Thursday, 10 January 2019

प्रश्न - *गर्भवती स्त्री ऐसा कौन सा काम पूजा या जप करे जिससे उनका होने वाला बच्चा तेजस्वी प्रखर बुद्धि ,वर्चस्वी एवं ओजस्वी बने और खानपान में क्या परहेज करे साथ ही गुरुदेव की कौन सी पुस्तक का स्वाध्याय करे? मार्गदर्शन करें*

प्रश्न - *गर्भवती स्त्री ऐसा कौन सा काम पूजा या जप करे जिससे उनका होने वाला बच्चा तेजस्वी प्रखर बुद्धि ,वर्चस्वी एवं ओजस्वी बने और खानपान में क्या परहेज करे साथ ही गुरुदेव की कौन सी पुस्तक का स्वाध्याय करे? मार्गदर्शन करें*

उत्तर - आत्मीय भाई,

*गर्भस्थ शिशु का समग्र निर्माण उसके - स्थूल शरीर, भाव शरीर और बौद्धिक शरीर तीनों के सन्तुलित निर्माण पर निर्भर करता है*। गर्भिणी माता के हाड़-मांस और लिए हुए आहार से स्थूल शरीर बनेगा। माता के समझयुक्त चिंतन और पढ़े-सुने विचारो से बौद्धिक शरीर बनेगा। माता के मन में उठ रहे भावों औऱ घर परिवार द्वारा दी गए प्रेम-स्नेह या घृणा-तिरस्कार  या दुःख-सुख की फीलिंग्स/भावनाओं से बच्चे का भाव शरीर बनेगा। तीनों स्तर पर सावधानी बरतनी पड़ेगी।

👉🏼 *गर्भस्थ शिशु के स्थूल शरीर हेतु* - प्राण ऊर्जा से भरे सन्तुलित और सुपाच्य भोजन। गाय के घी दूध से बने समान, फ़ल, हरी सब्जियों और अँकुरित अनाज प्राण ऊर्जा से भरपूर होता है।  बलिवैश्व यज्ञ करने से और भोजन या जल ग्रहण करने से पहले गायत्री मंत्र बोलने से अन्न संस्कारित हो जाता है और प्राण ऊर्जा बढ़ जाती है। *पके हुए भोजन की ऊर्जा केवल साढ़े तीन घण्टे तक ही रहती है, चौथे घण्टे से वो प्राणहीन हो जाता है अतः गर्भ के लिए उपयुक्त नहीं है*। शरीर के व्यायाम और आहार विहार की विस्तृत जानकारी के लिए पुस्तक 📖 *आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी* पढ़ें।

*परहेज़* - मृत पशुओं की लाश अर्थात नॉनवेज पशु के मरने के 30 से 40 मिनट के अंदर यदि जंगली पशु की तरह कच्चा खा लिया तो ही उपयोगी है, अन्यथा वो पकाने पर सड़न-गलन की प्रक्रिया से गुजरने के कारण अत्यंत नुकसान    दायक होती हैं। पशुओं की पीड़ा और आह मांस में होती है, अतः ऐसे आहार गर्भस्थ शिशु को हिंसक और सम्वेदना शून्य बना देते है। गर्भस्थ शिशु का भाव शरीर विकृत कर देता है।

👉🏼 *गर्भस्थ शिशु के भाव शरीर हेतु* - गर्भस्थ शिशु लम्बी यात्रा के बाद पूर्व जन्म के लोगों को छोड़ कर नए परिवार में सम्मिलित होने आता है। माता-पिता और परिवारजन का प्यार उसे अपनेपन की फीलिंग देता है, जिससे वो दर्द से उबर पाता है। लेक़िन जब गर्भस्थ शिशु के सामने माता-पिता यह डिस्कसन करते है कि मुझे लड़का या लड़की चाहिए तो आत्मा को पीड़ा पहुंचती है। गर्भ में यदि लड़की हुई और आपने लड़के की चाहत व्यक्त की तो वो सोचेगी इन्हें तो मैं चाहिए ही नहीं। इसी तरह लड़का गर्भ में हुआ और आपने लड़की की चाहत की वो भी निराश हो जाएगा कि इन्हें तो मैं चाहिए ही नहीं। गर्भस्थ शिशु की पीड़ा में आते ही उसका भाव शरीर बिगड़ जाएगा। बाहर जन्म लेने पर कितना ही प्यार क्यों न करो, उस शिशु से सम्बन्ध अच्छा नहीं बनेगा।

गर्भिणी के साथ किया अच्छा व्यवहार या बुरा व्यवहार गर्भस्थ शिशु समझता है उसके साथ हो रहा है। अतः माता के कष्ट पर वह पीड़ित होगा और माता को कोई ख़ुशी देगा तो वो आनन्दित होगा। इसलिए गोदभराई, गर्भसंस्कार इत्यादि उत्सव के माध्यम से गर्भ को सूचित कयक जाता है कि हम तुम्हारे आगमन से प्रशन्न है।माता को आशीर्वाद और उपहार देते है, जिससे शिशु आनन्दित होता है।

इस समय माता के अच्छी भावनाओ के चिंतन, भक्ति गीतों के गायन और श्रवण, प्रकृति के पंच तत्वों का ध्यान, उगते हुए सूर्य का ध्यान यह सब गर्भस्थ शिशु के भाव शरीर का निर्माण करेगा।

गरीबों की सेवा, पीड़ित मानवता की सेवा और घर के वृद्ध जनों की  सेवा से भाव शरीर शुद्ध होता है। ऊर्जावान होता है।

*परहेज़* - गर्भिणी पर घर के सदस्य क्रोध न करें, गर्भिणी स्वयं किसी अन्य पर क्रोध और घृणा का भाव उतपन्न न करे। लड़का लड़की मे भेद न करे।

👉🏼 *गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक शरीर हेतु* - एक बार ठाकुर रामकृष्ण से एक स्त्री ने पूँछा मेरे बच्चे की चार वर्ष की उम्र हो गयी है, इसे कब से पढ़ाऊ। ठाकुर बोले आपने पाँच वर्ष की देरी कर दी माँ। इसका शिक्षण तो गर्भ में ही प्रारम्भ हो जाना चाहिए था। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु और सती मदालसा के पुत्र की कहानी तो सबको पता है वो गर्भ से सीख के आये थे।

यदि चाहते हो कि, बच्चा स्कूल की पढ़ाई में अच्छा हो, प्रखर तेजस्वी हो तो कम से कम दो से तीन घण्टे अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय माता नित्य करे। पिता और परिवार जन गर्भिणी को अच्छी अच्छी बातें बतायें।

निम्नलिखित पुस्तकें गर्भिणी के लिए उपयोगी है:-

1- आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी
2- मानसिक संतुलन
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
5- मित्र भाव बढ़ाने की कला
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- प्रबन्धव्यवस्था एक विभूति एक कौशल
8- मानवीय विद्युत के चमत्कार
9- हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण
10- महापुरुषों की जीवनियां
11- अकबर बीरबल और तेनालीराम के बौद्धिक कुशलता के किस्से
12- जिस क्षेत्र में बच्चे का रुझान चाहते हो उस क्षेत्र से सम्बंधित पुस्तको का अध्ययन

श्रद्धेय के भगवत गीता और ध्यान पर दिए वीडियो लेक्चर सुने। मोटिवेशनल वीडियो देंखें।

😇 *भारतीय ऋषियों ने बताया है कि गायत्री मंत्र का अर्थ चिंतन करते हुए गायत्री जप करने से गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक कौशल का विकास होता है। AIIMS ने भी रिसर्च में यह सिद्ध कर दिया है कि गायत्री मंत्र जप से बौद्धिक कुशलता का विकास होता है।*

*प्राचीन ऋषिसत्ताएँ गर्भ के दौरान नियमित यज्ञ या साप्ताहिक यज्ञ की सलाह देते हैं।*

*परहेज़* - अश्लील, हिंसक, भद्दे साहित्य न पढें और ऐसी फ़िल्म न देखें।

*ज्यादा से ज्यादा भगवान को आभार दें, मैं क्या हूँ? पर चिंतन करें, जागरूक चैतन्य रहें। खुश रहे और खुशियां बाँटे। स्वयं की आत्मा के प्रकाश के लिए प्रयत्न करें।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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