🎼 *मंन्त्र विज्ञान - प्रश्नोत्तर* 🎼
👉🏼 प्रश्न - 1 से 10
प्रश्न -1- *वाणी का स्वरूप एवं प्रकार बताइये?*
उत्तर - हमारे यहां वाणी विज्ञान का बहुत गहराई से विचार किया गया। ऋग्वेद में एक ऋचा आती है-
चत्वारि वाक् परिमिता पदानि
तानि विदुर्व्राह्मणा ये मनीषिण:
गुहा त्रीणि निहिता नेङ्गयन्ति
तुरीयं वाचो मनुष्या वदन्ति॥
ऋग्वेद १-१६४-४५
अर्थात् वाणी के चार पाद होते हैं, जिन्हें विद्वान मनीषी जानते हैं। इनमें से तीन शरीर के अंदर होने से गुप्त हैं परन्तु चौथे को अनुभव कर सकते हैं। इसकी विस्तृत व्याख्या करते हुए पाणिनी कहते हैं, वाणी के चार पाद या रूप हैं-
१. परा, २. पश्यन्ती, ३. मध्यमा, ४. वैखरी
प्रश्न - 2- *वाणी कहां से उत्पन्न होती है?*
उत्तर - पाणिनी कहते हैं, आत्मा वह मूल आधार है जहां से ध्वनि उत्पन्न होती है। वह इसका पहला रूप है। यह अनुभूति का विषय है। किसी यंत्र के द्वारा सुनाई नहीं देती। ध्वनि के इस रूप को परा कहा गया।
आगे जब आत्मा, बुद्धि तथा अर्थ की सहायता से मन: पटल पर कर्ता, कर्म या क्रिया का चित्र देखता है, वाणी का यह रूप पश्यन्ती कहलाता है। हम जो कुछ बोलते हैं, पहले उसका चित्र हमारे मन में बनता है। इस कारण दूसरा चरण पश्यन्ती है।
इसके आगे मन व शरीर की ऊर्जा को प्रेरित कर न सुनाई देने वाला ध्वनि स्वर तरंग उत्पन्न करता है। वह स्वर तरंग ऊपर उठता है तथा छाती से नि:श्वास की सहायता से कण्ठ तक आता है। वाणी के इस रूप को मध्यमा कहा जाता है। ये तीनों रूप सुनाई नहीं देते हैं।
इसके आगे यह ध्वनि तरंग कंठ के ऊपर पांच स्पर्श स्थानों की सहायता से सर्वस्वर, व्यंजन, युग्माक्षर और मात्रा द्वारा भिन्न-भिन्न रूप में वाणी के रूप में अभिव्यक्त होता है। यही सुनाई देने वाली वाणी वैखरी कहलाती है और इस वैखरी वाणी से ही सम्पूर्ण ज्ञान, विज्ञान, जीवन व्यवहार तथा बोलचाल की अभिव्यक्ति संभव है।
प्रश्न -3 - *वाणी से व्यजन की अभिव्यक्ति मुख से किस प्रकार होती है?*
उत्तर - मुख से निकलने वाली वाणी का निरीक्षण किया तथा क से ज्ञ तक वर्ण किस अंग की सहायता से निकलते हैं, इसका जो विश्लेषण किया वह इतना विज्ञान सम्मत है कि उसके अतिरिक्त अन्य ढंग से आप वह ध्वनि निकाल ही नहीं सकते हैं।
*क, ख, ग, घ, ङ*- 'कंठव्य' कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है।
*च, छ, ज, झ,ञ*- 'तालव्य' कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ लालू से लगती है।
*ट, ठ, ड, ढ , ण*- 'मूर्धन्य' कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।
*त, थ, द, ध, न*- 'दंतीय' कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है।
*प, फ, ब, भ, म*,- 'ओष्ठ्य' कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है।
प्रश्न - 4 - *स्वर कितने प्रकार के होते हैं?*
उत्तर - सभी वर्ण, संयुक्ताक्षर, मात्रा आदि के उच्चारण का मूल ‘स्वर‘ हैं। अत: उसका भी गहराई से अध्ययन तथा अनुभव किया गया। इसके निष्कर्ष के रूप में प्रतिपादित किया गया कि स्वर तीन प्रकार के हैं।
उदात्त-उच्च स्वर
अनुदात्त-नीचे का स्वर
स्वरित- मध्यम स्वर
इनका और सूक्ष्म विश्लेषण किया गया, जो संगीत शास्त्र का आधार बना। संगीत शास्त्र में सात स्वर माने गए जिन्हें *सा रे ग म प ध नि* के प्रतीक चिन्हों से जाना जाता है। इन सात स्वरों का मूल तीन स्वरों में विभाजन किया गया।
उच्चैर्निषाद, गांधारौ नीचै ऋर्षभधैवतौ।
शेषास्तु स्वरिता ज्ञेया:, षड्ज मध्यमपंचमा:॥
अर्थात् निषाद तथा गांधार (नि ग) स्वर उदात्त हैं। ऋषभ और धैवत (रे, ध) अनुदात्त। षड्ज, मध्यम और पंचम (सा, म, प) ये स्वरित हैं।
इन सातों स्वरों के विभिन्न प्रकार के समायोजन से विभिन्न रागों के रूप बने और उन रागों के गायन में उत्पन्न विभिन्न ध्वनि तरंगों का परिणाम मानव, पशु प्रकृति सब पर पड़ता है। इसका भी बहुत सूक्ष्म निरीक्षण हमारे यहां किया गया है।
प्रश्न - 5 - *मंन्त्र का गुम्फ़न/बनावट में किन बातों का ध्यान रखा जाता है?*
उत्तर - मन्त्रों के गुम्फ़न बनावट के वक्त उसकी शब्द रचना के साथ उसकी स्वर लहरियाँ गहराई से निरीक्षण की जाती हैं।
किस ध्वनि तरंग का क्या प्रभाव होगा, उसके आधार रिसर्च करके मंन्त्र का निर्माण होता है।
विशिष्ट मंत्रों के विशिष्ट ढंग से उच्चारण से वायुमण्डल में विशेष प्रकार के कंपन उत्पन्न होते हैं, जिनका विशेष परिणाम होता है। यह मंत्रविज्ञान का आधार है। इसकी अनुभूति वेद मंत्रों के श्रवण या मंदिर के गुंबज के नीचे मंत्रपाठ के समय अनुभव में आती है।
हमारे यहां विभिन्न रागों के गायन व परिणाम के अनेक उल्लेख प्राचीनकाल से मिलते हैं। सुबह, शाम, हर्ष, शोक, उत्साह, करुणा-भिन्न-भिन्न प्रसंगों के भिन्न-भिन्न राग हैं। दीपक से दीपक जलना और मेघ मल्हार से वर्षा होना आदि उल्लेख मिलते हैं।
प्रश्न -6- *भारतीय संगीत और पाश्चात्य संगीत में मूलभूत अंतर क्या है?*
उत्तर - भारतीय संगीत मानव की नाभि के ऊपर की भावनाएं विकसित करता है और पाश्चात्य पॉप म्यूजिक नाभि के नीचे की भावनाएं बढ़ाता है जो मानव के आन्तरिक व्यक्तित्व को विखंडित कर देता है।
जब आप भारतीय संगीत और नाद सुनते हैं मन को सुकून और दिमाग़ रिलैक्स हो जाता है। जैसे ही पॉप संगीत सुनेंगे आपके पैर में थिरकन जरूर होगी, शांति नहीं मिलती।
प्रश्न - 7- *घण्टी और शँख बजने पर आवाज़ गूँजती क्यों है?*
उत्तर - ध्वनि कम्पन - किसी घंटी पर प्रहार करते हैं तो उसकी ध्वनि देर तक सुनाई देती है, इसीतरह शँख से ध्वनि देर तक गूंजती है। इसकी प्रक्रिया क्या है? इसकी व्याख्या में वात्स्यायन तथा उद्योतकर कहते हैं कि आघात में कुछ ध्वनि परमाणु अपनी जगह छोड़कर और संस्कार जिसे कम्प संतान-संस्कार कहते हैं, से एक प्रकार का कम्पन पैदा होता है और वायु के सहारे वह आगे बढ़ता है तथा मन्द तथा मन्दतर इस रूप में अविच्छिन्न रूप से सुनाई देता है। इसकी उत्पत्ति का कारण स्पन्दन है।
प्रश्न -8- *प्रतिध्वनि किसे कहते हैं?*
उत्तर - विज्ञान भिक्षु अपने प्रवचन भाष्य अध्याय १ सूत्र ७ में कहते हैं कि प्रतिध्वनि क्या है? इसकी व्याख्या में कहा गया कि जैसे पानी या दर्पण में चित्र दिखता है, वह प्रतिबिम्ब है। इसी प्रकार ध्वनि टकराकर पुन: सुनाई देती है, वह प्रतिध्वनि है। जैसे जल या दर्पण का बिम्ब वास्तविक चित्र नहीं है, उसी प्रकार प्रतिध्वनि भी वास्तविक ध्वनि नहीं है।
रूपवत्त्वं च न सामान्य त: प्रतिबिम्ब प्रयोजकं
शब्दास्यापि प्रतिध्वनि रूप प्रतिबिम्ब दर्शनात्॥
विज्ञान भिक्षु, प्रवचन भाष्य अ. १ सूत्र-४७
प्रश्न - 9 - *क्या वायु के बिना शब्द ध्वनि बोली या सुनी जा सकती है?*
उत्तर - नहीं, बिना वायु की उपस्थिति के शब्द ध्वनि बोली या सुनी नहीं जा सकती।
वाचस्पति मिश्र के अनुसार ‘शब्दस्य असाधारण धर्म:‘- शब्द के अनेक असाधारण गुण होते हैं। गंगेश उपाध्याय जी ने ‘तत्व चिंतामणि‘ में कहा- ‘वायोरेव मन्दतर तमादिक्रमेण मन्दादि शब्दात्पत्ति।‘ वायु की सहायता से मन्द-तीव्र शब्द उत्पन्न होते हैं।
वाचस्पति, जैमिनी, उदयन आदि आचार्यों ने बहुत विस्तारपूर्वक अपने ग्रंथों में ध्वनि की उत्पत्ति, कम्पन, प्रतिध्वनि, उसकी तीव्रता, मन्दता, उनके परिणाम आदि का हजारों वर्ष पूर्व किया जो विश्लेषण है, वह आज भी चमत्कृत करता है।
प्रश्न - 10 - *मंदिरों में शंख ध्वनि और घण्टा क्यों बजाते हैं?*
उत्तर - शँख से सकारात्मक ऊर्जा उतपन्न होती है, विषाणु-रोगाणु नष्ट होते है, भूमि के शुभ सँस्कार जगते है, स्वास्थ्य पर शुभ प्रभाव पड़ता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।
अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने और शँख ध्वनि की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं। सकारात्मक शक्ति जागृत होती है। भूमि और वातावरण संस्कारित होता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
👉🏼 प्रश्न - 1 से 10
प्रश्न -1- *वाणी का स्वरूप एवं प्रकार बताइये?*
उत्तर - हमारे यहां वाणी विज्ञान का बहुत गहराई से विचार किया गया। ऋग्वेद में एक ऋचा आती है-
चत्वारि वाक् परिमिता पदानि
तानि विदुर्व्राह्मणा ये मनीषिण:
गुहा त्रीणि निहिता नेङ्गयन्ति
तुरीयं वाचो मनुष्या वदन्ति॥
ऋग्वेद १-१६४-४५
अर्थात् वाणी के चार पाद होते हैं, जिन्हें विद्वान मनीषी जानते हैं। इनमें से तीन शरीर के अंदर होने से गुप्त हैं परन्तु चौथे को अनुभव कर सकते हैं। इसकी विस्तृत व्याख्या करते हुए पाणिनी कहते हैं, वाणी के चार पाद या रूप हैं-
१. परा, २. पश्यन्ती, ३. मध्यमा, ४. वैखरी
प्रश्न - 2- *वाणी कहां से उत्पन्न होती है?*
उत्तर - पाणिनी कहते हैं, आत्मा वह मूल आधार है जहां से ध्वनि उत्पन्न होती है। वह इसका पहला रूप है। यह अनुभूति का विषय है। किसी यंत्र के द्वारा सुनाई नहीं देती। ध्वनि के इस रूप को परा कहा गया।
आगे जब आत्मा, बुद्धि तथा अर्थ की सहायता से मन: पटल पर कर्ता, कर्म या क्रिया का चित्र देखता है, वाणी का यह रूप पश्यन्ती कहलाता है। हम जो कुछ बोलते हैं, पहले उसका चित्र हमारे मन में बनता है। इस कारण दूसरा चरण पश्यन्ती है।
इसके आगे मन व शरीर की ऊर्जा को प्रेरित कर न सुनाई देने वाला ध्वनि स्वर तरंग उत्पन्न करता है। वह स्वर तरंग ऊपर उठता है तथा छाती से नि:श्वास की सहायता से कण्ठ तक आता है। वाणी के इस रूप को मध्यमा कहा जाता है। ये तीनों रूप सुनाई नहीं देते हैं।
इसके आगे यह ध्वनि तरंग कंठ के ऊपर पांच स्पर्श स्थानों की सहायता से सर्वस्वर, व्यंजन, युग्माक्षर और मात्रा द्वारा भिन्न-भिन्न रूप में वाणी के रूप में अभिव्यक्त होता है। यही सुनाई देने वाली वाणी वैखरी कहलाती है और इस वैखरी वाणी से ही सम्पूर्ण ज्ञान, विज्ञान, जीवन व्यवहार तथा बोलचाल की अभिव्यक्ति संभव है।
प्रश्न -3 - *वाणी से व्यजन की अभिव्यक्ति मुख से किस प्रकार होती है?*
उत्तर - मुख से निकलने वाली वाणी का निरीक्षण किया तथा क से ज्ञ तक वर्ण किस अंग की सहायता से निकलते हैं, इसका जो विश्लेषण किया वह इतना विज्ञान सम्मत है कि उसके अतिरिक्त अन्य ढंग से आप वह ध्वनि निकाल ही नहीं सकते हैं।
*क, ख, ग, घ, ङ*- 'कंठव्य' कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है।
*च, छ, ज, झ,ञ*- 'तालव्य' कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ लालू से लगती है।
*ट, ठ, ड, ढ , ण*- 'मूर्धन्य' कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।
*त, थ, द, ध, न*- 'दंतीय' कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है।
*प, फ, ब, भ, म*,- 'ओष्ठ्य' कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है।
प्रश्न - 4 - *स्वर कितने प्रकार के होते हैं?*
उत्तर - सभी वर्ण, संयुक्ताक्षर, मात्रा आदि के उच्चारण का मूल ‘स्वर‘ हैं। अत: उसका भी गहराई से अध्ययन तथा अनुभव किया गया। इसके निष्कर्ष के रूप में प्रतिपादित किया गया कि स्वर तीन प्रकार के हैं।
उदात्त-उच्च स्वर
अनुदात्त-नीचे का स्वर
स्वरित- मध्यम स्वर
इनका और सूक्ष्म विश्लेषण किया गया, जो संगीत शास्त्र का आधार बना। संगीत शास्त्र में सात स्वर माने गए जिन्हें *सा रे ग म प ध नि* के प्रतीक चिन्हों से जाना जाता है। इन सात स्वरों का मूल तीन स्वरों में विभाजन किया गया।
उच्चैर्निषाद, गांधारौ नीचै ऋर्षभधैवतौ।
शेषास्तु स्वरिता ज्ञेया:, षड्ज मध्यमपंचमा:॥
अर्थात् निषाद तथा गांधार (नि ग) स्वर उदात्त हैं। ऋषभ और धैवत (रे, ध) अनुदात्त। षड्ज, मध्यम और पंचम (सा, म, प) ये स्वरित हैं।
इन सातों स्वरों के विभिन्न प्रकार के समायोजन से विभिन्न रागों के रूप बने और उन रागों के गायन में उत्पन्न विभिन्न ध्वनि तरंगों का परिणाम मानव, पशु प्रकृति सब पर पड़ता है। इसका भी बहुत सूक्ष्म निरीक्षण हमारे यहां किया गया है।
प्रश्न - 5 - *मंन्त्र का गुम्फ़न/बनावट में किन बातों का ध्यान रखा जाता है?*
उत्तर - मन्त्रों के गुम्फ़न बनावट के वक्त उसकी शब्द रचना के साथ उसकी स्वर लहरियाँ गहराई से निरीक्षण की जाती हैं।
किस ध्वनि तरंग का क्या प्रभाव होगा, उसके आधार रिसर्च करके मंन्त्र का निर्माण होता है।
विशिष्ट मंत्रों के विशिष्ट ढंग से उच्चारण से वायुमण्डल में विशेष प्रकार के कंपन उत्पन्न होते हैं, जिनका विशेष परिणाम होता है। यह मंत्रविज्ञान का आधार है। इसकी अनुभूति वेद मंत्रों के श्रवण या मंदिर के गुंबज के नीचे मंत्रपाठ के समय अनुभव में आती है।
हमारे यहां विभिन्न रागों के गायन व परिणाम के अनेक उल्लेख प्राचीनकाल से मिलते हैं। सुबह, शाम, हर्ष, शोक, उत्साह, करुणा-भिन्न-भिन्न प्रसंगों के भिन्न-भिन्न राग हैं। दीपक से दीपक जलना और मेघ मल्हार से वर्षा होना आदि उल्लेख मिलते हैं।
प्रश्न -6- *भारतीय संगीत और पाश्चात्य संगीत में मूलभूत अंतर क्या है?*
उत्तर - भारतीय संगीत मानव की नाभि के ऊपर की भावनाएं विकसित करता है और पाश्चात्य पॉप म्यूजिक नाभि के नीचे की भावनाएं बढ़ाता है जो मानव के आन्तरिक व्यक्तित्व को विखंडित कर देता है।
जब आप भारतीय संगीत और नाद सुनते हैं मन को सुकून और दिमाग़ रिलैक्स हो जाता है। जैसे ही पॉप संगीत सुनेंगे आपके पैर में थिरकन जरूर होगी, शांति नहीं मिलती।
प्रश्न - 7- *घण्टी और शँख बजने पर आवाज़ गूँजती क्यों है?*
उत्तर - ध्वनि कम्पन - किसी घंटी पर प्रहार करते हैं तो उसकी ध्वनि देर तक सुनाई देती है, इसीतरह शँख से ध्वनि देर तक गूंजती है। इसकी प्रक्रिया क्या है? इसकी व्याख्या में वात्स्यायन तथा उद्योतकर कहते हैं कि आघात में कुछ ध्वनि परमाणु अपनी जगह छोड़कर और संस्कार जिसे कम्प संतान-संस्कार कहते हैं, से एक प्रकार का कम्पन पैदा होता है और वायु के सहारे वह आगे बढ़ता है तथा मन्द तथा मन्दतर इस रूप में अविच्छिन्न रूप से सुनाई देता है। इसकी उत्पत्ति का कारण स्पन्दन है।
प्रश्न -8- *प्रतिध्वनि किसे कहते हैं?*
उत्तर - विज्ञान भिक्षु अपने प्रवचन भाष्य अध्याय १ सूत्र ७ में कहते हैं कि प्रतिध्वनि क्या है? इसकी व्याख्या में कहा गया कि जैसे पानी या दर्पण में चित्र दिखता है, वह प्रतिबिम्ब है। इसी प्रकार ध्वनि टकराकर पुन: सुनाई देती है, वह प्रतिध्वनि है। जैसे जल या दर्पण का बिम्ब वास्तविक चित्र नहीं है, उसी प्रकार प्रतिध्वनि भी वास्तविक ध्वनि नहीं है।
रूपवत्त्वं च न सामान्य त: प्रतिबिम्ब प्रयोजकं
शब्दास्यापि प्रतिध्वनि रूप प्रतिबिम्ब दर्शनात्॥
विज्ञान भिक्षु, प्रवचन भाष्य अ. १ सूत्र-४७
प्रश्न - 9 - *क्या वायु के बिना शब्द ध्वनि बोली या सुनी जा सकती है?*
उत्तर - नहीं, बिना वायु की उपस्थिति के शब्द ध्वनि बोली या सुनी नहीं जा सकती।
वाचस्पति मिश्र के अनुसार ‘शब्दस्य असाधारण धर्म:‘- शब्द के अनेक असाधारण गुण होते हैं। गंगेश उपाध्याय जी ने ‘तत्व चिंतामणि‘ में कहा- ‘वायोरेव मन्दतर तमादिक्रमेण मन्दादि शब्दात्पत्ति।‘ वायु की सहायता से मन्द-तीव्र शब्द उत्पन्न होते हैं।
वाचस्पति, जैमिनी, उदयन आदि आचार्यों ने बहुत विस्तारपूर्वक अपने ग्रंथों में ध्वनि की उत्पत्ति, कम्पन, प्रतिध्वनि, उसकी तीव्रता, मन्दता, उनके परिणाम आदि का हजारों वर्ष पूर्व किया जो विश्लेषण है, वह आज भी चमत्कृत करता है।
प्रश्न - 10 - *मंदिरों में शंख ध्वनि और घण्टा क्यों बजाते हैं?*
उत्तर - शँख से सकारात्मक ऊर्जा उतपन्न होती है, विषाणु-रोगाणु नष्ट होते है, भूमि के शुभ सँस्कार जगते है, स्वास्थ्य पर शुभ प्रभाव पड़ता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।
अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने और शँख ध्वनि की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं। सकारात्मक शक्ति जागृत होती है। भूमि और वातावरण संस्कारित होता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment