प्रश्न - *दी, हम ख़ुद का अपना मकान लेना चाहते हैं, समझ नहीं आ रहा कि लोन लेकर घर खरीदें या नहीं। मैं मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता हूँ और मेरी पत्नी प्राइवेट स्कूल में टीचर है।*
उत्तर - आत्मीय भाई, आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर उत्तर दे रही हूँ।
हलाकिं मैंने स्वयं लोन पर घर खरीदा है, मेरे अनुभव के अनुसार यह निर्णय ग़लत था। क्योंकि मैं एक भ्रम में थी कि अपना घर होना चाहिए।
अभी भी मेरा घर मेरा नहीं है, क्योंकि उसके कागज़ बैंक के पास हैं। मूर्खतावश जिसे मैं owner समझ रही थी वो वस्तुतः loaner है। 20 वर्ष बाद मेरा घर मेरा होगा, जिसके लिए पूरी युवावस्था मुझें लोन का दबाव झेलना पड़ेगा। घर और कार दोनों फर्स्ट हैंड में कीमती हैं और सेकंड हैंड में इनकी कीमत केवल घटती है। 20 वर्ष बाद पुराने फ्लैट की ख़स्ता हालत जग जाहिर है, मुम्बई और दिल्ली के 20 वर्ष पुराने फ्लैट देख लें। आये दिन टूट फुट की न्यूज सुनते हैं। तो फ्लैट कोई ज़मीन से खड़ा महल नहीं है जो 20 वर्ष बाद भी एंटीक और बेशकीमती रहेगा। आपकी सन्तान इसमें रहना पसंद नहीं ही करेगी।
यदि मस्तमौला अहंकार रहित हो तो आनंदमय जीवन जीने के लिए किराए के मकान में रहो। जिस मकान की क़िस्त owner उर्फ loaner 80,000 रुपये भर रहे हैं, उस मकान को मात्र 15,000 रुपये में एन्जॉय करो। बाकी पैसे बचत करो। बच्चे को पढ़ा लिखा के इस योग्य बनाओ कि वह स्वयं के लिए रोटी कपड़े और मकान की व्यवस्था स्वयं कर सके।
प्राइवेट नौकरी स्थायी नहीं है, रिश्क से भरी है, पेंशन इसमें मिलना नहीं है। सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग के चक्कर में महाजन बैंकों की ग़ुलामी न करो तो ही अच्छा है।
ज़मीन खरीदना नफ़े का सौदा है, लेक़िन सोसायटी में फ़्लैट ख़रीदना मेरे हिसाब से बेवकूफी है। यह बेवकूफी आज के समय क्यों है इसे निम्नलिखित वीडियो में देखिए:-
https://youtu.be/jC132T9SwWM
मीडिया और विज्ञापन एजेंसियां, बैंक और विश्व की समस्त सरकारें एक तरह से मनोमानसिक प्रेशर देकर एक ट्रैप/ज़ाल में मानव को फँसाते है। फिंर उम्रभर मनुष्य निकल नहीं पाता है इस ज़ाल से, आइये इस वीडियो से इसे समझें:-
https://youtu.be/-DCuyt0e1tY
देखो भाई, जब तक जितने का घर खरीदने जा रहे हो उसका 50% अमाउंट का फिक्स्ड डिपाजिट या जमीन जायजाद न हो, कृपया प्राइवेट नौकरी के दम पर घर खरीदने का रिस्क मत लेना।
थोड़े से रिश्तेदारों और मित्रों को दिखाने के लिए और स्वयं के अहंकार की तुष्टीकरण के लिए घर लोन पर मत ख़रीदना।
जीवन जीने की कला जानने वाले किराए के घर में आनन्दित रहते हैं। वह जानते हैं कि किराए की सराय यह शरीर है, इसे हमें यहीं छोड़कर जाना है। फ़िर इस शरीर और इससे जुड़े रिश्ते के रहने के लिए किराए के मकान से बेस्ट और क्या है? बिना टेंशन कई घर बदलो, जरूरत का सामान साथ रखो और जीवनयात्रा का आनन्द लो।
जब शरीर बदलना पड़ता है आत्मा को, तो उसे घर बदलने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
LOAN - लोन को समझो - "लो" + "ना', इसे कभी अय्याशी के लिए मत लेना। अत्यंत जरूरत हो तो ही लेना। दोनों वीडियो पूरा देखना। मेरी बात से सहमत हो तो आगे फ़ारवर्ड कर देना।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर उत्तर दे रही हूँ।
हलाकिं मैंने स्वयं लोन पर घर खरीदा है, मेरे अनुभव के अनुसार यह निर्णय ग़लत था। क्योंकि मैं एक भ्रम में थी कि अपना घर होना चाहिए।
अभी भी मेरा घर मेरा नहीं है, क्योंकि उसके कागज़ बैंक के पास हैं। मूर्खतावश जिसे मैं owner समझ रही थी वो वस्तुतः loaner है। 20 वर्ष बाद मेरा घर मेरा होगा, जिसके लिए पूरी युवावस्था मुझें लोन का दबाव झेलना पड़ेगा। घर और कार दोनों फर्स्ट हैंड में कीमती हैं और सेकंड हैंड में इनकी कीमत केवल घटती है। 20 वर्ष बाद पुराने फ्लैट की ख़स्ता हालत जग जाहिर है, मुम्बई और दिल्ली के 20 वर्ष पुराने फ्लैट देख लें। आये दिन टूट फुट की न्यूज सुनते हैं। तो फ्लैट कोई ज़मीन से खड़ा महल नहीं है जो 20 वर्ष बाद भी एंटीक और बेशकीमती रहेगा। आपकी सन्तान इसमें रहना पसंद नहीं ही करेगी।
यदि मस्तमौला अहंकार रहित हो तो आनंदमय जीवन जीने के लिए किराए के मकान में रहो। जिस मकान की क़िस्त owner उर्फ loaner 80,000 रुपये भर रहे हैं, उस मकान को मात्र 15,000 रुपये में एन्जॉय करो। बाकी पैसे बचत करो। बच्चे को पढ़ा लिखा के इस योग्य बनाओ कि वह स्वयं के लिए रोटी कपड़े और मकान की व्यवस्था स्वयं कर सके।
प्राइवेट नौकरी स्थायी नहीं है, रिश्क से भरी है, पेंशन इसमें मिलना नहीं है। सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग के चक्कर में महाजन बैंकों की ग़ुलामी न करो तो ही अच्छा है।
ज़मीन खरीदना नफ़े का सौदा है, लेक़िन सोसायटी में फ़्लैट ख़रीदना मेरे हिसाब से बेवकूफी है। यह बेवकूफी आज के समय क्यों है इसे निम्नलिखित वीडियो में देखिए:-
https://youtu.be/jC132T9SwWM
मीडिया और विज्ञापन एजेंसियां, बैंक और विश्व की समस्त सरकारें एक तरह से मनोमानसिक प्रेशर देकर एक ट्रैप/ज़ाल में मानव को फँसाते है। फिंर उम्रभर मनुष्य निकल नहीं पाता है इस ज़ाल से, आइये इस वीडियो से इसे समझें:-
https://youtu.be/-DCuyt0e1tY
देखो भाई, जब तक जितने का घर खरीदने जा रहे हो उसका 50% अमाउंट का फिक्स्ड डिपाजिट या जमीन जायजाद न हो, कृपया प्राइवेट नौकरी के दम पर घर खरीदने का रिस्क मत लेना।
थोड़े से रिश्तेदारों और मित्रों को दिखाने के लिए और स्वयं के अहंकार की तुष्टीकरण के लिए घर लोन पर मत ख़रीदना।
जीवन जीने की कला जानने वाले किराए के घर में आनन्दित रहते हैं। वह जानते हैं कि किराए की सराय यह शरीर है, इसे हमें यहीं छोड़कर जाना है। फ़िर इस शरीर और इससे जुड़े रिश्ते के रहने के लिए किराए के मकान से बेस्ट और क्या है? बिना टेंशन कई घर बदलो, जरूरत का सामान साथ रखो और जीवनयात्रा का आनन्द लो।
जब शरीर बदलना पड़ता है आत्मा को, तो उसे घर बदलने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
LOAN - लोन को समझो - "लो" + "ना', इसे कभी अय्याशी के लिए मत लेना। अत्यंत जरूरत हो तो ही लेना। दोनों वीडियो पूरा देखना। मेरी बात से सहमत हो तो आगे फ़ारवर्ड कर देना।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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