Friday 22 March 2019

कविता - एक सन्त बना दुकानदार

😊 *एक सन्त बना दुकानदार* 😊

एक संत ने,
किराने की दुकान खोली,
सामान के साथ ज्ञान,
फ़्री होने वाली बात भी बोली।

बड़े अचरज़ से कस्टमरों ने देखा,
सन्त के ज्ञान को टटोलने का सोचा।

एक कस्टमर ने नमक मांगा,
सन्त ने नमक के साथ ज्ञान भी दे डाला,
नमक के बिना,
भोजन में स्वाद न मिलेगा,
वैसे ही अध्यात्म के बिना,
जीवन में स्वाद न मिलेगा।

एक कस्टमर ने चीनी मांगा,
सन्त ने चीनी के साथ ज्ञान भी दे डाला,
चीनी के बिना,
खीर में मिठास न मिलेगा,
अपनो के साथ के बिना,
जीवन में मिठास न घुलेगा।

एक कस्टमर ने झाड़ू-पोछे का सामान मांगा,
सन्त ने उसके साथ ज्ञान भी दे डाला,
झाड़ू पोछा के बिना,
घर व्यवस्थित और साफ़ न होगा,
ध्यान-स्वाध्याय के बिना,
मन व्यवस्थित और साफ़ न होगा।

एक कस्टमर ने सब्जी मसाला मांगा,
सन्त ने उसके साथ ज्ञान भी दे डाला,
मसालों के बिना,
सब्जियों में स्वाद न चढ़ेगा,
लेक़िन अधिक मसालों से,
स्वास्थ्य भी बिगड़ेगा,
खराब पेट से - मन ख़राब होगा,
दोनों की ख़राबी से विभिन्न रोग जन्मेगा।
इसी तरह पेट-प्रजनन के बिना,
सृष्टि आगे न बढ़ेगी,
लेकिन इसकी अधिकता से,
समाज का स्वास्थ्य बिगड़ेगा,
समाज पर भार चढ़ेगा,
यह नई नई समस्याओं को जन्मेगा ।

एक कस्टमर ने अनुरोध किया,
आप केवल प्रवचन दें,
जीवन जीने की कला सिखाएं,
आप दुकान का व्यवसाय न करें,
एकांत स्थल पर तप करें,
और आश्रम में निवास करें,
वहाँ आने वालों को ज्ञान से कृतार्थ करें।

सन्त मुस्कुराए और बोले,
अब जंगल निर्जन और बीहड़ नहीं रहे,
फॉरेस्ट ऑफिसर से भर गए,
हिमालय भी अब निर्जन न रहे,
पर्वतारोहीयों से भर गए,
बड़े बड़े आश्रमों से तीर्थ सज गए हैं।
अब आकाश और समुद्र में भी एकांत नहीं,
जहाजों के शोर से यह भी भर गए हैं।
अब तीर्थों में,
वो बात नहीं रह गयी है,
यातायात की सुगमता से,
वो कइयों के लिए पिकनिक स्पॉट बन गए हैं।

अब महाभारत वाले संजय की नौकरी,
टीवी रेडियो इंटरनेट ने कर ली है,
कृष्ण के और सन्तों के प्रवचन,
और अन्य जानकारी,
प्रत्येक धृतराष्ट्र को,
घर बैठे ही मिल रही है।


बाहुबली की भी नौकरी,
बड़ी बड़ी मशीनों ने खा ली,
बुद्धिबली की भी नौकरी,
बड़े बड़े कम्प्यूटरों ने खा ली।

अभी केवल तप के लिए,
अंतर्जगत का एकांत क्षेत्र ही बाक़ी है,
जहां अभी भी मनुष्य और मशीनों का,
अनधिकृत प्रवेश नहीं है,
प्रेम सम्वेदना और भावनाओं के सम्प्रेषण के लिए,
मशीनों में अभी वो योग्यता नहीं है,
चेतना के स्तर पर भी,
मशीनों की अभी पहुंच नहीं है।

अतः श्रीमान, गुरु आदेश से,
दुकान पर बैठकर ही,
युगनिर्माण करूंगा,
स्वावलम्बी लोकसेवी,
सन्त बनूँगा,
अब जंगल के एकांत की जगह,
अंतर्जगत के एकांत में तप करूंगा,
गुरु की विचारों की चिंगारी से,
स्वयं दीप बनकर जलूँगा,
जो भी बुझा दीप आएगा यहाँ,
उसे भी प्रज्ज्वलित करने की कोशिश करूँगा,
दीप हूँ जलता रहूँगा,
जहां हूँ वहीं अँधेरे से लड़ता रहूँगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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