प्रश्न - *ऑटिज्म(Autism) क्या है? इस रोग की पहचान और इस बीमारी को ठीक करने के उपाय क्या हैं? क्या यग्योपैथी में इसका इलाज़ सम्भव है?*
उत्तर - ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है जिसके लक्षण बचपन से ही नजर आने लग जाते हैं. इस रोग से पीड़ित बच्चों का विकास तुलनात्मक रूप से धीरे होता है.
कहीं आपका बच्चा भी तो ऑटिज्म से पीड़ित नहीं ? ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे
क्या आपका बच्चा आपके चेहरे के हावभाव को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है? क्या वह आपकी आवाज सुनने के बावजूद न तो खुश होता है और न ही कुछ जवाब देता है? क्या वह दूसरे बच्चों की तुलना में ज्यादा चुप रहता है? अगर आपके बच्चे में भी ये लक्षण हैं तो हो सकता है कि वह ऑटिज्म से पीड़ित हो.
ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है जिसके लक्षण बचपन से ही नजर आने लग जाते हैं. इस रोग से पीड़ित बच्चों का विकास तुलनात्मक रूप से धीरे होता है. ये जन्म से लेकर तीन वर्ष की आयु तक विकसित होने वाला रोग है जो सामान्य रूप से बच्चे के मानसिक विकास को रोक देता है. ऐसे बच्चे समाज में घुलने-मिलने में हिचकते हैं, वे प्रतिक्रिया देने में काफी समय लेते हैं और कुछ में ये बीमारी डर के रूप में दिखाई देती है.
हालांकि ऑटिज्म के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है लेकिन ऐसा माना जाता है कि ऐसा सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचने के कारण होता है. कई बार गर्भावस्था के दौरान खानपान सही न होने की वजह से भी बच्चे को ऑटिज्म का खतरा हो सकता है.
क्या होते हैं लक्षण:
- सामान्य तौर पर बच्चे मां का या अपने आस-पास मौजूद लोगों का चेहरा देखकर प्रतिक्रिया देते हैं पर ऑटिज्म पीड़ित बच्चे नजरें मिलाने से कतराते हैं.
- ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे आवाज सुनने के बावजूद प्रतिक्रिया नहीं देते हैं.
- ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को भाषा संबंधी भी रुकावट का सामना करना पड़ता है.
- इस बीमारी से पीड़ित बच्चे अपने आप में ही गुम रहते हैं वे किसी एक ही चीज को लेकर खोए रहते हैं.
- उनकी सोच बहुत विकसित नहीं होती है. इसलिए वे रचनात्मकता से दूर ही नजर आते हैं.
- अगर आपका बच्चा नौ महीने का होने के बावजूद न तो मुस्कुराता है और न ही कोई प्रतिक्रिया देता है तो सावधान हो जाइए.
- अगर बच्चा बोलने के बजाय अजीब-अजीब सी आवाजें निकाले तो यह समय सावधान हो जाने का है.
*Autism का इलाज़*
एलोपैथी में कई प्रकार की दवाईयां उपलब्ध हैं।
आयुर्वेद में और होमियोपैथी में भी इसका ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं।
👉🏼 यग्योपैथी द्वारा इस मानसिक व्याधि को ठीक किया जा सकता है।
यग्योपैथी में रोग से सम्बन्धित औषधियों का हवन किया जाता है, बच्चे को धूम्र का सेवन कराया जाता है।
औषधियाँ मंन्त्र तरंगों के साथ औषधि का विकिरण(फैलाव करती हैं), जो श्वसन के माध्यम से सीधे मष्तिष्क कोषों और नर्वस सिस्टम में असर करता है।
माता गर्भ के दौरान किसी न किसी घटना से आहत हुई हैं, इस बीमारी की जड़ माता-पिता की भावनात्मक अस्थिरता की देन होता है।
माता-पिता अलग अलग समय मे एक कागज़ में अलग अलग उन घटनाओं को लिखें जिनके कारण वो आहत हुए हैं, अपने मन की कुंठा कागज में लिख डालिये। उसको लिखकर पूजन के दिये में जला दें। यह निष्कासन तप है, माता-पिता का मनोमालिन्य दूर होते ही, बच्चे में भी फ़र्क़ दिखने लगेगा।
बलिवैश्व यज्ञ की अत्यंत थोड़ी सी राख और शान्तिकुंज से मिली भष्म एक ग्लास जल में घोल दें, अब उस जल को हाथ मे लेकर उसे देखते हुए 24 गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र पूर्ण श्रद्धा से जपें और उस जल को बच्चे को सुबह शाम पिलाये। यह मंन्त्र पूरित जल नर्वस सिस्टम को क्लीन करेगा और रक्त में ऊर्जा भरेगा।
बच्चे के नाम पर रोज 3 माला गायत्री और एक माला महामृत्युंज की जपें, सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं थोड़ा सा जल बचा लें। उसमें शान्तिकुंज की यज्ञ भष्म मिलाकर बच्चे के माथे और रीढ़ की हड्डी में लगा दें।
यह भारत देश है, जहां अध्यात्म की शक्तियों से जनमानस परिचित है। जीवंत प्रार्थना के चमत्कार सर्वत्र देखे जा सकते हैं। एलोपैथी इलाज करवाये या यग्योपैथी लेकिन भगवान से अपनी भूलो के लिए क्षमा मांगते हुए बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अनवरत प्रार्थना करें। आपकी प्रार्थना जरूर कबूल होगी।
यदि संभव हो तो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए सवा लाख गायत्री मन्त्रों का अनुष्ठान कर लें, एक दिन घर मे आसपास के परिजनों के साथ महामृत्युंजय मंत्र का अखण्डजप कर लें।
बच्चे के सोते वक्त बच्चे के मष्तिष्क पर दाहिना हाथ रख के उसे देखते हुए 5 गायत्री मंत्र और एक महामृत्युंजय मंत्र जपें।
यदि घर मे किसी की पिछले 20 वर्षो के अंदर अकाल मृत्यु या आत्महत्या से मृत्यु हुई हो तो शान्तिकुंज तीन बार जाकर तीन बार तर्पण करवा दें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है जिसके लक्षण बचपन से ही नजर आने लग जाते हैं. इस रोग से पीड़ित बच्चों का विकास तुलनात्मक रूप से धीरे होता है.
कहीं आपका बच्चा भी तो ऑटिज्म से पीड़ित नहीं ? ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे
क्या आपका बच्चा आपके चेहरे के हावभाव को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है? क्या वह आपकी आवाज सुनने के बावजूद न तो खुश होता है और न ही कुछ जवाब देता है? क्या वह दूसरे बच्चों की तुलना में ज्यादा चुप रहता है? अगर आपके बच्चे में भी ये लक्षण हैं तो हो सकता है कि वह ऑटिज्म से पीड़ित हो.
ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है जिसके लक्षण बचपन से ही नजर आने लग जाते हैं. इस रोग से पीड़ित बच्चों का विकास तुलनात्मक रूप से धीरे होता है. ये जन्म से लेकर तीन वर्ष की आयु तक विकसित होने वाला रोग है जो सामान्य रूप से बच्चे के मानसिक विकास को रोक देता है. ऐसे बच्चे समाज में घुलने-मिलने में हिचकते हैं, वे प्रतिक्रिया देने में काफी समय लेते हैं और कुछ में ये बीमारी डर के रूप में दिखाई देती है.
हालांकि ऑटिज्म के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है लेकिन ऐसा माना जाता है कि ऐसा सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचने के कारण होता है. कई बार गर्भावस्था के दौरान खानपान सही न होने की वजह से भी बच्चे को ऑटिज्म का खतरा हो सकता है.
क्या होते हैं लक्षण:
- सामान्य तौर पर बच्चे मां का या अपने आस-पास मौजूद लोगों का चेहरा देखकर प्रतिक्रिया देते हैं पर ऑटिज्म पीड़ित बच्चे नजरें मिलाने से कतराते हैं.
- ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे आवाज सुनने के बावजूद प्रतिक्रिया नहीं देते हैं.
- ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को भाषा संबंधी भी रुकावट का सामना करना पड़ता है.
- इस बीमारी से पीड़ित बच्चे अपने आप में ही गुम रहते हैं वे किसी एक ही चीज को लेकर खोए रहते हैं.
- उनकी सोच बहुत विकसित नहीं होती है. इसलिए वे रचनात्मकता से दूर ही नजर आते हैं.
- अगर आपका बच्चा नौ महीने का होने के बावजूद न तो मुस्कुराता है और न ही कोई प्रतिक्रिया देता है तो सावधान हो जाइए.
- अगर बच्चा बोलने के बजाय अजीब-अजीब सी आवाजें निकाले तो यह समय सावधान हो जाने का है.
*Autism का इलाज़*
एलोपैथी में कई प्रकार की दवाईयां उपलब्ध हैं।
आयुर्वेद में और होमियोपैथी में भी इसका ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं।
👉🏼 यग्योपैथी द्वारा इस मानसिक व्याधि को ठीक किया जा सकता है।
यग्योपैथी में रोग से सम्बन्धित औषधियों का हवन किया जाता है, बच्चे को धूम्र का सेवन कराया जाता है।
औषधियाँ मंन्त्र तरंगों के साथ औषधि का विकिरण(फैलाव करती हैं), जो श्वसन के माध्यम से सीधे मष्तिष्क कोषों और नर्वस सिस्टम में असर करता है।
माता गर्भ के दौरान किसी न किसी घटना से आहत हुई हैं, इस बीमारी की जड़ माता-पिता की भावनात्मक अस्थिरता की देन होता है।
माता-पिता अलग अलग समय मे एक कागज़ में अलग अलग उन घटनाओं को लिखें जिनके कारण वो आहत हुए हैं, अपने मन की कुंठा कागज में लिख डालिये। उसको लिखकर पूजन के दिये में जला दें। यह निष्कासन तप है, माता-पिता का मनोमालिन्य दूर होते ही, बच्चे में भी फ़र्क़ दिखने लगेगा।
बलिवैश्व यज्ञ की अत्यंत थोड़ी सी राख और शान्तिकुंज से मिली भष्म एक ग्लास जल में घोल दें, अब उस जल को हाथ मे लेकर उसे देखते हुए 24 गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र पूर्ण श्रद्धा से जपें और उस जल को बच्चे को सुबह शाम पिलाये। यह मंन्त्र पूरित जल नर्वस सिस्टम को क्लीन करेगा और रक्त में ऊर्जा भरेगा।
बच्चे के नाम पर रोज 3 माला गायत्री और एक माला महामृत्युंज की जपें, सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं थोड़ा सा जल बचा लें। उसमें शान्तिकुंज की यज्ञ भष्म मिलाकर बच्चे के माथे और रीढ़ की हड्डी में लगा दें।
यह भारत देश है, जहां अध्यात्म की शक्तियों से जनमानस परिचित है। जीवंत प्रार्थना के चमत्कार सर्वत्र देखे जा सकते हैं। एलोपैथी इलाज करवाये या यग्योपैथी लेकिन भगवान से अपनी भूलो के लिए क्षमा मांगते हुए बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अनवरत प्रार्थना करें। आपकी प्रार्थना जरूर कबूल होगी।
यदि संभव हो तो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए सवा लाख गायत्री मन्त्रों का अनुष्ठान कर लें, एक दिन घर मे आसपास के परिजनों के साथ महामृत्युंजय मंत्र का अखण्डजप कर लें।
बच्चे के सोते वक्त बच्चे के मष्तिष्क पर दाहिना हाथ रख के उसे देखते हुए 5 गायत्री मंत्र और एक महामृत्युंजय मंत्र जपें।
यदि घर मे किसी की पिछले 20 वर्षो के अंदर अकाल मृत्यु या आत्महत्या से मृत्यु हुई हो तो शान्तिकुंज तीन बार जाकर तीन बार तर्पण करवा दें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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