Monday, 4 February 2019

श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय प्रथम, श्लोक 1

श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय प्रथम, श्लोक 1

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥ (१)

भावार्थ : धृतराष्ट्र ने कहा - हे संजय! धर्म-भूमि और कर्म-भूमि में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे पुत्रों और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया? (१)

युगसन्देश(1) : यदि कर्म क्षेत्र को धर्म क्षेत्र बनाकर धर्म का समावेश जीवन में हर पल कर लिया जाय, तो युद्ध की परिस्थिति ही निर्मित न होगी।

जब पुत्र मोह में अँधे या निज स्वार्थ में व्यक्ति अंधा होकर अपने कर्म क्षेत्र में धर्म का त्याग करता है तब वह भावी महाभारत को निमंत्रित करता है।

जब परिवार हो या कम्पनी या मिशन में मेरा तेरा होता है, तो काम सर्वत्र बिगड़ता ही है, युद्ध में तबाही दोनों तरफ़ होती है। दो लोगों में जब युद्ध होता है तो नुकसान परिवार और मिशन को ही होता है। युद्ध में कौरवों का समूल नाश हुआ तो पांडवों में पांडव और द्रौपदी को छोड़कर कोई शेष न बचा पुत्र पौत्र सब मृत्यु को प्राप्त हुए। केवल परीक्षित भी तब बचे जब गर्भ में श्रीकृष्ण ने उन्हें संरक्षण दिया।

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