प्रश्न - *दीदी बहुत बार हम कहते हैं कि अन्याय सहना भी पाप है.....परन्तु दूसरी तरफ हम सहनशील बनने की बात कहते हैं........प्रारब्ध की बात करते हैं.........मेरे अपनों ने मुझे बहुत चोट पहुंचाई है.....तो मैं इसे क्या मानूँ.??*
उत्तर - आत्मीय बहन, किसी भी महापुरुष द्वारा दिया ज्ञान समय काल परिस्थिति के अनुसार उपयोग में विवेक बुद्धि का प्रयोग करके लेना चाहिए।
हाथ धोना बड़ी अच्छी बात है, लेकिन कब जब आप पूजन या भोजन करने जा रहे हो। तब नहीं जब आप बिजली के उपकरण पर कार्य करने जा रहे हो। गीले हाथ से झटका तेज लगेगा।
सहनशीलता भी कुछ हाथ धोने जैसा ही है। विवेक पूर्वक निर्णय लेकर यह तय करना होता है कि कहां सहनशील बनें और कहाँ नहीं।
जिन परिस्थितियों पर नियंत्रण हमारा नहीं और पूर्वजन्म के संचित कर्मफ़ल से मिली है उन्हें प्रारब्ध कहते हैं। जैसे किसी घर में जन्मना, जन्मजात हाथ पैर या कोई अंग न होना। जीवनसाथी या परिवार वाले जिन्हें हम अपने की संज्ञा देते हैं हमारे दुश्मनों की तरह उनका व्यवहार करना और कोई घातक चोट पहुंचाना।
जज के समक्ष रेपिस्ट और अपराधी गैर हो तो न्याय करना बड़ा आसान होता है, लेकिन जब वही रेपिस्ट और अपराधी निज सन्तान हो तो फांसी की सजा देते वक्त हाथ कम्पकपाता है।
बहन, यदि पाकिस्तान सेना ने भारत में हमला कर दिया तो भारतीय सेना का रिप्लाई मोड क्या और कैसा होगा? दूसरी तरफ यदि भारतीय लोगों ने आरक्षण के लिए दंगा, हिंसा और तोड़फोड़ की तो ऐसे केस में भारतीय सेना का रिप्लाई मोड क्या होगा?
एक युध्द गैरों के साथ लड़ा जाएगा तो युद्ध प्रोटोकॉल में कितने लोग पाकिस्तानी लोग मरे कोई सवाल संसद में नहीं पूँछेगा?
लेकिन एक युध्द जो घरेलू दंगे में अपने भारतीयों से लड़ा जाएगा उसमें गोली भी गिननी पड़ेगी, लोग मरेंगे तो बवाल भी मचेगा, संसद में हंगामा भी होगा। यहां सेना को भी बंदूक चलाने में दिक्कत होती है क्योंकि मरने वाले अपने ही हैं।
सीता जी का अपमान गैर रावण ने किया और द्रौपदी का अपमान रक्तसम्बन्धी देवर ने किया। रामायण में युद्ध गैरो से हुआ था और महाभारत में युद्ध अपनों से ही हुआ था।
तुम्हारे अपने तुम्हें इसलिए चोट पहुँचा पाए, क्योंकि तुम अर्जुन और भीष्म की तरह मोहग्रस्त और किंकर्तव्यविमूढ़ थी। भीष्म एक निज धर्म के लिए दूसरे अधर्म को मौन समर्थन दे रहे थे, इसी तरह तुम भी धर्मसंकट में पड़ी।
ऐसे धर्मसंकट के मौके पर श्रीमद्भागवत गीता पढ़ो और गायत्री जप करो, अन्यायी अपना हो या गैर, यदि गम्भीर गलती है तो दण्ड दो और अपनी लड़ाई लड़ो।
भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है।
मोह सकल व्याधिन कर मूला।
अक्ल के प्रयोग से ताकतवर को भी धूल चटाया जा सकता है। साम दाम दण्ड भेद अपनाना पड़ता है।
अन्याय सहने वाला अन्याय करने वाले से ज्यादा दोषी होता है। अपने केवल हमें चार कारण से चोट पहुंचा सकते हैं:-
1- *धन जायजाद के लिए* - दूसरे के हक का लो मत और अपने हक का छोड़ो मत
2- *एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर/चरित्रहीनता* - पहले वार्निंग दो सुधरने की, पूजा पाठ अनुष्ठान भी कर दो सुधार के लिए। यदि न सुधरे तो उसका त्याग कर दो, और जलील जिंदगी से बाहर आओ।
3- *बुरे व्यवहार के कारण* - व्यवहारिक दोष इग्नोर करो, क्योंकि यह परवरिश दोष है जैसे गुस्सा करना या अभद्र बोलना। इन्हें अच्छे संस्कार मिले नहीं है अब बड़े में इन्हें आसानी से सुधारा नहीं जा सकता। अतः इन्हें हैंडल करने की कुशलता बढ़ाओ। मिर्ची और करेला भी उपयोगी है यदि उससे चटपटा नमकीन खाया जाय।
4- *कोई अहसान फ़रामोश निकल गया* - यदि आपने किसी का भला किया और वो अहसान फ़रामोश निकल गया तो आप दुःखी है तो यह आपकी गलती है। नेकी कर और दरिया में डाल। तुम अपने स्वभाव की गारंटी लो, दूसरे की लोगे तो दुःखी रहोगे।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*हमारी भावनात्मक कमज़ोरी और हमारा अस्थिर वजूद ही दुःख का कारण है। मख्खी वहीं बैठती है जहाँ घाव होता है। अतः मख्खी भगाना है तो अपने घाव ठीक कीजिये। वही छत टपकेगी बरसात में जो कमज़ोर होगी। अतः अपने छत की मरम्मत कीजिये। अपने वजूद की मरम्मत कीजिये। अन्याय मिटाना है तो स्वयं को योग्य और समर्थ बनाइये। युगऋषि कहते हैं शक्तिवान बनिये और बुद्धिमान बनिये। स्वयं में सुधार और बदलाव लाइये। वीर योद्धा रोते नहीं अपितु मुकाबला करते हैं।*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
कुछ पुस्तकें पढ़िये और अपना युद्ध जीतिए:-
1- श्रीमद्भागवत गीता
2- दृष्टिकोण ठीक रखिये
3- शक्तिवान बनिये
4- कठिनाईयो डरिये नहीं, मुकाबला कीजिये
5- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
6- हारिये न हिम्मत
7- प्रबन्धव्यवस्था एक विभूति एक कौशल
8- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
9- गहना कर्मणो गतिः
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, किसी भी महापुरुष द्वारा दिया ज्ञान समय काल परिस्थिति के अनुसार उपयोग में विवेक बुद्धि का प्रयोग करके लेना चाहिए।
हाथ धोना बड़ी अच्छी बात है, लेकिन कब जब आप पूजन या भोजन करने जा रहे हो। तब नहीं जब आप बिजली के उपकरण पर कार्य करने जा रहे हो। गीले हाथ से झटका तेज लगेगा।
सहनशीलता भी कुछ हाथ धोने जैसा ही है। विवेक पूर्वक निर्णय लेकर यह तय करना होता है कि कहां सहनशील बनें और कहाँ नहीं।
जिन परिस्थितियों पर नियंत्रण हमारा नहीं और पूर्वजन्म के संचित कर्मफ़ल से मिली है उन्हें प्रारब्ध कहते हैं। जैसे किसी घर में जन्मना, जन्मजात हाथ पैर या कोई अंग न होना। जीवनसाथी या परिवार वाले जिन्हें हम अपने की संज्ञा देते हैं हमारे दुश्मनों की तरह उनका व्यवहार करना और कोई घातक चोट पहुंचाना।
जज के समक्ष रेपिस्ट और अपराधी गैर हो तो न्याय करना बड़ा आसान होता है, लेकिन जब वही रेपिस्ट और अपराधी निज सन्तान हो तो फांसी की सजा देते वक्त हाथ कम्पकपाता है।
बहन, यदि पाकिस्तान सेना ने भारत में हमला कर दिया तो भारतीय सेना का रिप्लाई मोड क्या और कैसा होगा? दूसरी तरफ यदि भारतीय लोगों ने आरक्षण के लिए दंगा, हिंसा और तोड़फोड़ की तो ऐसे केस में भारतीय सेना का रिप्लाई मोड क्या होगा?
एक युध्द गैरों के साथ लड़ा जाएगा तो युद्ध प्रोटोकॉल में कितने लोग पाकिस्तानी लोग मरे कोई सवाल संसद में नहीं पूँछेगा?
लेकिन एक युध्द जो घरेलू दंगे में अपने भारतीयों से लड़ा जाएगा उसमें गोली भी गिननी पड़ेगी, लोग मरेंगे तो बवाल भी मचेगा, संसद में हंगामा भी होगा। यहां सेना को भी बंदूक चलाने में दिक्कत होती है क्योंकि मरने वाले अपने ही हैं।
सीता जी का अपमान गैर रावण ने किया और द्रौपदी का अपमान रक्तसम्बन्धी देवर ने किया। रामायण में युद्ध गैरो से हुआ था और महाभारत में युद्ध अपनों से ही हुआ था।
तुम्हारे अपने तुम्हें इसलिए चोट पहुँचा पाए, क्योंकि तुम अर्जुन और भीष्म की तरह मोहग्रस्त और किंकर्तव्यविमूढ़ थी। भीष्म एक निज धर्म के लिए दूसरे अधर्म को मौन समर्थन दे रहे थे, इसी तरह तुम भी धर्मसंकट में पड़ी।
ऐसे धर्मसंकट के मौके पर श्रीमद्भागवत गीता पढ़ो और गायत्री जप करो, अन्यायी अपना हो या गैर, यदि गम्भीर गलती है तो दण्ड दो और अपनी लड़ाई लड़ो।
भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है।
मोह सकल व्याधिन कर मूला।
अक्ल के प्रयोग से ताकतवर को भी धूल चटाया जा सकता है। साम दाम दण्ड भेद अपनाना पड़ता है।
अन्याय सहने वाला अन्याय करने वाले से ज्यादा दोषी होता है। अपने केवल हमें चार कारण से चोट पहुंचा सकते हैं:-
1- *धन जायजाद के लिए* - दूसरे के हक का लो मत और अपने हक का छोड़ो मत
2- *एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर/चरित्रहीनता* - पहले वार्निंग दो सुधरने की, पूजा पाठ अनुष्ठान भी कर दो सुधार के लिए। यदि न सुधरे तो उसका त्याग कर दो, और जलील जिंदगी से बाहर आओ।
3- *बुरे व्यवहार के कारण* - व्यवहारिक दोष इग्नोर करो, क्योंकि यह परवरिश दोष है जैसे गुस्सा करना या अभद्र बोलना। इन्हें अच्छे संस्कार मिले नहीं है अब बड़े में इन्हें आसानी से सुधारा नहीं जा सकता। अतः इन्हें हैंडल करने की कुशलता बढ़ाओ। मिर्ची और करेला भी उपयोगी है यदि उससे चटपटा नमकीन खाया जाय।
4- *कोई अहसान फ़रामोश निकल गया* - यदि आपने किसी का भला किया और वो अहसान फ़रामोश निकल गया तो आप दुःखी है तो यह आपकी गलती है। नेकी कर और दरिया में डाल। तुम अपने स्वभाव की गारंटी लो, दूसरे की लोगे तो दुःखी रहोगे।
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*हमारी भावनात्मक कमज़ोरी और हमारा अस्थिर वजूद ही दुःख का कारण है। मख्खी वहीं बैठती है जहाँ घाव होता है। अतः मख्खी भगाना है तो अपने घाव ठीक कीजिये। वही छत टपकेगी बरसात में जो कमज़ोर होगी। अतः अपने छत की मरम्मत कीजिये। अपने वजूद की मरम्मत कीजिये। अन्याय मिटाना है तो स्वयं को योग्य और समर्थ बनाइये। युगऋषि कहते हैं शक्तिवान बनिये और बुद्धिमान बनिये। स्वयं में सुधार और बदलाव लाइये। वीर योद्धा रोते नहीं अपितु मुकाबला करते हैं।*
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कुछ पुस्तकें पढ़िये और अपना युद्ध जीतिए:-
1- श्रीमद्भागवत गीता
2- दृष्टिकोण ठीक रखिये
3- शक्तिवान बनिये
4- कठिनाईयो डरिये नहीं, मुकाबला कीजिये
5- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
6- हारिये न हिम्मत
7- प्रबन्धव्यवस्था एक विभूति एक कौशल
8- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
9- गहना कर्मणो गतिः
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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