प्रश्न - *बचपन से लेकर आजतक सबका हृदय की गहराइयों से सच्चे मन से सम्मान किया, सेवा की और मदद किया। लेकिन बदले में मुझे केवल अपमान, तिरस्कार और दर्द मिला। अब बहुत थक चुकी हूँ, और भीतर से टूट गई हूँ। क्या मैंने पिछले जन्म में इतने बुरे कर्म किये थे कि इस जन्म में एक भी रिश्ता अच्छा नहीं मिला, मेरी किस्मत में दर्द और सिर्फ़ दर्द ही मिला। अपने जीवन के दर्द भरे पलों का आँख में आँसू भरे माता भगवती के समक्ष प्रार्थना करती हूँ और सोचती कि मेरी जिंदगी इतनी शापित क्यों है? मेरा मार्गदर्शन करें?*
उत्तर - आत्मीय बहन, एक सत्य घटना सुनो।
अमेरिका में एक मनोचिकित्सक के पास एक हाई डिप्रेशन में ग्रस्त भारतीय मूल की एक महिला सुनीता गई, उसके भारतीय पति ने उससे सहमति से शादी की थी। लेकिन ग्रीन कार्ड के चक्कर में वो एक अमेरिकन अमीर महिला के साथ उसने विवाह कर लिया और उसे डिवोर्स दे दिया। वो स्त्री आत्महत्या करने की कोशिश किया, बचा ली गयी। पुलिस उसे मनोचिकित्सक के पास ले आई।
उसने जोर जोर से रोना शुरू किया, कि कितनी मुश्किल से दहेज जोड़कर पिता ने शादी की, कर्जे में डूबे हुए हैं। भारत जाकर उनपर बोझ नहीं बन सकती, आसपड़ोस गाँव वाले मुझे ताने देंगे मेरे जीवन मे जिंदा रहने का कोई मकसद नहीं बचा। मेरी जिंदगी शापित हो गयी है।
डॉक्टर ने कहा, तुम अभी से लेकर कल सुबह इसी वक्त तक मेरे ऑफिस में काम कंरने वाली मार्गरेट को ऑब्जर्व करो। हम कल सुबह बात करेंगे। मार्गरेट गुनगुनाते हुए ऑफिस की साफ सफाई का कार्य कर रही थी। शाम को 7 बजे वो ऑफ़ीस से निकली और ढेर सारा दूध, बिस्किट और कुछ सामान खरीदा। सुनीता उसके पीछे पीछे चल रही थी। जैसे ही वो घर पहुंची, कुत्ते बिल्ली के बच्चो ने उसे चाटना और प्यार करना शुरू कर दिया। उसने सबको दूध और बिस्किट दिए। सब खा पीकर सो गए। तब सुनीता ने मार्गरेट से पूँछा आपके चेहरे की शांति और खुशी का राज क्या है? आप इतने सारे पेट क्यों पालती है? इत्यादि इत्यादि।
मार्गरेट ने बताया कि एक कार एक्सीडेंट में उसके पति, तीन बच्चे और माता पिता मारे गए और केवल वो बच गयी। हॉस्पिटल से लौटते वक्त वो सोच रही थी ऐसी शापित जिंदगी जीने का क्या फ़ायदा? अतः वो जहर और दूध लेकर लौट रही थी। कि अचानक उसने एक घायल कुत्ते के पिल्ले(बच्चे) को देखा जो दर्द से तड़फ रहा था। अतः वो मरना भूल गयी और दूध जो लाई थी उसे पिलाया और मरहम पट्टी की। सुबह काम पर आई पुनः रात को लौटते वक्त आत्महत्या का विचार किया और दूध ब्रेड लेकर लौटी तो उस पिल्ले के साथ दो और पिल्ले उसका घर पर इंतज़ार कर रहे थे। आते ही उसे चाटना प्यार करना शुरू कर दिया। तब मार्गरेट ने उनका उपचार किया दूध ब्रेड दिया और स्वयं भूखे सो गई। लेकीन उस रात न जाने क्या हुआ कि मरने का ख्याल छोड़ दिया। और आसपास गली मोहल्ले के बीमार पशुओं के इलाज और सेवा में जुट गई। जो सैलरी मिलती वो उनपर ख़र्च करती। इस निःश्वार्थ सेवा ने उसे शांति सुकून और आनन्द से भर दिया।
सुनीता यह सब सुनकर निःशब्द थी।
मार्गरेट ने कहा, सुनीता मेरे पति भारतीय मूल के थे। वो भगवत गीता मुझे सुनाते थे। उन्होंने मुझे एक बार बताया था कि मनुष्य केवल स्वयं से प्रेम करता है, केवल सगे सम्बन्धियों के लिए ही जीता और मरता है। केवल उनसे ही मधुर सम्बन्ध रखता है जिससे उसका स्वार्थ सधता है। क्योंकि स्वार्थ भावना से कर्म बन्धन में बंधता है इसलिए कभी मुक्त नहीं हो पाता।
सुनीता यह बताओ, तुमने जीवन मे कभी किसी ऐसे व्यक्ति के लिए कुछ किया है जिससे तुम्हें कोई अपेक्षा न हो। कभी किसी गरीब, पशु, पक्षी, जीव, वनस्पति की निःश्वार्थ बिना किसी आशा अपेक्षा के सेवा की है? नहीं न... तुम्हारा पति भी एक स्वार्थी इंसान था जिसने एक और स्वार्थ में रिश्ता बना लिया तुम्हे धोखा दिया। तुम क्या सोचती हो, जिस पति ने नए रिश्ते की नींव स्वार्थ पर रखी हो उस पर आनन्द का भवन खड़ा हो सकेगा। बबूल के बीज से क्या आम फलेगा? उसका अंत तो कष्टदायी होगा ही, क्योंकि बुरे कर्म का बुरा नतीजा होगा ही...
तुम आज अपने माता-पिता के बारे में सोच रही हो, समस्या गिन रही हो। लेकिन समाधान नहीं ढूँढ़ रही। क्या तुम्हारे अंदर कोई ऐसा गुण नहीं जिससे तुम कमा सको, स्वयं का वजूद बचा सको। क्या तुम अपाहिज़ हो जो पति की वैसाखी ढूँढ़ रही हो। जिसने तुम्हें छोड़ दिया तुमने उसे मन में क्यों जगह दे रखी है? उसको सोच सोच कर तुम क्यों दुःखी हो?
सुनीता खाना बनाना जानती थी, मार्गरेट की मदद से किसी के घर मे भोजन बनाने का काम मिल गया। वीसा लगवा लिया। फिंर कई वर्षों में मेहनत करके वो रेस्तरां की मालिक बनी और मार्गरेट के साथ उसने NGO खोला और लावारिस पशुओं के मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल खोला। वो सफल बिजनेस वीमेन बनी, और आज उसके पास उसकी सुखी गृहस्थी है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
बहन, भगवान ने आपको शरीर और बुद्धि दिया। आपने अभी तक जिनकी सेवा, सम्मान और मदद की वो सारे के सारे आपके स्वजन सगे सम्बन्धी और रिश्तेनाते दार थे। यह रिश्ते लेन देन पर बने थे, इनकी नींव में केवल स्वार्थ है।
एक पत्थर आम के पेड़ पर मारोगे, आम मिलेगा और वही पत्थर बबूल के पेड़ पर मारोगे तो बबूल के कांटे मिलेंगे। कप में जो भरा होगा वही तो छलकेगा। जब जिन हृदयों में स्वार्थ भरा है, उनसे परमार्थ कैसे छलकेगा?
बहन, निःश्वार्थ भाव से बिना किसी आशा अपेक्षा के भगवान का कार्य समझ के लोगों की सेवा और मदद करो। वो स्वजन हो या पराए लोग। जब मीरा की भक्ति में जीवन जियोगी तो विष परिवार वाले देंगे तो भी तुम तक नहीं पहुंचेगा। उसका भी भोग कृष्ण लगा लेंगे और प्रसाद ही तुम्हे मिलेगा।
तुम दुःखी हो, क्योंकि तुम मीरा सी भक्त नहीं बनी हो। भावनाएं इंसान की है तुममें, भक्त की नहीं है। भक्त बनते ही जीवन भगवत प्रसाद बन जाता है। जीवन मे सुख और दुःख का भेद मिट जाता है। सुख और दुःख केवल मनोदशा है, जिनका कोई यथार्थ अस्तित्व ही नहीं है।
कोई हमारे घर मे बिना मर्जी प्रवेश कर सकता है, हमारे मन मे कोई बिना मर्जी प्रवेश नहीं कर सकता। कोई हमे सुख या दुःख देने में सफल हुआ, इसका यह अर्थ है कि हमने उसे अपने हृदय में प्रवेश दे रखा है। मीरा के हृदय में सिर्फ़ कृष्ण थे इसलिए उन्हें कोई सुख या दुःख न दे सका। उन पर जहर भी असर न कर सका।
कुछ पुस्तकें पढ़िये:-
1- दृष्टिकोण ठीक रखिये
2- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
3- निराशा को पास न फटकने दें
4- हारिये न हिम्मत
5- शक्तिवान बनिये
6- शक्ति संचय के पथ पर
7- जीवन जीने की कला
जो व्यक्ति स्वयं को महत्त्वपूर्ण नहीं समझता दूसरे भी उसे महत्त्वपूर्ण नहीं समझते, जो अपनी योग्यता पात्रता नहीं बढाते और शक्ति संचय के पथ पर आगे नहीं बढ़ते। समाज उनकी उपेक्षा करता है। यह शाश्वत सत्य है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, एक सत्य घटना सुनो।
अमेरिका में एक मनोचिकित्सक के पास एक हाई डिप्रेशन में ग्रस्त भारतीय मूल की एक महिला सुनीता गई, उसके भारतीय पति ने उससे सहमति से शादी की थी। लेकिन ग्रीन कार्ड के चक्कर में वो एक अमेरिकन अमीर महिला के साथ उसने विवाह कर लिया और उसे डिवोर्स दे दिया। वो स्त्री आत्महत्या करने की कोशिश किया, बचा ली गयी। पुलिस उसे मनोचिकित्सक के पास ले आई।
उसने जोर जोर से रोना शुरू किया, कि कितनी मुश्किल से दहेज जोड़कर पिता ने शादी की, कर्जे में डूबे हुए हैं। भारत जाकर उनपर बोझ नहीं बन सकती, आसपड़ोस गाँव वाले मुझे ताने देंगे मेरे जीवन मे जिंदा रहने का कोई मकसद नहीं बचा। मेरी जिंदगी शापित हो गयी है।
डॉक्टर ने कहा, तुम अभी से लेकर कल सुबह इसी वक्त तक मेरे ऑफिस में काम कंरने वाली मार्गरेट को ऑब्जर्व करो। हम कल सुबह बात करेंगे। मार्गरेट गुनगुनाते हुए ऑफिस की साफ सफाई का कार्य कर रही थी। शाम को 7 बजे वो ऑफ़ीस से निकली और ढेर सारा दूध, बिस्किट और कुछ सामान खरीदा। सुनीता उसके पीछे पीछे चल रही थी। जैसे ही वो घर पहुंची, कुत्ते बिल्ली के बच्चो ने उसे चाटना और प्यार करना शुरू कर दिया। उसने सबको दूध और बिस्किट दिए। सब खा पीकर सो गए। तब सुनीता ने मार्गरेट से पूँछा आपके चेहरे की शांति और खुशी का राज क्या है? आप इतने सारे पेट क्यों पालती है? इत्यादि इत्यादि।
मार्गरेट ने बताया कि एक कार एक्सीडेंट में उसके पति, तीन बच्चे और माता पिता मारे गए और केवल वो बच गयी। हॉस्पिटल से लौटते वक्त वो सोच रही थी ऐसी शापित जिंदगी जीने का क्या फ़ायदा? अतः वो जहर और दूध लेकर लौट रही थी। कि अचानक उसने एक घायल कुत्ते के पिल्ले(बच्चे) को देखा जो दर्द से तड़फ रहा था। अतः वो मरना भूल गयी और दूध जो लाई थी उसे पिलाया और मरहम पट्टी की। सुबह काम पर आई पुनः रात को लौटते वक्त आत्महत्या का विचार किया और दूध ब्रेड लेकर लौटी तो उस पिल्ले के साथ दो और पिल्ले उसका घर पर इंतज़ार कर रहे थे। आते ही उसे चाटना प्यार करना शुरू कर दिया। तब मार्गरेट ने उनका उपचार किया दूध ब्रेड दिया और स्वयं भूखे सो गई। लेकीन उस रात न जाने क्या हुआ कि मरने का ख्याल छोड़ दिया। और आसपास गली मोहल्ले के बीमार पशुओं के इलाज और सेवा में जुट गई। जो सैलरी मिलती वो उनपर ख़र्च करती। इस निःश्वार्थ सेवा ने उसे शांति सुकून और आनन्द से भर दिया।
सुनीता यह सब सुनकर निःशब्द थी।
मार्गरेट ने कहा, सुनीता मेरे पति भारतीय मूल के थे। वो भगवत गीता मुझे सुनाते थे। उन्होंने मुझे एक बार बताया था कि मनुष्य केवल स्वयं से प्रेम करता है, केवल सगे सम्बन्धियों के लिए ही जीता और मरता है। केवल उनसे ही मधुर सम्बन्ध रखता है जिससे उसका स्वार्थ सधता है। क्योंकि स्वार्थ भावना से कर्म बन्धन में बंधता है इसलिए कभी मुक्त नहीं हो पाता।
सुनीता यह बताओ, तुमने जीवन मे कभी किसी ऐसे व्यक्ति के लिए कुछ किया है जिससे तुम्हें कोई अपेक्षा न हो। कभी किसी गरीब, पशु, पक्षी, जीव, वनस्पति की निःश्वार्थ बिना किसी आशा अपेक्षा के सेवा की है? नहीं न... तुम्हारा पति भी एक स्वार्थी इंसान था जिसने एक और स्वार्थ में रिश्ता बना लिया तुम्हे धोखा दिया। तुम क्या सोचती हो, जिस पति ने नए रिश्ते की नींव स्वार्थ पर रखी हो उस पर आनन्द का भवन खड़ा हो सकेगा। बबूल के बीज से क्या आम फलेगा? उसका अंत तो कष्टदायी होगा ही, क्योंकि बुरे कर्म का बुरा नतीजा होगा ही...
तुम आज अपने माता-पिता के बारे में सोच रही हो, समस्या गिन रही हो। लेकिन समाधान नहीं ढूँढ़ रही। क्या तुम्हारे अंदर कोई ऐसा गुण नहीं जिससे तुम कमा सको, स्वयं का वजूद बचा सको। क्या तुम अपाहिज़ हो जो पति की वैसाखी ढूँढ़ रही हो। जिसने तुम्हें छोड़ दिया तुमने उसे मन में क्यों जगह दे रखी है? उसको सोच सोच कर तुम क्यों दुःखी हो?
सुनीता खाना बनाना जानती थी, मार्गरेट की मदद से किसी के घर मे भोजन बनाने का काम मिल गया। वीसा लगवा लिया। फिंर कई वर्षों में मेहनत करके वो रेस्तरां की मालिक बनी और मार्गरेट के साथ उसने NGO खोला और लावारिस पशुओं के मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल खोला। वो सफल बिजनेस वीमेन बनी, और आज उसके पास उसकी सुखी गृहस्थी है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
बहन, भगवान ने आपको शरीर और बुद्धि दिया। आपने अभी तक जिनकी सेवा, सम्मान और मदद की वो सारे के सारे आपके स्वजन सगे सम्बन्धी और रिश्तेनाते दार थे। यह रिश्ते लेन देन पर बने थे, इनकी नींव में केवल स्वार्थ है।
एक पत्थर आम के पेड़ पर मारोगे, आम मिलेगा और वही पत्थर बबूल के पेड़ पर मारोगे तो बबूल के कांटे मिलेंगे। कप में जो भरा होगा वही तो छलकेगा। जब जिन हृदयों में स्वार्थ भरा है, उनसे परमार्थ कैसे छलकेगा?
बहन, निःश्वार्थ भाव से बिना किसी आशा अपेक्षा के भगवान का कार्य समझ के लोगों की सेवा और मदद करो। वो स्वजन हो या पराए लोग। जब मीरा की भक्ति में जीवन जियोगी तो विष परिवार वाले देंगे तो भी तुम तक नहीं पहुंचेगा। उसका भी भोग कृष्ण लगा लेंगे और प्रसाद ही तुम्हे मिलेगा।
तुम दुःखी हो, क्योंकि तुम मीरा सी भक्त नहीं बनी हो। भावनाएं इंसान की है तुममें, भक्त की नहीं है। भक्त बनते ही जीवन भगवत प्रसाद बन जाता है। जीवन मे सुख और दुःख का भेद मिट जाता है। सुख और दुःख केवल मनोदशा है, जिनका कोई यथार्थ अस्तित्व ही नहीं है।
कोई हमारे घर मे बिना मर्जी प्रवेश कर सकता है, हमारे मन मे कोई बिना मर्जी प्रवेश नहीं कर सकता। कोई हमे सुख या दुःख देने में सफल हुआ, इसका यह अर्थ है कि हमने उसे अपने हृदय में प्रवेश दे रखा है। मीरा के हृदय में सिर्फ़ कृष्ण थे इसलिए उन्हें कोई सुख या दुःख न दे सका। उन पर जहर भी असर न कर सका।
कुछ पुस्तकें पढ़िये:-
1- दृष्टिकोण ठीक रखिये
2- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
3- निराशा को पास न फटकने दें
4- हारिये न हिम्मत
5- शक्तिवान बनिये
6- शक्ति संचय के पथ पर
7- जीवन जीने की कला
जो व्यक्ति स्वयं को महत्त्वपूर्ण नहीं समझता दूसरे भी उसे महत्त्वपूर्ण नहीं समझते, जो अपनी योग्यता पात्रता नहीं बढाते और शक्ति संचय के पथ पर आगे नहीं बढ़ते। समाज उनकी उपेक्षा करता है। यह शाश्वत सत्य है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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