प्राणिक हिंलिंग एक भावनात्मक क्रिया है जिसमें प्रारम्भिक शिक्षा में स्थूल क्रिया कलाप और विभिन्न पॉश्चर द्वारा भावनात्मक संप्रेषण सिखाया जाता है।
ऊर्जा शरीर स्थूल शरीर के चारों तरफ़ फैला मानवीय विद्युत ही है, जिसके प्रत्येक कण ऊर्जा से भरे है, जिसे केवल भावना से उद्दीप्त किया जा सकता है और भावना से ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
इसे विस्तार से समझने के लिए दो पुस्तक - *मानवीय विद्युत के चमत्कार* और *प्राण चिकित्सा* अवश्य पढ़ें।
साधना की उच्च अवस्था और मन को ध्यानस्थ करने की कुशलता हासिल होने पर दूरस्थ व्यक्ति तक भी प्राण प्रवाह पहुंचाकर उसे स्वस्थ किया जा सकता है।
रेकी एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ होता है दिव्य चेतना या ईश्वरीय ब्रह्माण्डीय शक्ति। जिसे भारत में प्राणशक्ति और दिव्यचेतना दोनों नाम से जाना जाता है।
प्राचीनतम ग्रन्थों में जो सिद्ध महापुरुषों द्वारा स्पर्श द्वारा रोगमुक्ति के आख्यान मिलते है, वो वास्तव में प्राणशक्ति का सम्प्रेषण (रेकी) ही होता था।
सिद्ध रेकी मास्टर बनने के लिए मन की स्थिरता आवश्यक है और विचारों पर नियंत्रण आवश्यक है। जापानी शब्द ज़ेन योगा जिसका अर्थ ध्यान योग है इसमें सहायक है। स्वयं का शरीर ऊर्जा चैनल तभी बनेगा जब मन पवित्र, हृदय निर्मल और लोकसेवा की भावना मन में सुदृढ हो। इसके बिना केवल छुटपुट ही कार्य और प्रभाव संभव है।
21 दिन या 40 दिन के ध्यान योग द्वारा इसमें इतनी सफ़लता पाई जा सकती है कि स्वयं का इलाज़ करना और स्वयं के ऊर्जा शरीर को नियंत्रित करना संभव हो सकेगा।
श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
ऊर्जा शरीर स्थूल शरीर के चारों तरफ़ फैला मानवीय विद्युत ही है, जिसके प्रत्येक कण ऊर्जा से भरे है, जिसे केवल भावना से उद्दीप्त किया जा सकता है और भावना से ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
इसे विस्तार से समझने के लिए दो पुस्तक - *मानवीय विद्युत के चमत्कार* और *प्राण चिकित्सा* अवश्य पढ़ें।
साधना की उच्च अवस्था और मन को ध्यानस्थ करने की कुशलता हासिल होने पर दूरस्थ व्यक्ति तक भी प्राण प्रवाह पहुंचाकर उसे स्वस्थ किया जा सकता है।
रेकी एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ होता है दिव्य चेतना या ईश्वरीय ब्रह्माण्डीय शक्ति। जिसे भारत में प्राणशक्ति और दिव्यचेतना दोनों नाम से जाना जाता है।
प्राचीनतम ग्रन्थों में जो सिद्ध महापुरुषों द्वारा स्पर्श द्वारा रोगमुक्ति के आख्यान मिलते है, वो वास्तव में प्राणशक्ति का सम्प्रेषण (रेकी) ही होता था।
सिद्ध रेकी मास्टर बनने के लिए मन की स्थिरता आवश्यक है और विचारों पर नियंत्रण आवश्यक है। जापानी शब्द ज़ेन योगा जिसका अर्थ ध्यान योग है इसमें सहायक है। स्वयं का शरीर ऊर्जा चैनल तभी बनेगा जब मन पवित्र, हृदय निर्मल और लोकसेवा की भावना मन में सुदृढ हो। इसके बिना केवल छुटपुट ही कार्य और प्रभाव संभव है।
21 दिन या 40 दिन के ध्यान योग द्वारा इसमें इतनी सफ़लता पाई जा सकती है कि स्वयं का इलाज़ करना और स्वयं के ऊर्जा शरीर को नियंत्रित करना संभव हो सकेगा।
श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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