Monday 20 May 2019

👧🏻👶🏻 *बाल सँस्कार शाला - कहानी - बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता*👶🏻👧🏻

👧🏻👶🏻 *बाल सँस्कार शाला - कहानी - बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता*👶🏻👧🏻

एक राजा युद्ध में हार गया, और मृत्यु हो गयी। रानी पुत्र को लेकर और साथियों को लेकर जंगल में चली गयी। बड़ी कठिनाई से जीवननिर्वहन हुआ, कई कई रात भूखे सोने की नौबत आ गयी। बच्चे बड़े हुए तो गुरु की तलाश की, पढ़ाया लिखाया और अस्त्र शस्त्र सिखाया। बड़े होकर उन्होंने पुनः राज्य पाया। घर संसार बसाया।

सबने बहुत दिनों तक दुःख भोगे थे अतः आनन्द और उल्लास की कमी न हो इसलिए स्वादिष्ट भोजन, खेल-कूद, नृत्य-नाटक, नट-नटी को बुलाकर तरह तरह के मनोरंजन की व्यवस्था की गई।

अब राजा सहित सभी मंत्री एवं सैनिकों के बच्चे हुए। जब वो सब तो चांदी की चम्मच मुंह मे लेकर पैदा हुए। कोई परेशानी न थी।

👶🏻👧🏻लेकिन एक नई समस्या पैदा हो गई, कि कोई बच्चा पढ़ता ही नहीं, सब मस्ती में व्यस्त रहते। गुरु पर गुरु बदले गए, गुरुकुल बदले गए कोई लाभ न हुआ।

🧚‍♀रानी माँ की सलाह से जंगल के उन्हीं गुरु जी को बुलाया गया जिन्होंने बुरे वक़्त में मदद की थी और वर्तमान राजा और उनके सैन्यदल और मंत्रियों को पढ़ाया था। उन्हें बताया कि बच्चे पढ़ते नहीं क्या करें?

👉🏼गुरु जी ने कहा, बच्चो से पहले माता-पिता की एक सप्ताह की क्लास होगी, उसके बाद बच्चो को पढाऊँगा। बेमन के सब माता-पिता क्लास में पढ़ने बैठे।

👉🏼 सबको एक कील दी गयी और बोला पहला टास्क इसे दीवार में प्रेम से घुसाओ। सब एक स्वर में बोले बिना हथौड़ी की चोट के अंदर नहीं प्रवेश करेगी। ठीक है हथौड़ा दिया गया लेकिन कहा गया एक हाथ माता का कील पकड़े और एक हाथ पिता का हथौड़ा चलाये। काम हो गया।

👉🏼फिंर दूसरे टास्क में एक ढलान सी दीवार पर ऊपर से आलू गिराने को बोला गया। बड़े आराम से लुढ़क के नीचे गिर गया। अब वही आलू को नीचे से ऊपर लकड़ी की सहायता से चढ़ाने को बोला गया। बड़ी मेहनत लगी ऊपर चढ़ाने में।

👉🏼तीसरे टास्क में माता-पिता को 15 मिनट खूब गरिष्ठ पेट भर के खाने के बाद ध्यान लगाने को बोला गया। बड़ी कठिनाई हुई, दूसरी बार हल्के आहार के बाद ध्यान लगाने को बोला गया। बड़ी आसानी हुई।

👉🏼चौथे टास्क में नृत्य नायक आयोजन देखने के बाद कुछ श्लोक याद करने को बोला गया, बड़ी कठिनाई हुई। दूसरी बार सुबह उठते ही स्नान-पूजन के बाद कुछ श्लोक याद करने को बोला गया। आसानी से याद हो गया।

👉🏼पाँचवे टास्क में खूब आलस्य पूर्वक सुलाया गया, फ़िर दूसरे दिन कुछ श्लोक याद करने को कहा गया, बड़ी कठिनाई हुई। दूसरे दिन सुबह उठाकर योग-व्यायाम करवाया गया फिंर श्लोक याद करने को दिये गए। बड़ी आसानी से याद हो गए।

*पाँचों टास्क के बाद उन सबसे पूँछा गया कि क्या सीख मिली:*-

1- बिना प्यार के सहारे के और साथ ही बिना प्रहार के  दीवार में कील नहीं घुस सकती। इसलिए बच्चों को पढ़ाने के लिए एक आंख से प्यार और दूसरी से फटकार का सहारा लेना पड़ेगा।

2- आलू को ऊपर चढ़ाने के लिए मेहनत लगी, और उसे नीचे गिराने में कोई मेहनत नहीं लगी। बच्चे के पास होने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी। फेल होने के लिए मेहनत की आवश्यकता नहीं है।

3- गरिष्ठ आहार के बाद आलस्य उपजता है, हल्का आहार आलस्य उतपन्न नहीं करता। बच्चों के लिए स्वास्थ्यकर हल्के आहार की व्यवस्था करें।

4- पढ़ाई के पूर्व मनोरंजन करने से ध्यान भटकता है। अतः पढ़ने से पूर्व पूजन एवं ध्यान करने से पढ़ाई में मन लगता है।

5- सुबह जल्दी उठने और योग-व्यायाम से मन मे उत्साह जगता है और पढ़ने में मन लगता है।

👉🏼 गुरुजी ने कहा, बिल्कुल ठीक समझा। बेटा तुम लोगों ने कष्ट सहे और पुनः राजगद्दी पर आसीन हुए। तुम लोगों की मानसिकता यह है कि जो कठिनाई हमने सही वो बच्चो को नहीं सहने देंगे। अत्यधिक मनोरंजन के साधनों से बच्चो को भर दिया।

👉🏼अब परिणामस्वरूप तुम्हारे बच्चे पढ़ नहीं रहे, भोग-विलास-मनोरंजन में डूबे हैं। ये स्वयं को नहीं बन पाएंगे, तुम सब के बूढ़े होते ही पुनः राज्य छीन जाएगा, क्योंकि तुम अमर नहीं हो, पूरी उम्र इनके साथ नहीं रह सकते और यह युवावस्था में दुःख पाएंगे। तुम्हारा अत्यधिक लाड़ प्यार इन्हें बर्बाद कर रहा है। इनका यौवन और वृद्धावस्था बर्बाद हो जाएगी, यह जीवन जी ही नहीं पाएंगे।

👉🏼अतः मनोरंजन और भोग-विलास भोजन में नमक जितना जरूरी है, उतना ही उपलब्ध करवाओ। इन्हें थोड़ी कठिनाई दो, थोड़ा डांट-फटकार दो, जिससे यह सचेत हो जाएं। तुम सब भी भोग विलास में मत डूबो और आत्म उद्धार में लगो। जब तक राज्य नहीं मिला तुमने रोज गायत्री साधना करके स्वयं को सक्षम बनाया। राज्य मिलते ही भोग-विलास-आनन्द में डूब गए। बच्चे तो कठिनाई के वक्त तुम्हे देखे नहीं और वो तो तुम्हारे वर्तमान का अनुसरण कर रहे हैं। बच्चो को बनाना है तो भोग-विलास-मनोरंजन कम करना पड़ेगा।

👉🏼तुम माली की तरह बच्चे पालो, नित्य प्यार का पानी दो लेकिन इतना भी मत दो कि पेड़ ही गल कर नष्ट हो जाये। थोड़ा बाहर का आंधी तूफान भी झेलने दो ताकि यह मजबूत बने।

*सब माता-पिता को भूल समझ आ गयी, अनावश्यक भोग-विलास-मनोरंजन बन्द कर दिया। कभी प्यार से कभी फटकार का सहारा लिया। रोज बच्चो के साथ स्वयं भी योग-प्राणायाम-ध्यान-गायत्री जप और स्वाध्याय किया और उन्हें भी प्रेरित कर अनुशासन में बांध दिया। थोड़ी बहुत कठिनाई का उन्हें सामना करवाया और बच्चे पढ़ने लगे।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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