प्रश्न - *अन्याय के प्रतिकार में उपजा हुआ क्रोध वीरता कहलाती है, हद से ज्यादा विनम्रता कायरता कहलाती है। क्या आप इससे सहमत हैं?*
उत्तर - आत्मीय भाई क्रोध कभी भी वीरता का परिचायक नहीं होता और न ही कायरता का प्रदर्शन विनम्रता कहलाता हैं।
अगर तुम सही हो तो भी क्रोध की आवश्यकता नहीं, यदि तुम गलत हो तो क्रोध करने का तुम्हें अधिकार नहीं। क्रोध वह अग्नि है जो करने वाले को जलाता है।
अन्याय के प्रतिकार में आक्रोश उपजता है, जिसे बुद्धि बल और शक्तिप्रदर्शन से अन्याय को मिटाकर न्याय की स्थापना की जाती है।
लेकिन जिसे आप अन्याय समझ रहे हो क्या वास्तव में वो अन्याय है भी या नहीं? यह अन्याय किसके विरुद्ध हुआ और कितना?
उदाहरण - श्रीराम चन्द्र जी विनयी थे, लेकिन वीरता से भरे थे। एक रात पहले जब युवराज़ पद की घोषणा हुई तो भी अहंकार नहीं हुआ। वही विनय भाव रहा। दूसरे सुबह वनवास मिला तो भी क्रोधित नहीं हुए और वही विनय भाव को लिए रहे।
ऋषियों की हड्डियां देखी तो अन्याय के प्रति सङ्कल्प/प्रण लिया कि निशिचर विहीन धरती को कर दूंगा। लेकिन यह आक्रोश स्वार्थकेन्द्रित नहीं था परमार्थ के लिए था।
समुद्र से पहले विनम्रता से रास्ता मांगा, जब समुद्र ने पुकार अनसुना किया तो धनुष उठा कर समुद्र को सुखाने खड़े हो गए। रावण को पहले संधि सन्देश दिया नहीं माना तो संघार कर दिया।
अतः प्रत्येक व्यक्ति को तलवों तक के पानी को इग्नोर करना चाहिए, घुटनों तक पानी के आते ही प्लान ऑफ एक्शन तैयार रखना चाहिए, और क़मर तक पानी आते ही एक्शन ले लेना चाहिए।
कब कैसे कहाँ प्रतिकार करना है या नहीं यह स्वविवेक पर निर्भर करता है।
क्रोध में बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, और बदले की भावना से सही गलत की समझ चली जाती है। इस बदले की भावना में स्वयं का, मिशन का और देश का अहित भी व्यक्ति कर डालता है। क्रोध में होश नहीं होता। जैसे क्रोध में कुछ लोग घर का सामान तोड़ देते है, बच्चो को बुरी तरह पीट देते है और बाद में पछताते रहते हैं।
आक्रोश में बुद्धिप्रयोग सम्भव होता है, क्योंकि आक्रोश में पाप से घृणा की जाती है पापी से नहीं। जिस प्रकार मैडम क्लास में बच्चों के न पढ़ने पर आक्रोश करती है, लेक़िन बच्चे के प्रति मन मे कोई दुर्व्यवहार नहीं रखती। पूरे होश-हवाश में आक्रोश का प्रदर्शन करती है, पहले प्यार से पढ़ने को कहती है, न पढ़ने पर सज़ा देती है।
सेना और पुलिस भी आक्रोश व्यक्त करते हैं, क्योंकि उन्हें अपने वर्तमान पद मर्यादा का होश रहता है। पहले हथियार फेंकने की गुजारिश और आत्मसमर्पण को कहते है, न मानने पर ही गोली चलाते हैं।
अपने हक का छोड़ो मत और दूसरे के हक का छीनो मत। अपनी मर्यादा का पालन करो, मतभेद रखो लेकिन मन भेद मत रखो।
प्रेम में हमें सामने वाले की बुराई नहीं दिखती और क्रोध में सामने वाले की अच्छाई नहीं दिखती।
अहंकार ऐसा नेत्रदोष उतपन्न करता है, जिससे सच्चाई और अच्छाई औरों का दिखता नहीं।
विनयी/विनम्र होना अर्थात स्वयं का आत्म समीक्षक होना, बिना द्वेष दुर्भाव के समस्या का समाधान ढूंढना।
अकर्मण्य व्यक्ति को भी विनम्र/विनयी नहीं कहा जाता, जिसका कोई समाज के लिए योगदान नहीं है।
बुद्धिमान और बलशाली व्यक्ति यदि उदारचरित्र होकर अदब से बात करता है, उसे ही विनयी/विनम्र कहा जाता है।
सरल शब्दों में, विवेक के साथ लिया एक्शन आक्रोश है। बिना विवेक के लिया एक्शन क्रोध है। बुद्धि और बल होते हुए भी विनम्रता का प्रदर्शन करना महानता है, अति आवश्यकता पड़ने पर अन्याय के प्रतिकार स्वरूप आक्रोश प्रदर्शित करना और हथियार उठाना भी धर्म है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई क्रोध कभी भी वीरता का परिचायक नहीं होता और न ही कायरता का प्रदर्शन विनम्रता कहलाता हैं।
अगर तुम सही हो तो भी क्रोध की आवश्यकता नहीं, यदि तुम गलत हो तो क्रोध करने का तुम्हें अधिकार नहीं। क्रोध वह अग्नि है जो करने वाले को जलाता है।
अन्याय के प्रतिकार में आक्रोश उपजता है, जिसे बुद्धि बल और शक्तिप्रदर्शन से अन्याय को मिटाकर न्याय की स्थापना की जाती है।
लेकिन जिसे आप अन्याय समझ रहे हो क्या वास्तव में वो अन्याय है भी या नहीं? यह अन्याय किसके विरुद्ध हुआ और कितना?
उदाहरण - श्रीराम चन्द्र जी विनयी थे, लेकिन वीरता से भरे थे। एक रात पहले जब युवराज़ पद की घोषणा हुई तो भी अहंकार नहीं हुआ। वही विनय भाव रहा। दूसरे सुबह वनवास मिला तो भी क्रोधित नहीं हुए और वही विनय भाव को लिए रहे।
ऋषियों की हड्डियां देखी तो अन्याय के प्रति सङ्कल्प/प्रण लिया कि निशिचर विहीन धरती को कर दूंगा। लेकिन यह आक्रोश स्वार्थकेन्द्रित नहीं था परमार्थ के लिए था।
समुद्र से पहले विनम्रता से रास्ता मांगा, जब समुद्र ने पुकार अनसुना किया तो धनुष उठा कर समुद्र को सुखाने खड़े हो गए। रावण को पहले संधि सन्देश दिया नहीं माना तो संघार कर दिया।
अतः प्रत्येक व्यक्ति को तलवों तक के पानी को इग्नोर करना चाहिए, घुटनों तक पानी के आते ही प्लान ऑफ एक्शन तैयार रखना चाहिए, और क़मर तक पानी आते ही एक्शन ले लेना चाहिए।
कब कैसे कहाँ प्रतिकार करना है या नहीं यह स्वविवेक पर निर्भर करता है।
क्रोध में बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, और बदले की भावना से सही गलत की समझ चली जाती है। इस बदले की भावना में स्वयं का, मिशन का और देश का अहित भी व्यक्ति कर डालता है। क्रोध में होश नहीं होता। जैसे क्रोध में कुछ लोग घर का सामान तोड़ देते है, बच्चो को बुरी तरह पीट देते है और बाद में पछताते रहते हैं।
आक्रोश में बुद्धिप्रयोग सम्भव होता है, क्योंकि आक्रोश में पाप से घृणा की जाती है पापी से नहीं। जिस प्रकार मैडम क्लास में बच्चों के न पढ़ने पर आक्रोश करती है, लेक़िन बच्चे के प्रति मन मे कोई दुर्व्यवहार नहीं रखती। पूरे होश-हवाश में आक्रोश का प्रदर्शन करती है, पहले प्यार से पढ़ने को कहती है, न पढ़ने पर सज़ा देती है।
सेना और पुलिस भी आक्रोश व्यक्त करते हैं, क्योंकि उन्हें अपने वर्तमान पद मर्यादा का होश रहता है। पहले हथियार फेंकने की गुजारिश और आत्मसमर्पण को कहते है, न मानने पर ही गोली चलाते हैं।
अपने हक का छोड़ो मत और दूसरे के हक का छीनो मत। अपनी मर्यादा का पालन करो, मतभेद रखो लेकिन मन भेद मत रखो।
प्रेम में हमें सामने वाले की बुराई नहीं दिखती और क्रोध में सामने वाले की अच्छाई नहीं दिखती।
अहंकार ऐसा नेत्रदोष उतपन्न करता है, जिससे सच्चाई और अच्छाई औरों का दिखता नहीं।
विनयी/विनम्र होना अर्थात स्वयं का आत्म समीक्षक होना, बिना द्वेष दुर्भाव के समस्या का समाधान ढूंढना।
अकर्मण्य व्यक्ति को भी विनम्र/विनयी नहीं कहा जाता, जिसका कोई समाज के लिए योगदान नहीं है।
बुद्धिमान और बलशाली व्यक्ति यदि उदारचरित्र होकर अदब से बात करता है, उसे ही विनयी/विनम्र कहा जाता है।
सरल शब्दों में, विवेक के साथ लिया एक्शन आक्रोश है। बिना विवेक के लिया एक्शन क्रोध है। बुद्धि और बल होते हुए भी विनम्रता का प्रदर्शन करना महानता है, अति आवश्यकता पड़ने पर अन्याय के प्रतिकार स्वरूप आक्रोश प्रदर्शित करना और हथियार उठाना भी धर्म है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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