रज्ञा प्रवचन
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
आत्मीय बच्चों, एक प्रश्न का उत्तर दो:-
यदि घर में कुछ सड़न की दुर्गंध आ रही है, कृमि कीट मच्छर विषाणु रोगाणु उतपन्न हो रहे हैं, तो तुम लोगों के हिसाब से कौन सा उपाय बेहतर है।
*उपाय - 1*: मार्किट से अच्छा अच्छा रूम फ्रेशनर लाकर घर में छिड़कना, हाथ पैर में लगाने को अच्छी रोगाणु नाशक क्रीम लगाना, गुडनाईट जलाना इत्यादि।
*उपाय- 2*: सड़न की दुर्गंध का पता लगा के, नाली, डस्टबिन और घर रेगुलर साफ रखना। दुर्गंध और रोगाणु उतपन्न करने के कारण को ही हटा देना।
हाँजी सही उत्तर दिया आप सबने, पहले हमें दूसरा उपाय अपनाना होगा, उसके बाद यदि आवश्यक हो तो पहला उपाय भी कर सकते हैं। दोनों ही जरूरी है, लेकिन केवल पहले उपाय से समस्या न सुलझेगी।
बच्चों, आज देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं की जड़ विकृत चिंतन से उपजा आस्था संकट है। *युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते है कि आस्था संकट के निवारण का एकमात्र उपाय अध्यात्म है। विवेक अर्थात दूरदर्शिता और सद्बुद्धि और श्रद्धा अर्थात उच्चस्तरीय आस्थाओं को अन्तःकरण में आरोपित करना, इन दोनों का युग्म ही अध्यात्म है।*
आज बंदूकें केवल बॉर्डर पर नहीं तनी हैं, आज घर घर में और मनुष्य के मन मन में अदृश्य बंदूकें तनी है, युद्ध चल रहा है। मनुष्य स्वयं का और समाज का दुश्मन बन बैठा है।
शरीर को भगवान का मंदिर मानने की आस्था समाप्त हुई, तो असंयम रूपी असुरत्व का शरीर पर राज हुआ। शरीर रोगों का घर बन गया। शरीर में जहर नशे का प्रवेश तक अधिकतर लोगों ने करा दिया।
माता-पिता को धरती का प्रथम पूज्य भगवान मानने की आस्था समाप्त हुई तो वृद्धाश्रम खुल गए।
पत्नी को अर्धांगिनी गृह लक्ष्मी, पति को अर्धांग परमेश्वर मानने की, गृहस्थ तपोवन की आस्था खत्म हुई तो तलाक़ केस और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की समस्या शुरू हुई।
मातृ भूमि अर्थात देश को माता मानकर सेवा करने की आस्था खत्म हुई तो भ्र्ष्टाचार दुराचार आतंकवाद पनप गया।
समाज ऋण उतारने की आस्था खत्म हुई तो समाज को खोखला करने की परंपरा शुरू हो गयी।
ईश्वरीय न्याय और कर्मफ़ल पर आस्था खत्म हुई तो जनता स्वार्थप्रेरित हो गयी। अंधाधुंध प्रकृति का दोहन, जल-वायु-अन्न प्रदूषित कर डाला। इससे सर्वत्र अशांति फैल गयी। लड़कियां और बच्चे इस देश मे असुरक्षित हो गए, देहव्यापार और नशे का व्यापार का वर्चस्व हो गया।
चाणक्य ने देश की अर्थ व्यवस्था के दो सूत्र कर(TAX) और दान को बताया था। ईश्वर भक्ति और देश भक्ति के अभाव में दोनों ही गड़बड़ा गए।
जब भगवान पर आस्था खत्म होती है तो इंसानियत पर से भी आस्था खत्म हो जाती है। फिर केवल हैवानियत शेष रह जाती है।
विवेकानन्द जी ने कहा था, भारत की आत्मा अध्यात्म है। लेकिन हमारे देश के दुर्बुद्धि से प्रेरित राजनेताओं ने देश आजाद होते ही बच्चो के पाठ्यक्रम(education system) से अध्यात्म को हटा दिया। पिता को डैड (Dead) कर दिया और माता को ममी(Dead body) कर दिया, परिवार के प्रति सम्वेदना की हत्या(murder) कर दी। और स्कूल में सहयोग (co-operation) की जगह प्रतिस्पर्धा (Competition) करवा दिया। भारतीय अध्यात्म स्त्री पुरुष को एक दूसरे का पूरक मानता है। लेकिन मूर्ख राजनीति प्रेरित शिक्षाविदों ने इसे विरोधी-उल्टा (opposite) बता दिया। बचपन से पढ़ाया गया - दिन का उल्टा रात, लड़के का उल्टा लड़की, माता का उल्टा पिता, स्त्री का उल्टा पुरुष। आज सब उल्टे टँगे है, युद्ध कर रहे हैं।
दुर्बुद्धि प्रेरित निर्णय धर्मनिरपेक्षता का लिया गया। धर्मनिरपेक्ष अर्थात इस देश का कोई धर्म और ईमान नहीं होगा, अर्थात बिना धर्म का देश - अधर्म। जब धर्म नहीं होगा तो शेष अधर्म ही बचेगा है न, जैसे प्रकाश न हुआ तो शेष अंधकार ही बचेगा है न...
जब नंन्हे बालको को अध्यात्म की शिक्षा देकर धर्मशील बनाया नहीं, तो फिर उनसे अच्छे चरित्र की उम्मीद भी क्यों करते हो।
विदेशों में आप किसी भी स्कूल कॉलेज में जाकर अध्यात्म पढ़ा सकते हो, सब स्वागत करेंगे। भारत इतना दुर्भाग्यशाली देश है जिसे दुर्बुद्धि युक्त नेता मिले जो शरीर से भारतीय और दिलो-दिमाग से विदेशी थे।
राजनेता विकृत चिंतन की सड़ी नाली साफ नहीं कर रहे, कानून का रूम फ्रेशनर लेकर घूम रहे हैं। इतना नहीं समझते कोर्ट और कानून अपराध के बाद एक्शन में आता है, लेकिन अध्यात्म अपराध होने ही नहीं देता। कोर्ट में गीता की जरूरत नहीं है, गीता की जरूरत तो क्लासरूम में है।
वर्तमान समस्याओं का एकमात्र समाधान है- अध्यात्म।
सन्दर्भ पुस्तक - प्रज्ञा प्रवचन
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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