प्रश्न - *श्वेता दी, एक प्रश्न आपके सम्बंध में है कि आप प्रत्येक प्रश्नोत्तर में समस्या का एक अलग एंगल और एक अलग ही प्रकार समाधान और सोच कैसे देते हो? प्रत्येक पोस्ट में "तत्वदृष्टि" की बात करते हो ये वास्तव में क्या है?*
उत्तर - आत्मीय बहन, गुरूकृपा ही केवलम। गुरु ने कृपा करके 3200 से ज्यादा पुस्तकों का ज़खीरा/खज़ाना दे रखा है। अतः सभी गहन स्वाध्याय करने वाले स्वाध्याय करते करते और गायत्री जपते जपते एक अलग ही दृष्टि से संसार देखने लगते है। अब कुछ हद तक यह तत्वदृष्टि से दुनियाँ और समस्या देखने जैसा कुछ होता है।
कुछ उदाहरण देखें:-
1- आम जनता के लिए स्वर्णाभूषण अलग अलग उनके पहनने के स्थान और उनकी कीमत पर वर्गीकृत होते हैं। लेकिन सुनार के लिए खरीद फ़रोख्त के वक्त वह मात्र सोना है। यह तत्वदृष्टि है।
2- आम जनता के लिए मनुष्य की वैल्यू उसकी सांसारिक आर्थिक संपन्नता पर निर्भर करता है। लेकिन सन्त की दृष्टि में वह मात्र एक आत्मा है जो एक निश्चित समयावधि के लिए एक शरीर धारण कर बैठी है। सन्त की तत्वदृष्टि है।
3- आम जनता के लिए बादल बादल है, वैज्ञानिक के लिए यह मात्र हवा और जल के वाष्प का संयुक्त रूप है। यह तत्वदृष्टि है। इसी तरह दुनियाँ को देखने का वैज्ञानिकों का तरीका आम जनता से भिन्न है।
4- आम जनता के लिए जो सुख दुःख क्रोध घृणा का कारण है, वह एक तरफा सोच है। सन्त की दृष्टि में यह मोहमाया है। यह तत्वदृष्टि है।
5- घटना स्थल पर आम जनता केवल दुर्घटना देखती है, लेकिन डिटेक्टिव दुर्घटना के पीछे का कारण देखता है। यह उसकी तत्वदृष्टि है।
6- आम जनता फ़िल्म को एन्जॉय करती है, लेकिन फ़िल्म रिव्यू करने वाले वह फ़िल्म कैसे बनी यह देखते हैं। यह इनकी तत्वदृष्टि है।
7- आमजनता के लिए जीवनसाथी, सन्तान, अपने स्वजन से घनिष्ठता और दूसरों से उपेक्षा, अपना पराया है। सन्त के लिए पूर्व जन्मों और आगे जन्मों का लेखा जोखा और आत्मा की अनन्त यात्रा का सत्य विदित है। अतः न कोई अपना न कोई पराया, कर्तव्य पथ का निर्वहन मात्र है। सभी एक ही समुद्र(परमात्मा) की बूंदे(आत्मा) हैं जो कि अलग अलग पात्र(शरीर) में भरी हैं। जब पात्र फूटेगा(शरीर छूटेगा) तो पुनः समुद्र(परमात्मा) में मिल जाएगा। अतः सब आत्मस्वरूप होने के कारण अपने हैं और सबमें परमात्मा का ही वास है। यह तत्वदृष्टि है। इसी तरह सन्तों का दुनियाँ देखने का तरीका आम जनता से भिन्न है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
वास्तव में मनुष्य को कोई दुःख दे ही नहीं सकता, मनुष्य की अपनी सोच और सँस्कार यह तय करते है कि उसे उस घटना पर दुःखी होना है या नहीं। चोट पर रोना या सैनिक की तरह गर्व करना यह सोच से ही तो प्रेरित है। परिस्थिति से भाग लेना(पलायन करना है) या परिस्थिति में भाग लेना(समाधान ढूंढना है) यह मनुष्य की सोच पर ही तो निर्भर करता है। यदि परिस्थिति बड़ी होती तो सब पर एक जैसा प्रभाव डालती, लेकिन वास्तव में तो मनःस्थिति ही तो बड़ी है इसलिए तो एक ही परिस्थिति में कोई बन(make) जाता है और कोई टूट(break) जाता है।
युगऋषि के साहित्य का तीन वर्षों तक गहन कम से कम दो घण्टे स्वाध्याय कीजिये और नित्य 5 या 11 माला गायत्री की जपिये और उगते सूर्य का ध्यान कीजिये। यह तत्वदृष्टि आपमें भी विकसित हो जाएगी। वास्तव में फिर आप भी मेरी तरह घटना का दूसरा एंगल देखकर समाधान दे सकेंगी। समस्या लेकर जो आता है उसका ध्यान आधी ग्लास खाली पर होता है, समाधान देने वाला केवल उसका ध्यान आधी ग्लास भरे की ओर भी प्रेरित कर देता है। जब साधक साधना करके तत्वदृष्टि विकसित करता है तो उसे ग्लास आधी हवा से भरी और आधी पानी से भरी दिखती है।
क्योंकि विचारों में गहराई तो बहन स्वाध्याय से ही आएगा, तत्वदृष्टि से दुनियाँ देखने का हुनर तो गायत्री जप और ध्यान ही सिखलायेगा। प्राचीन ऋषियों, युगऋषि ने गायत्री जप की जो महिमा बतलाई, उसके एक अंग गायत्री मंत्र से बुद्धिकुशलता बढ़ती है का रिसर्च AIIMS की डॉक्टर रामा जयसुन्दर ने भी दुनियाँ को बतला दिया है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*कीचड़ में रहकर कमल सा खिलना सम्भव है, संसार मे रहकर संसार को तत्वदृष्टि से देखना भी सम्भव है।*
*मनुष्य और मकड़ी में ज्यादा फ़र्क़ नहीं है, मकड़ी जाला बिनकर उस बन्धन में रहती है, जब चाहे तो जाला निगल कर मुक्त भी हो सकती है। इसी तरह मनुष्य अपने विचारों से बुने जाले के बंधन में रहता है। जिस क्षण चाहे उसे निगल कर बंधनमुक्त हो सकता है। मोह युक्त विचार ही माया का बन्धन है, आत्म ज्ञान युक्त विचार ही माया के बंधन से मुक्ति है।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, गुरूकृपा ही केवलम। गुरु ने कृपा करके 3200 से ज्यादा पुस्तकों का ज़खीरा/खज़ाना दे रखा है। अतः सभी गहन स्वाध्याय करने वाले स्वाध्याय करते करते और गायत्री जपते जपते एक अलग ही दृष्टि से संसार देखने लगते है। अब कुछ हद तक यह तत्वदृष्टि से दुनियाँ और समस्या देखने जैसा कुछ होता है।
कुछ उदाहरण देखें:-
1- आम जनता के लिए स्वर्णाभूषण अलग अलग उनके पहनने के स्थान और उनकी कीमत पर वर्गीकृत होते हैं। लेकिन सुनार के लिए खरीद फ़रोख्त के वक्त वह मात्र सोना है। यह तत्वदृष्टि है।
2- आम जनता के लिए मनुष्य की वैल्यू उसकी सांसारिक आर्थिक संपन्नता पर निर्भर करता है। लेकिन सन्त की दृष्टि में वह मात्र एक आत्मा है जो एक निश्चित समयावधि के लिए एक शरीर धारण कर बैठी है। सन्त की तत्वदृष्टि है।
3- आम जनता के लिए बादल बादल है, वैज्ञानिक के लिए यह मात्र हवा और जल के वाष्प का संयुक्त रूप है। यह तत्वदृष्टि है। इसी तरह दुनियाँ को देखने का वैज्ञानिकों का तरीका आम जनता से भिन्न है।
4- आम जनता के लिए जो सुख दुःख क्रोध घृणा का कारण है, वह एक तरफा सोच है। सन्त की दृष्टि में यह मोहमाया है। यह तत्वदृष्टि है।
5- घटना स्थल पर आम जनता केवल दुर्घटना देखती है, लेकिन डिटेक्टिव दुर्घटना के पीछे का कारण देखता है। यह उसकी तत्वदृष्टि है।
6- आम जनता फ़िल्म को एन्जॉय करती है, लेकिन फ़िल्म रिव्यू करने वाले वह फ़िल्म कैसे बनी यह देखते हैं। यह इनकी तत्वदृष्टि है।
7- आमजनता के लिए जीवनसाथी, सन्तान, अपने स्वजन से घनिष्ठता और दूसरों से उपेक्षा, अपना पराया है। सन्त के लिए पूर्व जन्मों और आगे जन्मों का लेखा जोखा और आत्मा की अनन्त यात्रा का सत्य विदित है। अतः न कोई अपना न कोई पराया, कर्तव्य पथ का निर्वहन मात्र है। सभी एक ही समुद्र(परमात्मा) की बूंदे(आत्मा) हैं जो कि अलग अलग पात्र(शरीर) में भरी हैं। जब पात्र फूटेगा(शरीर छूटेगा) तो पुनः समुद्र(परमात्मा) में मिल जाएगा। अतः सब आत्मस्वरूप होने के कारण अपने हैं और सबमें परमात्मा का ही वास है। यह तत्वदृष्टि है। इसी तरह सन्तों का दुनियाँ देखने का तरीका आम जनता से भिन्न है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
वास्तव में मनुष्य को कोई दुःख दे ही नहीं सकता, मनुष्य की अपनी सोच और सँस्कार यह तय करते है कि उसे उस घटना पर दुःखी होना है या नहीं। चोट पर रोना या सैनिक की तरह गर्व करना यह सोच से ही तो प्रेरित है। परिस्थिति से भाग लेना(पलायन करना है) या परिस्थिति में भाग लेना(समाधान ढूंढना है) यह मनुष्य की सोच पर ही तो निर्भर करता है। यदि परिस्थिति बड़ी होती तो सब पर एक जैसा प्रभाव डालती, लेकिन वास्तव में तो मनःस्थिति ही तो बड़ी है इसलिए तो एक ही परिस्थिति में कोई बन(make) जाता है और कोई टूट(break) जाता है।
युगऋषि के साहित्य का तीन वर्षों तक गहन कम से कम दो घण्टे स्वाध्याय कीजिये और नित्य 5 या 11 माला गायत्री की जपिये और उगते सूर्य का ध्यान कीजिये। यह तत्वदृष्टि आपमें भी विकसित हो जाएगी। वास्तव में फिर आप भी मेरी तरह घटना का दूसरा एंगल देखकर समाधान दे सकेंगी। समस्या लेकर जो आता है उसका ध्यान आधी ग्लास खाली पर होता है, समाधान देने वाला केवल उसका ध्यान आधी ग्लास भरे की ओर भी प्रेरित कर देता है। जब साधक साधना करके तत्वदृष्टि विकसित करता है तो उसे ग्लास आधी हवा से भरी और आधी पानी से भरी दिखती है।
क्योंकि विचारों में गहराई तो बहन स्वाध्याय से ही आएगा, तत्वदृष्टि से दुनियाँ देखने का हुनर तो गायत्री जप और ध्यान ही सिखलायेगा। प्राचीन ऋषियों, युगऋषि ने गायत्री जप की जो महिमा बतलाई, उसके एक अंग गायत्री मंत्र से बुद्धिकुशलता बढ़ती है का रिसर्च AIIMS की डॉक्टर रामा जयसुन्दर ने भी दुनियाँ को बतला दिया है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*कीचड़ में रहकर कमल सा खिलना सम्भव है, संसार मे रहकर संसार को तत्वदृष्टि से देखना भी सम्भव है।*
*मनुष्य और मकड़ी में ज्यादा फ़र्क़ नहीं है, मकड़ी जाला बिनकर उस बन्धन में रहती है, जब चाहे तो जाला निगल कर मुक्त भी हो सकती है। इसी तरह मनुष्य अपने विचारों से बुने जाले के बंधन में रहता है। जिस क्षण चाहे उसे निगल कर बंधनमुक्त हो सकता है। मोह युक्त विचार ही माया का बन्धन है, आत्म ज्ञान युक्त विचार ही माया के बंधन से मुक्ति है।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment