*ज़रा विचारें...*
हॉस्पिटल और श्मशान में,
सबको ब्रह्मज्ञान हो जाता है,
जीवन की नश्वरता का,
और आत्मा की अमरता का,
सबको भान हो जाता है।।
हॉस्पिटल के बिस्तर पर,
जब ऑपेरशन के बाद,
जैसे ही दर्द उभर जाता है,
वैसे ही दर्द के साथ,
मन में ब्रह्मज्ञान भी उभर आता है।
जीवन के कितने सारे,
अमूल्य क्षणों को व्यर्थ किया,
ऐसा सोचते हैं और स्वयं को कोसते हैं,
नए नए सङ्कल्प उभरते हैं,
जीवन को अब नए ढंग से,
जीने की सोचते हैं,
और कल्पनाएं करते हैं।
गिड़गिड़ाते हुए प्रार्थना करते है,
हे भगवान! इस बार मुझे बचा लो,
इस विपत्ति से उबार लो,
अपना सर्वस्व अर्पण कर दूंगा,
जीवन तेरे अनुसाशन में जियूंगा,
हे प्रभु! तेरा अहसान नहीं भूलूँगा,
तेरी सेवा और समाज सेवा में,
अपना जी जान लगा दूँगा।
हॉस्पिटल से घर आते ही,
घाव भरने लगते हैं,
दर्द घटने लगते हैं,
मोह माया पुनः बढ़ने लगता हैं,
ब्रह्मज्ञान को बादल सा ढँकने लगता हैं।
अच्छे दिन आते ही,
पुनः पुराने ढर्रे वाली जिंदगी में लौट आते हैं,
प्रभु से किये वादे को भूलकर जाते हैं,
हॉस्पिटल का बिल भर देते हैं,
लेकिन भगवान का बिल भूल जाते हैं।
मनुष्य की फ़ितरत है,
अपनों और अपनों से किये वादों को भूलने की,
जिनसे स्वार्थ सधता है,
केवल उन्हें याद रखने की।
भगवान से किये वादे भूल गया,
माता-पिता से किये वादे भूल गया,
स्कूल में किये वादे भूल गया,
जिससे स्वार्थ सध रहा है,
बस केवल उसे ही याद रख रहा है।
अब जब तक पुनः,
दर्द और परेशानी का दौर न आएगा,
तब तक भगवान,
और भूला ब्रह्मज्ञान भी याद न आयेगा।
जब ठोकर लगेगी,
ओह माँ! की याद आएगी,
बड़ी चोट में,
बाप रे बाप! की याद आएगी,
बड़ी विपत्ति में,
हे भगवान! की पुनः याद आएगी।
दुःख में सुमिरन सब करें,
सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करे,
तो दुःख काहे को होय।
*अर्थात* - यदि भगवान और माता-पिता की सेवा सुख में करे और उनके अहसानो को सुख में हमेशा याद रखें तो जीवन में कभी दुःख आएगा ही नहीं।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
हॉस्पिटल और श्मशान में,
सबको ब्रह्मज्ञान हो जाता है,
जीवन की नश्वरता का,
और आत्मा की अमरता का,
सबको भान हो जाता है।।
हॉस्पिटल के बिस्तर पर,
जब ऑपेरशन के बाद,
जैसे ही दर्द उभर जाता है,
वैसे ही दर्द के साथ,
मन में ब्रह्मज्ञान भी उभर आता है।
जीवन के कितने सारे,
अमूल्य क्षणों को व्यर्थ किया,
ऐसा सोचते हैं और स्वयं को कोसते हैं,
नए नए सङ्कल्प उभरते हैं,
जीवन को अब नए ढंग से,
जीने की सोचते हैं,
और कल्पनाएं करते हैं।
गिड़गिड़ाते हुए प्रार्थना करते है,
हे भगवान! इस बार मुझे बचा लो,
इस विपत्ति से उबार लो,
अपना सर्वस्व अर्पण कर दूंगा,
जीवन तेरे अनुसाशन में जियूंगा,
हे प्रभु! तेरा अहसान नहीं भूलूँगा,
तेरी सेवा और समाज सेवा में,
अपना जी जान लगा दूँगा।
हॉस्पिटल से घर आते ही,
घाव भरने लगते हैं,
दर्द घटने लगते हैं,
मोह माया पुनः बढ़ने लगता हैं,
ब्रह्मज्ञान को बादल सा ढँकने लगता हैं।
अच्छे दिन आते ही,
पुनः पुराने ढर्रे वाली जिंदगी में लौट आते हैं,
प्रभु से किये वादे को भूलकर जाते हैं,
हॉस्पिटल का बिल भर देते हैं,
लेकिन भगवान का बिल भूल जाते हैं।
मनुष्य की फ़ितरत है,
अपनों और अपनों से किये वादों को भूलने की,
जिनसे स्वार्थ सधता है,
केवल उन्हें याद रखने की।
भगवान से किये वादे भूल गया,
माता-पिता से किये वादे भूल गया,
स्कूल में किये वादे भूल गया,
जिससे स्वार्थ सध रहा है,
बस केवल उसे ही याद रख रहा है।
अब जब तक पुनः,
दर्द और परेशानी का दौर न आएगा,
तब तक भगवान,
और भूला ब्रह्मज्ञान भी याद न आयेगा।
जब ठोकर लगेगी,
ओह माँ! की याद आएगी,
बड़ी चोट में,
बाप रे बाप! की याद आएगी,
बड़ी विपत्ति में,
हे भगवान! की पुनः याद आएगी।
दुःख में सुमिरन सब करें,
सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करे,
तो दुःख काहे को होय।
*अर्थात* - यदि भगवान और माता-पिता की सेवा सुख में करे और उनके अहसानो को सुख में हमेशा याद रखें तो जीवन में कभी दुःख आएगा ही नहीं।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment