Wednesday, 8 May 2019

यग्योपैथी विषयक शंका समाधान ( प्रश्न 32 से 45 तक)

🔥 *यग्योपैथी विषयक शंका समाधान ( प्रश्न 32 से 45 तक)* 🔥

प्रश्न 32. *आज के इस वैज्ञानिक युग में यग्य जप तप यह सब लाभकारी भी है कि नहीं यदि है तो कैसे?*

👉🏼 उत्तर :- जिस प्रकार भोजन पकाना एक विज्ञान भी है और एक कला भी है, ठीक उसी प्रकार यज्ञ एक विज्ञान भी है और यज्ञ एक कला भी है। कर्मकांड जहां एक जैसे स्थूल कर्मकांड पर एक जैसे परिणाम उपस्थित कर सकते हैं, भावनात्मक उत्कृष्टता यज्ञ के लाभ को बढ़ा सकती है।

बिना परखे किसी निर्णय में पहुंचना उचित नहीं होता है। अतः   बुद्धिमान युवाओं को सम्बन्धित साहित्य और नेंट पर उपलब्ध रिसर्च गायत्री मंत्र, उपवास, यज्ञ के पढ़ना चाहिए। इसे कुछ समय करके अनुभव के आधार पर जांचना चाहिए।

हज़ारों लाभ है क्योंकि अध्यात्म एक विज्ञान ही है। बिन पिये प्यास नहीं बुझती, बिन टेस्ट किये गुड़ की मिठास समझ नहीं आती। वैसे ही बिन जप, तप, साधना और यज्ञ किये इसका महत्त्व नहीं जाना जा सकता।


प्रश्न - 33. *यह सब बहुत झंझट भरा है  किसके पास समय है यह करने के लिए । हमे तो बस एक गोली देकर हमारे सभी रोग दूर करदो।*

👉🏼 उत्तर - यदि स्वास्थ्यकर खाना हो तो मेहनत से पकाना पकेगा। यदि हानिकारक क़वीक फ़ास्ट फ़ूड खाना है तो 2 मिनट में मैगी मिल जाएगी। भूख मिट जाएगी।

दवा का सेवन मुंह से, इंजेक्शन से  और श्वांस से तीनों माध्यम से असरकारक है।

एलोपैथी रोग को कभी जड़ से नहीं मिटाती, केवल रोग को कुछ दिनों के लिए दबा देती है। रोगाणुओ के साथ साथ जीवनदायी स्वास्थ्यकर जीवाणुओ को मारती जाती है। जिससे इंसान के भीतर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही मर जाती है। आयुर्वेद और यग्योपैथी रोग को जड़ से नष्ट करने की विधिव्यस्था है। temporary treatment के लिए एलोपैथी चुने, permanent treatment के लिए आयुर्वेद एवं यग्योपैथी चुने।

प्रश्न 34. *मैं तो नास्तिक हूँ फिर मेरे लिए देवी देवताओ के आह्वान वाला यग्य किस प्रकार लाभदायक होगा ?*

👉🏼 उत्तर - दवा हो या दुआ बिना विश्वास कर फ़लित नहीं होती। नास्तिक बने रहिए, लेकिन जिस पैथी से इलाज़ करवाने जा रहे हैं उसकी प्रोसेस पर जब तक इलाज चल रहा है विश्वास रखिये। अन्यथा असर नहीं करेगा।


प्रश्न 35. *इस भौतिकवादी वैग्यानिक युग में अध्यात्मिक यग्य चिकित्सा कारगार नही हो सकती हैं ! क्योंकि सभी का आहार विहार विचार व व्यवहार सभी कुछ भौतिकवादी बन चुका है इसे बदलना आसान नहीं ।*

👉🏼 उत्तर - स्वास्थ्य चाहिए तो बदलना थोड़ा बहुत तो पड़ेगा ही। जब तक इलाज चल रहा है थोड़ा बहुत तो परहेज रखना पड़ेगा। पेट खराब हो तो दवा और पकोड़े दोनों साथ नहीं कार्य करेंगे। पकोड़े बन्द करके हल्का पेट रखेंगे तभी तो दवा असर करेगी। यग्योपैथी में उतना ही परहेज होता है जितना आयुर्वेद चिकित्सा और होमियोपैथी में होता है। समग्र स्वास्थ्य पाने के लिए प्रयास तो करना पड़ेगा। स्वास्थ्य और रोग के बीच चयन तो करना ही पड़ेगा।

प्रश्न 36:- *यग्यौपैथी को अभी तक सरकार व किसी वैग्यानिक संस्थान ने प्रमाणिक नही किया है मै इस पर किस प्रकार भरोसा करू?*

👉🏼 उत्तर - यदि आप अध्यात्म, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा पर विश्वास करते हैं तो आप यज्ञ पर भी विश्वास करें। क्योंकि रोगों के अनुसार औषधियां आयुर्वेद के अनुसार ही हवन के लिए चुनी जाती है। आयुर्वेद की धूपन विधि की तरह ही यज्ञ धूम्र कार्य करता है। प्राकृतिक चिकित्सा के पंचतत्व चिकित्सा का यह एक अंग है। अतः यह विधि विश्वनीय है। इसे सरकारी परमिशन की अलग से कोई जरूरत नहीं है।

प्रश्न 37. *अभी तक यग्यौपैथी से संबंधित विशेष हवन सामाग्री व अन्य साधन पूर्णतः कही भी उपलब्ध नही होता ।*

👉🏼 उत्तर - देश मे कई जगहो पर यज्ञ चिकित्सा विभिन्न लोग चला रहे हैं। विश्वसनीय औषधि रोग के अनुसार ऑनलाइन देवसस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार उत्तराखंड से मंगवा सकते हैं। अभी इस पर काम चल रहा है, शीघ्र ही निकट भविष्य में इसके आउटलेट सर्वत्र उपलब्ध होंगे।

प्रश्न 38. *यग्यौपैथी ने अभी तक कितने रोगीयो को प्रमाणिकता के साथ ठीक किया है इसका कोई रिकॉर्ड हो तो बताए।*

👉🏼 उत्तर - सफलता पूर्वक इलाजों के रिकॉर्ड देवसंस्कृति विश्विद्यालय, हरिद्वार उत्तराखंड जाकर प्राप्त किये जा सकते है। जहां यग्योपैथी की प्रैक्टिस हो रही है वहां से भी आंकड़े लिए जा सकते है। मरीजों की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती है। अतः केवल आंकड़े मिलेंगे, जो अनुमति दिए हैं उनके वीडियो यग्योपैथी यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं।

प्रश्न 39. *अभी नैनौ यग्य के बारे में भी पता चला है क्या यह भी यग्यौपैथी जैसा कारगार है?*

उत्तर - दीपक छोटा हो या बड़ा, वो अपनी क्षमता अनुसार अंधेरा भगाता है। बड़ा दीपक ज्यादा दूर तक प्रकाशित करता है, छोटा दीपक उससे कम एरिया को प्रकाशित करता है। ठीक इसी तरह नैनो अर्थात अति लघु यज्ञ बड़े यज्ञ की तुलना में कम लाभकारी है। लेक़िन लाभ तो मिलेगा ही, एक व्यक्ति की औषधीय चिकित्सा के लिए लाभकारी है। समूह चिकित्सा में बड़ा यज्ञ लाभकारी है।

प्रश्न 40.  *क्या यग्यौपैथी से जीर्ण व असाध्य रोगों का इलाज भी संभव है?*

👉🏼 उत्तर - सभी चिकित्सा की पैथी चाहे वो एलोपैथी हो या आयुर्वेद हो या होमियोपैथी हो या यग्योपैथी हो। रोग की प्रारंभिक अवस्था मे इलाज ज्यादा जल्दी असर करके रोगों की रोकथाम करता है। रोग की अंतिम स्टेज में इलाज में वक्त ज्यादा लगता है। ईश्वर की कृपा और रोगी के आत्म विश्वास से यग्योपैथी द्वारा जीर्ण श्रीर्ण रोगियों को भी ठीक करने में सफलता पाई गई है।

प्रश्न 41-  *किन किन रोगो पर यग्यौपैथी अधिक कारगार होगी कोइ लिस्ट हो को बताए?*

उत्तर - यज्ञ चिकित्सा पुस्तक और यग्योपैथी पुस्तक में रोग लिस्ट और उनके उपचार विधि को दिया गया है। सम्बन्धित डेटा वहां से एकत्रित कर लें।

प्रश्न 42. *आप कहते हो कि यग्य मे शुद्ध गो घृत जलने से  ऑक्सीजन का निष्कासन होता है पर देखा गया है कि जलने में हमेशा ऑक्सीजन का  उपयोग होता है तो फिर ऑक्सीजन का उत्पत्ति कैसे  होगी?*

उत्तर - देशी गाय के घी और उसके उपलों से मंन्त्र के माध्यम से आवाहित अग्नि में होमने पर यह प्रभाव दिखता है।देशी गाय *A 2* ग्रेड का उच्च गुणवत्ता का दूध देती है। केवल इसके दूध से बने  घी को आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। देशी घी में विटामिन "ए', विटामिन "डी' और विटामिन "ई' रहते हैं। विटामिनों की मात्रा सब ऋतुओं में एक सी नहीं रहती। जब पशुओं को हरी घास अधिक मिलती है तब, अर्थात्‌ बरसात और जाड़े के घी, में, विटामिन की मात्रा बढ़ जाती है।

घी के विशेष प्रकार की गंध होती है। यह गंध किण्वन और आक्सीकरण के करण 'डाइऐसीटिल' नामक कार्बानिक यौगिक बनने के कारण उत्पन्न होती है। इसके जलने पर लाभदाय प्राणवायु गैस का निर्माण होता है। तथा औषधि के अर्क को घी के साथ श्वांस में प्रवेश लाभदायी है।

प्रश्न 43 - *यग्यौपैथी में विभिन्न औषधियो के  सूक्ष्म फाइटोकेमिकल बनते हैं क्या इन फाइटोकेमिकल के पर्यावरणीय परमाणुओं से संभावित प्रक्रिया स्वरूप सकारात्मक परिणाम का कोई वैज्ञानिक प्रमाण अभी उपलब्ध है क्या?*

👉🏼 उत्तर - जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नमक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मरती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।
सभी वनस्पतियों में कुछ तरल / तैलीय द्रव्य होते हैं जिन्हे विज्ञानं की भाषा में एल्केलॉइड कहा जाता है। यज्ञ या हवन में जब ये वनस्पतियां जलती हैं तो ये अल्केलॉइड्स और इनके संयोजन से बने फाईटो केमिकल्स धुएं के साथ उड़ कर आपके शरीर से चिपक जाते हैं और और श्वास और रोमकूपों से भीतर जाते हैं और धुआं मनुष्य के शरीर में सीधे असरकारी होता है और यह पद्वति दवाओं की अपेक्षा सस्ती और टिकाउ भी है। यानि सिर्फ हवन करने से ही नही. बल्कि हवन में हिस्सा लेने और उसके धुएं से भी आप विभिन्न रोगों से बच सकते हैं और अपने शरीर को स्वस्थ बना सकते हैं।

इस पर रिसर्च डॉक्टर ममता एवं डॉक्टर रुचि सिंह से देवसस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार उत्तराखंड से एकत्रित किये जा सकते हैं। उन्होंने कई टेस्ट इस पर किये हैं।

प्रश्न 44 *क्या यग्यौपैथी का रिसर्च प्रोटोकोल बनाया जा चुका है क्या?*

उत्तर - यग्योपैथी वस्तुतः आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा का ही अंग है। अतः इसमें उपचार पथ्य अपथ्य और उपचार की प्रोसेस के वही प्रोटोकॉल लागू होते हैं। केवल एक फर्क यह है कि यग्योपैथी में औषधियां मुख मार्ग के साथ साथ श्वांस मार्ग से ली जाती है। कई केस में केवल श्वांस मार्ग से ही लिया जाता है।

प्रश्न - 45  *क्या यग्यौपैथी को  आयुर्वेद में वर्णित युक्ति व्यापाश्रय,  सत्वाजय, देवव्यापाश्रय चिकित्सा पद्धतियों का सम्मिश्रण कह सकते हैं ?*

👉🏼उत्तर:- जी बिल्कुल कहा आपने, यग्योपैथी आयुर्वेद में वर्णित युक्ति व्यापाश्रय,  सत्वाजय, देवव्यापाश्रय चिकित्सा पद्धतियों का सम्मिश्रण ही है। केवल एक फर्क यह है कि यग्योपैथी में मन्त्रों के प्रयोग के साथ साथ औषधियां मुख मार्ग के साथ साथ श्वांस मार्ग से ली जाती है। कई केस में केवल श्वांस मार्ग से ही लिया जाता है।

प्राचीन वैद्य मंन्त्र सिद्ध होते थे, वो विभिन्न विधियों से औषधियों को प्राण संचारित करते थे। योग शास्त्र और आयुर्वेद में औषधि को अविकसित प्राणधारी वर्ग में सम्मिलित किया गया है। इन्हें मन्त्रों और भावचेतना से अभिमंत्रित करके इनकी प्राण चेतना का संधारण किया जाता है। भाव सम्प्रेषण मन्त्रों के माध्यम से जीवित मानव चेतना ही कर सकती है।

औषधीय हविष्य को दिव्य मन्त्रों से अभिमंत्रित करके उसकी सशक्त महाप्राण ऊर्जा को जागृत किया जाता है। इस ऊर्जा से रोगी व्यक्ति के रोग पर, वातावरण पर और लक्ष्य पर प्रहार किया जाता है और अपेक्षित लाभ मिलता है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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