प्रश्न - *जीवन में अटल-स्थितप्रज्ञ होने के क्या लक्षण होते हैं? राम राम!*
उत्तर - आत्मीय बहन, अटल अर्थात जिसे टाला न जा सके। योगियों की भाषा में स्थितप्रज्ञ कहते हैं।
स्थितप्रज्ञ व्यक्ति होने के लक्षण:-
1- जब इच्छाएं मर जायें और शरीर जीवित रहकर समस्त सांसारिक कर्मो को करता हुआ भी मन मे स्थिर रहे।
उदाहरण - जिस प्रकार नवजात शिशु की माता संसार के समस्त कार्यो को करते हुए भी केवल मन में शिशु के चिंतन में ध्यानस्थ होती है और उस पर केंद्रित रहती है। कोई वस्तु या व्यक्ति या कार्य उसे शिशु चिंतन से विचलित नहीं कर सकता। इसी तरह स्थितप्रज्ञ ऑफिस में हो या घर में या युध्द के मैदान में उसके चिंतन में परमात्मा होता है, कोई भी बाह्य घटना उसे विचलित नहीं कर सकती।
2- स्थितप्रज्ञ इस संसार को तत्व दृष्टि से देखता है:-
उदाहरण - आम जनता की दृष्टि में स्वर्णाभूषण कंगन, पायल, मुकुट इत्यादि भिन्न भिन्न है। स्वर्ण से बनी राजा की प्रतिमा में और स्वर्ण से उसकी जनता की मूर्ति का स्थान भिन्न है। लेकिन सोनार की तत्व दृष्टि में सब एक ही तत्व है और वह है स्वर्ण।
इसलिए जब स्थितप्रज्ञ राजा को देखे या रंक को, पक्षु को देखे या वनस्पति को उसे सबमें एटम(परमाणु) दिखता है जिससे सब बने है और सबको बनाने वाले की ऊर्जाकण दिखता है। इसलिए वो मोहबन्धन से मुक्त है।
3- स्थितप्रज्ञ जीवन का सार देखता है और असार छोड़ देता है।
उदाहरण - प्रेमी द्वारा गुलाब का पुष्प देने पर प्रेमिका को गुलाब अनुभूत नहीं होता अपितु केवल प्रेम अनुभूत होता है। इसी तरह स्थितप्रज्ञ को यह संसार अनुभूत नहीं होता केवल परमात्मा अनुभूत होता है।
4- दासभक्ति सती स्त्री की तरह करता है
उदाहरण - सती स्त्री जिस तरह स्वयं की पहचान को मिटा कर पति की पहचान अपनाती है। स्वयं को समर्पित कर देती है, पूरा जीवन पति की सेवा में बिना किसी स्वार्थ के अर्पित कर देती है। ऐसे ही *करिष्ये वचनम तव* को हृदय में स्वीकार करके, जो ईश्वरीय अनुशासन में और ईश्वर आज्ञा होगी वही स्थितप्रज्ञ करता है।
5- कर्ताभाव त्याग के ईश्वरीय निमित्त बन कार्य करता है।
उदाहरण - पोस्टमैन कर्म करता है, तो निमित्त बन चिट्ठियां पहुंचाता है। चिठ्ठी में सुख की खबर हो या दुःख की खबर या मनीऑर्डर हो इन बातों से वो न सुखी होता है और न दुःखी। क्योंकि वो कर्ता नहीं है केवल निमित्त है। सेना देश के निमित्त बनकर दुश्मनों को मारती है। इसलिए उसके द्वारा की हत्या का पाप उसे नहीं लगता।
इसी तरह स्थितप्रज्ञ कर्मयोगी कर्ता भाव और इच्छाओं का त्यागकर ईश्वरीय निमित्त बन कार्य करता है। तो कर्मफ़ल से मुक्त होता है।
पूजा और ध्यान के वक्त मन में भटकाव मन में विद्यमान मनोकामना के कारण होता है।
ध्यान लगे या न लगे स्थित प्रज्ञ परवाह नहीं करता, उसे तो शांति पाने की भी इच्छा नहीं है, वो तो बस भगवान के पास बैठता है और स्वयं को परमात्मा में विलय कर देने के लिए ध्यान में बैठता है, जैसे नदी स्वयं को समुद्र में विलय करने को मिलती है, इसी तरह स्वयं को परमात्मा में खोने को जो बैठा है वो निर्बाध निर्बीज समाधि तक पहुंचता है। इसलिए वो शांत स्थिर और अटल रहता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, अटल अर्थात जिसे टाला न जा सके। योगियों की भाषा में स्थितप्रज्ञ कहते हैं।
स्थितप्रज्ञ व्यक्ति होने के लक्षण:-
1- जब इच्छाएं मर जायें और शरीर जीवित रहकर समस्त सांसारिक कर्मो को करता हुआ भी मन मे स्थिर रहे।
उदाहरण - जिस प्रकार नवजात शिशु की माता संसार के समस्त कार्यो को करते हुए भी केवल मन में शिशु के चिंतन में ध्यानस्थ होती है और उस पर केंद्रित रहती है। कोई वस्तु या व्यक्ति या कार्य उसे शिशु चिंतन से विचलित नहीं कर सकता। इसी तरह स्थितप्रज्ञ ऑफिस में हो या घर में या युध्द के मैदान में उसके चिंतन में परमात्मा होता है, कोई भी बाह्य घटना उसे विचलित नहीं कर सकती।
2- स्थितप्रज्ञ इस संसार को तत्व दृष्टि से देखता है:-
उदाहरण - आम जनता की दृष्टि में स्वर्णाभूषण कंगन, पायल, मुकुट इत्यादि भिन्न भिन्न है। स्वर्ण से बनी राजा की प्रतिमा में और स्वर्ण से उसकी जनता की मूर्ति का स्थान भिन्न है। लेकिन सोनार की तत्व दृष्टि में सब एक ही तत्व है और वह है स्वर्ण।
इसलिए जब स्थितप्रज्ञ राजा को देखे या रंक को, पक्षु को देखे या वनस्पति को उसे सबमें एटम(परमाणु) दिखता है जिससे सब बने है और सबको बनाने वाले की ऊर्जाकण दिखता है। इसलिए वो मोहबन्धन से मुक्त है।
3- स्थितप्रज्ञ जीवन का सार देखता है और असार छोड़ देता है।
उदाहरण - प्रेमी द्वारा गुलाब का पुष्प देने पर प्रेमिका को गुलाब अनुभूत नहीं होता अपितु केवल प्रेम अनुभूत होता है। इसी तरह स्थितप्रज्ञ को यह संसार अनुभूत नहीं होता केवल परमात्मा अनुभूत होता है।
4- दासभक्ति सती स्त्री की तरह करता है
उदाहरण - सती स्त्री जिस तरह स्वयं की पहचान को मिटा कर पति की पहचान अपनाती है। स्वयं को समर्पित कर देती है, पूरा जीवन पति की सेवा में बिना किसी स्वार्थ के अर्पित कर देती है। ऐसे ही *करिष्ये वचनम तव* को हृदय में स्वीकार करके, जो ईश्वरीय अनुशासन में और ईश्वर आज्ञा होगी वही स्थितप्रज्ञ करता है।
5- कर्ताभाव त्याग के ईश्वरीय निमित्त बन कार्य करता है।
उदाहरण - पोस्टमैन कर्म करता है, तो निमित्त बन चिट्ठियां पहुंचाता है। चिठ्ठी में सुख की खबर हो या दुःख की खबर या मनीऑर्डर हो इन बातों से वो न सुखी होता है और न दुःखी। क्योंकि वो कर्ता नहीं है केवल निमित्त है। सेना देश के निमित्त बनकर दुश्मनों को मारती है। इसलिए उसके द्वारा की हत्या का पाप उसे नहीं लगता।
इसी तरह स्थितप्रज्ञ कर्मयोगी कर्ता भाव और इच्छाओं का त्यागकर ईश्वरीय निमित्त बन कार्य करता है। तो कर्मफ़ल से मुक्त होता है।
पूजा और ध्यान के वक्त मन में भटकाव मन में विद्यमान मनोकामना के कारण होता है।
ध्यान लगे या न लगे स्थित प्रज्ञ परवाह नहीं करता, उसे तो शांति पाने की भी इच्छा नहीं है, वो तो बस भगवान के पास बैठता है और स्वयं को परमात्मा में विलय कर देने के लिए ध्यान में बैठता है, जैसे नदी स्वयं को समुद्र में विलय करने को मिलती है, इसी तरह स्वयं को परमात्मा में खोने को जो बैठा है वो निर्बाध निर्बीज समाधि तक पहुंचता है। इसलिए वो शांत स्थिर और अटल रहता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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