Saturday, 9 March 2019

प्रश्न - *हम किस परमात्मा के अंश हैं? उन परमेश्वर का क्या नाम है? वे कहां रहते हैं? हम उन्हें कौन सी भक्ति साधना से प्राप्त करें?*

प्रश्न - *हम किस परमात्मा के अंश हैं? उन परमेश्वर का क्या नाम है? वे कहां रहते हैं? हम उन्हें कौन सी भक्ति साधना से प्राप्त करें?*

उत्तर - आत्मीय भाई, किसी कम्पनी द्वारा पानी की बोतल का नामकरण करने से वह पानी उस कम्पनी का नहीं हो जाता। क्योंकि दुनियाँ में कोई कम्पनी पानी बना ही नहीं सकती। पानी अनेक रूप में पूरी दुनियाँ में है, हिमालय में बर्फ के रूप में तो समुद्र में जल के रूप में, हवा में गैस रूप में विद्यमान है। कण कण में जल है और हमारा शरीर भी 75% से ज्यादा जल से ही बना है। अब मुझे यह बताओ कि तुम्हारे शरीर मे विद्यमान जल का आदि श्रोत क्या है? या जो बादल से बरस रहा है उसका मूल स्रोत जल कहाँ है? तुम बता नहीं पाओगे... तुम क्या संसार का कोई साइंटिस्ट जल का आदिस्रोत ठीक ठीक नहीं बता सकता। समुद्रों और नदियों के नामकरण मनुष्य ने किए है, बिना नाम के भी उनका अस्तित्व था।

परमात्मा के विभिन्न नाम ऋषि मुनियों ने अपने अनुभव और साक्षात्कार के आधार पर रखें है। लेकिन वो सभी अवतार भी परमात्मा के अंशावतार थे, जिनका समय समय पर साक्षात्कार किया गया।मूल स्रोत परमात्मा का तो कोई नहीं जानता।वेद भी उसे नेति नेति कहते हैं।

जब मनुष्य अपना खुद का दिमाग भी मात्र 5 से 7% उपयोग कर सका है, मनुष्य जो स्वयं में विद्यमान शक्तियो को 100% नहीं जानता। वो यदि परमात्मा को पूर्णतया जानने का खोखला दावा करे तो मुझे उनपर हंसी ही आएगी। ठीक उसी प्रकार जैसे मोबाइल पर वीडियो गेम खेलना सीखने के बाद कोई स्वयं को मोबाइल इंजीनियर घोषित कर दे।

जब उस विराट शक्ति जो एक है, उसके सभी अंश हैं।

अब समुद्र के जल की जानकारी प्राप्त करनी है तो समुद्र को उठाकर तो लैब में नहीं ला सकते। उसकी कुछ बूंद लेकर वैज्ञानिक लैब में लाओगे। बूँद में जो विशेषता, स्वाद, गुण, रँग और प्रोपर्टी होगी उससे ही समुद्र के समस्त जल को जान जाओगे।

इसी तरह परमात्मा को जानने और पाने के लिए उस परमात्मा की एक बूँद स्वयं की आत्मा का अध्ययन प्रारम्भ कर दो।

मानसिक आध्यात्मिक लैब में आत्मा का एनालिसिस/परीक्षण करो। इस लैब में प्रवेश के लिए कमर सीधी करो और नेत्र बन्द करो और दोनों हाथ गोदी में रखो। बिना हिले डुले 15 मिनट बैठने का अभ्यास करो। जब बिना हिले डुले बैठना सीख जाओ तो अपनी श्वांस के चौकीदार बन जाओ। सांस भीतर कहाँ तक जाती है और कब लौटती है। शरीर को और आत्मा को केवल श्वांस ही बांध कर रखे हुए है। आत्मा का स्पर्श केवल श्वांस करती है। श्वांस लेने और छोड़ने के बीच एक सूक्ष्म पल का ठहराव है। बस जिस दिन उस पर ध्यान ठहर गया। आत्मज्ञान का मार्ग खुल जायेगा। आत्मा से परमात्मा तक की पहुंच आसान हो जाएगी।

कुछ पुस्तकें पढो जो सहायता करेंगी:-

1- एक बड़ी प्राचीन संस्कृत में लिखी पुस्तक है, *विज्ञान भैरव तंत्र* , यदि मिल जाये पढ़ लो।

2- पुस्तक *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* पहले पढ़ना उसके बाद पुस्तक *मैं क्या हूँ* पढो।

3- पुस्तक *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* और पुस्तक *ब्रह्मवर्चस की ध्यान धारणा* पढ़ो।

मोमबत्ती का चित्र मोमबत्ती कैसी होती है उसका आइडिया दे सकता है, लेकिन अंधेरा दूर नहीं कर सकता। मेरी पोस्ट केवल आपको आत्मज्ञान का आइडिया दे सकती है, मार्ग बता सकती है। लेकिन मंजिल तक नहीं पहुंचा सकती। स्वयं के पुरूषार्थ से मोमबत्ती जलानी होगी, स्वयं के पुरुषार्थ से मार्ग पर आगे बढ़ना होगा। आपके आध्यात्मिक सफर की अग्रिम शुभकामनाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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