प्रश्न - *स्त्री परिवार की धुरी है, उसके कर्तव्य अनेक हैं...घर, गृहस्थी, पति, बच्चे, माता-पिता, ससुराल-मायका, रिश्तेदारी इत्यादि सब निभाना पड़ता है। ऊपर से यदि जॉब भी कर रहे हो तो ऑफिस और उससे जुड़ी जिम्मेदारियां भी निभानी होती है।*
*बच्चो के लिए लक्ष्य - बच्चों को एक अच्छा नागरिक, सफल इंसान और सफल व्यक्तित्व बनाना*
*पति के लिए लक्ष्य - पति को मानसिक सदृढता प्रदान करना और उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को निखारना*
*स्वयं के लिए लक्ष्य - स्वयं को जानना, स्वयं की कुशलता बढ़ाना। स्वयं के व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रभावशाली बनाना*
*ये सभी तो मल्टीप्ल गोल्स ही हुए ना ? और ये गोल्स कुछ हद तक अस्पष्ट भी हैं । ऐसे में एनर्जी को किसी एक लक्ष्य पर फोकस कैसे रखें?*
उत्तर - आत्मीय बहन, हम सब अकेले जन्मते है और अकेले ही संसार से विदा आएंगे। न कोई गर्भ में साथ होता है और न ही कोई चिता में साथ जलता है। केवल श्मशान तक ही विदाई देने परिवार आता है। जीवन यात्रा के दौरान सफ़र में जन्मते ही माता-पिता और मायके के रिश्तेदार जुड़ते चले जाते हैं, विवाह के बाद पति और उससे जुड़े रिश्तेनाते दार जुड़ जाते हैं। फ़िर हम बच्चो को जन्मते हैं और उनसे सम्बंध जुड़ते हैं। लेकिन यह सभी सम्बन्ध शरीर से हैं, शरीर छूटते ही सब सम्बन्धो का अस्तित्व चिता के साथ जल जाएगा। जैसे पिछले जन्मों के सम्बंध/रिश्तेदार इस जन्म में याद नहीं वैसे ही इस जन्म के सम्बन्धी/रिश्तेदार अगले जन्म में भी याद नहीं रहेंगे।
प्रश्न ने पूँछे उपरोक्त लक्ष्य कार्य को मोटे मोटे तीन भागों में बाँटिये:-
1- स्व आत्मा से सम्बंधित लक्ष्य, जिसका प्रभाव इस जन्म में भी है और अगले जन्म में भी होगा। इस जन्म में आत्मा का वस्त्र शरीर इन लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक हो।
(यहां आप मुख्य किरदार में हैं, यह यात्रा आपकी है। यहां क्या करना या नहीं करना है सबकुछ आप पर ही निर्भर है।)
2- शरीर से जुड़े सम्बन्धों के प्रति उत्तरदायित्व निभाना।
(यहाँ आप मुख्य किरदार नहीं है, यहां आप सहयोगी की भूमिका में हैं। क्योंकि आपकी ही तरह आपके स्वजन भी एक जीवनयात्रा में है, उनकी स्टार्ट स्टेशन और लास्ट स्टेशन नियत है। कौन कब तक आपका साथ देगा कुछ भी निश्चित नहीं है)
3- यदि जॉब कर रहे हो, तो जॉब से जुड़े कर्तव्यों को निभाना।
(यहां भी आप सहयोगी हैं मुख्य किरदार में नहीं है)
बहन किसी व्यक्ति के एक बच्चे हों या दस इन्ही 24 घण्टों में ही सम्हालना पड़ेगा। कोई एकल परिवार में रहे या संयुक्त 24 घण्टे ही मिले हैं। किसी व्यक्ति के पास एक कम्पनी हो या दस 24 घण्टे में ही सम्हालना होता है। एक व्यक्ति एकांत में जंगल मे तप करे या बड़ा आश्रम बनाकर करे, सबके पास 24 घण्टे ही हैं। एक मजदूर हो या देश का एक प्रधानमन्त्री हो सबको एक जीवन और दिन के 24 घण्टे ही मिले हैं।
*प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक दिन- 86400 सेकंड्स मिलते हैं। इनको आप कैसे ख़र्च करते हो इस जीवन की सफ़लता या असफलता निर्भर करती है।*
आप ईश्वर की आराधना में नित्य कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? स्वयं पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? पति पर नित्य कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? बच्चों पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? अन्य नाते रिश्तेदारों पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? जॉब यदि कर रहे हो तो उस पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं?
कुछ स्त्रियाँ जो हाउस मेकर होती है पूरा दिन किचन में ही गुजार देती हैं। वहीं दूसरी तरफ कुशल स्त्रियां वही खाना उतने ही लोगों के लिए मुश्किल से दो घण्टे के भीतर तैयार कर लेती हैं। किचन समय नहीं खाता, व्यक्ति की अकुशलता ही समय खाती है।
बहन, मनुष्य को उचित समय प्रबंधन के द्वारा उपरोक्त सभी कार्य करने होंगें।
एक मुख्य लक्ष्य आत्मा से सम्बंधित हुआ, और बाकी अन्य की लक्ष्य पूर्ति में आप सहयोगी हुए। अब बुद्धिकुशलता से 86400 सेकंड्स को कब कहाँ कितना खर्च करना है यह तय कीजिये। यह समय को सोच समझ के ख़र्च प्रायॉरिटी के आधार पर कीजिये। प्रायोरिटी निर्धारण के लिए ध्यान पर बैठिए और इस विषय पर गहराई से सोचिए। इसमें अन्य कोई व्यक्ति मदद नहीं कर सकता। प्रायोरिटी सबकी अपनी अपनी होती है।
हम कभी व्यस्त नहीं होते, हम अक्सर अस्त व्यस्त होते है क्योंकि वक़्त को व्यवस्थित उपयोग करने में चूक जाते हैं।
सेना में प्रत्येक व्यक्ति केवल अपनी चौकी को सुरक्षित करता है और पूरी सीमा सुरक्षित हो जाती है। दीपावली में सब केवल अपने घर दिया जलाते है और पूरा देश रौशन हो जाता है। यदि परिवार में सब अपने अपने हिस्से की जिम्मेदारी बखूबी निभा लें तो घर सहज ही सम्हल जाता है। समय पर उठ जाएं, समय पर भोजन, स्वयं अपने बर्तन साफ कर लें और अपना अपना रूम साफ कर लें, समय पर पढ़ाई कर लें और एक दूसरे के सहयोगी बन जाये। एक दूसरे को थोड़ा वक्त दें तो प्रेम और सहकार से भरा घर धरती का स्वर्ग होता है।
कुछ पुस्तकें उपरोक्त लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होंगी:-
1- समय का सदुपयोग
2- गृहस्थ एक तपोवन
3- मित्रभाव बढ़ाने की कला
4- बच्चो को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- जीवन जीने की कला
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
*बच्चो के लिए लक्ष्य - बच्चों को एक अच्छा नागरिक, सफल इंसान और सफल व्यक्तित्व बनाना*
*पति के लिए लक्ष्य - पति को मानसिक सदृढता प्रदान करना और उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को निखारना*
*स्वयं के लिए लक्ष्य - स्वयं को जानना, स्वयं की कुशलता बढ़ाना। स्वयं के व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रभावशाली बनाना*
*ये सभी तो मल्टीप्ल गोल्स ही हुए ना ? और ये गोल्स कुछ हद तक अस्पष्ट भी हैं । ऐसे में एनर्जी को किसी एक लक्ष्य पर फोकस कैसे रखें?*
उत्तर - आत्मीय बहन, हम सब अकेले जन्मते है और अकेले ही संसार से विदा आएंगे। न कोई गर्भ में साथ होता है और न ही कोई चिता में साथ जलता है। केवल श्मशान तक ही विदाई देने परिवार आता है। जीवन यात्रा के दौरान सफ़र में जन्मते ही माता-पिता और मायके के रिश्तेदार जुड़ते चले जाते हैं, विवाह के बाद पति और उससे जुड़े रिश्तेनाते दार जुड़ जाते हैं। फ़िर हम बच्चो को जन्मते हैं और उनसे सम्बंध जुड़ते हैं। लेकिन यह सभी सम्बन्ध शरीर से हैं, शरीर छूटते ही सब सम्बन्धो का अस्तित्व चिता के साथ जल जाएगा। जैसे पिछले जन्मों के सम्बंध/रिश्तेदार इस जन्म में याद नहीं वैसे ही इस जन्म के सम्बन्धी/रिश्तेदार अगले जन्म में भी याद नहीं रहेंगे।
प्रश्न ने पूँछे उपरोक्त लक्ष्य कार्य को मोटे मोटे तीन भागों में बाँटिये:-
1- स्व आत्मा से सम्बंधित लक्ष्य, जिसका प्रभाव इस जन्म में भी है और अगले जन्म में भी होगा। इस जन्म में आत्मा का वस्त्र शरीर इन लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक हो।
(यहां आप मुख्य किरदार में हैं, यह यात्रा आपकी है। यहां क्या करना या नहीं करना है सबकुछ आप पर ही निर्भर है।)
2- शरीर से जुड़े सम्बन्धों के प्रति उत्तरदायित्व निभाना।
(यहाँ आप मुख्य किरदार नहीं है, यहां आप सहयोगी की भूमिका में हैं। क्योंकि आपकी ही तरह आपके स्वजन भी एक जीवनयात्रा में है, उनकी स्टार्ट स्टेशन और लास्ट स्टेशन नियत है। कौन कब तक आपका साथ देगा कुछ भी निश्चित नहीं है)
3- यदि जॉब कर रहे हो, तो जॉब से जुड़े कर्तव्यों को निभाना।
(यहां भी आप सहयोगी हैं मुख्य किरदार में नहीं है)
बहन किसी व्यक्ति के एक बच्चे हों या दस इन्ही 24 घण्टों में ही सम्हालना पड़ेगा। कोई एकल परिवार में रहे या संयुक्त 24 घण्टे ही मिले हैं। किसी व्यक्ति के पास एक कम्पनी हो या दस 24 घण्टे में ही सम्हालना होता है। एक व्यक्ति एकांत में जंगल मे तप करे या बड़ा आश्रम बनाकर करे, सबके पास 24 घण्टे ही हैं। एक मजदूर हो या देश का एक प्रधानमन्त्री हो सबको एक जीवन और दिन के 24 घण्टे ही मिले हैं।
*प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक दिन- 86400 सेकंड्स मिलते हैं। इनको आप कैसे ख़र्च करते हो इस जीवन की सफ़लता या असफलता निर्भर करती है।*
आप ईश्वर की आराधना में नित्य कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? स्वयं पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? पति पर नित्य कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? बच्चों पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? अन्य नाते रिश्तेदारों पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं? जॉब यदि कर रहे हो तो उस पर कितने सेकण्ड्स खर्च करते हैं?
कुछ स्त्रियाँ जो हाउस मेकर होती है पूरा दिन किचन में ही गुजार देती हैं। वहीं दूसरी तरफ कुशल स्त्रियां वही खाना उतने ही लोगों के लिए मुश्किल से दो घण्टे के भीतर तैयार कर लेती हैं। किचन समय नहीं खाता, व्यक्ति की अकुशलता ही समय खाती है।
बहन, मनुष्य को उचित समय प्रबंधन के द्वारा उपरोक्त सभी कार्य करने होंगें।
एक मुख्य लक्ष्य आत्मा से सम्बंधित हुआ, और बाकी अन्य की लक्ष्य पूर्ति में आप सहयोगी हुए। अब बुद्धिकुशलता से 86400 सेकंड्स को कब कहाँ कितना खर्च करना है यह तय कीजिये। यह समय को सोच समझ के ख़र्च प्रायॉरिटी के आधार पर कीजिये। प्रायोरिटी निर्धारण के लिए ध्यान पर बैठिए और इस विषय पर गहराई से सोचिए। इसमें अन्य कोई व्यक्ति मदद नहीं कर सकता। प्रायोरिटी सबकी अपनी अपनी होती है।
हम कभी व्यस्त नहीं होते, हम अक्सर अस्त व्यस्त होते है क्योंकि वक़्त को व्यवस्थित उपयोग करने में चूक जाते हैं।
सेना में प्रत्येक व्यक्ति केवल अपनी चौकी को सुरक्षित करता है और पूरी सीमा सुरक्षित हो जाती है। दीपावली में सब केवल अपने घर दिया जलाते है और पूरा देश रौशन हो जाता है। यदि परिवार में सब अपने अपने हिस्से की जिम्मेदारी बखूबी निभा लें तो घर सहज ही सम्हल जाता है। समय पर उठ जाएं, समय पर भोजन, स्वयं अपने बर्तन साफ कर लें और अपना अपना रूम साफ कर लें, समय पर पढ़ाई कर लें और एक दूसरे के सहयोगी बन जाये। एक दूसरे को थोड़ा वक्त दें तो प्रेम और सहकार से भरा घर धरती का स्वर्ग होता है।
कुछ पुस्तकें उपरोक्त लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होंगी:-
1- समय का सदुपयोग
2- गृहस्थ एक तपोवन
3- मित्रभाव बढ़ाने की कला
4- बच्चो को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- जीवन जीने की कला
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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