Friday 4 January 2019

प्रश्न - *विपश्यना साधना के दौरान हमे बताया गया था कि कर्मो मे ९०% भूमिका हमारे अवचेतन की रहती है, केवल १०% भूमिका चेतन मन की होती है, परंतु अपने मिशन मे ही कही पुरुषार्थपरायणता की व्याख्या-विवेचना के प्रसंग मे हमने सुना था

प्रश्न - *विपश्यना साधना के दौरान हमे बताया गया था कि कर्मो मे ९०% भूमिका हमारे अवचेतन की रहती है, केवल १०% भूमिका चेतन मन की होती है, परंतु अपने मिशन मे ही कही पुरुषार्थपरायणता की व्याख्या-विवेचना के प्रसंग मे हमने सुना था कि कर्मो मे हमारे पुरुषार्थ की भूमिका ७०% व भाग्य की भूमिका १०% होती है | इन दोनो मे असमंजस होता है, समाधान कीजिये|*

उत्तर - आत्मीय बहन, असमंजस इसलिए हो रहा है क्योंकि आप दो अलग चीज़ों को एक समझ रही है।

चेतन को कर्म और अवचेतन को भाग्य समझने की भूल के कारण असमंजस है।

विपश्यना में बिल्कुल सही बताया गया था कि 90% अवचेतन मनुष्य के कर्म को प्रभावित करता है और 10% चेतन मनुष्य के कर्म को प्रभावित करता है।

लेकिन अवचेतन तक सूचना पहुंचाने का कार्य तो चेतन ही करता है। चेतन ही वह द्वार है जिससे अवचेतन तक सूचनाएं और भावनायें जाकर संग्रहित होती है। जो एक बार संग्रहित हो गया तो जन्मजन्मांतर तक चलेगा। जो अवचेतन में पहुंच गया वो ऑटो पायलट मोड में चला जाता है। वो अवचेतन की जमा आदतें और सँस्कार स्वतः मनुष्य के जीवन मे अपना असर दिखायेंगी। उदाहरण - लोकसेवी बनना हो या डाकू बनना हो। एक बार अभ्यस्त हो जाने पर जो अवचेतन में जमा हो गया अब वो स्वभाव बन जाता है।

भाग्य अर्थात जमा हुआ अच्छा कर्मफ़ल, प्रारब्ध अर्थात जमा हुआ बुरा कर्मफ़ल। यह भी जन्मजन्मांतर तक चलता है, आत्मा से सम्बंधित होता है।

मिशन मे ही कही पुरुषार्थपरायणता की व्याख्या-विवेचना के प्रसंग में कर्म 70% जीवन मे प्रभाव डालता है और भाग्य 30% यह भी सत्य है। इसे कहानी के माध्यम से समझते हैं।

दो व्यक्ति थे, वर्तमान जीवन मे एक पापी और एक पुण्यात्मा दोनों राजा के दरबार मे आयोजित भोज में सम्मिलित होने गए। राजा स्वर्ण आभूषण लुटा रहा था, पापी को बहुमूल्य हार मिला और वो ख़ुशी से उछल पड़ा। पुण्यात्मा को जिस बड़े थाल में स्वर्णाभूषण रख के बांटा जा रहा था उससे गम्भीर चोट लग गयी। रक्त की धारा बह गई, वो दर्द से तड़फ उठा।

जितने लोग उतनी मुंह बातें शुरू हो गई। बोलने लगे भगवान कितनी नाइंसाफी करता है। पापी को पुरस्कार और पुण्यात्मा को दण्ड इत्यादि इत्यादि।

राजा ने अपने तपस्वी, पुरोहित और महान ज्योतिषि से पूँछा।

 ज्योतिषी ने बताया, वर्तमान जन्म का पापी पिछले जन्म का पुरोहित था। पुरोहित अच्छे कर्म करता लेकिन हमेशा धन का चिंतन करता, किसी भी तरह चाहे वो अनैतिक तरीक़े से ही क्यों न हो कमाने का चिंतन करता। इस कारण उसके लगातार दुश्चिंतन ने उसके अवचेतन में कुसंस्कार गढ़ दिए। लेकिन उसके अच्छे कर्मों ने उसका अच्छा भाग्य गढ़ दिया। इस जन्म में अच्छे घर मे जन्मा और आज के दिन उसे राज्य मिलना था। लेकिन उसके अवचेतन मन के कुंसंस्कारो ने उसे पापी बना दिया और पाप कर्म करने लगा। पाप ने भाग्य के प्रभाव को कम कर दिया और उसे केवल बहुमूल्य हार देकर छोड़ दिया।

ज्योतिषी ने आगे बताया, वर्तमान जन्म का पुण्यात्मा पिछले जन्म का कसाई था। कसाई बुरे कर्म करता लेकिन हमेशा अपने बुरे कर्म से घृणा करता, साथ ही पुरोहितं जैसे तपशील बनने और लोकसेवी बनने का चिंतन करता, किसी भी तरह वो पुण्यात्मा बनने का चिंतन करता। इस कारण उसके लगातार सद्चिन्तन ने उसके अवचेतन में सुसंस्कार गढ़ दिए। लेकिन उसके बुरे कर्मों ने उसका बुरा प्रारब्ध गढ़ दिया। इस जन्म में जन्म लेते ही अनाथ हो गया  और आज के दिन उसे मृत्युदंड मिलना था। लेकिन उसके अवचेतन मन के सुसंस्कारो ने उसे पुण्यात्मा बना दिया और अच्छे कर्म करने लगा। पुण्य कर्मों ने कठिन प्रारब्ध के प्रभाव को कम कर दिया और उसे केवल थोड़ी सी चोट देकर छोड़ दिया।

कर्म भाग्य को बदल सकता है, इसलिये यह सिद्ध हुआ कि 70% कर्म और 30% भाग्य असरकारक है। भाग्य ने ग़रीब घर मे पैदा किया लेकिन कर्म से अमीर बना जा सकता है।

अवचेतन प्रेरित करता है उसे स्वीकार और अस्वीकार किया जा सकता है। यह सूक्ष्म है। भाग्य एक स्थूल परिणाम है जैसे कुछ अच्छी परिस्तियाँ बनना, अच्छे घर में जन्मना, लॉटरी लगना इत्यादि।

*गुरुदेव कहते हैं, जीवन में  परिस्थिति हमारे हाथ में नहीं है और भाग्य भी अपने हाथ में नहीं है। हमारे हाथ में केवल और केवल पुरुषार्थ है और कुछ भी नहीं। अवचेतन में जमें कुसंस्कारों को पुरुषार्थ द्वारा हटाया जा सकता है और सुसंस्कारों को उभारा जा सकता है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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