Wednesday 8 May 2019

यज्ञ विषयक शंका समाधान 29 से 31 तज

 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान(प्रश्न 29)* 🔥

प्रश्न - 29- *क्या यज्ञ से चिर स्थायी यौवन एवं सौंदर्य प्राप्त किया जा सकता हैं?*

उत्तर - हाँजी, उम्र से यौवन का कोई सम्बन्ध नहीं होता। जब भी जीवन में प्राणशक्ति का प्रवाह उच्च हो, जीवन में उत्साह और उमंग हो, कुछ कर गुजरने का कुछ नया करने अनवरत प्रयास हो, उसे यौवन कहते हैं। यह प्राणशक्ति, उमंग और उल्लास ही सौंदर्य का कारक है।

यज्ञ के माध्यम से प्राणशक्ति और स्वास्थ्य अर्जित किया जाता है। यज्ञीय जीवन जीने से, लोकसेवा की भावना और कार्य से जीवन मे सदा उत्साह उमंग अनवरत बना रहता है। जवान मन की तरह सुकोमल, नए उत्साहित विचारों से मन भरा रहता है। चेतना ईश्वर से जुड़ी रहती है और ऐसे व्यक्ति को चिर यौवन और शाश्वत सौंदर्य प्राप्त होता है।

उदाहरण - उत्साह उमंग में भरे आशावादी कर्मठ लोग किसी भी उम्र के हों सुंदर, जवान और आकर्षक दिखते हैं। उदास और हीनभावना से ग्रस्त बदसूरत, वृद्ध  और तेजहीन दिखते हैं।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/8, 12:49 PM] 😊: 🔥 *यग्योपैथी विषयक शंका समाधान(प्रश्न 30)* 🔥

प्रश्न - 30- *अग्निहोत्र में मात्र औषधियों को जलाकर क्या स्वास्थ्य लाभ नहीं लिया जा सकता? मंन्त्र जप और विधिविधान क्या यग्योपैथी में जरूरी है?*

उत्तर - योग शास्त्र और आयुर्वेद में औषधि को अविकसित प्राणधारी वर्ग में सम्मिलित किया गया है। इन्हें मन्त्रों और भावचेतना से अभिमंत्रित करके इनकी प्राण चेतना का संधारण किया जाता है। भाव सम्प्रेषण मन्त्रों के माध्यम से जीवित मानव चेतना ही कर सकती है। अतः रोबोटिक मंन्त्र जप से अपेक्षित लाभ नहीं मिलेगा।

अग्निहोत्र में मात्र औषधियों को जलाकर उसकी ऊर्जा मात्र से चमत्कारी परिणाम उतपन्न नहीं होते वरन औषधीय हविष्य को दिव्य मन्त्रों से अभिमंत्रित करके उसकी सशक्त महाप्राण ऊर्जा को जागृत किया जाता है। इस ऊर्जा से रोगी व्यक्ति के रोग पर, वातावरण पर और लक्ष्य पर प्रहार किया जाता है। तब जाकर अपेक्षित लाभ मिलता है।

एक बात और चूल्हे की अग्नि से यज्ञाग्नि भिन्न होती है, यज्ञाग्नि मंन्त्र द्वारा अभिमंत्रित करके जलाई जाती है जो कॉस्मिक ऊर्जा, इच्छित देवता और यज्ञकर्ता के बीच सम्पर्क का चैनल बनाती है।

इस पर विस्तृत जानकारी - पुस्तक जीवेम शरदः शतम, पृष्ठ 11.30 पर प्राप्त कर सकते हैं।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/8, 1:07 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान(प्रश्न 31)* 🔥

प्रश्न - 31- *चर्म रोग में यग्योपैथी ज़्यादा प्रभावी है या एलोपैथी?*

उत्तर - एलोपैथी से ज्यादा प्रभावी यग्योपैथी है जो चर्म रोग में रामबाण की तरह असर करती है।

केवल शरीर श्वांस नहीं लेता, वरन त्वचा में विद्यमान असंख्य रोमकूपों द्वारा भी श्वसन प्रक्रिया चलती है। यदि त्वचा पर मोम, कोलतार, चीनी का शिरा इत्यादि में से किसी के द्वारा भी रोम छिद्र बन्द कर दिए जाएं तो व्यक्ति दम घुटने से मर जायेगा। अफसोस यह है कि लोग इसके प्रति जागरूक नहीं है।

साधारणतया त्वचा के रोग जैसे दाद, खाज़, खुजली, एलर्जी आदि के लिए अषिधियों - शीतल चीनी, चोप चीनी, नीम के फूल या पत्ते, चमेली के पत्ते, दारू हल्दी, कपूर, मेथी के बीज, पद्माख, मेहंदी के पत्ते, चक्रमर्द के बीच को कूट पीस कर कपड़छान करके दसग्राम चूर्ण सुबह शाम सेवन, और इसी चूर्ण को कॉमन हवन सामग्री और सूर्य मंन्त्र के साथ हवन करना चाहिए। फिंर उस धूम्र में 5 से 7 बार प्राणाकर्षण प्राणायाम करें। यह धूम्र श्वांसों के माध्यम से रक्त तक पहुंचेगा साथ ही रोमकूपों के माध्यम से भी शरीर मे प्रवेश करेगा। तेजी से चरम रोगों को जड़ से नष्ट करता है।

विस्तृत जानकारी के लिए यज्ञ चिकित्सा पुस्तक पढें।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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