Saturday, 16 March 2019

कविता - तू ही अटल सत्य है-फ़िर भी संसार तुझसे भयभीत क्यों है?

*तू ही अटल सत्य है-फ़िर भी संसार तुझसे भयभीत क्यों है?*

तू तो आएगी,
लेक़िन कोई न कोई बहाना,
जरूर बनाएगी।

हमेशा दबे पाँव आएगी,
ग़ुमराह करने का कोई मंजर,
जरूर दिखाएगी।

जानती हूँ,
तू ही अटल सत्य है,
फ़िर तू कभी,
सीधे सीधे क्यों नहीं आती है?
लोगों को ग़ुमराह करके ही,
क्यों ले जाती है?

ग़रीब कहता है,
इलाज़ नहीं करवा पाया,
इसलिए तेरे साथ जाना पड़ा,
अमीर कहता है,
बहतेरा इलाज़ करवाया,
मगर कोई डॉक्टर,
रोग की जड़ समझ न पाया,
इसलिए तेरे साथ जाना पड़ा।

कोई कहता है,
साँप ने काटा,
इसलिए तेरे साथ जाना पड़ा,
कोई कहता है,
एक्सीडेंट हुआ,
इसलिए तेरे साथ जाना पड़ा।

सब डरते हैं तेरे साये से,
मौत से डरते है भरमाये से,
जन्म के साथ ही,
तेरे आने का दिन,
निश्चित हो गया था,
वो मौत का बहाना क्या होगा,
बस ये पता न था,
बाक़ी यह अहसास तो,
सभी को है,
जो आया है वो जाएगा,
जो जन्मा है वो मरेगा,
जो मरा है वो पुनः जन्मेगा।

लेकिन माया तू तो,
बड़ी ठगनी है,
लोगों के आँखों मे,
तूने पट्टी बांध रखी है,
जो मुट्ठी भर मिट्टी भी,
साथ ले जा न सकेगा,
उसे ही तूने जमीन-जायजाद कमाने में,
उलझा रखा है,
जिसका विग्रह निश्चित है,
उसके संग्रह में उलझा रखा है।

क्या कहूँ तुझे,
तेरे हमेशा साथ होने का,
अहसास है मुझे,
तेरी अटल सत्यता पर,
अटूट विश्वास है मुझे,
तू मेरी अनन्त यात्रा का,
एक पड़ाव मात्र है,
इस पड़ाव में कई बार पहले भी,
गुजरने का अहसास है मुझे,

मेरे लिए कृपया,
तू सीधे सीधे आना,
कोई गुमराह करने वाला,
बेवजह बहाना न बनाना,
तेरे साथ यात्रा में,
ठहरने का मुझे कोई भय नहीं है,
वैसे भी मैं हूँ अनन्त यात्री,
यह शरीर मेरा अंतिम सत्य नहीं है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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