प्रश्न - *दीदी प्रणाम, दीदी मेरे हस्बैंड ने मुझे फंसाया था, शादी से पहले उनका अफेयर था, शादी के बाद भी कुछ दिन चला, अब है या नहीं मुझे पता नहीं। पहले मुझे इस बात पर बहुत गुस्सा आता था अभी मैंने गुस्सा कम कर दिया है अभी घर में झगड़े नहीं होते लेकिन हस्बैंड को माफ नहीं कर पा रही हूं तो मैं क्या करूं मैं नियमित गायत्री माता की माला जप करती हूं हवन करती हूं गायत्री मंत्र का अनुष्ठान भी किया था।*
उत्तर- आत्मीय बहन, इसका समाधान समझने के लिए आपको अपने जीवन और पति के जीवन को तत्वदृष्टि से देखना और समझना पड़ेगा।
1- सभी आत्माएं अकेले जन्म लेती हैं और अकेले ही मृत्यु के माध्यम से शरीर त्याग करती है। आत्मा का वास्तव में कोई सम्बन्धी नहीं, या यूं कहें तो आत्मा देह से जुड़े रिश्ते से मुक्त है। पिछले जन्म में न जाने कौन जीवनसाथी था, अगले जन्म में न जाने कौन जीवनसाथी बनेगा पता नहीं।
2- देह अन्न से बना है, उसे दर्द हो सकता है लेकिन देह को प्रेम नहीं हो सकता और न ही दुःख की अनुभूति होती है। अर्थात देह को गाड़ी समझो जो कि पहाड़ी की खूबसूरती महसूस नहीं कर सकती और न ही नाले की गंदगी देख के कोई भावना महसूस कर सकती है। उसे केवल ईंधन चाहिए चलने के लिए, ड्राइवर जहां चाहे वहां बिना कोई प्रश्न किये चली जायेगी।
3- सुख,दुःख, प्रेम, घृणा, गुस्सा, वात्सल्य इत्यादि यह न तो शरीर समझता है और न हीं आत्मा का इससे कोई लेना देना हैं। यह भावनाएं वस्तुतः मन की प्रॉपर्टी है।
4- मन क्या है? मन एक सॉफ्टवेयर की तरह है जो इस शरीर के हार्डवेयर का उपयोग करता है। मन वस्तुतः मनुष्य की अच्छी बुरी आदतों, विचारो, अनुभूतियों, कल्पनाओं, यादों का ग्रुप/संग्रह है। यदि एक्सीडेंट हो जाये और दिमाग मे चोट लगकर याददाश्त चली जाए तो प्रेम भी मिट जाएगा।
5- शरीर में हार्मोनल परिवर्तन अपोज़िट सेक्स के व्यक्ति को आकर्षित करते हैं। जिसका मुख्य कारण होता है कि ये हार्मोनल परिवर्तन पुरुषों में पॉजिटिव विकर्षण मानवीय विद्युत ऊर्जा उतपन्न करते है और लड़कियों में निगेटिव आकर्षण मानवीय विद्युत ऊर्जा उतपन्न करते हैं। यदि बचपन से घर में विभीन्न सँस्कार और विद्यालय में मन का प्रबंधन न सिखाया गया। इस विद्युत ऊर्जा को जीवन लक्ष्य/कैरियर निर्माण में नहीं लगाया तो भटकाव निश्चित है।
6- किशोर और प्रारम्भिक युवावस्था में लड़के लड़कियों में स्वयं का भला बुरा सोचने की क्षमता नहीं होती। मैच्योरिटी का अभाव होता है। वो जीवन की गहराई नहीं समझते और भूल कर बैठते हैं।
7- किशोरावस्था और प्रारम्भिक युवावस्था में युवा जिससे प्रेम करते हैं उसी से विवाह करना चाहते हैं। क्योंकि उनकी आर्थिक स्टेबिलिटी और कैरियर बिल्ट नहीं हुआ होता, उन्हें मजबूरी में पारिवारिक दबाव में उससे विवाह करना पड़ता है जिससे विवाह वो करना नहीं चाहते।
8- पुरानी प्रेम की यादें वर्तमान गृहस्थी को प्रभावित करती हैं, झगड़े इत्यादि होना आम बात होती है। माता-पिता का क्रोध जीवनसाथी पर निकालते हैं।
9- वन्दनीया माता जी के अखण्डज्योति में लिखे लेख के अनुसार विवाह से पूर्व किसी भी भूल के लिए विवाह के पश्चात झगड़े नहीं करने चाहिए। जिस पल विवाह हुआ उसके बाद कि जिंदगी साझी है और उस पर आप अधिकार रखते हो। अतः उससे पहले की जिंदगी डिसकस न करें और न हीं विवाहपूर्व हुए सम्बन्धो को लेकर वर्तमान वैवाहिक जीवन मे झगड़े करें। अतः विवाहपूर्व के लिए माफ़ी देने या माफ़ी मांगने की जीवनसाथी से जरूरत नहीं है। केवल भगवान से माफ़ी मांगे और आगे के जीवन को ईमानदारी से जिये। माता-पिता का गुस्सा जीवनसाथी पर उतारने का आपको कोई हक नहीं है। अतः जीवनसाथी को प्रेम और सम्मान दें।
10- अगर मनुष्य की ज़िंदगी एवरेज 80 वर्ष माने, और मान लो जाने अनजाने उसका विवाह से पूर्व अफेयर किसी और से और विवाह किसी और से हो गया तो एक वर्ष की गलती के लिए 60 वर्ष उसके खराब करना कहाँ की अक्लमंदी है।
11- जिससे शादी हुई है उसकी मानसिक पीड़ा भी समझें कि कितने दुःख-पीड़ा-दबाव में उसने आपसे शादी की है, उधर दूसरी तरह उस व्यक्ति को भी सोचना चाहिए कि एक उत्साह उमंग और स्वप्न लिए कोई आपके साथ जीवन बिताने आया है। जो आपके पास्ट से अनजान है। अतः उसका दिल और स्वप्न तोड़ने का आपको कोई अधिकार नहीं है। विवाह के बाद निर्दोष जीवन साथी को दंडित करना-मानसिक प्रताड़ना देना गुनाह है और घोर पाप है। आपकी अकर्मण्यता और अकुशलता थी कि आप अपनी पसंद से शादी न कर सके, इसके लिए जो दूसरा आपके जीवन में आया है वो दंडित नहीं होना चाहिए।
12- मनुष्य गलतियों का पुतला होता है। शरीर बीमार हो तो इलाज़ करना चाहिए। उसी तरह आपसी रिश्ते बीमार हों तो इलाज करें। पास्ट को भूलकर वर्तमान पर फोकस करें, खुले दिल से एक दूसरे से बात करे और वर्तमान और भविष्य को सुखमय बनाएं।
13- किसी को विवाह से पूर्व प्रेम हुआ तो वो आपका गुनाहगार नहीं है। लेकिन यदि कोई विवाह के बाद प्रेम(एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर) करता है, तो यह गुनाह है। इसके लिए आप खुलकर बात करें।
14- जिससे विवाह हुआ है उस आत्मा को पीड़ा से मुक्त करने और उसका उद्धार करने के लिए सर्वप्रथम प्रेम, आत्मियता विस्तार और सद्बुद्धि का सहारा लें। धैर्य के साथ कुछ समय प्रतीक्षा करें, सुधार न आये तब लड़ाई भी सुधार के उद्देश्य से करें। जब तब भी बात न बने तो घर के बड़ो को इन्वॉल्व करें। जब सभी प्रयास विफ़ल हो तब ही अलग रहने या अलगाव पर विचार करें।
15- क्षमा देना आसान नहीं होता, लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। बड़े हृदय से माफ़ करके अपनी आत्मा से बोझ उतार लो। क्योंकि विवाह से पूर्व किये अफेयर के लिए वो गुनाहगार नहीं है। विवाह के बाद उससे संर्पक रखना उसका गुनाह है। लेकिन यह उसके मन की कमज़ोरी का भी प्रतीक है। उसके कमज़ोर मन को अपने प्रेम से मजबूती दें, और सद्बुद्धि से सही राह पर लाएँ।
जब भी जीवनसाथी को देखे, मन ही मन बोलें हे भगवान हम दोनों को सद्बुद्धि दो, और हमारी घर गृहस्थी सुखमय बनाओ।
भगवान सबको देख रहा है, सबके कर्मो का हिसाब कर रहा है। अतः हम भगवान नहीं है अतः किसी के जीवन का निर्णय नहीं कर सकते, इस दुनियां के रंगमंच पर इस देह रुपी ड्रेस और मेकअप में जीवन रूपी नाटक में अपना रोल कर रहे हैं। रोल खत्म पर्दा गिर जाएगा, मृत्यु हो जाएगी। दूसरा जीवन-दूसरा जन्म मिलेगा, दूसरा कॉस्ट्यूम-दूसरा शरीर, दूसरे एक्टर/एक्ट्रेसेस- जीवनसाथी और परिवार के साथ काम करना होगा। यह अनवरत चलने की बात है। हमेशा याद रखो कि तुम रंगमंच पर कोई किरदार निभा रहे हो, वास्तव में वो किरदार तुम नहीं हो।
निम्नलिखित पुस्तक अवश्य पढ़े:-
1- दृष्टिकोण ठीक रखे
2- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
3- निराशा को पास न फटकने दे
4- गृहस्थ एक तपोवन
5- मैं क्या हूँ?
6- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
7- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
8- मित्रभाब बढ़ाने की कला
9- शक्तिवान बनिये
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय बहन, इसका समाधान समझने के लिए आपको अपने जीवन और पति के जीवन को तत्वदृष्टि से देखना और समझना पड़ेगा।
1- सभी आत्माएं अकेले जन्म लेती हैं और अकेले ही मृत्यु के माध्यम से शरीर त्याग करती है। आत्मा का वास्तव में कोई सम्बन्धी नहीं, या यूं कहें तो आत्मा देह से जुड़े रिश्ते से मुक्त है। पिछले जन्म में न जाने कौन जीवनसाथी था, अगले जन्म में न जाने कौन जीवनसाथी बनेगा पता नहीं।
2- देह अन्न से बना है, उसे दर्द हो सकता है लेकिन देह को प्रेम नहीं हो सकता और न ही दुःख की अनुभूति होती है। अर्थात देह को गाड़ी समझो जो कि पहाड़ी की खूबसूरती महसूस नहीं कर सकती और न ही नाले की गंदगी देख के कोई भावना महसूस कर सकती है। उसे केवल ईंधन चाहिए चलने के लिए, ड्राइवर जहां चाहे वहां बिना कोई प्रश्न किये चली जायेगी।
3- सुख,दुःख, प्रेम, घृणा, गुस्सा, वात्सल्य इत्यादि यह न तो शरीर समझता है और न हीं आत्मा का इससे कोई लेना देना हैं। यह भावनाएं वस्तुतः मन की प्रॉपर्टी है।
4- मन क्या है? मन एक सॉफ्टवेयर की तरह है जो इस शरीर के हार्डवेयर का उपयोग करता है। मन वस्तुतः मनुष्य की अच्छी बुरी आदतों, विचारो, अनुभूतियों, कल्पनाओं, यादों का ग्रुप/संग्रह है। यदि एक्सीडेंट हो जाये और दिमाग मे चोट लगकर याददाश्त चली जाए तो प्रेम भी मिट जाएगा।
5- शरीर में हार्मोनल परिवर्तन अपोज़िट सेक्स के व्यक्ति को आकर्षित करते हैं। जिसका मुख्य कारण होता है कि ये हार्मोनल परिवर्तन पुरुषों में पॉजिटिव विकर्षण मानवीय विद्युत ऊर्जा उतपन्न करते है और लड़कियों में निगेटिव आकर्षण मानवीय विद्युत ऊर्जा उतपन्न करते हैं। यदि बचपन से घर में विभीन्न सँस्कार और विद्यालय में मन का प्रबंधन न सिखाया गया। इस विद्युत ऊर्जा को जीवन लक्ष्य/कैरियर निर्माण में नहीं लगाया तो भटकाव निश्चित है।
6- किशोर और प्रारम्भिक युवावस्था में लड़के लड़कियों में स्वयं का भला बुरा सोचने की क्षमता नहीं होती। मैच्योरिटी का अभाव होता है। वो जीवन की गहराई नहीं समझते और भूल कर बैठते हैं।
7- किशोरावस्था और प्रारम्भिक युवावस्था में युवा जिससे प्रेम करते हैं उसी से विवाह करना चाहते हैं। क्योंकि उनकी आर्थिक स्टेबिलिटी और कैरियर बिल्ट नहीं हुआ होता, उन्हें मजबूरी में पारिवारिक दबाव में उससे विवाह करना पड़ता है जिससे विवाह वो करना नहीं चाहते।
8- पुरानी प्रेम की यादें वर्तमान गृहस्थी को प्रभावित करती हैं, झगड़े इत्यादि होना आम बात होती है। माता-पिता का क्रोध जीवनसाथी पर निकालते हैं।
9- वन्दनीया माता जी के अखण्डज्योति में लिखे लेख के अनुसार विवाह से पूर्व किसी भी भूल के लिए विवाह के पश्चात झगड़े नहीं करने चाहिए। जिस पल विवाह हुआ उसके बाद कि जिंदगी साझी है और उस पर आप अधिकार रखते हो। अतः उससे पहले की जिंदगी डिसकस न करें और न हीं विवाहपूर्व हुए सम्बन्धो को लेकर वर्तमान वैवाहिक जीवन मे झगड़े करें। अतः विवाहपूर्व के लिए माफ़ी देने या माफ़ी मांगने की जीवनसाथी से जरूरत नहीं है। केवल भगवान से माफ़ी मांगे और आगे के जीवन को ईमानदारी से जिये। माता-पिता का गुस्सा जीवनसाथी पर उतारने का आपको कोई हक नहीं है। अतः जीवनसाथी को प्रेम और सम्मान दें।
10- अगर मनुष्य की ज़िंदगी एवरेज 80 वर्ष माने, और मान लो जाने अनजाने उसका विवाह से पूर्व अफेयर किसी और से और विवाह किसी और से हो गया तो एक वर्ष की गलती के लिए 60 वर्ष उसके खराब करना कहाँ की अक्लमंदी है।
11- जिससे शादी हुई है उसकी मानसिक पीड़ा भी समझें कि कितने दुःख-पीड़ा-दबाव में उसने आपसे शादी की है, उधर दूसरी तरह उस व्यक्ति को भी सोचना चाहिए कि एक उत्साह उमंग और स्वप्न लिए कोई आपके साथ जीवन बिताने आया है। जो आपके पास्ट से अनजान है। अतः उसका दिल और स्वप्न तोड़ने का आपको कोई अधिकार नहीं है। विवाह के बाद निर्दोष जीवन साथी को दंडित करना-मानसिक प्रताड़ना देना गुनाह है और घोर पाप है। आपकी अकर्मण्यता और अकुशलता थी कि आप अपनी पसंद से शादी न कर सके, इसके लिए जो दूसरा आपके जीवन में आया है वो दंडित नहीं होना चाहिए।
12- मनुष्य गलतियों का पुतला होता है। शरीर बीमार हो तो इलाज़ करना चाहिए। उसी तरह आपसी रिश्ते बीमार हों तो इलाज करें। पास्ट को भूलकर वर्तमान पर फोकस करें, खुले दिल से एक दूसरे से बात करे और वर्तमान और भविष्य को सुखमय बनाएं।
13- किसी को विवाह से पूर्व प्रेम हुआ तो वो आपका गुनाहगार नहीं है। लेकिन यदि कोई विवाह के बाद प्रेम(एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर) करता है, तो यह गुनाह है। इसके लिए आप खुलकर बात करें।
14- जिससे विवाह हुआ है उस आत्मा को पीड़ा से मुक्त करने और उसका उद्धार करने के लिए सर्वप्रथम प्रेम, आत्मियता विस्तार और सद्बुद्धि का सहारा लें। धैर्य के साथ कुछ समय प्रतीक्षा करें, सुधार न आये तब लड़ाई भी सुधार के उद्देश्य से करें। जब तब भी बात न बने तो घर के बड़ो को इन्वॉल्व करें। जब सभी प्रयास विफ़ल हो तब ही अलग रहने या अलगाव पर विचार करें।
15- क्षमा देना आसान नहीं होता, लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। बड़े हृदय से माफ़ करके अपनी आत्मा से बोझ उतार लो। क्योंकि विवाह से पूर्व किये अफेयर के लिए वो गुनाहगार नहीं है। विवाह के बाद उससे संर्पक रखना उसका गुनाह है। लेकिन यह उसके मन की कमज़ोरी का भी प्रतीक है। उसके कमज़ोर मन को अपने प्रेम से मजबूती दें, और सद्बुद्धि से सही राह पर लाएँ।
जब भी जीवनसाथी को देखे, मन ही मन बोलें हे भगवान हम दोनों को सद्बुद्धि दो, और हमारी घर गृहस्थी सुखमय बनाओ।
भगवान सबको देख रहा है, सबके कर्मो का हिसाब कर रहा है। अतः हम भगवान नहीं है अतः किसी के जीवन का निर्णय नहीं कर सकते, इस दुनियां के रंगमंच पर इस देह रुपी ड्रेस और मेकअप में जीवन रूपी नाटक में अपना रोल कर रहे हैं। रोल खत्म पर्दा गिर जाएगा, मृत्यु हो जाएगी। दूसरा जीवन-दूसरा जन्म मिलेगा, दूसरा कॉस्ट्यूम-दूसरा शरीर, दूसरे एक्टर/एक्ट्रेसेस- जीवनसाथी और परिवार के साथ काम करना होगा। यह अनवरत चलने की बात है। हमेशा याद रखो कि तुम रंगमंच पर कोई किरदार निभा रहे हो, वास्तव में वो किरदार तुम नहीं हो।
निम्नलिखित पुस्तक अवश्य पढ़े:-
1- दृष्टिकोण ठीक रखे
2- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
3- निराशा को पास न फटकने दे
4- गृहस्थ एक तपोवन
5- मैं क्या हूँ?
6- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
7- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
8- मित्रभाब बढ़ाने की कला
9- शक्तिवान बनिये
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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