प्रश्न - *मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मैं मेरे जीवन का उद्देश्य कैसे ढूँढू बतायें?*
उत्तर - आत्मीय भाई, जीवन का उद्देश्य समझने के लिए सबसे पहले जीवन को बनाया किसने समझना पड़ेगा।
परिवार, जीवनसाथी और बच्चे, जॉब सांसारिक उपलब्धियां और समाजकल्याण करना, यह सब सम्हालना जीवात्मा का कर्तव्य/उत्तरदायित्व है जो इस शरीर से जुड़ा है। हम यह शरीर नहीं है, हम वह आत्मा है जो अनन्त यात्री है। जो इस शरीर रूपी सराय में ठहरी है। समय पूरा होते ही यह शरीर छोड़कर नए मार्ग पर बढ़ जाएगी। अतः संसार मे प्राप्य और शरीर से जुड़ा लक्ष्य कैरियर ऐम या सांसारिक लक्ष्य हो सकता है लेकिन शरीर और संसार से जुड़ा कोई भी लक्ष्य जीवन लक्ष्य नहीं हो सकता। जीवन लक्ष्य तो आत्मा से जुड़ा होना चाहिए, जो अजर अमर अविनाशी है। जिसके कारण जीवन है, जिसके शरीर से निकल जाने पर जीवन ही शेष नहीं बचता। तुरन्त शरीर जला दिया जाता है। अतः जिसके कारण जीवन है उस तत्व को जानना जीवन उद्देश्य है। जिसने यह सृष्टि रची उसे जानना जीवन उद्देश्य है।
इस सृष्टि में जीवन की शुरुआत अचानक और अपने आप होना ना मुमकिन है. फिर….. इस विशाल ब्रम्हांड में पृथ्वी ही एक मात्र और अनोखा गृह क्यों है जिस में जटिल जीवन पाया जाताहै? क्या इस के पीछे कोई बनावट / डिजाइन/सृष्टि है? एक बनावट / डिजाइन के पीछे जरूर कोई डिजाइनर / बनानेवाला/मेकर/इंजीनियर का होना जरूरी है।
हांजी ! जो डिजाइनर/मेकर/इंजीनियर जो सृष्टि के निर्माण के पीछे है, उसका नाम परमेश्वर/God/परब्रह्म/भगवान है। उस ने सारा संसार और पृथ्वी और उसके अंदर की हर एक चीज बनाई है. केवल प्राकृतिक क़ानून के अनुसार चलने वाली ऑटो मेटिक मशीन जैसा नही परन्तु अपने निर्णयों को स्वयं लेने वाले इंसानों को भी बनाया है।
अब मनुष्य को छोड़कर भगवान ने सबको जीवनक्रम चुनने का अधिकार और बुद्धि नहीं दिया है। मनुष्य को बुद्धि के साथ साथ स्वयं के जीवनक्रम और भाग्य का निर्माण करने की छूट भी दी है।
जब इतनी ज्यादा स्वतंत्रता और बुद्धिबल मनुष्य को मिला है, फ़िर भी मनुष्य आज दुःखी क्यों है?
मनुष्य वस्तुतः आनन्द(Ultimate happiness/blissful mind state) चाहता है। लेक़िन बस गलती यह कर रहा है कि इसे बाह्य वस्तुओं में ढूँढ़ रहा है। वस्तु से प्राप्त सुख क्षणिक है।
*उदाहरण - 1*- जिसके पास मारुति की वर्तमान में कार है, वो BMW या मर्सिडीज़ में सुख ढूढ़ रहा है, जिसके पास बाइक है वो मारुति कर में बैठे इंसान को सुखी समझ रहा है। जो साइकिल में है उसके लिए बाइक वाला सुखी है। जो पैदल है उसके लिए साइकिल वाला सुखी दिख रहा है। और जो लंगड़ा है उसकी नज़रों में जिनके पास पैर है वो सुखी हैं। वास्तव में कोई अपने पास वर्तमान संसाधन से सुखी नहीं है और दूसरों के पास जो अपनी हैसियत से ज्यादा वस्तुएं उसको भ्रम वश सुख मान रहा है। अगर साइकिक वाले को बाइक मिल जाये तो क्या वो सुखी हो जाएगा नहीं..फिंर वो कार पाने के लिए दुःखी होगा।
*उदाहरण -2* संसार में सुख को अनुभव करने के लिए पहले दुःखी होना पड़ता है। जितना बड़ा दुःख उसे पाने के बाद उतना बड़ा ही सुख। एक ठंडे शर्बत को पीकर स्वर्ग सा सुख धूप में कार्यरत मजदूर को मिलेगा, एयरकंडीशनर में बैठे साहब को नहीं। मजदूर का बच्चा साहब को बच्चे को सर्व सुखी मानता है, लेकिन क्या साहब का बच्चा सुखी है?
*उदाहरण 3*- वस्तु की अधिकता भी दुःख का कारण बन जाती है। एक रसगुल्ला यदि सुख देगा तो वहीं 100 रसगुल्ले जबरन खिलाये जाएं तो दुःख देंगे।
इस सृष्टि को बनाने वाला और जीवन को देने वाला मनुष्य के भीतर है, और उसी के पास आनन्द का स्रोत है। आपकी समस्त शक्तियों के ख़ज़ाने की चाबी भी है।
प्रत्येक मनुष्य के जीवन का उद्देश्य अपने सृष्टि/जीवन के निर्माता को जानना और उस परमानन्द के स्रोत तक पहुंचना है जो भीतर है। मनुष्य के भीतर आनन्द के स्रोत के साथ साथ अतुलित शक्तियों का भंडार भरा हुआ है। जैसे एक बरगद के बीज के भीतर बड़े से बरगद का अस्तित्व छुपा है, वैसे ही मनुष्य के भीतर बीज रूप में जो देवत्व का पूर्ण वृक्ष छुपा है।
भीतर प्रवेश का एक ही मार्ग है - ध्यान। स्वयं को जानने का एक ही मार्ग है ध्यान। ध्यान लगाया नहीं जाता स्वतः लगता है, जैसे बीज से पौधा स्वतः निकलता है। अब इस ध्यान तक पहुंचने के लिए अनेक धारणाएं हैं। विभिन्न धर्म ग्रन्थों में जो ध्यान विधि सिखाई जाती है वो वस्तुतः ध्यान की धारणा सिखाई जाती है। मंजिल सबकी एक ही है स्वयं को जानना और स्वयं के निर्माता को जानना।
प्रत्येक जीवात्मा की यात्रा की मंजिल परमात्मा से मिलन और परमानन्द की प्राप्ति ही है। यही मंजिल ही जीवन उद्देश्य है।
संक्षेप में आत्म ज्ञान प्राप्ति जीवन लक्ष्य और लोककल्याण परम कर्तव्य है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, जीवन का उद्देश्य समझने के लिए सबसे पहले जीवन को बनाया किसने समझना पड़ेगा।
परिवार, जीवनसाथी और बच्चे, जॉब सांसारिक उपलब्धियां और समाजकल्याण करना, यह सब सम्हालना जीवात्मा का कर्तव्य/उत्तरदायित्व है जो इस शरीर से जुड़ा है। हम यह शरीर नहीं है, हम वह आत्मा है जो अनन्त यात्री है। जो इस शरीर रूपी सराय में ठहरी है। समय पूरा होते ही यह शरीर छोड़कर नए मार्ग पर बढ़ जाएगी। अतः संसार मे प्राप्य और शरीर से जुड़ा लक्ष्य कैरियर ऐम या सांसारिक लक्ष्य हो सकता है लेकिन शरीर और संसार से जुड़ा कोई भी लक्ष्य जीवन लक्ष्य नहीं हो सकता। जीवन लक्ष्य तो आत्मा से जुड़ा होना चाहिए, जो अजर अमर अविनाशी है। जिसके कारण जीवन है, जिसके शरीर से निकल जाने पर जीवन ही शेष नहीं बचता। तुरन्त शरीर जला दिया जाता है। अतः जिसके कारण जीवन है उस तत्व को जानना जीवन उद्देश्य है। जिसने यह सृष्टि रची उसे जानना जीवन उद्देश्य है।
इस सृष्टि में जीवन की शुरुआत अचानक और अपने आप होना ना मुमकिन है. फिर….. इस विशाल ब्रम्हांड में पृथ्वी ही एक मात्र और अनोखा गृह क्यों है जिस में जटिल जीवन पाया जाताहै? क्या इस के पीछे कोई बनावट / डिजाइन/सृष्टि है? एक बनावट / डिजाइन के पीछे जरूर कोई डिजाइनर / बनानेवाला/मेकर/इंजीनियर का होना जरूरी है।
हांजी ! जो डिजाइनर/मेकर/इंजीनियर जो सृष्टि के निर्माण के पीछे है, उसका नाम परमेश्वर/God/परब्रह्म/भगवान है। उस ने सारा संसार और पृथ्वी और उसके अंदर की हर एक चीज बनाई है. केवल प्राकृतिक क़ानून के अनुसार चलने वाली ऑटो मेटिक मशीन जैसा नही परन्तु अपने निर्णयों को स्वयं लेने वाले इंसानों को भी बनाया है।
अब मनुष्य को छोड़कर भगवान ने सबको जीवनक्रम चुनने का अधिकार और बुद्धि नहीं दिया है। मनुष्य को बुद्धि के साथ साथ स्वयं के जीवनक्रम और भाग्य का निर्माण करने की छूट भी दी है।
जब इतनी ज्यादा स्वतंत्रता और बुद्धिबल मनुष्य को मिला है, फ़िर भी मनुष्य आज दुःखी क्यों है?
मनुष्य वस्तुतः आनन्द(Ultimate happiness/blissful mind state) चाहता है। लेक़िन बस गलती यह कर रहा है कि इसे बाह्य वस्तुओं में ढूँढ़ रहा है। वस्तु से प्राप्त सुख क्षणिक है।
*उदाहरण - 1*- जिसके पास मारुति की वर्तमान में कार है, वो BMW या मर्सिडीज़ में सुख ढूढ़ रहा है, जिसके पास बाइक है वो मारुति कर में बैठे इंसान को सुखी समझ रहा है। जो साइकिल में है उसके लिए बाइक वाला सुखी है। जो पैदल है उसके लिए साइकिल वाला सुखी दिख रहा है। और जो लंगड़ा है उसकी नज़रों में जिनके पास पैर है वो सुखी हैं। वास्तव में कोई अपने पास वर्तमान संसाधन से सुखी नहीं है और दूसरों के पास जो अपनी हैसियत से ज्यादा वस्तुएं उसको भ्रम वश सुख मान रहा है। अगर साइकिक वाले को बाइक मिल जाये तो क्या वो सुखी हो जाएगा नहीं..फिंर वो कार पाने के लिए दुःखी होगा।
*उदाहरण -2* संसार में सुख को अनुभव करने के लिए पहले दुःखी होना पड़ता है। जितना बड़ा दुःख उसे पाने के बाद उतना बड़ा ही सुख। एक ठंडे शर्बत को पीकर स्वर्ग सा सुख धूप में कार्यरत मजदूर को मिलेगा, एयरकंडीशनर में बैठे साहब को नहीं। मजदूर का बच्चा साहब को बच्चे को सर्व सुखी मानता है, लेकिन क्या साहब का बच्चा सुखी है?
*उदाहरण 3*- वस्तु की अधिकता भी दुःख का कारण बन जाती है। एक रसगुल्ला यदि सुख देगा तो वहीं 100 रसगुल्ले जबरन खिलाये जाएं तो दुःख देंगे।
इस सृष्टि को बनाने वाला और जीवन को देने वाला मनुष्य के भीतर है, और उसी के पास आनन्द का स्रोत है। आपकी समस्त शक्तियों के ख़ज़ाने की चाबी भी है।
प्रत्येक मनुष्य के जीवन का उद्देश्य अपने सृष्टि/जीवन के निर्माता को जानना और उस परमानन्द के स्रोत तक पहुंचना है जो भीतर है। मनुष्य के भीतर आनन्द के स्रोत के साथ साथ अतुलित शक्तियों का भंडार भरा हुआ है। जैसे एक बरगद के बीज के भीतर बड़े से बरगद का अस्तित्व छुपा है, वैसे ही मनुष्य के भीतर बीज रूप में जो देवत्व का पूर्ण वृक्ष छुपा है।
भीतर प्रवेश का एक ही मार्ग है - ध्यान। स्वयं को जानने का एक ही मार्ग है ध्यान। ध्यान लगाया नहीं जाता स्वतः लगता है, जैसे बीज से पौधा स्वतः निकलता है। अब इस ध्यान तक पहुंचने के लिए अनेक धारणाएं हैं। विभिन्न धर्म ग्रन्थों में जो ध्यान विधि सिखाई जाती है वो वस्तुतः ध्यान की धारणा सिखाई जाती है। मंजिल सबकी एक ही है स्वयं को जानना और स्वयं के निर्माता को जानना।
प्रत्येक जीवात्मा की यात्रा की मंजिल परमात्मा से मिलन और परमानन्द की प्राप्ति ही है। यही मंजिल ही जीवन उद्देश्य है।
संक्षेप में आत्म ज्ञान प्राप्ति जीवन लक्ष्य और लोककल्याण परम कर्तव्य है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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