Saturday 16 March 2019

प्रश्न - *दी, आर्थिक सदृढता के सूत्र बताइये? जिसे अपनाकर मैं आर्थिक रूप से सम्पन्न बन सकूँ। मैं अभी प्राइवेट छोटी सी जॉब कर रहा हूँ।*

प्रश्न - *दी, आर्थिक सदृढता के सूत्र बताइये? जिसे अपनाकर मैं आर्थिक रूप से सम्पन्न बन सकूँ। मैं अभी प्राइवेट छोटी सी जॉब कर रहा हूँ।*

उत्तर- आत्मीय भाई, मनुष्य अपनी सोच से अमीर या गरीब होता है। मनुष्य का माइंडसेट/एटीट्यूड उसकी जेब मे कितना धन होगा यह तय करता है। अतः बेटा कभी सोच में ग़रीब मत बनना और कभी गरीबो वाला एटीट्यूड मत रखना।

1- सफ़लता का रास्ता क़िताबों से ही होकर गुजरता है। जितने भी टॉप क्लास अमीर और सफल व्यक्ति हैं गूगल करो तो पाओगे कि वो सम्बन्धित पुस्तकों का कम से कम दो से चार घण्टों का नित्य स्वाध्याय करते हैं।

2- औसत जीवन मत जीना, जब औसत कपड़े और औसत दर्जे का भोजन पसन्द नहीं है। औसत जीवन भी मत जीना। शानदार जीवन जीना, और लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनना।

3- सफल व्यक्ति हमेशा कुछ नया नहीं करते, बल्कि वो कार्य को अलग ढंग से बेहतरीन करते हैं।

4- Be better or best, otherwise be different then the rest...जो भी करना बेस्ट करना अन्यथा कुछ अलग करने का प्रयास करना।

5- वृक्ष की तरह परोपकारी जीवन जीना, जितना समाज से लेना उससे 5 गुना लौटाना।

6- कभी किसी के आगे हाथ मत फैलाना और केवल स्वयं की मेहनत से कमाना।

7- अमीर गर्दन से ऊपर(दिमाग़ और व्यक्तित्व निर्माण) पर वक्त और पैसा ज्यादा इन्वेस्ट करते हैं और गरीब गर्दन से नीचे (पेट और वासना) पर ज्यादा वक्त और पैसा इन्वेस्ट करते हैं। तुम्हें अमीर बनना है तो दिमाग़ की शक्ति बढाने पर इन्वेस्ट करो।

8- अमीर एटीट्यूड में गरीबों को टिप देते हैं और ग़रीब एटीट्यूड में दो रुपये बचाने के लिए भी घण्टों सब्जी वाले से झिकझिक करते हैं। अमीरी ज्यादा कमाने और गरीबों को देने से आती है। इसीलिए राजा महाराजा और बड़े बिजनेस मैन जिस दुकान में जाते हैं समान खरीदने के बाद सौ या पचास की टिप दे देते हैं। इससे जब लोग कहते हैं यह अमीर आदमी लगता है तो अमीरी का उसका औरा बढ़ता है। जिस नाई और जिस होटल में आप टिप देते हो वहाँ के राजा आप बन जाते हो और अन्य लोगों को छोड़कर आपकी सबसे ज्यादा आवभगत होता है।

9- गरीबों से दो रुपये कैसे बचाएं कि जगह दो लाख कैसे कमाए पर ध्यान और सोच केंद्रित करो। चिंदी सोच वाला कभी अमीर नहीं बनता।

10- पैसा संसार में उड़ रहा है, जैसे समुद्र में मछलियां तैर रही हैं। सही अप्रोच और बुद्धिकुशलता से समुद्र से मछलियां और संसार मे पैसा कमाया जा सकता है।

11- सबसे पहले स्वयं पर विश्वास होना चाहिए और स्वयं को बेहतर बनाने में जुटना चाहिए। मार्किट डिमांड को समझना और उसकी पूर्ति हेतु योग्यता को विकसित करने में जुटना चाहिए।

12- समय से रेस लगाना चाहिए व्यक्ति से नहीं, कम समय और ज़्यादा गुणवत्ता से जो किसी भी क्षेत्र में प्रोडक्शन करेगा और आफ्टर सेल अच्छी सर्विस देगा वही वर्तमान समय में जॉब हो या व्यवसाय टिकेगा।

13- भगवान उसी की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है। क़िस्मत के लॉकर के ताले की दो चाबी हो तो ही खुलता है- एक भगवान के पास(आशीर्वाद) और दूसरा इंसान के पास(पुरुषार्थ) । अतः केवल भगवान भरोस बैठे रहने पर बिना पुरुषार्थ क़िस्मत का ताला नहीं खुलता।

14- पानी बरसने पर चील बादल से ऊपर उड़ जाता है और कबूतर कोटर में दुबक जाता है। समस्या एक होती है लेकिन उसे सॉल्व करने का एटीट्यूड सबका अपना अपना होता है। वास्तव में इंसान का एटीट्यूड/माइंडसेट ही उसकी औक़ात तय करता है।

15- जो रोज कुछ नया सीखता नहीं उसमें जंग लग जाता है। और वर्तमान में सफल होने के बावजूद मार्केट से बाहर  एक न एक दिन हो जाता है। जॉब करो या व्यवसाय कुछ न कुछ नया अपनी फील्ड से सम्बंधित पढ़ते रहें, सीखते रहें और तदनुसार कुछ न कुछ नया इन्वोवेशन अपने क्षेत्र में करते रहें।

16- सन्तुलन ही अध्यात्म है, सन्तुलन ही सुख की चाबी है। सांसारिक धन के साथ साथ तपोधन भी जुटाते चलें। इस जन्म में भी सुखी रहें और अगले जन्मों में भी सुख का मार्ग प्रशस्त करें।

17- तुमसे बेहतर तुम्हें कोई और नहीं जान सकता, तुमसे बेहतर तुम्हारा और कोई प्रशिक्षण और मोटिवेटर नहीं हो सकता। लिमिटलेस सफ़लता के लिए लिमिटलेस मेहनत करो। केवल तुम ही हो जो अपनी तरक्की का रोड़ा हो, और केवल तुम ही हो जो अपनी तरक्की के सबसे बड़े सहायक हो। स्वयं का साथ दो, दिमाग़ की शक्ति बढ़ाने के लिए नित्य ध्यान और स्वाध्याय करो।

18- मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। जैसा चाहो स्वयं का भाग्य लिख सकते हो। *ईश्वर वह ब्रह्माण्ड का स्वामी सबकुछ देने को तैयार है, बस कुछ ऐसा मांगना जिसको पाने के लिए तुम अपना सर्वस्व दांव पर लगा सको, कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखो और किसी भी हद तक मेहनत करने से पीछे न हटो।*

19- एकाग्रता ईश्वरीय देन नहीं हैं और न वह वरदान की तरह किसी को प्राप्त होती है। उसे विशुद्ध रूप से एक ‘अच्छी आदत’ कहा जा सकता है जो अन्य आदतों की तरह चिरकाल तक नियमित रीति−नीति अपनाने के कारण स्वभाव का अंग बनती है, विकसित होती है और व्यक्तित्व के साथ घनिष्ठता पूर्वक जुड़ जाती हैं। बस उस लक्ष्य पर एकाग्र रहो और उसे पाने का प्रयास करो, जिसे पाना चाहते हो।

20- भगवान के बाद केवल मनुष्य ही सृजन कर सकता है। केवल स्वयं की अपरिमित शक्तियों को जानना और जगाना पड़ता है।

कुछ सहायक पुस्तकें पढ़ो:-
1- सफलता के सात सूत्र साधन
2- सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है
3- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- धनवान बनने के गुप्त रहस्य

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

2 comments:

  1. दीदी बहुत प्रैक्टिकल सूत्र आपने दिए हैं जो युवा की सभी समस्या पर मारगदर्शन करता है, हम इन सूत्रों को फैला रहे हैं, प्रणाम

    ReplyDelete
  2. Vëŕÿ ÑĮĆĖ Öne 🙏👌👍🌹

    ReplyDelete

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...