Sunday 24 March 2019

प्रश्न - *कलश यात्रा में केवल स्त्रियाँ ही कलश सर पर धारण क्यों करती हैं?*

प्रश्न - *कलश यात्रा में केवल स्त्रियाँ ही कलश सर पर धारण क्यों करती हैं?*

उत्तर - इस प्रश्न का उत्तर समझने से पहले कलश का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व समझना जरूरी हैं।

वैज्ञानिक ज्ञान को प्रतीकों में बाँधकर धार्मिक आस्था में ओतप्रोत कर देना हिन्दू धर्म की विशेषता है।

 समुद्र मंथन की कथा बहुत प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का स्रोत है।
देवी अर्थात्‌ रचनात्मक और दानवी अर्थात्‌ ध्वंसात्मक शक्तियाँ इस समुद्र का मंथन मंदराचल शिखर पर्वत की मथानी और वासुकी नाग की रस्सी बनाकर करती हैं। पहली दृष्टि में यह एक कपोल कल्पना अथवा गल्पकथा लगती है, क्योंकि पुराणों में अधिकांश ऐसी ही कथाएँ हैं, किन्तु उनका मर्म बहुत गहरा है। *जीवन का अमृत तभी प्राप्त होता है, जब हम विषपान की शक्ति और सूझबूझ रखते हैं। अर्थात जो कठिनाईयाँ झेल सके वही सफ़लता का स्वाद चख सकता है।* यही श्रेष्ठ विचार इस कथा में पिरोया हुआ है, जिसे हम मंगल कलश द्वारा बार-बार पढ़ते हैं।

कलश का पात्र जलभरा होता है। जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव, नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है-
*'कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।'*

अर्थात्‌ सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। जैसे विद्युत ऊर्जा उत्पन्ना करने के लिए बैटरी या कोषा होती है, वैसे ही मंगल कलश ब्रह्माण्डीय ऊर्जा संकेंद्रित कर उसे बहुगुणित कर आसपास विकिरित करने वाली एकीकृत कोषा है, जो वातावरण को दिव्य बनाती है।

कच्चे सूत्रों का दक्षिणावर्ती वलय ऊर्जावलय को धीरे-धीरे चारों ओर वर्तुलाकार संचारित करता है। संभवतः सूत्र (बाँधा गया लच्छा) विद्युत कुचालक होने के कारण ब्रह्माण्डीय बलधाराओं का अपव्यय रोकता है। फिर भी अनुसंधान का खुला क्षेत्र है कि शोधकर्ता आधुनिक उपकरणों का प्रयोग भक्ति एवं सम्मानपूर्वक करें, ताकि कुछ और नए आयाम मिल सकें।

यह भी सत्य है कि भारतीय संस्कृति में कलश बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमे सभी देव शक्तियों का वास एवं विश्व ब्रम्हांण्ड का प्रतीक माना जाता है। कलश के जल जैसी शीतलता एवं कलश जैसी पात्रता अनादि काल से मातृ शक्ति के ह‌दय मे  मानी जाती रही है। नारी का हृदय दया, करुणा, ममता एवं सेवा भाव से परिपूर्ण होता है।क्षमाशीलता, गंभीरता,एवं सहनशीलत  नारी शक्ति मे सबसे अधिक होती है। इसलिए देव शक्तियों को अपने मस्तक पर धारण कर सुख सौभाग्य समृद्धि की कामना समस्त मानव जाति के लीए सिर्फ मातृ शक्ति ही कर सकती है। यही कारण है कि धर्मिक आयोजन में कलश सिर्फ महिलाये  ही धारण करती है।

*हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। 👉🏼उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है। पृथ्वी के बाद सृजन का उत्तरदायित्व मातृ शक्तियां निभाती हैं, कलश वह धारण करती है और यज्ञादि आयोजन में पुरुष के दाहिनी तरफ बैठकर धर्म के उत्तदायित्व को आगे बढ़कर सम्हालती है👈🏻।*

पूर्ण कलश चक्र के पाँच तत्वों को भी दर्शाता है -

*पृथ्वी* - कलश का चौड़ा तल पृथ्वी को दर्शाता है।
*जल* – कलश का विस्तारित केंद्र जल को दर्शाता है।
*अग्नि* - कलश का गला अग्नि को दर्शाता है।
*वायु* - कलश का मुख वायु को दर्शाता है।
*आकाश* - नारियल और आम के पत्ते आकाश को दर्शाते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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