प्रश्न - *दी, हम जॉब करते हैं, दो बच्चे हैं। ऑफिस में वर्कलोड ज्यादा है। घर आने में अक्सर लेट होती है। घर पर सभी सुनाना शुरू कर देते हैं, बच्चों पर कोई ध्यान नहीं है सिर्फ़ जॉब की पड़ी है।मेरे पति के भी कान भर दिए जाते हैं उन्हें कुछ बोलो तो उल्टा मुझे ही सुना देते हैं। समझ नहीं आता जॉब छोड़ दूं या करूँ? आजकल खर्च इतना है, घर की EMI वग़ैरह सोचकर जॉब छोड़ने का ख्याल मन से निकाल देती हूँ। लेक़िन मेरे परिवार वाले मुझे इतना गिल्ट फील करवाते है ऑफ़िस से देर आने पर कि मन भारी हो जाता है। वही जब मेरे पति लेट ऑफिस से आते हैं उन्हें कोई कुछ नहीं कहता। क्या करूँ मार्गदर्शन करें*
उत्तर - आत्मीय बहन सबसे पहले अपनी परिस्थिति में खुलकर हंसो, अपने ऊपर हँसो
😂😂😂😂
सासु माँ को बहु दुर्गा माता की तरह चाहिए - अष्टभुजी। एक हाथ से जॉब करे, दूसरे हाथ से किचन में भोजन बनाये, तीसरे हाथ से घर की सफ़ाई करे, चौथे हाथ से बच्चों को होमवर्क करवाये, पांचवे हाथ से पति को सम्हाले, छठे हाथ से सास ससुर को सम्हाले, सातवें हाथ से रिश्तेदारी सम्हाले और आठवें हाथ से सर पर पल्लू रखे। क्योंकि बहु है...बहु वाले काम तो करने पड़ेंगे न...नया जमाना है तो जॉब भी करना पड़ेगा
😂😂😂😂😂😂
समस्या यह है कि तुम्हारे पास दो हाथ है, और छह(6) हाथ कम है, इसलिए तुम चाहकर भी ससुराल में सबको ख़ुश नहीं रख सकती।
अब मान लो, तुमने जॉब छोड़ दी। अर्थ व्यवस्था डगमगा गई तो इसका भी ब्लेम तो आएगा ही और साथ ही इससे तो केवल एक हाथ का कार्य कम हुआ, फिंर भी 7 हाथ तो तुम्हारे पास है नहीं तो 5 हाथ तो अभी भी कम है, तो सुनना तो तब भी पड़ेगा।
😂😂😂😂😂
अच्छा मज़ाक बहुत हुआ, अब सीरियस समाधान सुनो। सदा सफल हनुमान जी से गृहस्थी मैनेजमेंट सीखो, निरहंकारीता के साथ शक्ति प्रदर्शन सीखो।
सुंदरकांड याद करो, जब हनुमानजी सीता जी को ढूंढने जा रहे थे तो सुरसा आ गयी, हनुमानजी जी पहले विनयी होकर जाने की आज्ञा माँगी। सुरसा ने मना कर दिया, और खाने के लिए एक योजन मुँह खोला हनुमानजी जी दुगुने हो गए। ऐसा चलता रहा, जब सत जोज़न(हज़ारो मील) मुँह बड़ा कर लिया तो अत्यंत छोटे होकर मुँह में प्रवेश करके बाहर आ गए और चरण स्पर्श किया।
अर्थात जब तुम सही हो, फिंर भी पहले विनयी बनकर काम चलाने की कोशिश करो, यदि सामने वाला तुम्हारे विनयी होने को कायरता समझे और कोई घर मे ह्यूमिलिएट करे, तो अपना पक्ष रखो और शब्दों से शक्ति प्रदर्शन करो, यदि बात बढ़ने लगे तो झट सॉरी बोल के बात खत्म करो और अपना काम करने निकल जाओ।
घर में इतना अहसास पति बच्चों और सास ससुर जी को करवा के रखो, कि बहु के रूप में शक्तिशाली हनुमान है जो विनयी है। यदि पूंछ में आग लगाओगे तो लँका जलेगी।
भगवान हनुमान दास भक्ति करते थे, लँका जला आये, राक्षसों का वध कर आये। लेकिन एक रुपये राम जी का खर्च नहीं किया। कपड़े किसके रावण का, तेल किसका रावण का, संसाधन किसके रावण का, अंत मे राख भी रावण के पास ही छोड़ आये। सीता जी और सुरक्षित कर आये। ठंडे दिमाग़ से लँका गए और उतने ही ठंडे दिमाग़ से श्रीराम के पास वापस लौट आये। इतने बड़े कार्य का भी कोई अहंकार प्रदर्शित नहीं किया। बोले प्रभु सब आपकी कृपा से हुआ। ऐसे ही ऑफीस का कार्य करके आओ और श्रेय पति-बच्चो और सास-ससुर को दे दो। आप सहयोग न करते तो जॉब न कर पाती।
हमारे वर्तमान समय में हनुमान जी लँका जलाकर आते, तो विरोधी पार्टी फ़िर भी लँका जलाने के सबूत मांगती जैसे एयर-स्ट्राइक सबूत मांग रही है। वो तो बोलेगी सबूत बताओ कितने राक्षस मरे? सबूत हनुमान जी भी न दे पाते। इसलिए घर वाले भी विपक्ष की तरह सबूत मांगेंगे और कुछ न कुछ बोलेंगे। ऑफीस के वर्कलोड का सबूत तुम भी नहीं दे पाओगी, अतः इसमें परेशान या इमोशनल होने की जरूरत नहीं हैं।
सफ़लता की तैयारी इतनी ख़ामोशी से करो कि जब सफल हो तो उसका शोर हो। ऑफिस में भी और घर मे भी।
बच्चों को क़्वालिटी टाइम में इतना साधकर रखो कि उनके रिजल्ट शोर मचाये, आपको कुछ कहना न पड़े। ऑफिस में मिलती सफलता सम्मान स्वतः शोर मचाये।
माता हो तो अपनी सन्तान में विश्वास का रिश्ता मजबूत करो और उनसे अपनी समस्या शेयर करो, उन्हें समझाओ कि उनके भविष्य के लिए मेहनत कर रहे हो। कछुआ कई मील दूर रहकर भी ध्यानस्थ होकर बच्चा पाल लेता है, तुम तो मात्र कुछ घण्टों की दूरी पर होती हो। बच्चो को कभी प्यार(पुरस्कार) से तो कभी फटकार(दण्ड) से सम्हालो।
पति अर्धांग है, उनसे one to one मैच्योर डिस्कसन करो। यदि किसी ने कान भरे हैं तो तुम्हारा प्रथम कार्य है कि उस कान की सफाई करना और अपनी बात उन तक पहुंचाना। पहले हनुमानजी की तरह विनयी होकर बोलो, जरूरत पड़ने पर शक्ति प्रदर्शन करो, अंत हमेशा सॉरी से बोलकर कर दो। उन्हें अंत मे यह अहसास हो कि आज के वाद विवाद के विजेता वही रहे, साथ ही आपकी शक्ति से परिचय हो गया। जैसे सुरसा को हुआ था, लेकिन हनुमान जी की शक्ति का भी अहसास हो गया था।
बहन जितनी अक्ल ऑफिस में चलाती हो, उतनी ही अक्ल या यूं कहो उससे ज्यादा अक्ल की जरूरत घर पर चलाने की जरूरत है।
अंग्रेजों का बनाया *सॉरी* शब्द का प्रयोग अवश्य करते रहो। हृदय से सबका सम्मान करो, उमंग उल्लास और उत्साह से भरी रहो।
पलीज़ इमोशनल ड्रामा मत करना, मैं इतना इन सबके लिए करती हूँ इन्हें तो मेरी कद्र ही नहीं है😭😭😭😭। I hate tears...दुर्गा शक्ति रोती नहीं है... तुम्हारी कद्र घर में इसलिए नहीं है क्योंकि तुमने सौम्य स्वरूप के साथ दुर्गा के शक्ति स्वरूप के दर्शन नहीं करवाये हैं। बहन यदि स्वयं को कम्पनी में साबित नहीं कर पाई तो वहां से आउट होंगे, वैसे ही यदि स्वयं को यदि घर मे साबित नहीं कर पाई तो घर से भी आउट होंगे।
केवल परमात्मा और सद्गुरु बिन बोले हृदय के भाव समझते हैं, कोई सांसारिक इंसान नहीं। यदि इंसानों से परमात्मा जैसे मन के भाव पढ़ने की उम्मीद करोगी तो गलती तुम्हारी है उनकी नहीं। इंसानों को स्वयं के मन के भाव स्वयं पढ़कर सुनाना होता है और दूसरों के सुनने होते हैं।
निम्नलिखित पुस्तक पढो और सदा सफल हनुमानजी जैसी ताक़तवर और विनम्र-निरहंकारी बनो:-
1- मित्रभाव बढ़ाने की कला
2- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
3- आगे बढ़ने की तैयारी
4- गृहस्थ एक तपोवन
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- निराशा को पास न फटकने दें
8- दृष्टिकोण ठीक रखें
9- जीवन जीने की कला
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
याद रखना, पुष्पा आई हेट टियर्स रे!
उत्तर - आत्मीय बहन सबसे पहले अपनी परिस्थिति में खुलकर हंसो, अपने ऊपर हँसो
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सासु माँ को बहु दुर्गा माता की तरह चाहिए - अष्टभुजी। एक हाथ से जॉब करे, दूसरे हाथ से किचन में भोजन बनाये, तीसरे हाथ से घर की सफ़ाई करे, चौथे हाथ से बच्चों को होमवर्क करवाये, पांचवे हाथ से पति को सम्हाले, छठे हाथ से सास ससुर को सम्हाले, सातवें हाथ से रिश्तेदारी सम्हाले और आठवें हाथ से सर पर पल्लू रखे। क्योंकि बहु है...बहु वाले काम तो करने पड़ेंगे न...नया जमाना है तो जॉब भी करना पड़ेगा
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समस्या यह है कि तुम्हारे पास दो हाथ है, और छह(6) हाथ कम है, इसलिए तुम चाहकर भी ससुराल में सबको ख़ुश नहीं रख सकती।
अब मान लो, तुमने जॉब छोड़ दी। अर्थ व्यवस्था डगमगा गई तो इसका भी ब्लेम तो आएगा ही और साथ ही इससे तो केवल एक हाथ का कार्य कम हुआ, फिंर भी 7 हाथ तो तुम्हारे पास है नहीं तो 5 हाथ तो अभी भी कम है, तो सुनना तो तब भी पड़ेगा।
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अच्छा मज़ाक बहुत हुआ, अब सीरियस समाधान सुनो। सदा सफल हनुमान जी से गृहस्थी मैनेजमेंट सीखो, निरहंकारीता के साथ शक्ति प्रदर्शन सीखो।
सुंदरकांड याद करो, जब हनुमानजी सीता जी को ढूंढने जा रहे थे तो सुरसा आ गयी, हनुमानजी जी पहले विनयी होकर जाने की आज्ञा माँगी। सुरसा ने मना कर दिया, और खाने के लिए एक योजन मुँह खोला हनुमानजी जी दुगुने हो गए। ऐसा चलता रहा, जब सत जोज़न(हज़ारो मील) मुँह बड़ा कर लिया तो अत्यंत छोटे होकर मुँह में प्रवेश करके बाहर आ गए और चरण स्पर्श किया।
अर्थात जब तुम सही हो, फिंर भी पहले विनयी बनकर काम चलाने की कोशिश करो, यदि सामने वाला तुम्हारे विनयी होने को कायरता समझे और कोई घर मे ह्यूमिलिएट करे, तो अपना पक्ष रखो और शब्दों से शक्ति प्रदर्शन करो, यदि बात बढ़ने लगे तो झट सॉरी बोल के बात खत्म करो और अपना काम करने निकल जाओ।
घर में इतना अहसास पति बच्चों और सास ससुर जी को करवा के रखो, कि बहु के रूप में शक्तिशाली हनुमान है जो विनयी है। यदि पूंछ में आग लगाओगे तो लँका जलेगी।
भगवान हनुमान दास भक्ति करते थे, लँका जला आये, राक्षसों का वध कर आये। लेकिन एक रुपये राम जी का खर्च नहीं किया। कपड़े किसके रावण का, तेल किसका रावण का, संसाधन किसके रावण का, अंत मे राख भी रावण के पास ही छोड़ आये। सीता जी और सुरक्षित कर आये। ठंडे दिमाग़ से लँका गए और उतने ही ठंडे दिमाग़ से श्रीराम के पास वापस लौट आये। इतने बड़े कार्य का भी कोई अहंकार प्रदर्शित नहीं किया। बोले प्रभु सब आपकी कृपा से हुआ। ऐसे ही ऑफीस का कार्य करके आओ और श्रेय पति-बच्चो और सास-ससुर को दे दो। आप सहयोग न करते तो जॉब न कर पाती।
हमारे वर्तमान समय में हनुमान जी लँका जलाकर आते, तो विरोधी पार्टी फ़िर भी लँका जलाने के सबूत मांगती जैसे एयर-स्ट्राइक सबूत मांग रही है। वो तो बोलेगी सबूत बताओ कितने राक्षस मरे? सबूत हनुमान जी भी न दे पाते। इसलिए घर वाले भी विपक्ष की तरह सबूत मांगेंगे और कुछ न कुछ बोलेंगे। ऑफीस के वर्कलोड का सबूत तुम भी नहीं दे पाओगी, अतः इसमें परेशान या इमोशनल होने की जरूरत नहीं हैं।
सफ़लता की तैयारी इतनी ख़ामोशी से करो कि जब सफल हो तो उसका शोर हो। ऑफिस में भी और घर मे भी।
बच्चों को क़्वालिटी टाइम में इतना साधकर रखो कि उनके रिजल्ट शोर मचाये, आपको कुछ कहना न पड़े। ऑफिस में मिलती सफलता सम्मान स्वतः शोर मचाये।
माता हो तो अपनी सन्तान में विश्वास का रिश्ता मजबूत करो और उनसे अपनी समस्या शेयर करो, उन्हें समझाओ कि उनके भविष्य के लिए मेहनत कर रहे हो। कछुआ कई मील दूर रहकर भी ध्यानस्थ होकर बच्चा पाल लेता है, तुम तो मात्र कुछ घण्टों की दूरी पर होती हो। बच्चो को कभी प्यार(पुरस्कार) से तो कभी फटकार(दण्ड) से सम्हालो।
पति अर्धांग है, उनसे one to one मैच्योर डिस्कसन करो। यदि किसी ने कान भरे हैं तो तुम्हारा प्रथम कार्य है कि उस कान की सफाई करना और अपनी बात उन तक पहुंचाना। पहले हनुमानजी की तरह विनयी होकर बोलो, जरूरत पड़ने पर शक्ति प्रदर्शन करो, अंत हमेशा सॉरी से बोलकर कर दो। उन्हें अंत मे यह अहसास हो कि आज के वाद विवाद के विजेता वही रहे, साथ ही आपकी शक्ति से परिचय हो गया। जैसे सुरसा को हुआ था, लेकिन हनुमान जी की शक्ति का भी अहसास हो गया था।
बहन जितनी अक्ल ऑफिस में चलाती हो, उतनी ही अक्ल या यूं कहो उससे ज्यादा अक्ल की जरूरत घर पर चलाने की जरूरत है।
अंग्रेजों का बनाया *सॉरी* शब्द का प्रयोग अवश्य करते रहो। हृदय से सबका सम्मान करो, उमंग उल्लास और उत्साह से भरी रहो।
पलीज़ इमोशनल ड्रामा मत करना, मैं इतना इन सबके लिए करती हूँ इन्हें तो मेरी कद्र ही नहीं है😭😭😭😭। I hate tears...दुर्गा शक्ति रोती नहीं है... तुम्हारी कद्र घर में इसलिए नहीं है क्योंकि तुमने सौम्य स्वरूप के साथ दुर्गा के शक्ति स्वरूप के दर्शन नहीं करवाये हैं। बहन यदि स्वयं को कम्पनी में साबित नहीं कर पाई तो वहां से आउट होंगे, वैसे ही यदि स्वयं को यदि घर मे साबित नहीं कर पाई तो घर से भी आउट होंगे।
केवल परमात्मा और सद्गुरु बिन बोले हृदय के भाव समझते हैं, कोई सांसारिक इंसान नहीं। यदि इंसानों से परमात्मा जैसे मन के भाव पढ़ने की उम्मीद करोगी तो गलती तुम्हारी है उनकी नहीं। इंसानों को स्वयं के मन के भाव स्वयं पढ़कर सुनाना होता है और दूसरों के सुनने होते हैं।
निम्नलिखित पुस्तक पढो और सदा सफल हनुमानजी जैसी ताक़तवर और विनम्र-निरहंकारी बनो:-
1- मित्रभाव बढ़ाने की कला
2- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
3- आगे बढ़ने की तैयारी
4- गृहस्थ एक तपोवन
5- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
6- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
7- निराशा को पास न फटकने दें
8- दृष्टिकोण ठीक रखें
9- जीवन जीने की कला
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
याद रखना, पुष्पा आई हेट टियर्स रे!
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