Tuesday, 7 May 2019

कविता - *मैं पिता हूँ*

कविता - *मैं पिता हूँ*

मैं माँ नहीं एक पिता हूँ,
लेकिन माँ की तरह ही,
तुमसे उतना ही जुड़ा हूँ,
जब माँ के पेट रूपी गर्भ में,
तुम पल रहे थे,
मेरे मष्तिष्क रूपी गर्भ में भी,
तुम ही पल रहे थे।

जब माँ तुम्हारी प्रसव पीड़ा में,
कराह रही थी,
मेरे मन मे भी उतनी ही,
पीड़ा का अहसास जगा रही थी,
उस दर्द में मैं भी भागीदार था,
हर पल हर क्षण मैं साथ था।

जब तुम माँ का दूध पी रहे थे,
वो तुम्हारी माँ के रक्त,
और मेरे प्यार से बना था,
तब तुम दोनों की खुशियों के लिए,
मैं दिन रात एक कर रहा था।

मैं खुद के लिए जीना,
उस दिन ही भूल गया था,
जब मां के गर्भ में,
तुम्हारा आगमन हुआ था।

तुम्हारी माँ ने,
मुझ पर बड़ा उपकार किया था,
जिस दिन उसने मुझे,
पिता होने का सम्मान दिया था,
मेरा प्यारा परिवार पूर्ण हो गया था,
जब तुम्हारी किलकारियों से,
हमारा घर गूँज गया था।

हम दोनों ने साथ मिलकर,
तुम्हें बड़ा करने की कोशिश की है,
कुम्हार की तरह,
भूमिका अदा की है,
माँ ने भीतर से भावनात्मक सहारा दिया,
मैंने कभी कभी कठोर बनकर,
तुम्हें सुधार दिया,
तुम्हें तुम्हारी भलाई के लिए,
कभी कभी डाँट और डपट भी दिया।

तुम्हारी माँ की तरह,
मैं हमेशा,
निज हृदय के भाव,
तुम्हारे समक्ष व्यक्त कर न सका,
चाहकर भी माँ की तरह,
तुम्हें माँ सा प्यार दे न सका।

पिता हूँ वृक्ष की तरह खड़ा हूँ,
इसलिए थोड़ा दिखता अकड़ा हूँ,
तुम पर कड़ी धूप न आये,
इसलिए हर वो प्रयत्न कर रहा हूँ,
तुम्हारी अच्छी परवरिश के लिये,
और सुनहरे भविष्य के लिए,
हर रोज़ मेहनत कर रहा हूँ,
जमाने से तुम्हारे लिए लड़ रहा हूँ,
आंधी तूफ़ान का सामना कर रहा हूँ,
तुम्हें और तुम्हारी माँ को,
सुरक्षित महसूस करवा रहा हूँ।

मैं माँ नहीं एक पिता हूँ,
लेकिन माँ की तरह ही,
तुमसे उतना ही जुड़ा हूँ।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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