[5/16, 11:06 PM] .: 👨👨👧 *दिव्य चेतन गर्भ विज्ञान परश्नोत्तर (Divine conscious womb science Q & A)* 👨👨👧
👉🏼 प्रश्न 1 से 5
प्रश्न -1- *पुंसवन सँस्कार क्या है?*
उत्तर- युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गर्भ से ही सँस्कार गढ़कर मनचाही सन्तान पाने की विधिव्यस्था बनाई। इस दिव्य चेतन गर्भ विज्ञान को गर्भवती को समझाने के लिए और इस गर्भ को संस्कारों में ढालने हेतु माता को यज्ञ-दीपयज्ञ द्वारा संकल्पित करने, उसे गर्भविज्ञान समझाने के लिए, टिप्स और तकनीक समझाने के लिए एक आध्यात्मिक सँस्कार शुरू किया जिसका नाम *पुंसवन सँस्कार* रखा। यह सँस्कार शुरू करने का दिन है और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वो गर्भ को संरक्षण प्रदान करें, श्रेष्ठ दिव्य आत्मा का प्रवेश गर्भ में सुनिश्चित करवाएं। इसे आध्यात्मिक टीकाकरण भी कह सकते हैं, क्योंकि गर्भस्थ शिशु की चेतना को परमात्म चेतना से जोड़ने का आध्यात्मिक एवं भावनात्मक उपक्रम किया जाता है। यह एडमिशन का दिन है, अतः केवल एक दिन सँस्कार करवाने से ज्यादा कुछ नहीं होगा, बताई गई विधिव्यस्था को 9 महीने तक पालन करने पर उत्तम परिणाम मिलेगा।
प्रश्न - 2- *पुंसवन सँस्कार कब करवाना चाहिए?*
उत्तर - भ्रूण अत्यंत प्रारंभिक अवस्था में अपना पोषण प्राथमिक अंडाणु के द्वारा लाए गए पोषक द्रव्यों से पाता है। इसके पश्चात् ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय की ग्रंथियों तथा वपन की क्रिया में हुए ऊतकलयन के फलस्वरूप एकत्रित रक्त से पोषण लेता है। भ्रूणपट्ट (embryonic disc), उल्व (amnion), देहगुहा (coelom) तथा पीतक (yolk) थैली में भरे द्रव्य से पोषण लेता है। अंत में अपना तथा नाभि नाल के निर्माण के पश्चात् माता के रक्तपरिवहन के भ्रूणरक्त का परिवहनसंबंध स्थापित होकर, भ्रूण का पोषण होता है।निषेचन के आठ सप्ताह तक (मतलब एलएमपी के 10वें सप्ताह तक) भ्रूण कहा जाता है और उसके बाद से भ्रूण की बजाय इसे गर्भस्थ शिशु (फेटस) कहा जता है। अतः लगभग माता और चेतन शिशु में सम्पर्क नाभि नाल द्वारा लगभग तीसरे महीने स्थापित हो जाता है, तन से तन का पोषण व निर्माण और मन से मन का पोषण और निर्माण प्रारम्भ होता है। तीसरे महीने से चौथे महीने के बीच गर्भ सँस्कार सर्वोत्तम माना जाता है। अगर किन्ही कारणवश नहीं करवा पाए तो बाद में भी करवा सकते हैं।
प्रश्न - 3 - *भ्रूण का दिमाग, रीढ़ की हड्डी, हृदय और जठरांत्र संबंधी मार्ग बनने शुरू हो जाते हैं?*
उत्तर - 1 से 3 सप्ताह अर्थात 5-7 दिनों के निषेचन के बाद, ब्लास्टुला गर्भाशय की दीवार (गर्भकला) से जुड़ जाता है। जब यह गर्भकला के संपर्क में आता है, यह आरोपण करता है। नाभि रज्जु के साथ ही माता और भ्रूण के बीच आरोपण संपर्क बनने शुरू हो जाते हैं। भ्रूण का विकास एक धुरी पर केन्द्रित होता है, जो रीढ़ और रीढ़ की हड्डी बन जाता है। दिमाग, रीढ़ की हड्डी, हृदय और जठरांत्र संबंधी मार्ग बनने शुरू हो जाते हैं। अतः इस वक्त से ही गांयत्री मंन्त्र जप शुरू कर देना चाहिए जिससे बच्चे के अंगों का समुचित विकास हो।
प्रश्न - 4 - *गर्भाधान के बाद मासिक चक्र कब रुकता है?*
उत्तर - गर्भ धारण के 4 से 5 सप्ताह में भ्रूण के द्वारा उत्पादित रसायन औरतों के मासिक चक्र को रोक देता है।
प्रश्न - 5- *बच्चे के दिल की धड़कन कब आती है और भावनात्मक विकास कब होता है?*
उत्तर - लगभग 6 ठवें सप्ताह में मस्तिष्क की गतिविधि शुरू हो जाती है, न्युरोजेनेसिस चल रहा होता है। "दिल का धड़कना इसी समय शुरू होता है। अंग अंकुरित होते हैं, जहां बाद में हाथ और पैर विकसित होंगे. ऑर्गेनोजेनेसिस शुरू होता है। सिर भ्रूण की अक्षीय लंबाई के आधे भाग और उसके मास के आधे से अधिक भाग का प्रतिनिधित्व करता है। मस्तिष्क पांच क्षेत्रों में विकसित होता है। ऊतक का गठन होता है जो रीढ़ की जोड़ और कुछ अन्य हड्डियों को विकसित करता है। दिल धड़कना और रक्त प्रवाहित होना शुरू हो जाता है। "दिल का धड़कना इसी समय शुरू होता है। अंग अंकुरित होते हैं, जहां बाद में हाथ और पैर विकसित होंगे. ऑर्गेनोजेनेसिस शुरू होता है। सिर भ्रूण की अक्षीय लंबाई के आधे भाग और उसके मास के आधे से अधिक भाग का प्रतिनिधित्व करता है। मस्तिष्क पांच क्षेत्रों में विकसित होता है। ऊतक का गठन होता है जो रीढ़ की जोड़ और कुछ अन्य हड्डियों को विकसित करता है। दिल धड़कना और रक्त प्रवाहित होना शुरू हो जाता है। इस समय यदि माता ने तनाव लिया तो बुरे हार्मोन्स उदाहरण कॉर्टिसोल इत्यादि बच्चे के हृदय की धड़कन को प्रभावित करते हैं और सर में पानी भरने लगता है। गन्दे व हिंसक टीवी सीरियल नहीं देखना चाहिए अन्यथा बच्चे को हृदय रोग भी हो सकता है।
माता को इस समय मधुर भजन संगीत, वेद मंन्त्र अधिक से अधिक सुनने और जपना चाहिए। ध्यान लगाना चाहिए, यज्ञ करना चाहिए और भजन गुनगुनाते रहना चाहिए। जिससे अच्छे हार्मोन्स निकले और बच्चे का सन्तुलित विकास हो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/16, 11:42 PM] .: 👨👨👧 *दिव्य चेतन गर्भ विज्ञान परश्नोत्तर (Divine conscious womb science Q & A)* 👨👨👧
👉🏼 प्रश्न 5 से 10
प्रश्न -5- *गर्भ सँस्कार - पुंसवन सँस्कार की आवश्यकता क्यों है?*
उत्तर - आधुनिक चिकित्सा विज्ञान चेतना के स्तर पर कार्य करने में अक्षम हैं।
दर्जी जिस प्रकार वस्त्र का कुशल कारीगर और ज्ञाता होता है, वैसे ही गायनी चिकित्सक शरीर रूपी वस्त्र के कुशल कारीगर और ज्ञाता हैं। वो शरीर के निर्माण का विज्ञान समझा सकते हैं, उसके लिए जरूरी टीके/इंजेक्शन, दवा, सन्तुलित भोजन व व्यायाम बता सकते हैं। शरीर का वजन और दिल की धड़कन के अतिरिक्त और कुछ चेक करने में अक्षम हैं।
बच्चे के मन का विकास, बुद्धि का विकास, उसकी प्राण ऊर्जा, उसकी चेतना लेवल को न जांच सकते हैं, न उसके निर्माण की प्रक्रिया में मदद कर सकते हैं।
प्राचीन ऋषि शरीर के साथ साथ आत्म चेतना विज्ञान के ज्ञाता थे, उत्तम श्रेष्ठ सन्तान के लिए माता की दिनचर्या, शारिरिक आहार के साथ मानसिक आहार में क्या हो उसे सुनिश्चित करते थे। रोगों की रोकथाम के लिए जिस प्रकार टीके लगते हैं, वैसे ही मानसिक विकारों की रोकथाम के लिए आध्यात्मिक टीके संस्कारो के माध्यम से लगाये जाते थे। उसी ऋषि परम्परा को पुनर्जीवित किया युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने, दिव्यगुणों के विकास और मनोविकारों की रोकथाम के लिए दिव्य चेतन स्तर का गर्भ का ज्ञान विज्ञान जन जन तक पुंसवन सँस्कार के माध्यम से पहुंचाया। जब आप पुंसवन सँस्कार करवाएंगे तभी तो दिव्य चेतना से जुड़कर यह विधिव्यस्था अपना पाएंगे। मनचाही सन्तान पाएंगे।
प्रश्न - 6 - *यह गर्भ सँस्कार काम कैसे करता है?*
उत्तर - चिकित्सा विज्ञान के अनुसार गर्भ में शिशु किसी चैतन्य जीव की तरह व्यवहार करता है - वह सुनता और ग्रहण भी करता है। माता के गर्भ में आने के बाद से गर्भस्थ शिशु को संस्कारित किया जा सकता है। हमारे पूर्वज इन सब बातों से भली भॉंति परिचित थे इसलिए उन्होंने गर्भाधान संस्कार को हमारी भारतीय संस्कृति में कराए जाने वाले सोलह संस्कारों में से एक संस्कार मान कर उसे पूर्ण पवित्रता के साथ संपन्न करने की प्रथा प्रचलित की थी।
बालक के अवतरण और उसकी विकास यात्रा में योगदान देना माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है । पिता गर्भधारण में केवल सहयोग प्रदान करता है, किंतु बाद में उस गर्भ को पकाने का कार्य माता के माध्यम से ही संपन्न होता हैं इसलिए पिता की अपेक्षा माता का उत्तरदायित्व अधिक है । बिना उचित ज्ञान एवं स्थिति की जानकारी लिए माता इस कर्तव्य का भली भॉति पालन कर सकेगी, यह असंभव जैसा है
माता का एक-एक क्षण व बच्चे का एक-एक कण एक-दूसरे से जुड़ा है। माता का खाना-पीना, विचारधारा, मानसिक परिस्थिति इन सभी का बहुत गहरा परिणाम गर्भस्थ शिशु पर होता है। गर्भस्थ शिशु को संस्कारित व शिक्षित करने का प्रमाण हमें धर्म ग्रंथों में मिलता ही है। कई वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं व उन्होंने इसे सिद्ध भी किया है।
हर माता-पिता अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए धन-संपदा को एकत्रित करते हैं, उसके विकास के लिए बहुत चिंता करते हैं । लेकिन यदि माता-पिता अपने बच्चे को विरासत में अच्छे संस्कार दे सकें, तो फिर उन्हें कुछ और खास चीज देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, क्योंकि ऐसी संताने न केवल अपना भविष्य सुधार लेंगी, बल्कि औरों के लिए भी साधन-सुविधांए जुटा लेंगी।
प्रश्न - 7 - *स्वामी विवेकानंद जी का गर्भ सँस्कार के बारे में क्या मत है?*
उत्तर - संतान उत्पति के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद का कथन है कि यदि माता-पिता बिना प्रार्थना किए संतानोत्पति करते हैं तो ऐसे संतान ‘अनार्य’ है और समाज पर भारस्वरूप है । ‘आर्य’ संतानें वे ही हैं, जो माता-पिता द्वारा भगवान से की गई निर्मल प्रार्थना के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। वे ही परिवार, समाज का हितसाधन कर सकती है। समाजोपयोगी सन्तान ऋषिपरम्परा और आज्ञा का गर्भावस्था में पालन से बन सकती हैं।
प्रश्न - 8- *बच्चे को खुशमिज़ाज़ और सकारात्मक दृष्टिकोण का बनाने के लिए माता को क्या करना चाहिए?*
उत्तर - यदि मां खुश है तो उसके मस्तिष्क से निकलने वाले न्यूरो हार्मोस प्लेसेंटा के जरिए बच्चे में पहुंचते हैं और केमिकल सिग्नलिंग के माध्यम से बच्चे की कोशिकाओं पर असर करते हैं। ये विशिष्ट न्यूरो हार्मोस झाइगोट की सेंसेटिव कोशिकाओं को बढ़ाने व खुलकर विकसित करने में सहायक होते हैं जिससे बच्चे का स्वभाव खुशमिजाज बनता है।
सकारात्मक दृष्टिकोण और
पॉजिटिव फिलिंग बच्चे में लाने के लिए सकारात्मक विचार धारा की श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़ें, ऐसे ही संगीत व प्रवचन सुने । सोच पॉजिटिव रखें और आसपास खुशनुमा माहौल रखें। गर्भस्थ शिशु से बात करें। मेडिटेशन करें। सूदिंग मधुर संगीत, राग, वेद के मंत्रोच्चार व श्लोक आदि सुने। किसी एक्सपर्ट के सुपरविजन में प्रीनेटल योग करें। ध्यान करें।
प्रश्न - 9 - *नाभि नाल से आहार के साथ साथ क्या विचार भी गर्भस्थ तक पहुंचते है?*
उत्तर - हाँजी, तन के साथ साथ मन भी गर्भस्थ शिशु और माता की नाभि नाल से जुड़ा जाता है। यह नाभि नाल वस्तुतः तीन हिस्सों में बांटी जा सकती है। स्थूल, सूक्ष्म व कारण - जिसे क्रमशः क्रियाशक्ति, विचारशक्ति व भावशक्ति कहते हैं। बच्चे के स्थूल शरीर की क्रिया को शक्ति गर्भिणी माता द्वारा किये भोजन व जल से मिलती है। बच्चे के विचार को शक्ति माता द्वारा स्वाध्याय कर अच्छे विचारों के चिंतन मनन से मिलती है, बच्चे की भावनाओं को शक्ति माता के हृदय में उठने वाले भावो से मिलती है।
गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क व हृदय अपनी माता के मस्तिष्क व हृदय से जुड़ा होता है इसलिए स्वथ्य विचारों के साथ साथ अच्छे भावो से युक्त होकर बच्चे से गर्भसंवाद स्थापित करें। गर्भकाल में हमेशा अच्छे विचार और भाव ही अपने मन में ध्यान करें।
भले ही गर्भस्थ शिशु को भाषा का ज्ञान नहीं होता लेकिन वह माता के मस्तिष्क में आने वाली हर जानकारी का अर्थ ग्रहण कर सकता है। इसलिए गर्भ के शिशु के साथ अर्थपूर्ण बातें करें। अच्छे साहित्य पढ़े।
गर्भ के दौरान आदर्श संतुलित आहार ग्रहण करें ताकि उसके मस्तिष्क का अच्छा विकास हो सके। उसके मस्तिष्क में ज्यादा जानकारियां इकट्ठा हो सकें, स्मरण शक्ति तीक्ष्ण हो सके तथा त्वरित निर्णय लेने में सक्षम हो। गर्भसंस्कार सही अर्थों में गर्भस्थ शिशु के साथ माता का स्वस्थ संवाद है।
प्रश्न -10- *गर्भावस्था में क्या ज्यादा आराम करना चाहिए?*
उत्तर - गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है जिसमे की अतिरिक्त आराम की आवश्यकता हो। थकान लगने पर आराम कर लें। बाक़ी थोड़ी सावधानी सहित वही दिनचर्या रखें जो गर्भावस्था से पहले थी। जितना आप चलेंगी, घूमेंगी आपका बच्चा भी उतना ही गर्भ में एक्टिव रहेगा और डिलीवरी आसान होगी। आप आलस्य और सुस्ती दिखाएंगी तो बच्चा भी आलसी और सुस्त गर्भ में बनेगा जिससे डिलीवरी के वक्त परेशानी हो सकती है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
👉🏼 प्रश्न 1 से 5
प्रश्न -1- *पुंसवन सँस्कार क्या है?*
उत्तर- युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गर्भ से ही सँस्कार गढ़कर मनचाही सन्तान पाने की विधिव्यस्था बनाई। इस दिव्य चेतन गर्भ विज्ञान को गर्भवती को समझाने के लिए और इस गर्भ को संस्कारों में ढालने हेतु माता को यज्ञ-दीपयज्ञ द्वारा संकल्पित करने, उसे गर्भविज्ञान समझाने के लिए, टिप्स और तकनीक समझाने के लिए एक आध्यात्मिक सँस्कार शुरू किया जिसका नाम *पुंसवन सँस्कार* रखा। यह सँस्कार शुरू करने का दिन है और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वो गर्भ को संरक्षण प्रदान करें, श्रेष्ठ दिव्य आत्मा का प्रवेश गर्भ में सुनिश्चित करवाएं। इसे आध्यात्मिक टीकाकरण भी कह सकते हैं, क्योंकि गर्भस्थ शिशु की चेतना को परमात्म चेतना से जोड़ने का आध्यात्मिक एवं भावनात्मक उपक्रम किया जाता है। यह एडमिशन का दिन है, अतः केवल एक दिन सँस्कार करवाने से ज्यादा कुछ नहीं होगा, बताई गई विधिव्यस्था को 9 महीने तक पालन करने पर उत्तम परिणाम मिलेगा।
प्रश्न - 2- *पुंसवन सँस्कार कब करवाना चाहिए?*
उत्तर - भ्रूण अत्यंत प्रारंभिक अवस्था में अपना पोषण प्राथमिक अंडाणु के द्वारा लाए गए पोषक द्रव्यों से पाता है। इसके पश्चात् ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय की ग्रंथियों तथा वपन की क्रिया में हुए ऊतकलयन के फलस्वरूप एकत्रित रक्त से पोषण लेता है। भ्रूणपट्ट (embryonic disc), उल्व (amnion), देहगुहा (coelom) तथा पीतक (yolk) थैली में भरे द्रव्य से पोषण लेता है। अंत में अपना तथा नाभि नाल के निर्माण के पश्चात् माता के रक्तपरिवहन के भ्रूणरक्त का परिवहनसंबंध स्थापित होकर, भ्रूण का पोषण होता है।निषेचन के आठ सप्ताह तक (मतलब एलएमपी के 10वें सप्ताह तक) भ्रूण कहा जाता है और उसके बाद से भ्रूण की बजाय इसे गर्भस्थ शिशु (फेटस) कहा जता है। अतः लगभग माता और चेतन शिशु में सम्पर्क नाभि नाल द्वारा लगभग तीसरे महीने स्थापित हो जाता है, तन से तन का पोषण व निर्माण और मन से मन का पोषण और निर्माण प्रारम्भ होता है। तीसरे महीने से चौथे महीने के बीच गर्भ सँस्कार सर्वोत्तम माना जाता है। अगर किन्ही कारणवश नहीं करवा पाए तो बाद में भी करवा सकते हैं।
प्रश्न - 3 - *भ्रूण का दिमाग, रीढ़ की हड्डी, हृदय और जठरांत्र संबंधी मार्ग बनने शुरू हो जाते हैं?*
उत्तर - 1 से 3 सप्ताह अर्थात 5-7 दिनों के निषेचन के बाद, ब्लास्टुला गर्भाशय की दीवार (गर्भकला) से जुड़ जाता है। जब यह गर्भकला के संपर्क में आता है, यह आरोपण करता है। नाभि रज्जु के साथ ही माता और भ्रूण के बीच आरोपण संपर्क बनने शुरू हो जाते हैं। भ्रूण का विकास एक धुरी पर केन्द्रित होता है, जो रीढ़ और रीढ़ की हड्डी बन जाता है। दिमाग, रीढ़ की हड्डी, हृदय और जठरांत्र संबंधी मार्ग बनने शुरू हो जाते हैं। अतः इस वक्त से ही गांयत्री मंन्त्र जप शुरू कर देना चाहिए जिससे बच्चे के अंगों का समुचित विकास हो।
प्रश्न - 4 - *गर्भाधान के बाद मासिक चक्र कब रुकता है?*
उत्तर - गर्भ धारण के 4 से 5 सप्ताह में भ्रूण के द्वारा उत्पादित रसायन औरतों के मासिक चक्र को रोक देता है।
प्रश्न - 5- *बच्चे के दिल की धड़कन कब आती है और भावनात्मक विकास कब होता है?*
उत्तर - लगभग 6 ठवें सप्ताह में मस्तिष्क की गतिविधि शुरू हो जाती है, न्युरोजेनेसिस चल रहा होता है। "दिल का धड़कना इसी समय शुरू होता है। अंग अंकुरित होते हैं, जहां बाद में हाथ और पैर विकसित होंगे. ऑर्गेनोजेनेसिस शुरू होता है। सिर भ्रूण की अक्षीय लंबाई के आधे भाग और उसके मास के आधे से अधिक भाग का प्रतिनिधित्व करता है। मस्तिष्क पांच क्षेत्रों में विकसित होता है। ऊतक का गठन होता है जो रीढ़ की जोड़ और कुछ अन्य हड्डियों को विकसित करता है। दिल धड़कना और रक्त प्रवाहित होना शुरू हो जाता है। "दिल का धड़कना इसी समय शुरू होता है। अंग अंकुरित होते हैं, जहां बाद में हाथ और पैर विकसित होंगे. ऑर्गेनोजेनेसिस शुरू होता है। सिर भ्रूण की अक्षीय लंबाई के आधे भाग और उसके मास के आधे से अधिक भाग का प्रतिनिधित्व करता है। मस्तिष्क पांच क्षेत्रों में विकसित होता है। ऊतक का गठन होता है जो रीढ़ की जोड़ और कुछ अन्य हड्डियों को विकसित करता है। दिल धड़कना और रक्त प्रवाहित होना शुरू हो जाता है। इस समय यदि माता ने तनाव लिया तो बुरे हार्मोन्स उदाहरण कॉर्टिसोल इत्यादि बच्चे के हृदय की धड़कन को प्रभावित करते हैं और सर में पानी भरने लगता है। गन्दे व हिंसक टीवी सीरियल नहीं देखना चाहिए अन्यथा बच्चे को हृदय रोग भी हो सकता है।
माता को इस समय मधुर भजन संगीत, वेद मंन्त्र अधिक से अधिक सुनने और जपना चाहिए। ध्यान लगाना चाहिए, यज्ञ करना चाहिए और भजन गुनगुनाते रहना चाहिए। जिससे अच्छे हार्मोन्स निकले और बच्चे का सन्तुलित विकास हो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/16, 11:42 PM] .: 👨👨👧 *दिव्य चेतन गर्भ विज्ञान परश्नोत्तर (Divine conscious womb science Q & A)* 👨👨👧
👉🏼 प्रश्न 5 से 10
प्रश्न -5- *गर्भ सँस्कार - पुंसवन सँस्कार की आवश्यकता क्यों है?*
उत्तर - आधुनिक चिकित्सा विज्ञान चेतना के स्तर पर कार्य करने में अक्षम हैं।
दर्जी जिस प्रकार वस्त्र का कुशल कारीगर और ज्ञाता होता है, वैसे ही गायनी चिकित्सक शरीर रूपी वस्त्र के कुशल कारीगर और ज्ञाता हैं। वो शरीर के निर्माण का विज्ञान समझा सकते हैं, उसके लिए जरूरी टीके/इंजेक्शन, दवा, सन्तुलित भोजन व व्यायाम बता सकते हैं। शरीर का वजन और दिल की धड़कन के अतिरिक्त और कुछ चेक करने में अक्षम हैं।
बच्चे के मन का विकास, बुद्धि का विकास, उसकी प्राण ऊर्जा, उसकी चेतना लेवल को न जांच सकते हैं, न उसके निर्माण की प्रक्रिया में मदद कर सकते हैं।
प्राचीन ऋषि शरीर के साथ साथ आत्म चेतना विज्ञान के ज्ञाता थे, उत्तम श्रेष्ठ सन्तान के लिए माता की दिनचर्या, शारिरिक आहार के साथ मानसिक आहार में क्या हो उसे सुनिश्चित करते थे। रोगों की रोकथाम के लिए जिस प्रकार टीके लगते हैं, वैसे ही मानसिक विकारों की रोकथाम के लिए आध्यात्मिक टीके संस्कारो के माध्यम से लगाये जाते थे। उसी ऋषि परम्परा को पुनर्जीवित किया युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने, दिव्यगुणों के विकास और मनोविकारों की रोकथाम के लिए दिव्य चेतन स्तर का गर्भ का ज्ञान विज्ञान जन जन तक पुंसवन सँस्कार के माध्यम से पहुंचाया। जब आप पुंसवन सँस्कार करवाएंगे तभी तो दिव्य चेतना से जुड़कर यह विधिव्यस्था अपना पाएंगे। मनचाही सन्तान पाएंगे।
प्रश्न - 6 - *यह गर्भ सँस्कार काम कैसे करता है?*
उत्तर - चिकित्सा विज्ञान के अनुसार गर्भ में शिशु किसी चैतन्य जीव की तरह व्यवहार करता है - वह सुनता और ग्रहण भी करता है। माता के गर्भ में आने के बाद से गर्भस्थ शिशु को संस्कारित किया जा सकता है। हमारे पूर्वज इन सब बातों से भली भॉंति परिचित थे इसलिए उन्होंने गर्भाधान संस्कार को हमारी भारतीय संस्कृति में कराए जाने वाले सोलह संस्कारों में से एक संस्कार मान कर उसे पूर्ण पवित्रता के साथ संपन्न करने की प्रथा प्रचलित की थी।
बालक के अवतरण और उसकी विकास यात्रा में योगदान देना माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है । पिता गर्भधारण में केवल सहयोग प्रदान करता है, किंतु बाद में उस गर्भ को पकाने का कार्य माता के माध्यम से ही संपन्न होता हैं इसलिए पिता की अपेक्षा माता का उत्तरदायित्व अधिक है । बिना उचित ज्ञान एवं स्थिति की जानकारी लिए माता इस कर्तव्य का भली भॉति पालन कर सकेगी, यह असंभव जैसा है
माता का एक-एक क्षण व बच्चे का एक-एक कण एक-दूसरे से जुड़ा है। माता का खाना-पीना, विचारधारा, मानसिक परिस्थिति इन सभी का बहुत गहरा परिणाम गर्भस्थ शिशु पर होता है। गर्भस्थ शिशु को संस्कारित व शिक्षित करने का प्रमाण हमें धर्म ग्रंथों में मिलता ही है। कई वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं व उन्होंने इसे सिद्ध भी किया है।
हर माता-पिता अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए धन-संपदा को एकत्रित करते हैं, उसके विकास के लिए बहुत चिंता करते हैं । लेकिन यदि माता-पिता अपने बच्चे को विरासत में अच्छे संस्कार दे सकें, तो फिर उन्हें कुछ और खास चीज देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, क्योंकि ऐसी संताने न केवल अपना भविष्य सुधार लेंगी, बल्कि औरों के लिए भी साधन-सुविधांए जुटा लेंगी।
प्रश्न - 7 - *स्वामी विवेकानंद जी का गर्भ सँस्कार के बारे में क्या मत है?*
उत्तर - संतान उत्पति के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद का कथन है कि यदि माता-पिता बिना प्रार्थना किए संतानोत्पति करते हैं तो ऐसे संतान ‘अनार्य’ है और समाज पर भारस्वरूप है । ‘आर्य’ संतानें वे ही हैं, जो माता-पिता द्वारा भगवान से की गई निर्मल प्रार्थना के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। वे ही परिवार, समाज का हितसाधन कर सकती है। समाजोपयोगी सन्तान ऋषिपरम्परा और आज्ञा का गर्भावस्था में पालन से बन सकती हैं।
प्रश्न - 8- *बच्चे को खुशमिज़ाज़ और सकारात्मक दृष्टिकोण का बनाने के लिए माता को क्या करना चाहिए?*
उत्तर - यदि मां खुश है तो उसके मस्तिष्क से निकलने वाले न्यूरो हार्मोस प्लेसेंटा के जरिए बच्चे में पहुंचते हैं और केमिकल सिग्नलिंग के माध्यम से बच्चे की कोशिकाओं पर असर करते हैं। ये विशिष्ट न्यूरो हार्मोस झाइगोट की सेंसेटिव कोशिकाओं को बढ़ाने व खुलकर विकसित करने में सहायक होते हैं जिससे बच्चे का स्वभाव खुशमिजाज बनता है।
सकारात्मक दृष्टिकोण और
पॉजिटिव फिलिंग बच्चे में लाने के लिए सकारात्मक विचार धारा की श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़ें, ऐसे ही संगीत व प्रवचन सुने । सोच पॉजिटिव रखें और आसपास खुशनुमा माहौल रखें। गर्भस्थ शिशु से बात करें। मेडिटेशन करें। सूदिंग मधुर संगीत, राग, वेद के मंत्रोच्चार व श्लोक आदि सुने। किसी एक्सपर्ट के सुपरविजन में प्रीनेटल योग करें। ध्यान करें।
प्रश्न - 9 - *नाभि नाल से आहार के साथ साथ क्या विचार भी गर्भस्थ तक पहुंचते है?*
उत्तर - हाँजी, तन के साथ साथ मन भी गर्भस्थ शिशु और माता की नाभि नाल से जुड़ा जाता है। यह नाभि नाल वस्तुतः तीन हिस्सों में बांटी जा सकती है। स्थूल, सूक्ष्म व कारण - जिसे क्रमशः क्रियाशक्ति, विचारशक्ति व भावशक्ति कहते हैं। बच्चे के स्थूल शरीर की क्रिया को शक्ति गर्भिणी माता द्वारा किये भोजन व जल से मिलती है। बच्चे के विचार को शक्ति माता द्वारा स्वाध्याय कर अच्छे विचारों के चिंतन मनन से मिलती है, बच्चे की भावनाओं को शक्ति माता के हृदय में उठने वाले भावो से मिलती है।
गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क व हृदय अपनी माता के मस्तिष्क व हृदय से जुड़ा होता है इसलिए स्वथ्य विचारों के साथ साथ अच्छे भावो से युक्त होकर बच्चे से गर्भसंवाद स्थापित करें। गर्भकाल में हमेशा अच्छे विचार और भाव ही अपने मन में ध्यान करें।
भले ही गर्भस्थ शिशु को भाषा का ज्ञान नहीं होता लेकिन वह माता के मस्तिष्क में आने वाली हर जानकारी का अर्थ ग्रहण कर सकता है। इसलिए गर्भ के शिशु के साथ अर्थपूर्ण बातें करें। अच्छे साहित्य पढ़े।
गर्भ के दौरान आदर्श संतुलित आहार ग्रहण करें ताकि उसके मस्तिष्क का अच्छा विकास हो सके। उसके मस्तिष्क में ज्यादा जानकारियां इकट्ठा हो सकें, स्मरण शक्ति तीक्ष्ण हो सके तथा त्वरित निर्णय लेने में सक्षम हो। गर्भसंस्कार सही अर्थों में गर्भस्थ शिशु के साथ माता का स्वस्थ संवाद है।
प्रश्न -10- *गर्भावस्था में क्या ज्यादा आराम करना चाहिए?*
उत्तर - गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है जिसमे की अतिरिक्त आराम की आवश्यकता हो। थकान लगने पर आराम कर लें। बाक़ी थोड़ी सावधानी सहित वही दिनचर्या रखें जो गर्भावस्था से पहले थी। जितना आप चलेंगी, घूमेंगी आपका बच्चा भी उतना ही गर्भ में एक्टिव रहेगा और डिलीवरी आसान होगी। आप आलस्य और सुस्ती दिखाएंगी तो बच्चा भी आलसी और सुस्त गर्भ में बनेगा जिससे डिलीवरी के वक्त परेशानी हो सकती है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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