Saturday 11 May 2019

यज्ञ विषयक शंका समाधान(प्रश्न 46 से 51 तक)

[5/9, 10:01 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान(प्रश्न 46)* 🔥

प्रश्न - 46- *यज्ञ में मंत्रोच्चार अगर कुछ अशुद्ध हो जाये तो क्या होगा??*

उत्तर - रोटी टेढ़ी हो तो भी भूख मिटाती है, श्रद्धा भाव से बनी रोटी में ही स्वाद मिलता है।

कृष्ण विष्णु ज्ञानी कहें,
 किसन बिसन अज्ञान,
ज्यों बालक टोटी कहे,
माता रोटी जान।

माता जब टोटी बोलने पर रोटी दे देती है, वैसे ही भावनात्मक रूप से जुड़े भक्त के अशुद्ध मंन्त्र में भी शुद्ध परिणाम परमात्मा दे देता है।

एक सत्य घटना सुनिये, सूरदास जो कि अँधे थे भगवान के दर्शन को नित्य मन्दिर आते। तो एक दिन युवा पुजारियों ने उनका मज़ाक़ उड़ाते हुए पूँछा, अँधे हो दुनियाँ नही दिखती, मन्दिर और भगवान की मूर्ति नहीं दिखती। फ़िर दर्शन करने रोज क्यों आते हो?

सूरदास मुस्कुरा के बोले, भाई मैं अंधा हूँ, लेक़िन मेरा भगवान तो नेत्रों वाला है। वो तो रोज़ देखता है न कि मैं उसके दर्शन को आया हूँ। मेरे नेत्र होने से दर्शन पर वो फ़र्क़ नहीं पड़ता, जो भगवान के नेत्र होने और भक्त पर कृपा दृष्टि पड़ने से फ़र्क़ पड़ता है।

इसी तरह, बोलने वाला संस्कृत पण्डित नहीं है उच्चारण अशुद्ध हो सकते हैं, लेकिन भगवान को तो संस्कृत आती है, उन्हें उन मन्त्रों के अर्थ भी समझ आते हैं। उन मन्त्रों के माध्यम से भक्त क्या प्रार्थना कर रहा हो वो ये समझ रहे हैं । वो दयानिधान तो सुन रहा है कि तुम क्या बोल रहे हो। वो तुम्हारे हृदय के भावों को भी पढ़ सकता है। अतः भक्त सूरदास की तरह तुम भी यज्ञ करो और संस्कृत के मंन्त्र भाव पूर्वक पढ़ो और यज्ञ करो।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/9, 10:01 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान(प्रश्न 47)* 🔥

प्रश्न -47 *यज्ञीय विकिरण क्या है? कौन से है? स्वास्थ्य पे उनका क्या असर है?*

उत्तर - विकिरण(radiation) ऊर्जा का वह प्रकार है जो अंतराल मे यात्रा करते समय तरंग जैसा व्यवहार करता है। इसमें प्रकाश, ध्वनि तरंग और जिस श्रोत से यह तरंग उतपन्न हुई उसके परमाणु लेकर तरंगों के रूप में फ़ैलती है।

साधारण अर्थों में प्रकाश की किरणों और ध्वनियों की कोरियर सर्विस जो अमृत हो या जहर दोनों के कण तरंगों के रूप में बिखेरने की प्रक्रिया को विकिरण कहते हैं।

बुरी तरंग को अच्छी तरंग ही नष्ट कर सकती है, इसलिए बुरे अन्य माध्यमो से उतपन्न विकिरण को यज्ञ विकिरण से नष्ट किया जा सकता है।

सोनोग्राफी वास्तव में साउंड(ध्वनि) इमेज ही है, अतः शरीर की परतों को भेदना इसके लिए बड़ा आसान काम है।

कोई पौष्टिक हो या ज़हरीला तत्व यदि ध्वनि तरंगों और प्रकाश किरणों के साथ बिखेरा(विकिरण) किया जाय तो यह मनुष्य के अंतरंग अंगों के साथ साथ डीएनए को भी प्रभावित कर सकता है।

जिस प्रकार अणु विष्फोट में ज़हरीले मारक विष्फोटक अणुओं /परमाणुओं को विस्फोटध्वनि-प्रकाशयुक्त तरंग वायुमंडल में बिखेरती(विकिरण करती) है, वैसे ही यज्ञ के दौरान औषधीय पुष्टिवर्धक आरोग्य वर्धक जीवनोपयोगी अणुओं/परमाणुओं को मंन्त्रध्वनि और प्रकाशयुक्त तरंग बिखेरती(विकिरण) करती है।जितना घातक परमाणु बम विष्फोट है उतना उससे उल्टा यज्ञ पुष्टिवर्धक आरोग्यवर्धक जीवनोपयोगी है।

यज्ञ विकिरण का स्वास्थ्य पर प्रभाव - मंन्त्र बोलने वाले के भावना, चयनित मंन्त्र ध्वनितरँग, चयनित समिधा प्रकाश किरण, चयनित औषधियां जो प्रकाश तरंगे बिखेरेंगी पर निर्भर करेगा।

*स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव डालने वाले विकिरण* - यज्ञ विकिरण, सूर्य द्वारा उतपन्न विकिरण, मनुष्य के शरीर मे कैल्शियम के चयापचय में निकलता विकिरण

*स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालने वाले विकिरण* - परमाणु विष्फोट, रेडियो, मोबाइल, LED बल्ब, RO वाटर प्योरिफायर

कोरियर सर्विस निर्णय नही करती की सामान अच्छा या बुरा है भेजने वाला तय करता है, उसी तरह विकिरण तय नहीं करता वो अच्छा या बुरा क्या ले जाएगा। यह विकिरण उतपन्न करने वाला तय करता है कि उसका श्रोत क्या होगा और वो क्या वायुमंडल में बिखेरेगा।

शब्द जब किसी एक चीज़ के लिए बार बार उपयोग होने लगता है तो वो उसी का पर्याय बन जाता है। जैसे डिटॉल से हाथ धोया, अब डिटॉल एक हाथ धोने के प्रोडक्ट का नाम है, हाथ तो साबुन या राख से भी धोया जाता है। कोलगेट किया अर्थात ब्रश किया। ब्रश तो दातून और मंजन से भी होता है। इसी तरह रेडिएशन(विकिरण) शब्द वैज्ञानिकों ने बार बार बुरे विकिरण के लिए प्रयोग किया तो यह विकिरण(रेडिएशन) शब्द ही बुरा और डरावना हो गया। जबकि समस्या विकिरण कोरियर सर्विस में नहीं, उसके उद्गम अणु विष्फोट या हाई फ्रीक्वेंसी के इलेक्ट्रॉनिक सामान में है। वास्तव में विकिरण तरंगों के रूप में वायुमंडल में बिखेरता है,  अच्छा और बुरा यह तो मनुष्य तय करता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/9, 10:01 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 48)* 🔥

प्रश्न 48 - *भेषज यज्ञ किसे कहते हैं? रोगोपचार हेतु इसका विधि विधान क्या है?*



*समाधान* - *वनौषधि यज्ञ को वेदों में भैषज्य यज्ञ कहा है।* भैषजकृतो हवा एवं यज्ञो यत्रैवंविद ब्रह्मा भवति अर्थात् उनमें वैद्यक शास्त्रज्ञ ब्रह्मा होता है, वे भैषज्य यज्ञ हैं।



*भेषज यज्ञ का उद्देश्य* - यज्ञ चिकित्सा में औषधियों को होमीकृत कर उन्हें सूक्ष्मतम बनाना एवं उनके प्रभाव से व्यक्तियों, वातावरण एवं वनस्पतियों को विकारमुक्त/रोगमुक्त करना ही प्रमुख उद्देश्य है।



*औषधि उपचार के मार्ग* - मुखमार्ग(गोली खाना)- रक्तमार्ग(इंजेक्शन) तथा श्वांस(यग्योपैथी से औषधीय धूम्र) मार्ग द्वारा ली जाने वाली औषधि का अलग- अलग प्रभाव पड़ता है। सबसे ज्यादा प्रभावी श्वांस द्वारा ली औषधि होती है, जिसकी पहुंच मष्तिष्क के कोषों तक होती है, फेफड़े क्लीन करते हुए प्राणवायु में मिलकर रक्त में मिलकर समस्त शरीर तक पहुंचती है। यह रोगनाशक के साथ साथ बलवर्द्धक होती है।



*भेषज यज्ञ संक्षिप्त होता है* -

भेषज यज्ञ/हवन देवआह्वान के लिए नहीं, चिकित्सा प्रयोजन के लिए होते हैं, इसलिए इनको देव पूजन आदि की सर्वाङ्गपूर्ण प्रकियायें न बन पड़ें तो चिन्ता की बात नहीं है। ताँबे के हवन कुण्ड में अथवा भूमि पर १२ अँगुल चौड़ी १२ अँगुल लम्बी, ३ अँगुल ऊँची, पीली मिट्टी या बालू की वेदी बना लेनी चाहिए। हवन करने वाले उसके आस- पास बैठें। यदि रोगी भी हवन पर बैठ सकता हो तो उसे पूर्व की ओर मुख कराके बिठाना चाहिए। शरीर- शुद्धि, मार्जन,शिखाबन्धन, आचमन, प्राणायाम, न्यास आदि गायत्री मन्त्र से करके कोई ईश्वर प्रार्थना हिन्दी या संस्कृत की करनी चाहिए। वेदी और यज्ञ का जल, अक्षत आदि से पूजन करके गायत्री मन्त्र के साथ हवन आरम्भ कर देना चाहिए।



*आहुति संख्या एवं क्रम* -

👉🏼 7 आज्याहुति घी से

👉🏼 24 गायत्री मंत्र/सूर्य मंन्त्र/चन्द्र गायत्री मंत्र से

👉🏼 कम से कम 5 या 11 महामृत्युंजय मंत्र से

👉🏼 इसके बाद पूर्णाहुति, वसोधारा, घृतावग्रहाणम और भष्म धारण और शांतिपाठ करके यज्ञ समाप्त करना चाहिए

👉🏼 यज्ञ के पश्चात उतपन्न हुए औषधीय धूम्र वातावरण में रोगी को 10 मिनट गहरी श्वांस लेते हुए गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। उसके ततपश्चात 20 मिनट अनुलोमविलोम या प्राणाकर्षण प्राणायाम करना चाहिए। इस 30 मिनट की प्रक्रिया में प्राणायाम के माध्यम से अधिक से अधिक धूम्र भीतर प्रवेश करता है जो रोगमुक्ति में सहायक है।

👉🏼 विशेष औषधियों का काढ़ा बनाकर दो वक्त लेना चाहिए।

👉🏼 शाम को एक और बार थोड़ी हवन सामग्री से धूम्र भी लिया जा सकता है।





🙏🏻पूर्णाहुति में सामान्य हवन सामग्री का नहीं वरन् किन्हीं विशिष्ट वस्तुओं का प्रयोग करना पड़ता है। पूर्णाहुति तीन भागों में विभक्त है।

१- स्विष्टकृत होम- जिसमें मिष्ठान्न होमे जाते है।

२- पूर्णाहुति- जिसमें फल होमना होता है।

३- बसोधारा- जिसमें घी की धारा छोडी़ जाती है। इन तीनों कृत्यों को मिलाकर पूर्णाहुति कहा जाती है। इस विधान को प्रधानतया पोषक प्रयोग के रूप में लिया जाता है। निरोधक सामग्री तो हविष्य के रूप में इससे पूर्व ही यजन हो चुकी होती है।



यज्ञ में गौ घृत उपयोग में लिया जाता है।



*यज्ञ चिकित्सा में कलश में रखे जल का भी वैज्ञानिक महत्त्व है।* यह जल यज्ञ प्रक्रिया में यज्ञ ऊर्जा से प्रभावित एवं वाष्पीकृत वनौषधियों के सूक्ष्म गुणों से युक्त होता रहता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति द्वारा बनाये जाने वाले अर्क के पीछे भी यही सिद्धान्त है यह जल मंत्रोच्चार द्वारा अभिमन्त्रित किया जाता है। मंत्र की सामर्थ्य जल में होती हैं। इसे रोगी पर शान्तिमन्त्र पढ़ते हुए छिड़कना चाहिए। सूर्य को जल चढ़ाकर थोड़ा जल बचाकर रोगी को पिला भी देना चाहिए।



*यज्ञ में मंन्त्र क्यों बोलकर आहुति देते हैं?* यज्ञ प्रक्रिया में प्रायः हर पदार्थ के कारण शक्ति को उभारा जाता है तभी वह यजनकर्ता के मन और अन्तःकरण में अभीष्ट परिवर्तन ला सकती है। यज्ञ की विशिष्टता उसमें प्रयुक्त होने वाले पदार्थों की सूक्ष्म शक्ति पर निर्भर है। औषधि की कारण शक्ति का उत्पादन अभिवर्धन करने के लिए मंत्रविज्ञान का सहारा लिया जाता है। मंत्रों का चयन ध्वनि विज्ञान चयन ध्वनि के आधार पर किया जाता है। इस कसौटी पर गायत्री मंत्र की सामर्थ्य असामान्य आँकी गयी है। अर्थ की दृष्टि से तो यह मंत्र सामान्य है। उसमें भगवान से सद्बुद्धि की कामना भर की गयी है। पर मंत्र सृष्टाओं की दृष्टि में शब्दों का गुंथन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस आधार पर गायत्री महामंत्र सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है। यज्ञ में प्रयुक्त अन्य वेद मंत्रों का महत्त्व भी कम नहीं है। वेदमंत्रों का उच्चारण उदात्त- अनुदात्त भावों एवं स्वरित क्रम से मध्यवर्ती उतार- चढ़ाव के साथ किया जाता है। ये सब विधान इस दृष्टि से बनाने पडे़ हैं कि इन मंत्रों का जप अभीष्ट उद्देश्य पूरा कर सकने वाला और शक्ति प्रवाह उत्पन्न कर सके। मंत्र शक्ति की असीम सामर्थ्य के कारण शरीर में यंत्र तत्र सन्निहित अनेकों चक्रों तथा उपत्यिकाओं- ग्रन्थियों में विशिष्ट स्तर का शक्ति संचार होता है।



यज्ञ प्रक्रिया अपने आप में एक समग्र विज्ञान है। इसका प्रत्येक पक्ष विशिष्ट है। यज्ञ समाप्त होने पर बचा अवशिष्ट, स्विष्टकृत के होम से बचा 'चरु' द्विव्य प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। आहुतियों से बचा 'इदन्नमम्' के साथ टपकाया हुआ तथा वसोधारा से बचा घी घृतावघ्राण के रूप में मुख, सिर तथा हृदय आदि पर लगाया व सुधां जाता है। होमीकृत औषधियों एवं अन्य हव्य पदार्थों से संस्कारित भस्म को मस्तक तथा हृदय पर धारण किया जाता है। ये सभी पदार्थ उतना ही प्रभाव डालते हैं जितनी कि हविष्य की आहुतियों से उत्पादित ऊर्जा।



यज्ञोपचार एक समग्र चिकित्सा विज्ञान है, जिसमें शरीर विज्ञान के अनगिनत आयाम, औषधियों के गुण, धर्मों का विवेचन, सूक्ष्मीकरण का सिद्धान्त, मनोविज्ञान एवं मनोचिकित्सा, ध्वनि विज्ञान एवं मंत्र चिकित्सा तथा आस्थाओं के जीवन में समावेश का एक अद्भुत समन्वय है। मनोविकारों और शारीरिक विकारों से पीडि़त असंख्यों मानवों के लिए आज ऐसी ही एक चिकित्सा पद्धति की आवश्यकता है। इन अप्रत्यक्ष रोगों की चिकित्सा हेतु यदि इस चिर- पुरातन पद्धति को आधुनिक सन्दर्भ में पुनर्जीवित किया जा सके। तो पीडि़त मानवता की यह सर्वोपरि सेवा होगी।

उपरोक्त कंटेंट सन्दर्भ पुस्तक युगऋषि परमपूज्य गुरुदेब पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा लिखित पुस्तक - *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान* और *यज्ञ एक समग्र उपचार पद्धति* से लिया गया है।



🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/9, 10:01 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ सम्बन्धी शंका समाधान (प्रश्न 49)* 🔥

प्रश्न - *क्या यज्ञ करने से मुझे नकारात्मक सोच से मुक्ति मिलेगी?मेरा दिलो दिमाग शांत हो सकता है?*

👉🏼 उत्तर - *यज्ञ के मन्त्र अशिव विचार धारा को ध्वस्त कर, सकारात्मकता की वृद्धि करते हैं। मन्त्र गुम्फ़न और शब्द शक्ति सामर्थ्य अग्नि की ऊर्जा और औषधियों के तत्व लेकर रोगी के स्वास्थ्य को ठीक करने में अन्य सभी पैथियों से बेस्ट - सुपर बेस्ट है।*

क्योंकि मनोवैज्ञानिकों तथा चिकित्सा शास्त्रियों का कहना है कि आज रोगियों की बड़ी संख्या में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो वास्तव में किसी रोग से पीड़ित हों। अन्य या बहुतायत ऐसे ही रोगियों की होती है, जो किसी न किसी काल्पनिक रोग के शिकार होते हैं। आरोग्य का विचारों से बहुत बड़ा सम्बन्ध होता है। जो व्यक्ति अपने प्रति रोगी होने, निर्बल और असमर्थ होने का भाव रखते हैं और सोचते रहते हैं कि उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता। उन्हें आँख, नाक, कान, पेट, पीठ का कोई न कोई रोग लगा ही रहता है। बहुत कुछ उपाय करने पर भी वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं रह पाते। ऐसे अशिव विचारों को धारण करने वाले वास्तव में कभी भी स्वस्थ नहीं रह पाते। यदि उनको कोई रोग नहीं भी होता है तो भी उनकी इस अशिव विचार साधना के फलस्वरूप कोई न कोई रोग उत्पन्न हो जाता है और वे वास्तव में रोगी बन जाते।

इसके विपरीत जो स्वास्थ्य सम्बन्धी सद्विचारों की साधना करते हैं, वे रोगी होने पर भी शीघ्र चंगे हो जाया करते हैं। रोगी इस प्रकार सोचने के अभ्यस्त होते हैं। वे उपचार के अभाव में भी स्वास्थ्य लाभ कर लेते हैं। मेरा रोग साधारण है, मेरा उपचार ठीक- ठीक पर्याप्त ढंग से हो रहा है, दिन- दिन मेरा रोग घटता जाता है और मैं अपने अन्दर एक स्फूर्ति, चेतना और आरोग्य की तरंग अनुभव करता हूँ। मेरे पूरी तरह स्वस्थ हो जाने में अब ज्यादा देर नहीं है। इसी प्रकार जो निरोग व्यक्ति भूलकर भी रोगों की शंका नहीं करता और अपने स्वास्थ्य से प्रसन्न रहता है। जो कुछ खाने को मिलता है, खाता और ईश्वर को धन्यवाद देता है, वह न केवल आजीवन निरोग ही रहता है, बल्कि दिन- दिन उसकी शक्ति और सामर्थ्य भी बढ़ती जाती है।

सकारात्मक सोच यज्ञ के दिव्य वातारण में श्रद्धा और विश्वास से स्वतः विनिर्मित होती है। जो अशिव चिंतन का शमन करता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/9, 10:01 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ एवं मंन्त्र सम्बन्धी शंका समाधान( प्रश्न 50)*  🔥

*मंन्त्र विज्ञान सम्बन्धी शंका समाधान*

प्रश्न 50 - *मंन्त्र भी तो शब्द ही तो हैं, एक तरह से संस्कृत भाषा के वाक्य फ़िर इनके जप से हमें लाभ कैसे मिल सकता है? यज्ञ में भी मंन्त्र प्रयोग के बिना भी हवन करने पर क्या लाभ न मिलेगा?*



उत्तर - ध्वनि ही मूल है, ध्वनि का गुंथन वर्ण है, वर्ण स्वर और व्यंजन का संयोजन शब्द, और शब्द का संयोजन वाक्य बनता है। ठीक उसी तरह जैसे गेंहूँ मूल है लेकिन उसे पीस कर और विभिन्न गूंथने की प्रक्रिया और विभिन्न बनाने की प्रक्रिया अपनाने पर रोटी, पूड़ी, पराँठे, मालपुए इत्यादि बनते हैं। पकने पर उसका प्रभाव बढ़ जाता है।



ईंट का मूल मिट्टी ही है, लेकिन मिट्टी से मारने पर चोट न लगेगी। उसी मिट्टी को विधवत पकाकर ईंट बनाने पर उसका रूपांतरण ठोस में हो जाता है। इससे मजबूत घर भी बन सकता है और इससे मारने पर चोट भी लग सकती है।



यद्यपि यह सच है कि एक गेंहू के कण से रोटी नहीं बन सकती। एक मिट्टी के कण से ईंट नहीं बन सकती, निश्चित संख्या चाहिए। उसी तरह केवल एक बार मंन्त्र जप से प्रभाव नहीं दिखेगा। उसे विधिवत निश्चित संख्या में ध्यानपूर्वक जपना पड़ेगा।



*इसी तरह ध्वनियों के आध्यात्मिक वैज्ञानिक गुंथन, अर्थ, ध्वनि तरंग का वैज्ञानिक विश्लेषण करके और पर्यावरण, वातारण और अन्तःकरण पर पड़ने वाले प्रभाव, स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर पर पढ़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करके इसे ऋषियों ने बनाया है। अतः मंन्त्र अत्यंत प्रभावशाली होते है। तप द्वारा ये और अधिक ऊर्जावान बन जाते हैं।*



*शब्द शक्ति का महत्व विज्ञाननुमोदित है। स्थूल, श्रव्य, शब्द भी बड़ा काम करते हैं फिर सूक्ष्म कर्णातीत अश्रव्य ध्वनियों का महत्व तो और भी अधिक है। मंत्र का उच्चारण तो धीमा ही होता है उससे अतीन्द्रिय शब्द शक्ति को ही प्रचंड परिमाण में उत्पन्न किया जाता है।*



युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्यजी ने *शब्द ब्रह्म* और इसकी वैज्ञानिकता पर एक वांग्मय औऱ कई पुस्तको में इस पर लेख लिखा है। अखण्डज्योति पत्रिका में भी विभिन्न लेख लिखे है। उनके ही बिंदुओं का संकलन हम यहां करके मंन्त्र विज्ञान समझा रहे हैं।



टेलीफ़ोन, टेपरिकॉर्डर और रेडियो  इत्यादि ध्वनि यंत्र यह सिद्ध कर चुके हैं कि शब्द कभी मरता नहीं है। इसे कहीं भी भेजा जा सकता है और सुना जा सकता है। ध्वनि से उतपन्न ऊर्जा को यंत्रों के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में बदलकर कोई भी उपकरण भी चलाया जा सकता है। विज्ञान यह भी सिद्ध कर चुका है कि एक प्रकार की एनर्जी को दूसरे प्रकार की एनर्जी में बदल सकते हैं।



विज्ञान ने ध्वनि तरंगों में सन्निहित असाधारण शक्ति को समझा है और उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के क्रिया-कलापों को पूरा करना अथवा लाभ उठाना आरम्भ किया है। वस्तुओं की मोटाई नापने-धातुओं के गुण दोष परखने का काम अब ध्वनि तरंगें ही प्रधान रूप में पूरा करती है। कार्बन ब्लैक का उत्पादन वस्त्रों की धुलाई, रासायनिक सम्मिश्रण, कागज की लुगदी, गीलेपन को सुखाना, धातुओं की ढलाई, प्लास्टिक धागों का निर्माण प्रभृति उद्योगों में ध्वनि तरंगों के उपयोग से एक नया व्यावसायिक अध्याय आरम्भ हुआ है।



इलेक्ट्रोनिक्स के उच्च विज्ञानी ऐसा यंत्र बनाने में सफल नहीं हो सके जो श्रवण शक्ति की दृष्टि से कान के समान संवेदनशील हो। कानों की जो झिल्ली आवाज पकड़कर मस्तिष्क तक पहुँचाती है उसकी मुटाई एक इंच के ढाई हजारवें हिस्से के बराबर है, फिर भी वह कोई चार लाख प्रकार के शब्द भेद पहचान सकती है और उनका अंतर कर सकती है। अपनी, गाय की या मोटर की आवाज को हम अलग से पहचान लेते हैं और उनका अंतर कर सकते हैं यद्यपि लगभग वैसी ही आवाज दूसरी गायों की या मोटरों की होती है, पर जो थोड़ा सा भी अंतर उनमें रहता है, अपने कान के लिए उतने से ही अंतर कर सकना और पहचान सकना संभव हो जाता है। कितनी दूर से, किस दिशा से, किस मनुष्य की आवाज आ रही है, यह पहचानने में हमें कुछ कठिनाई नहीं होती। यह कान की सूक्ष्म संवेदनशीलता का ही चमत्कार है। टेलीफोन यंत्र इतनी बारीकियाँ नहीं पकड़ सकता है।



श्रवण शक्ति का पूरी तरह संबंध मानसिक एकाग्रता से है। जब ध्यान यदि कहीं गहरे चिंतन में डूबा हो या कोई मनोरंजक दृश्य देख रहा हो, तो ध्यान न होने पर हमें कोई पुकारे तो भी हमें कुछ भी सुनाई नहीं देता।



मनुष्य के कान केवल उन्हीं ध्वनि तरंगों को अनुभव कर सकते हैं जिनकी संख्या प्रति सैकिण्ड 20 से लेकर 20 सहस्र डेसिबल तक की होती है। इससे कम और अधिक संख्या वाले ध्वनि प्रवाह होते तो हैं, पर वे मनुष्य की कर्णेन्द्रिय द्वारा नहीं सुने जा सकते।



इस तथ्य को समझने पर उच्चारण का जितना महत्त्व है उससे ज्यादा मानसिक जप का महत्व समझ में आता है। सदैव उच्चारण आवश्यक नहीं। मानसिक शक्ति का प्रयोग करके ध्यान भूमिका में सूक्ष्म जिव्हा द्वारा मन ही मन जो जप किया जाता है, उसमें भी ध्वनि तरंगें भली प्रकार उठती रहती हैं। अपना प्रभाव दिखाती हैं।



अकेला गायत्री मंत्र ही सभी उपलब्धियाँ प्रदान करने में समर्थ है जो अन्य बहुत सी साधनाओं के करने से प्राप्त होती हैं। इस मंत्र की साधना को सफल बनाने में चार तथ्यों का समावेश है। 1-शब्द शक्ति 2-मानसिक एकाग्रता 3-चारित्रिक श्रेष्ठता और 4-अटूट श्रद्धा।



गायत्री मंत्र से कितने ही प्रकार के चमत्कार एवं वरदान उपलब्ध हो सकते हैं। यह सत्य है, पर उसके साथ यह तथ्य भी जुड़ा हुआ है। वह मंत्र उपरोक्त चार परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुआ होना चाहिए।



गायत्री मंत्र का प्रथम आधार है शब्द शक्ति। इस में अक्षरों का गुँथन एक ऐसे विशिष्ट क्रम से किया गया है जो शब्द शास्त्र के गूढ़ सिद्धान्तों पर आधारित है। यों अर्थ की दृष्टि से गायत्री मंत्र सरल है। उसमें परमात्मा से सद्बुद्धि की याचना की गई है। इस शिक्षा को भी समझना चाहिए, पर मंत्र की शक्ति मात्र इस शिक्षा में नहीं, उसकी शब्द रचना से भी जुड़ी हुई है। वाद्य यंत्रों का अमुक क्रम से बजाने पर ध्वनि प्रवाह निस्सृत होता है। कण्ठ को अमुक आरोह-अवरोहों के अनुरूप उतार चढ़ाव के स्वरों से युक्त करके जो ध्वनि प्रवाह बनता है उसे गायन कहते हैं। ठीक इसी प्रकार मुख से उच्चारित मंत्र को अमुक शब्द क्रम के अनुसार बार-बार लगातार संचालन करने से जो विशेष प्रकार का ध्वनि प्रवाह विनिर्मित होता है वही मंत्र की भौतिक क्षमता है। मुख से उच्चारित मंत्राक्षर सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करते हैं। उसमें सन्निहित तीन ग्रंथियों, षटचक्रों-षोडश मातृकाओं, चौबीस उपत्यिकाओं एवं चौरासी नाड़ियों को झंकृत करने में मंत्र का उच्चारण क्रम बहुत काम करता है। दिव्य शक्ति के प्रादुर्भूत होने में यह शब्दोच्चार भी एक बहुत बड़ा कारण एवं माध्यम है।



महर्षि पातंजलि के *सादृश्य और आन्तर्य* के सिद्धांत के अनुसार मंन्त्र जिस प्रकार का जपा जाता है वैसी ही सादृश्य ऊर्जा ब्रह्मांड से साधक की ओर आकर्षित होती है। यज्ञ में भी इसी सिद्धांत के अनुसार औषधियों की कारण शक्ति और ब्रह्माण्ड की सादृश्य एनर्जी को आकर्षित किया जाता है और लाभ उठाया जाता है। निश्चित संख्या में जप करना अनिवार्य होता है।



अत्यंत आधुनिक सरल शब्दों में ब्रह्मांड के गूगल से वही डेटा एनर्जी आपतक पहुंचेगा जो आप मंन्त्र द्वारा सर्च कमांड में भेजोगे।



उम्मीद करती हूं मंन्त्र जप से क्यों लाभ मिलता है यह आपको समझ आ गया होगा। और अधिक जानकारी के लिए युगऋषि का साहित्य पढ़िये।



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/9, 10:01 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान ( प्रश्न 51)* 🔥

*यज्ञ सम्बन्धी शंका समाधान*



शंका- अमुक ***** *सन्त और समाज सुधारक कहते हैं कि घी और मेवे यज्ञ में भष्म करने से अच्छा है उसे किसी गरीब को खिला दो कम से कम पेट तो भरेगा। इसके बारे में अपने विचार दें..*



उत्तर - आत्मीय भाई, सभी सन्त और सुधारक वैज्ञानिक भी हों यह जरूरी नहीं है। हर व्यक्ति की अपनी बुद्धि क्षमता है और उसने कितना क्या पढ़ा है और रिसर्च किया है इस बात के आधार पर उनकी बात मानने या न मानने का निर्णय स्वयं के विवेक से लेना चाहिए।



*उदाहरण*- जरूरी नहीं कि प्रसिद्ध कुशल डॉक्टर वक़ालत की समझ रखे और कुशल वक़ील बीमारी की समझ रखे। इसी तरह कुशल इंजीनियर फ़सल की इंजीनियरिंग में सही राय दे सके और किसान भवन निर्माण की इंजीनियरिंग बता सके। तो सबसे पहले किसी अमुक सन्त की बातों पर निर्णय लेने से पहले पता करिये कि इस सम्बंध में क्या उन्होंने कोई साहित्य रिसर्च परक लिखा है, यदि नहीं तो उनके कथन को इग्नोर कीजिये। क्योंकि सब सबकुछ नहीं कर सकते। किसी विशेष में ही कुशल हो सकते हैं।



आज विज्ञान और आधुनिक मशीनों की मदद से बहुत कुछ जांचा परख के समझा और निष्कर्ष निकाला जा सकता है।



कुछ प्रयोग आप स्वयं अपने घर पर करके देखें, मां लीजिये आपके परिवार में पांच सदस्य हैं। सभी सदस्यों का EEG, ब्लड रिपोर्ट और समस्त टेस्ट करवा लीजिये।



अब केवल 3 महीने तक घर के एक सदस्य को देशी घी, गुड़ और सूखे मेवे खिलाइए। पुनः रिजल्ट चेक कीजिये, तो आप पाएंगे कि एक व्यक्ति के खाने पर केवल उसे लाभ मिला। बाक़ी सबको कोई लाभ नहीं मिला।



अब दूसरा टेस्ट कीजिये। जो सामग्री एक व्यक्ति देशी घी, गुड़ और सूखे मेवे खा रहा था केवल उतना ही शान्तिकुंज हरिद्वार या गायत्री तपोभूमि मथुरा या आर्यसमाज से खरीदी हवन सामग्री में मिला लीजिए। आम की लकड़ी या सूखे गाय के गोबर के कंडे में या सूखे नारियल की गिरी को जलाकर 11 गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र से सपरिवार यज्ञ कीजिये। तीन महीने बाद पुनः हॉस्पिटल में जाकर अपने अपने अपने चेकअप करवा लीजिये। आप पाएंगे कि उतना ही देशी घी, सूखा मेवा और गुड़ से सभी की सेहत सुधर गयी, मनोबल और शरीर बल दोनों बढ़ा, घर के पास के वृक्षों में ग्रोथ बढ़ गयी, एयर इंडेक्स मीटर से चेक करने पर पाएंगे कि घर का प्रदूषण मिट गया, सबको नींद अच्छी आयी, सबके चेहरे पर चमक आ गयी, घर मे सकारात्मक वातावरण बना, सकारात्मकता आप आयन मीटर से चेक कर लीजिए, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन जीरो हो गया इसे भी आप इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन मीटर से चेक कर लीजिए।



कहते हैं प्रत्यक्ष को प्रमाण देने में प्रॉब्लम नहीं होती। स्वयं चेक कर लीजिए या देवसंस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार में आकर चेक कर लीजिए। वैज्ञानिक रिसर्च के साक्षी बनिये। युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की लिखी दो पुस्तक - *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान* और *यज्ञ एक समग्र उपचार* पढ़ लीजिये। यग्योपैथी से रोगों का इलाज़ भी होता है और पर्यावरण का शोधन भी। इसके लिए एक्सपर्ट और यग्योपैथी पीएचडी होल्डर - डॉक्टर ममता सक्सेना, डॉक्टर वंदना इत्यादि डॉक्टर की टीम से मिल भी लीजिये।



अमुक **** सन्त और सुधारक के पास आज का आधुनिक विज्ञान नहीं था इसलिए वो परीक्षण न कर सके, लेकिन हम और आप तो कर सकते हैं।😇😇😇😇



उम्मीद है, आपकी शंका का समाधान हो गया होगा कि कोई पदार्थ नष्ट नहीं होता केवल रूप बदलता है, वायुभूत विधवत वैज्ञानिक तरीके से किया जाय तो अनेकगुणा फलदायी होता है। खिलाओगे तो एक का पेट भरेगा और हवन करोगे तो कईयों को पोषण मिलेगा।



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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