प्रश्न - *मृतक भोज से क्या मृतात्मा को सद्गति मिलती है? इस पर कोई सदवाक्य हो तो भेजिए*
उत्तर- मृतक भोज एक कुरीति है, बड़ी बड़ी दावत मृतक भोज के नाम पर सजातीय लोगों और इष्टमित्रों को खिलाने से आत्मा की मुक्ति का कोई लेना देना नहीं होता। जब अन्य के भोजन करने से हमारा पेट नहीं भरता तो अन्य के भोजन से हमे सद्गति भला कैसे मिलेगी? स्वयं विचार करें..
कुछ सदवाक्य:-
1- मृतक भोज एक कुरीति है, जिसका उन्मूलन अनिवार्य है।
2- मृतक के जाने के बाद उसके परिवार वाले शोकग्रस्त होते है, ऐसे में उन पर मृतक भोज का अतिरिक्त खर्च डालना एक अनुचित परम्परा है।
3- जिस आंगन में पुत्र शोक से,
विलख रही हो माता,
वहां पहुंचकर मृतक भोज,
तुमको कैसे भाता?
4- जिस घर मे अपनो को,
छोड़ गया हो पालनहारा,
आगे परिवार कैसे चलेगा,
वहां न कोई ठौर ठिकाना,
उस घर मे तेरहवीं का भोजन,
परिवार खुद भूखा रह के खिलाये,
ऐसी मृतक भोज की अंधी परम्परा,
बोलो क्या तुम्हें भाए?
5- मृतक भोज खाने से,
तप ऊर्जा नष्ट होगी,
मृतक परिवार पर,
मृतक भोज का,
अतिरिक्त बोझ डालने से,
प्राण ऊर्जा क्षीण होगी।
6- दूसरों के साथ वैसा व्यवहार मत करो, जैसा तुम्हें स्वयं के लिए पसन्द न हो।
7- किसी के दुःख में जब शामिल हो, तो उस पर मृतक भोज का अतिरिक्त भार मत डालो।
8- किसी की मृत्यु पर जब उसके परिवार को सांत्वना देने जाओ, तो उस घर पर मेहमान बनकर मेहमानी का भार मत डालो।
9- शोक संतप्त परिवार पर मृतक बोझ का अतिरिक्त भार डालना पाप है।
10- वर्तमान समय में मृतात्मा की सद्गति के लिए सात्विक दान-पुण्य के शास्त्रीय विधान के बजाय लोगों में मृतकभोज की ऐसी प्रथा का प्रचलन हो गया है जो प्राचीन या नवीन किसी सिद्धांत के अनुकूल नहीं है और जिससे मृतक की सद्गति का कुछ भी सम्बन्ध नहीं माना जा सकता। भूखे ग़रीब दरिद्र को भोजन खिलाने पर पुण्य मिलता है, सजातीय लोगों को मृतक भोज कर नाम पर दावत खिलाने से कोई पुण्य नहीं मिलता।
11- मृतक भोज प्रायः बड़ी-बड़ी दावतों के रूप में होते हैं जिनमे एक एक हज़ार, पांच पांच सौ तक सजातीय व्यक्ति और परिचित ईष्ट मित्र पूरी मिठाई पकवान खाने को लाए जाते हैं। उस अवसर पर ऐसा जान पड़ता है। मानो इस घर में कोई बड़ा हर्षोत्सव है किसी बच्चे का जन्म या विवाहोत्सव है, जिसके उपलक्ष्य में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को खिलाया-पिलाया जा रहा है। लेकिन जो व्यक्ति मृतक भोज दे रहा होता है, वो शोकसंतप्त होता है और उसके ऊपर आर्थिक बोझ पड़ता है। साथ ही यह हल्ला गुल्ला लोगो का उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।
12- मृतक परिवार की सहायता करें, उनकी परेशानी का सबब न बनें। इस महंगाई के जमाने मे उन्हें दोहरा कष्ट न दें, कर्ज़े में न डुबोएं।
13- आत्मविश्वास बढ़ाने वाला प्रोत्साहन मृतक के परिवार को दें, उन्हें सही राह बताकर दुःख से उबारें।
14- मृत्यु अटल सत्य है, जन्म के साथ ही मृत्यु का दिन निश्चित हो जाता है। अतः शोक न करें। जिसे हम जन्म और मृत्यु कहते है वो वास्तव में आत्मा की यात्रा है, शरीर रूपी वस्त्र बदलना है।
15- जब हमें अपने पिछले जन्म का कुछ याद नहीं, पिछले जन्म के माता पिता जीवन साथी पुत्र पौत्री कुछ भी याद नहीं, इसी तरह वो आत्मा जो चली गयी शरीर छूटने के बाद उसे हम याद नहीं है, वो जब जन्म लेगी तो हमारी तरह ही सबकुछ भूल जाएगी। अतः शोक न करें।
16- मृत्यु कोई न कोई बहाना लेकर ही आती है, एक्सीडेंट-बीमारी इत्यादि बहाने है शरीर छोड़ने के, अतः समय जो आत्मा को संसार मे रहने का जितना मिला था वो उतने वर्ष ही संसार मे रह सकेगी।
17- लाखों लोग रोज जन्मते है और लाखो लोग रोज मरते है, हम उनके जन्म पर न हर्षित होते हैं और न ही मृत्यु पर शोकाकुल होते है। हम केवल उस व्यक्ति की मौत पर शोकाकुल होते है जिनसे हमारा भावनात्मक लगाव होता है।
18- कर्म की गति गहन है, दूसरे के पढ़ने पर हमें ज्ञान नहीं होता, दूसरे के खाना खाने से हमारा पेट नही भरता, दूसरा कोई हमारे शरीर का दर्द नहीं सह सकता। तो फिर हमारी मृत्यु के बाद दूसरे के भोजन करने से मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी? मृतक भोज से सद्गति नहीं मिलती बल्कि स्वयं जीवन मे अच्छे कर्म करने से मिलती है।
19- ज्ञान दान महादान है, पुस्तक लिस्ट जो ऐसे समय मे देनी चाहिए और पढ़नी चाहिए:-
1- मृतक भोज की क्या आवश्यकता ?
2- मरणोत्तर जीवन
3- मरने के बाद क्या होता है?
4- गहना कर्मणो गतिः(कर्म फल का सिद्धांत)
5- मैं क्या हूँ?
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- मृतक भोज एक कुरीति है, बड़ी बड़ी दावत मृतक भोज के नाम पर सजातीय लोगों और इष्टमित्रों को खिलाने से आत्मा की मुक्ति का कोई लेना देना नहीं होता। जब अन्य के भोजन करने से हमारा पेट नहीं भरता तो अन्य के भोजन से हमे सद्गति भला कैसे मिलेगी? स्वयं विचार करें..
कुछ सदवाक्य:-
1- मृतक भोज एक कुरीति है, जिसका उन्मूलन अनिवार्य है।
2- मृतक के जाने के बाद उसके परिवार वाले शोकग्रस्त होते है, ऐसे में उन पर मृतक भोज का अतिरिक्त खर्च डालना एक अनुचित परम्परा है।
3- जिस आंगन में पुत्र शोक से,
विलख रही हो माता,
वहां पहुंचकर मृतक भोज,
तुमको कैसे भाता?
4- जिस घर मे अपनो को,
छोड़ गया हो पालनहारा,
आगे परिवार कैसे चलेगा,
वहां न कोई ठौर ठिकाना,
उस घर मे तेरहवीं का भोजन,
परिवार खुद भूखा रह के खिलाये,
ऐसी मृतक भोज की अंधी परम्परा,
बोलो क्या तुम्हें भाए?
5- मृतक भोज खाने से,
तप ऊर्जा नष्ट होगी,
मृतक परिवार पर,
मृतक भोज का,
अतिरिक्त बोझ डालने से,
प्राण ऊर्जा क्षीण होगी।
6- दूसरों के साथ वैसा व्यवहार मत करो, जैसा तुम्हें स्वयं के लिए पसन्द न हो।
7- किसी के दुःख में जब शामिल हो, तो उस पर मृतक भोज का अतिरिक्त भार मत डालो।
8- किसी की मृत्यु पर जब उसके परिवार को सांत्वना देने जाओ, तो उस घर पर मेहमान बनकर मेहमानी का भार मत डालो।
9- शोक संतप्त परिवार पर मृतक बोझ का अतिरिक्त भार डालना पाप है।
10- वर्तमान समय में मृतात्मा की सद्गति के लिए सात्विक दान-पुण्य के शास्त्रीय विधान के बजाय लोगों में मृतकभोज की ऐसी प्रथा का प्रचलन हो गया है जो प्राचीन या नवीन किसी सिद्धांत के अनुकूल नहीं है और जिससे मृतक की सद्गति का कुछ भी सम्बन्ध नहीं माना जा सकता। भूखे ग़रीब दरिद्र को भोजन खिलाने पर पुण्य मिलता है, सजातीय लोगों को मृतक भोज कर नाम पर दावत खिलाने से कोई पुण्य नहीं मिलता।
11- मृतक भोज प्रायः बड़ी-बड़ी दावतों के रूप में होते हैं जिनमे एक एक हज़ार, पांच पांच सौ तक सजातीय व्यक्ति और परिचित ईष्ट मित्र पूरी मिठाई पकवान खाने को लाए जाते हैं। उस अवसर पर ऐसा जान पड़ता है। मानो इस घर में कोई बड़ा हर्षोत्सव है किसी बच्चे का जन्म या विवाहोत्सव है, जिसके उपलक्ष्य में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को खिलाया-पिलाया जा रहा है। लेकिन जो व्यक्ति मृतक भोज दे रहा होता है, वो शोकसंतप्त होता है और उसके ऊपर आर्थिक बोझ पड़ता है। साथ ही यह हल्ला गुल्ला लोगो का उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।
12- मृतक परिवार की सहायता करें, उनकी परेशानी का सबब न बनें। इस महंगाई के जमाने मे उन्हें दोहरा कष्ट न दें, कर्ज़े में न डुबोएं।
13- आत्मविश्वास बढ़ाने वाला प्रोत्साहन मृतक के परिवार को दें, उन्हें सही राह बताकर दुःख से उबारें।
14- मृत्यु अटल सत्य है, जन्म के साथ ही मृत्यु का दिन निश्चित हो जाता है। अतः शोक न करें। जिसे हम जन्म और मृत्यु कहते है वो वास्तव में आत्मा की यात्रा है, शरीर रूपी वस्त्र बदलना है।
15- जब हमें अपने पिछले जन्म का कुछ याद नहीं, पिछले जन्म के माता पिता जीवन साथी पुत्र पौत्री कुछ भी याद नहीं, इसी तरह वो आत्मा जो चली गयी शरीर छूटने के बाद उसे हम याद नहीं है, वो जब जन्म लेगी तो हमारी तरह ही सबकुछ भूल जाएगी। अतः शोक न करें।
16- मृत्यु कोई न कोई बहाना लेकर ही आती है, एक्सीडेंट-बीमारी इत्यादि बहाने है शरीर छोड़ने के, अतः समय जो आत्मा को संसार मे रहने का जितना मिला था वो उतने वर्ष ही संसार मे रह सकेगी।
17- लाखों लोग रोज जन्मते है और लाखो लोग रोज मरते है, हम उनके जन्म पर न हर्षित होते हैं और न ही मृत्यु पर शोकाकुल होते है। हम केवल उस व्यक्ति की मौत पर शोकाकुल होते है जिनसे हमारा भावनात्मक लगाव होता है।
18- कर्म की गति गहन है, दूसरे के पढ़ने पर हमें ज्ञान नहीं होता, दूसरे के खाना खाने से हमारा पेट नही भरता, दूसरा कोई हमारे शरीर का दर्द नहीं सह सकता। तो फिर हमारी मृत्यु के बाद दूसरे के भोजन करने से मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी? मृतक भोज से सद्गति नहीं मिलती बल्कि स्वयं जीवन मे अच्छे कर्म करने से मिलती है।
19- ज्ञान दान महादान है, पुस्तक लिस्ट जो ऐसे समय मे देनी चाहिए और पढ़नी चाहिए:-
1- मृतक भोज की क्या आवश्यकता ?
2- मरणोत्तर जीवन
3- मरने के बाद क्या होता है?
4- गहना कर्मणो गतिः(कर्म फल का सिद्धांत)
5- मैं क्या हूँ?
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
आपने इस कुरीति को एक नए तरीके से समझाया,हालांकि एक छोटा सा नज़रिया रखना चाहता हूं,मृतक भोज की ज़रूरत को पहले बड़े ही सादगी से पूरा किया जाता था,जिस घर में मृत्यु हुई रहती थी उसके पड़ोसी पूरे कार्यक्रम को करते थे और सांत्वना भी देते थे ताकि मृतक का परिवार स्वयं को उस क्षति से निकाल पाए,लेकिन अब ऐसा नहीं है,अब तो लोगों से सहानुभूति नाम का शब्द ही गायब होता जा रहा है ऐसे में सांत्वना कैसे दे सकते हैं ये लोग,और तो और अब तो लोग १३ दिन के दौरान बने भोजन में टिप्पणी करते हैं,मुझे लगता है कि आज के समय में मृतक भोज एक सांत्वना सूचक कार्यक्रम से बढ़कर एक पार्टी है जिसमें वो ख़ाली लोग पहुंचते हैं जिन्हें केवल सहानुभूति से मतलब ही नहीं।
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