Monday 25 February 2019

प्रश्न - *हमारे जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिये?*

प्रश्न - *हमारे जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिये?*

उत्तर - आत्मीय बहन, यह शरीर सराय है और आत्मा अनन्त यात्री। अतः जीवन लक्ष्य चुनते वक्त दोनों की उन्नति पर समान फ़ोकस रखना होगा। संसार और आत्मा के बीच सन्तुलन का नाम ही अध्यात्म है। कभी भी यह गलती नहीं करनी चाहिए कि एक मिल जाएगा तब दूसरे पर ध्यान देंगे, आत्मज्ञान और सांसारिक सफ़लता दोनों को साथ साथ मेहनत करनी  है।

👉🏼👉🏼वस्तुतः प्रथम वरीयता तो हम सबको आत्मउत्कर्ष और आत्मज्ञान पाने का लक्ष्य बनाने की करनी चाहिए। अंतर्जगत में प्रवेश कर स्वयं की आत्मा क्या चाहती है। यह गहराई से समझना चाहिए। नित्य ध्यान की गहराई में जाकर *मैं क्या हूँ? मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ? इस शरीर को छोड़ने के बाद कहाँ जाऊंगा? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?* इन प्रश्नों पर गहराई से चिंतन कुछ पल करें। फिर 20 से 30 मिनट थोड़ी हल्का सा आसमान की तरफ़ ऊंचा सर   करके नेत्र बन्द, कमर सीधी और दोनों हाथ गोद में रखकर करके बैठ जायें। आती जाती श्वांस पर चौकीदार की तरह नज़र रखें। यह कुछ ऐसा होगा मानो चेतना के दूध में उपरोक्त प्रश्नों का जामन डालकर जमने के लिए छोड़ देना। जब बिना हिले डुले आधे घण्टे से एक घण्टे बैठने का अभ्यास सध जाएगा तो ब्रह्माण्ड से आप सीधे जुड़ जाएंगे और प्रश्नों के समाधान आपके भीतर उभरने लगेंगे। एक से दो घण्टे नित्य पर्याप्त है, इस क्षेत्र में सफलता के लिए।

निम्नलिखित कुछ पुस्तकें इसमें सहायक होंगी:-
1- अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान भाग 1 और 2
2- चेतन, अचेतन और सुपर्चेतन
3- ब्रह्मवर्चस की ध्यानधारणा
4- मैं क्या हूँ
5- अध्यात्म विद्या का प्रवेशद्वार

👉🏼👉🏼द्वितीय बात संसार रूपी सराय में जब तक हैं तबतक संसार मे हैं। अतः सांसारिक लक्ष्य क्या चुना जाय यह समझना भी जरूरी है? अच्छा तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का लक्ष्य स्वयं चुने। वह अपनी सहज नैसर्गिक शक्तियों, रुचियों, सामर्थ्यों और अर्जित योग्यताओं के विषय में जितना अधिक जानता है, उतना अन्य जन नहीं जानते। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक नवयुवक/नवयुवती को अपने जीवन का लक्ष्य चुनने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

*कुछ प्रश्न स्वयं से पूंछो*:-

1- वर्तमान मेरी योग्यता क्या है? इस योग्यता को और आगे बढ़ा कर क्या कुछ अच्छा हासिल हो सकता है? वो क्या है?

2- मेरी रुचि क्या है? मुझे क्या करना अच्छा लगता है? ऐसे कामों की(passion) लिस्ट बनाये जो आपको अच्छा लगता है। अब उनमें से देखें क्या किसी passion को प्रोफेशनली किया जा सकता है क्या? क्या ये लक्ष्य बन सकता है?

3- उन कामों की लिस्ट बनाये जो आपको महत्त्वपूर्ण लगता है, अब सोचें क्या इन कामों से किसी कार्य को करने हेतु क्या मैं अपनी योग्यता पात्रता बढ़ा सकती हूँ क्या?

4- मैं नैचरली सहजता से क्या बेहतर सबसे कर सकती हूँ? मेरी सामर्थ्य किस चीज़ में सबसे बेहतर है? क्या इनमें से किसी को लक्ष्य बना सकती हूँ क्या?

5- मेरे शुभ चिंतक, मेरे मम्मी-पापा या मित्रो ने मुझे जो सलाह दी थी उनमें से क्या मैं अपना जोवन लक्ष्य बना सकती हूँ क्या?

उपरोक्त प्रश्नों पर थोड़ा थोड़ा नित्य गहन चिंतन अवश्य करें, नित्य लक्ष्य चिंतन से मन को मथें कुछ न कुछ लक्ष्य मक्खन की तरह मन और हृदय में उभर कर जरूर आएगा।

जब लक्ष्य चुन लें तो ध्यान रखें लक्ष्य एक ही होना चाहिए, वो या तो आपकी रुचि का होना चाहिए, या आपकी सामर्थ्य में होना चाहिए या दिल से उसे महत्त्वपूर्ण मानते हुए उसे any how प्राप्त करना चाहते हो।

प्रत्येक मनुष्य को यह स्मरण रखना चाहिए कि लक्ष्य निश्चित कर लेने के बाद भी उसके मार्ग में बड़े बड़े प्रलोभन आयेंगे। लक्ष्य दूर होता ही है और उससे होने वाला लाभ भी दूरस्थ होता है। बीच में ऐसे अनेक काम आ सकते हैं, जिनसे तात्कालिक लाभ होने की संभावना रहती है। ऐसे लाभ को देखकर मनुष्य का मन डगमगाने लगता है। वह विचलित होकर पथभ्रष्ट हो जाता है। ऐसे अवसरों पर मन को दृढ़ रखने की आवश्यकता है। अपने जीवन के लक्ष्य के प्रति मनुष्य को हर दशा में सजग रहना चाहिए। इसका एक उत्तम उपाय यह है कि प्रतिमास या प्रतिवर्ष अपने कार्यों और उपलब्धियों की अवश्य जाँच करनी चाहिए। इससे अपनी प्रगति का अनुमान हो जाता है, उत्साह बढ़ता है और लक्ष्य पर दृष्टि जमी रहती है। मनुष्य को किसी ऐसे क्षेत्र में पदार्पण नहीं करना चाहिए, जिससे अपने निश्चित लक्ष्य का विरोध हो। ऐसे मित्रों या संगति से भी दूर रहना चाहिए जिनके प्रभाव से लक्ष्य विमुख होने की संभावना हो। यदि आपने संगीत में नैपुण्य प्राप्त करने को अपने जीवन का लक्ष्य चुना है तो क्रिकेट खेलने या बटेर लड़ाने वाले के साथ मैत्री रखने में पथ भ्रष्ट हो जाना सम्भव है। अपना अध्ययन, चिन्तन और मनोरंजन सभी कुछ लक्ष्य के अनुकूल हृदय मंदिर में जलती रहे और उसका कोना-कोना प्रकाशित रहे, इस बात को स्मरण रखना है।

अन्त में, आप यह भी स्मरण रखें कि जो आपका लक्ष्य स्थिर है, तो आप सैकड़ों व्याधी से दूर रहेंगे। आपका मन अनिश्चित और अन्तर्द्वन्द्व से मुक्त रहेगा। दुविधापूर्ण परिस्थितियों में निर्णय ले सकेंगे और आपकी इच्छा शक्ति बनेगी। आप समय का सदुपयोग करना सीख सकें क्योंकि जब फालतू बातों की ओर आपका ध्यान न जायेगा तो समय का अपव्यय अपने आप रुक जायेगा। प्रायः आप अपनी शक्ति की संपदा का भारी अपव्यय करते रहते हैं परन्तु लक्ष्य के निश्चय से आपकी शक्ति का एक एक कण उसी की पूर्ति में लगेगा। आपको तभी अपनी शक्ति का अनुमान होगा। *सूर्य की किरणों में यों साधारण गर्मी ही है परन्तु जब बहुत सी किरणें आतिशी शीशे द्वारा एक केन्द्र बिन्दु पर इकठ्ठा करली जाती हैं, तो उनमें भस्म कर देने की शक्ति आ जाती है।* *आप निर्बलता का अनुभव इसलिए करते हैं कि आप की शक्तियाँ बिखरी रहती हैं। आपका लक्ष्य ही आपकी शक्तियों को समेटने वाला आतिशी शीशा है। अब यह स्मरण रखें कि आत्मज्ञान जीवन का मुख्य लक्ष्य हो और सांसारिक सफ़लता उसका पूरक हो।*

 मंजिल एक होती है, पड़ाव कई हो सकते हैं। *विवाह और बच्चे जीवन लक्ष्य नहीं होते, ये जीवन का पड़ाव है। जीवन लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ने वाला न भगवान पर बोझ बनता है और न ही इंसान पर, वो सदैव भारमुक्त होता है*। स्वयं भी लक्ष्य प्राप्ति की  ओर बढ़ता रहता है और दूसरों को भी आगे बढ़ाता है।

नित्य 8 से 10 घण्टे पर्याप्त है, इस क्षेत्र में सफलता के लिए..

बच्चों को महंगे गिफ़्ट दें या न दें, उत्तराधिकार में धन संपत्ति दें या न दें, लेकिन एक मुख्य जीवन लक्ष्य जरूर दें, साथ ही उसी से जुड़े छोटे छोटे लक्ष्य जरूर दें। उनके मन को श्रेष्ठ संकल्पों से अवश्य बांध दें। अन्यथा सबकुछ रहते हुए भी बच्चा/युवा बोर होंगे और दिशाहीन होकर भटकेंगे और ज़िंदगी ढोएंगे, उदास रहेंगे।

जिस व्यक्ति को यह न पता हो कि जाना कहाँ है, वो भला सफ़र कैसे एन्जॉय कर सकता है? इसी तरह जिस व्यक्ति को जीवनलक्ष्य न पता न हो वो भला जीवन कैसे एन्जॉय कर पायेगा?

जरूरी नहीं है प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में लक्ष्य कमाने के लिए ही हो, कमाये तो अच्छा है, लेकिन उत्तम आर्थिक व्यवस्था है तो वो लक्ष्य भी चुना जा सकता है जिससे समाज की सेवा हो या किसी हुनर को निखारकर कला क्षेत्र में सफल हुआ जाय।

आज़ादी की लड़ाई के वक्त पति पत्नी में से एक घर चलाता था और दूसरा स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी करता था। यही अब भी करने की जरूरत है, एक घर के लिए कमाएं दूसरा देश उत्थान के लिए समय दे।

*लक्ष्य निर्धारण में सहायक कुछ पुस्तकें*:-
1- विद्यार्थी जीवन में अपना लक्ष्य निर्धारित करें
2- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
3- सफल जीवन की दिशा धारा

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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