🔥 *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान - प्रश्नोत्तर ( प्रश्न 113)* 🔥
प्रश्न -113- *औरा क्या है? क्या यज्ञ से औरा शुद्ध (Aura Cleansing) होता है?*
उत्तर - औरा का अर्थ होता है प्राणों का तेजोवलय। बल्ब की रौशनी की तरह स्थूल शरीर के बाहर भी प्राणों का तेजोवलय/औरा होता है। जो आधुनिक औरा उपकरणों के माध्यम से देखा या मापा जा सकता है। शरीर कारखाना मानो तो प्राण इस शरीर के मोटर को चलाने वाली विद्युत है।
शरीर में तापमान भी होता है और हलचल भी। इन्हीं के आधार पर जीवनचर्या चलती है। इन दोनों प्रयोजनों को साधने वाली शक्ति का नाम है (बायो इलैक्ट्रिसिटी) जैव विद्युत। इसका भण्डार जिसमें जितना अधिक है वह उतना ही ओजस्वी, तेजस्वी माना जाता है। सूक्ष्म शरीर का प्रतीक तेजोवलय/प्राण ऊर्जा/औरा होती है।
जीवित व्यक्ति के चारों ओर इसे छाया हुआ देख सकना अब सम्भव हो गया है। यह चेहरे के इर्द-गिर्द अधिक स्पष्ट और घनीभूत होता है। हाथों की उंगलियों और हथेली और पैरों के आसपास भी इसका घनत्त्व अधिक होता है।
देवी देवताओं के चित्रों में उनके चेहरों के इर्द-गिर्द यह तेजस् आभा मण्डल के रूप में देखा जा सकता है। महामानवों- ऋषियों के चेहरे पर एक विशेष ज्योति छाई रहती है। इसका प्रभाव क्षेत्र दूर-दूर तक होता है। वे उसके द्वारा दूसरों को प्रभावित कर लेते हैं, आकर्षित एवं सहमत भी। विरोधियों को सहयोगी बना लेना इनके बाँये हाथ का खेल होता है। आक्रमणकारी उनके निकट पहुँचते-पहुँचते हक्का-बक्का हो जाते हैं।
इस तेजस् को अध्यात्मवादी साधक अपनी खुली आँखों से भी देख सकते हैं और उसका स्तर देखकर किसी के व्यक्तित्व एवं मनोभावों का पता लगा लेते हैं। अब नई वैज्ञानिक खोजों के आधार पर इस तेजोवलय के आधार पर मनुष्य की शारीरिक और मानसिक रुग्णता का पता लगाने और तद्नुरूप उपचार करने लगे हैं। अध्यात्मवादी इसी तेजोवलय को देखकर उसके चिन्तन, चरित्र एवं स्तर का पता लगा लेते हैं।
प्राण विश्वव्यापी है। उसी का एक अंश जब जीवधारी को मिल जाता है तो वह प्राणियों की तरह अपनी क्षमता का परिचय देने लगता है। यह प्राण प्रत्यक्ष शरीर में तो होता ही है उसे यन्त्र उपकरणों से जैव विद्युत के रूप में आँका और मापा जा सकता है। इसकी घट-बढ़ भी विदित होती रहती है। घटने पर दुर्बलता आ दबोचती है। इन्द्रियों में तथा उत्साह में शिथिलता प्रतीत होती है। इसकी पर्याप्त मात्रा रहने पर मन और बुद्धि अपना काम करती है। उत्साह और साहस- पराक्रम और पुरुषार्थ- अपनी प्रदीप्त गतिविधियों का परिचय देने लगता है।
शरीर जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी से बना है। अतः प्राण के तेजोवलय में वृद्धि इनमें से किसी भी माध्यम से किया जा सकता है।
1- पहाड़ो की शुद्ध वायु स्नान से तेजोवलय बढ़ता है।
2- खुले आकाश को निहारने से उसके नीचे बैठने से भी यह चार्ज होता है।
3- स्वच्छ जल में स्नान या शॉवर से स्नान पर भी तेजोवलय स्थिर होता है, अच्छा महसूस होता है। गंगा नदी जैसी पवित्र और औषधीय गुण सम्पन्न नदियों में स्नान से भी प्राणों का तेजोवल बढ़ता है।
4- शुद्ध मिट्टी से स्नान से भी प्राण के तेजोवलय में वृध्दि होती है।
5- लेकिन उपरोक्त में से सबसे ज्यादा प्रभावी और प्राण विद्युत चार्ज करने का माध्यम अग्नि है। इसलिए यज्ञ में सम्मिलित होने से औषधीय धूम्र वायु स्नान और अग्नि के ताप का स्नान और घी का ऑक्सीकरण स्नान और मन्त्र तरंगों का प्रभाव प्राण का तेजोवलय रिचार्ज करता है। इसलिए यज्ञ एक समग्र उपचार के साथ साथ प्राण के तेजोवलय को बढ़ाने और क्लिनिग/शुद्ध करने का उत्तम माध्यम है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
प्रश्न -113- *औरा क्या है? क्या यज्ञ से औरा शुद्ध (Aura Cleansing) होता है?*
उत्तर - औरा का अर्थ होता है प्राणों का तेजोवलय। बल्ब की रौशनी की तरह स्थूल शरीर के बाहर भी प्राणों का तेजोवलय/औरा होता है। जो आधुनिक औरा उपकरणों के माध्यम से देखा या मापा जा सकता है। शरीर कारखाना मानो तो प्राण इस शरीर के मोटर को चलाने वाली विद्युत है।
शरीर में तापमान भी होता है और हलचल भी। इन्हीं के आधार पर जीवनचर्या चलती है। इन दोनों प्रयोजनों को साधने वाली शक्ति का नाम है (बायो इलैक्ट्रिसिटी) जैव विद्युत। इसका भण्डार जिसमें जितना अधिक है वह उतना ही ओजस्वी, तेजस्वी माना जाता है। सूक्ष्म शरीर का प्रतीक तेजोवलय/प्राण ऊर्जा/औरा होती है।
जीवित व्यक्ति के चारों ओर इसे छाया हुआ देख सकना अब सम्भव हो गया है। यह चेहरे के इर्द-गिर्द अधिक स्पष्ट और घनीभूत होता है। हाथों की उंगलियों और हथेली और पैरों के आसपास भी इसका घनत्त्व अधिक होता है।
देवी देवताओं के चित्रों में उनके चेहरों के इर्द-गिर्द यह तेजस् आभा मण्डल के रूप में देखा जा सकता है। महामानवों- ऋषियों के चेहरे पर एक विशेष ज्योति छाई रहती है। इसका प्रभाव क्षेत्र दूर-दूर तक होता है। वे उसके द्वारा दूसरों को प्रभावित कर लेते हैं, आकर्षित एवं सहमत भी। विरोधियों को सहयोगी बना लेना इनके बाँये हाथ का खेल होता है। आक्रमणकारी उनके निकट पहुँचते-पहुँचते हक्का-बक्का हो जाते हैं।
इस तेजस् को अध्यात्मवादी साधक अपनी खुली आँखों से भी देख सकते हैं और उसका स्तर देखकर किसी के व्यक्तित्व एवं मनोभावों का पता लगा लेते हैं। अब नई वैज्ञानिक खोजों के आधार पर इस तेजोवलय के आधार पर मनुष्य की शारीरिक और मानसिक रुग्णता का पता लगाने और तद्नुरूप उपचार करने लगे हैं। अध्यात्मवादी इसी तेजोवलय को देखकर उसके चिन्तन, चरित्र एवं स्तर का पता लगा लेते हैं।
प्राण विश्वव्यापी है। उसी का एक अंश जब जीवधारी को मिल जाता है तो वह प्राणियों की तरह अपनी क्षमता का परिचय देने लगता है। यह प्राण प्रत्यक्ष शरीर में तो होता ही है उसे यन्त्र उपकरणों से जैव विद्युत के रूप में आँका और मापा जा सकता है। इसकी घट-बढ़ भी विदित होती रहती है। घटने पर दुर्बलता आ दबोचती है। इन्द्रियों में तथा उत्साह में शिथिलता प्रतीत होती है। इसकी पर्याप्त मात्रा रहने पर मन और बुद्धि अपना काम करती है। उत्साह और साहस- पराक्रम और पुरुषार्थ- अपनी प्रदीप्त गतिविधियों का परिचय देने लगता है।
शरीर जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी से बना है। अतः प्राण के तेजोवलय में वृद्धि इनमें से किसी भी माध्यम से किया जा सकता है।
1- पहाड़ो की शुद्ध वायु स्नान से तेजोवलय बढ़ता है।
2- खुले आकाश को निहारने से उसके नीचे बैठने से भी यह चार्ज होता है।
3- स्वच्छ जल में स्नान या शॉवर से स्नान पर भी तेजोवलय स्थिर होता है, अच्छा महसूस होता है। गंगा नदी जैसी पवित्र और औषधीय गुण सम्पन्न नदियों में स्नान से भी प्राणों का तेजोवल बढ़ता है।
4- शुद्ध मिट्टी से स्नान से भी प्राण के तेजोवलय में वृध्दि होती है।
5- लेकिन उपरोक्त में से सबसे ज्यादा प्रभावी और प्राण विद्युत चार्ज करने का माध्यम अग्नि है। इसलिए यज्ञ में सम्मिलित होने से औषधीय धूम्र वायु स्नान और अग्नि के ताप का स्नान और घी का ऑक्सीकरण स्नान और मन्त्र तरंगों का प्रभाव प्राण का तेजोवलय रिचार्ज करता है। इसलिए यज्ञ एक समग्र उपचार के साथ साथ प्राण के तेजोवलय को बढ़ाने और क्लिनिग/शुद्ध करने का उत्तम माध्यम है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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