प्रश्न - *भजन, चालीसा, स्तवन और आरती में क्या अंतर है? किसे कब करना चाहिए?*
उत्तर - आत्मीय बहन, प्रत्येक देवी देवता विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न होते हैं। भक्त गण उन शक्तियों से जुड़कर विभिन्न लाभ प्राप्त करते हैं।
👉🏼 *भजन* - भज अर्थात भजना-याद करना, ईश्वर का संगीतमय स्मरण है। यह अक्सर सुगम संगीत होता है। इसमें ईश्वर के रूप, रँग, नाम और गुणों की कल्पना कर गायन किया जाता है। इससे साधक के भाव शुद्ध होते हैं। भजन कभी भी किया जा सकता है, कोई विशेष नियम इस पर लागू नहीं होता। अक्सर लोग भाव बनाने के लिए पूजन शुरू होने से पहले और कभी कभी उसी भाव में रमने के लिए पूजन के बाद भी भजन गा लिया करते हैं।
👉🏼 *चालीसा* - अर्थात गेय(गाई जा सकने वाली) चालीस पदों की स्तुति। इसमें देवता की स्तुति टोटल 40 पद में होती है, इसलिए इसे चालीसा कहते हैं। यह मंन्त्र जप के समान ही फलदायी होती है। इसके पाठ का भी अनुष्ठान किया जा सकता है। इसके पाठ में जप वाले नियम लागू होते हैं।
👉🏼 *स्तवन* - अर्थात स्तुति, स्तुति के माध्यम से हाथ जोड़कर देवता की शक्ति के स्रोत से जुड़ने का उपक्रम होता है। इसमें सम्बन्धित देवता की शक्तियों पहले गुणगान किया जाता है, फिर उनसे किसी मनोकामना की प्रार्थना की जाती है। यह हमेशा देव पूजन में देव आहवाहन के बाद और आरती के पहले होता है। यदि यज्ञ कर रहे हैं तो यज्ञ से पहले भावात्मक ईश्वर से एकात्मय के लिए इसका पाठ जरूर करें।
👉🏼 *आरती* - जब कोई प्रार्थना या स्तुति आर्त स्वर में बिल्कुल समर्पित करके जलते हुए दीपक के साथ की जाती है तब वह आरती कहलाती है। इस स्तुति में भगवान की महानता और गुणों के साथ अपनी क्षुद्रता, कमियों को गिनाया जाता है। फिर उन कमियों को दूर करने की प्रार्थना की जाती है। पूर्णता प्राप्त करने की भाव पूर्वक प्रार्थना की जाती है। यह पूजन के अंत में किया जाता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, प्रत्येक देवी देवता विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न होते हैं। भक्त गण उन शक्तियों से जुड़कर विभिन्न लाभ प्राप्त करते हैं।
👉🏼 *भजन* - भज अर्थात भजना-याद करना, ईश्वर का संगीतमय स्मरण है। यह अक्सर सुगम संगीत होता है। इसमें ईश्वर के रूप, रँग, नाम और गुणों की कल्पना कर गायन किया जाता है। इससे साधक के भाव शुद्ध होते हैं। भजन कभी भी किया जा सकता है, कोई विशेष नियम इस पर लागू नहीं होता। अक्सर लोग भाव बनाने के लिए पूजन शुरू होने से पहले और कभी कभी उसी भाव में रमने के लिए पूजन के बाद भी भजन गा लिया करते हैं।
👉🏼 *चालीसा* - अर्थात गेय(गाई जा सकने वाली) चालीस पदों की स्तुति। इसमें देवता की स्तुति टोटल 40 पद में होती है, इसलिए इसे चालीसा कहते हैं। यह मंन्त्र जप के समान ही फलदायी होती है। इसके पाठ का भी अनुष्ठान किया जा सकता है। इसके पाठ में जप वाले नियम लागू होते हैं।
👉🏼 *स्तवन* - अर्थात स्तुति, स्तुति के माध्यम से हाथ जोड़कर देवता की शक्ति के स्रोत से जुड़ने का उपक्रम होता है। इसमें सम्बन्धित देवता की शक्तियों पहले गुणगान किया जाता है, फिर उनसे किसी मनोकामना की प्रार्थना की जाती है। यह हमेशा देव पूजन में देव आहवाहन के बाद और आरती के पहले होता है। यदि यज्ञ कर रहे हैं तो यज्ञ से पहले भावात्मक ईश्वर से एकात्मय के लिए इसका पाठ जरूर करें।
👉🏼 *आरती* - जब कोई प्रार्थना या स्तुति आर्त स्वर में बिल्कुल समर्पित करके जलते हुए दीपक के साथ की जाती है तब वह आरती कहलाती है। इस स्तुति में भगवान की महानता और गुणों के साथ अपनी क्षुद्रता, कमियों को गिनाया जाता है। फिर उन कमियों को दूर करने की प्रार्थना की जाती है। पूर्णता प्राप्त करने की भाव पूर्वक प्रार्थना की जाती है। यह पूजन के अंत में किया जाता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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