Sunday, 21 April 2019

प्रश्न - *दी, आजकल हम युवाओं के व्यक्तित्व इतने खंडित या अस्थिर क्यों है? व्यग्रता हम युवाओं में आम बात क्यों हो गयी है?*

प्रश्न - *दी, आजकल हम युवाओं के व्यक्तित्व इतने खंडित या अस्थिर क्यों है? व्यग्रता हम युवाओं में आम बात क्यों हो गयी है?*

उत्तर - आत्मीय बेटी, मनुष्य का व्यक्तित्व वस्तुतः मोटे तौर पर दो आधारस्तंभ पर खड़ा हैं, उसकी भावनाएं(हृदय) और उसकी बुद्धिकुशलता(दिमाग़)। यह दो निर्णय करते हैं कि मनुष्य का व्यक्तित्व कैसा होगा।

बुद्धिकुशलता भी चार स्तम्भ पर खड़ी है - मन , बुद्धि, चित्त और अहंकार

*सूचनाओं(इन्फॉर्मेशन) का एकत्रीकरण दिमाग़ में बुद्धिमानी नहीं कहलाता। गूगल हाथ में लेकर 10 साल का बच्चा अब पीएचडी धारक को इन्फॉर्मेशन बोलने बताने में पीछे धकेल सकता है। युवा बस यहीं गलती करता है, ज्यादा इन्फॉर्मेशन होने को बुद्धिमानी समझ लेता है।*

*सूचनाओं को उपयोग करने की कला बुद्धिकुशलता कहलाती है, जो अभ्यास और अनुभव से सीखा जाता है। आपने गूगल से सारी जानकारी ले ली कि गॉल ब्लैडर का ऑपेरशन कैसे होता है? लेक़िन ऑपेरशन किसी मेडिकल कॉलेज में योग्य गुरु के मार्गदर्शन में करके सीखना पड़ेगा। तब जानकारी + अनुभव + अभ्यास बुद्धिकुशलता कहलाएगी।*

समस्या यह है, कि मनुष्य की भावनाओं में समुद्र की तरह ज्वार भाटे आते रहते हैं। एक पल में प्रेम दो दूसरे पल घृणा, एक पल में सहानुभूति और दूसरे पल में क्रोध इत्यादि भावनाओं का ज्वार भाटा परेशान करता है। कोई एक भाव स्थिर नहीं रहता। युवा बहुत कुछ करना चाहता है, तो अस्थिरता और ज्यादा स्वभाविक है।

दूसरी तरफ़ विचार बादलों की तरह मन के आसमान में आवागमन करते हैं। कभी घनघोर घटा तो कभी आसमान साफ तो कभी छूट पुट बादल चलते रहते हैं। लक्ष्य नहीं बना तो बादल घूम तो रहे हैं लेकिन बरस नहीं रहे। उसका कोई आउटकम नहीं आ रहा है।

दो अस्थिर और अनिश्चित स्तम्भ पर खड़ा व्यक्तित्व कैसे स्थिर होगा भला? भटकन तो स्वभाविक है। चित्त की अस्थिरता स्वभाविक है।

अब व्यक्ति बाबा जी लोगों के पास जाता है, और दोनों को स्थिर करने का कोई चमत्कार चाहता है। उल्टे पुल्टे उपायों से भावनात्मक और वैचारिक स्थिरता तो मिलती नहीं अपितु अस्थिरता और बढ़ जाती है।

जिन्होंने विज्ञान पढ़ा है, वो जल चक्र को अच्छी तर्ज जानते हैं। समुद्र का जल सूर्य की गर्मी से वाष्प बनता है, वही बादल बनकर बरसता है, पुनः वही जल नदियों से होते हुए समुद्र तक पहुंचता है।

इसी तरह भावनाएं ही गर्म होकर विचार बनते हैं, विचारों के बादल बरस कर पुनः भावनाओं को उद्वेलित करते हैं। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही नहीं हैं। स्मृतियां जलाशय और नदियां हैं, जिन्हें विचारों और अनुभवों से भरा जाता है।

व्यक्तित्व को खंडित/डूबने से बचाने के लिए *एक दृढ़ संकल्पित लक्ष्य का जहाज़ चाहिए*।  जो भावनाओ की लहरों के बीच भी लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सके।

बेटा, न आप युवाओं को समुद्र के जल को शांत करना है और न ही बादल को बनने से रोकना है। आपको केवल अपने जहाज़ को चलाने की कुशलता हासिल करनी है और लक्ष्य की ओर अग्रसर होना है। इस जहाज को चलाने की योग्यता गायत्री जप,ध्यान और स्वाध्याय देगा। यह जहाज किस लक्ष्य की ओर अग्रसर होगा यह तय आपको करना है। जहाज़ को लक्ष्य की दिशा नहीं दोगे तो वो समुद्र में भटकेगा ही।

लक्ष्यविहीनता युवा जीवन का अभिशाप है। लक्ष्य निर्धारण युवा जीवन का वरदान है।

सकल पदारथ है जग माहीं,
लक्ष्यविहीन कर्महीन नर पावत नाहीं।
सकल पदारथ उपभोग वो करता है,
जो जीवनलक्ष्य निर्धारित करके कर्म करता है।

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, बस उसे यह क्लियर होना चाहिए कि उसे कैसा भाग्य  चाहिए, और उसे कैसे  निर्माण करना है? और यह भाग्य निर्माण कब तक पूरा करना है? भाग्य निर्माण में What, When और How क्लियर है, और भाग्य निर्माण में जुट जाओ तो फिर व्यग्रता शेष नहीं रहती। फ़िर तो भावनाएं, विचारणाये और कर्म कौशल एक दिशा में केंद्रित होकर सृजन करते है जिससे  शानदार व्यवस्थित व्यक्तित्व का निर्माण होता  है।



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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