प्रश्न - *क्या आध्यात्मिक पुस्तके परम सत्य की अनुभूति करा सकती है ?*
उत्तर - आत्मीय भाई, जैसे गूगल मैप आपको मंजिल तक नहीं पहुंचा सकता, मोमबत्ती का चित्र अंधेरा नहीं मिटा सकता, रेसिपी की पुस्तक भूख नहीं मिटा सकती वैसे ही परम सत्य की अनुभूति मात्र पुस्तक पढ़ने से नहीं होगी।
मंजिल में पहुंचने के लिए गूगल मैप पथ प्रदर्शन करके मदद कर सकता है। मोमबत्ती का चित्र बता सकता है कि मोमबत्ती अंधेरा दूर करने में सहायक है जाओ मोमबत्ती खरीदो और घर रौशन करो। रेसिपी पुस्तक स्वादिष्ट भोजन पकाने में मार्गदर्शन कर सकती है, अमुक सामान बाजार से लाओ, अमुक तरीक़े से पकाओगे और खाओगे तो यह स्वाद मिलेगा।
इसी तरह स्वाध्याय पथप्रदर्शक और मार्गदर्शक है, गूगल की तरह सन्मार्ग की राह बताता है, मोमबत्ती की तरह सत्य की रौशनी का लाभ बताता है, रेसिपी की पुस्तक की तरह आनन्द अनुभूति की रेसिपी बताता है।
अतः वर्णित साधना कर्म करके, सही सत्य राह पर चलकर और अथक प्रयास करके ही अनुभूति को पाया जा सकता है।
सूक्ष्म जगत में यात्रा बाहर की ओर नहीं, भीतर की ओर होती है। स्थूल अक्रिया है, बाहर से देखने पर कुछ नहीं करना है। भीतर बहुत कुछ सफाई व्यवस्था करनी है, भीतर के संसार को समझना है। दही में जामन डालकर धैर्य के साथ ठहरना और इंतज़ार करना है। यह धैर्य और इंतज़ार में ही परम सत्य घटेगा। बस भीतर ठहर जाओ ऐसे कि बाहरी दुनियाँ का होश न रहे और भीतरी दुनियाँ में चैतन्यता रहे।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, जैसे गूगल मैप आपको मंजिल तक नहीं पहुंचा सकता, मोमबत्ती का चित्र अंधेरा नहीं मिटा सकता, रेसिपी की पुस्तक भूख नहीं मिटा सकती वैसे ही परम सत्य की अनुभूति मात्र पुस्तक पढ़ने से नहीं होगी।
मंजिल में पहुंचने के लिए गूगल मैप पथ प्रदर्शन करके मदद कर सकता है। मोमबत्ती का चित्र बता सकता है कि मोमबत्ती अंधेरा दूर करने में सहायक है जाओ मोमबत्ती खरीदो और घर रौशन करो। रेसिपी पुस्तक स्वादिष्ट भोजन पकाने में मार्गदर्शन कर सकती है, अमुक सामान बाजार से लाओ, अमुक तरीक़े से पकाओगे और खाओगे तो यह स्वाद मिलेगा।
इसी तरह स्वाध्याय पथप्रदर्शक और मार्गदर्शक है, गूगल की तरह सन्मार्ग की राह बताता है, मोमबत्ती की तरह सत्य की रौशनी का लाभ बताता है, रेसिपी की पुस्तक की तरह आनन्द अनुभूति की रेसिपी बताता है।
अतः वर्णित साधना कर्म करके, सही सत्य राह पर चलकर और अथक प्रयास करके ही अनुभूति को पाया जा सकता है।
सूक्ष्म जगत में यात्रा बाहर की ओर नहीं, भीतर की ओर होती है। स्थूल अक्रिया है, बाहर से देखने पर कुछ नहीं करना है। भीतर बहुत कुछ सफाई व्यवस्था करनी है, भीतर के संसार को समझना है। दही में जामन डालकर धैर्य के साथ ठहरना और इंतज़ार करना है। यह धैर्य और इंतज़ार में ही परम सत्य घटेगा। बस भीतर ठहर जाओ ऐसे कि बाहरी दुनियाँ का होश न रहे और भीतरी दुनियाँ में चैतन्यता रहे।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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