Thursday 28 March 2019

प्रश्न - *अघोरी कौन होते हैं? ये श्मशान में क्यों रहते है? क्या ये तांत्रिक होते हैं? कुछ इनके बारे में बताइये*

प्रश्न - *अघोरी कौन होते हैं? ये श्मशान में क्यों रहते है? क्या ये तांत्रिक होते हैं? कुछ इनके बारे में बताइये*

उत्तर - आत्मीय भाई, जैसे गुरुग्राम से दिल्ली पहुंचने के अनेक साधन, वाहन और मार्ग हैं। वैसे ही ईश्वर प्राप्ति के अनेक मार्ग हैं।

औघड़ का अपभ्रंष शब्द औघर और अघोर है। औघड़ (संस्कृत रूप अघोर) शक्ति का साधक होता है।

मान्यताओ के अनुसार अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरू माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं। इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।

चंडी, तारा, काली यह सब शक्ति के ही रूप हैं, नाम हैं। यजुर्वेद के रुद्राध्याय में रुद्र की कल्याण्कारी मूर्ति को शिवी की संज्ञा दी गई है, शिवा को ही अघोरा कहा गया है। शिव और शक्ति संबंधी तंत्र ग्रंथ यह प्रतिपादित करते हैं कि वस्तुत: यह दोनों भिन्न नहीं, एक अभिन्न तत्व हैं। रुद्र अघोरा शक्ति से संयुक्त होने के कारण ही शिव हैं। संक्षेप में इतना जान लेना ही हमारे लिए यहाँ पर्याप्त है। बाबा किनाराम ने इसी अघोरा शक्ति की साधना की थी। ऐसी साधना के अनिवार्य परिणामस्वरूप चमत्कारिक दिव्य सिद्धियाँ अनायास प्राप्त हो जाती हैं, ऐसे साधक के लिए असंभव कुछ नहीं रह जाता। वह परमहंस पद प्राप्त होता है। कोई भी ऐसा सिद्ध प्रदर्शन के लिए चमत्कार नहीं दिखाता, उसका ध्येय लोक कल्याण होना चाहिए। औघड़ साधक की भेद बुद्धि का नाश हो जाता है। वह प्रचलित सांसारिक मान्यताओं से बँधकर नहीं रहता। सब कुछ का अवधूनन कर, उपेक्षा कर ऊपर उठ जाना ही अवधूत पद प्राप्त करना है।

*अघोर दर्शन और साधना*

अघोर साधनाएं मुख्यतः श्मशान घाटों और निर्जन स्थानों पर की जाती है। शव साधना एक विशेष क्रिया है जिसके द्वारा स्वयं के अस्तित्व के विभिन्न चरणों की प्रतीकात्मक रूप में अनुभव किया जाता है, जीवन की नश्वरता का और आत्मा की अमरता का तत्काल अनुभव श्मशान में जलती हुई लाशों को देखकर होता है।

*तंत्र साधना में शरीर की व्यवस्था को समझना महत्वपूर्ण है : साधारण अर्थ में तंत्र का अंर्थ तन से, मंत्र का अर्थ मन से और यंत्र का अर्थ किसी मशीन, उपकरण या वस्तु से होता है। तंत्र का एक दूसरा अर्थ होता है व्यवस्था। तंत्र मानता है कि हम शरीर में है यह एक वास्तविकता है। तंत्र में शव साधना के माध्यम से शरीर साधा जाता है। मंन्त्र में माला जप और ध्यान के माध्यम से मन साधा जाता है। यंत्र में आध्यात्मिक शक्तियों को एक उपकरण की तरह साधा जाता है।*

लोग शव देखकर डरते हैं, लेकिन बिन चेतना का शव किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकता। जीवित इंसान ही किसी को नुकसान पहुंचा सकता है। चोरी डकैती और जान-माल का भय तो वस्तुतः जीवित डकैतों से है, मुर्दों से भय की कोई जरूरत नहीं है।

अघोर विश्वास के अनुसार अघोर शब्द मूलतः दो शब्दों 'अ' और 'घोर' से मिल कर बना है जिसका अर्थ है जो कि घोर न हो अर्थात सहज और सरल हो। प्रत्येक मानव जन्मजात रूप से अघोर अर्थात सहज होता है। बालक ज्यों ज्यों बड़ा होता है त्यों वह अंतर करना सीख जाता है और बाद में उसके अंदर विभिन्न बुराइयां और असहजताएं घर कर लेती हैं और वह अपने मूल प्रकृति यानी अघोर रूप में नहीं रह जाता। अघोर साधना के द्वारा पुनः अपने सहज और मूल रूप में आ सकते हैं और इस मूल रूप का ज्ञान होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अघोर संप्रदाय के साधक समदृष्टि के लिए नर मुंडों की माला पहनते हैं और नर मुंडों को पात्र के तौर पर प्रयोग भी करते हैं। चिता के भस्म का शरीर पर लेपन और चिताग्नि पर भोजन पकाना इत्यादि सामान्य कार्य हैं। अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता अर्थात महल या श्मशान घाट एक समान होते हैं।

जिस प्रकार नियत बिगड़ने और पथभ्रष्ट होने पर जनता की सेवा के लिए बने नेता, धर्माधिकारी, पुलिस, चिकित्सक, वकील इत्यादि जन सेवा भूलकर जनता लूटने लगते है। वैसे ही नियत बिगड़ने और पथभ्रष्ट होने पर कुछ लोग अघोर तंत्र साधना का दुरुपयोग करते हैं।

जिस प्रकार सद्बुद्धि युक्त नेता, धर्माधिकारी, पुलिस, चिकित्सक, वकील इत्यादि कर्तव्य पालन और जनसेवा करते हैं। वैसे ही सद्बुद्धि युक्त अघोर साधक जनसम्पर्क नहीं करते और एकांत में श्मशान साधना आत्मकल्याण और जनकल्याण के लिए करते हैं।

अतः इनसे भयभीत होने की जरूरत नहीं है, यह किसी का बुरा नहीं करते। डरावने प्रतीकात्मक हड्डियों के मुंड के साथ डरावनी वेशभूषा में इसलिए रहते हैं कि लोग इन्हें डिस्टर्ब न करें। यह बिना बाधा अपनी साधना करते रहें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...