*क्रोध विषयक शंका समाधान (प्रश्न एक से तीन)*
प्रश्न 1- *परशुराम और दुर्वासा ऋषि को क्रोध क्यों आता था, जबकि दोनों भगवान के अंशावतार और उच्च कोटि के साधक थे?*
उत्तर - आत्मीय बहन, सैनिक भी वध करता है और डाकू भी, लेक़िन दोनों के उद्देश्य भिन्न है। एक राष्ट्र रक्षा में वध करता है और दूसरा स्वार्थपूर्ति में... सैनिक वीरता के लिए पुरस्कृत होता है और डाकू दंडित होता है।
परशुराम जी विष्णु जी का अंशावतार थे तो दुर्बासा ऋषि भगवान भोलेनाथ का अंशावतार थे। एक ने धर्म स्थापना के लिए परशु उठाया और दूसरे ने धर्म स्थापना के लिए क्रोधाग्नि को साधा। कभी भी इनका प्रयोग स्वार्थसिद्धि या निरपराध पर नहीं किया। अतः दोनों के क्रोध और दोनों के धर्म रक्षार्थ प्रयत्न सराहनीय हैं। यह क्रोध वरदान है।
प्रश्न- 2 *मैं जब किसी गलत बात पर क्रोध करती हूँ, तो मेरे पति कहते हैं कि कैसी गायत्री साधक हो? खुद पर नियंत्रण नहीं और क्रोध करती हो?*
उत्तर - बहन भैया से कहिये, गृहस्थ धर्म पालन की मर्यादा है। माता को साधक और पालक दोनों का धर्म निभाना है। एक आंख प्यार और दूसरी फटकार की रखनी पड़ती है। गृहस्थ धर्म पालन में अनीति का प्रतिकार करना होता है, अहिंसक होते हुए भी घर के मक्खी-मच्छर-कॉकरोच तो मारना ही पड़ता है।
युगऋषि कहते हैं, जिस साधक को धर्म और युगधर्म क्लियर है, वही अध्यात्म पथ पर न्याय कर सकेगा।
धर्म मे क्रोध नहीं करना चाहिए, विपरीत परिस्थिति और लोककल्याण के लिए उचित क्रोध युगधर्म है। गायत्री साधक युगधर्म का पालन करता है।
यदि मैं मेरे स्वार्थपूर्ति और केवल और केवल अहं प्रदर्शित करने के लिए क्रोध करती हूँ तो यह अनुचित है।
आन्याय करना जितना बड़ा गुनाह है, उससे अधिक गुनाह अन्याय सहना है। दुराचार अट्हास तब करता है जब सदाचार मौन रहता है।
प्रश्न 3- *क्या गायत्री साधक माता पिता यक अध्यापक को बच्चों को क्रोध करके डाँटना फटकारना चाहिए?*
उत्तर - चिकित्सक के चाकू के उपयोग और डाकू के चाकू के उपयोग में भिन्नता उनके उद्देश्य के कारण है।चिकित्सक को बड़ी सूझबूझ से कट करके उपचार करना होता है। अतः केवल चयनित जगह और निर्धारित कट ही सावधानी पूर्वक करता है। कुशलता और नियंत्रण की जरूरत है। डाकू तो कहीं भी धूम धड़ाम चाकू चलाता है, कुशलता और नियंत्रण की जरूरत नहीं। क्योंकि जान लेना है।
गायत्री साधक माता-पिता या शिक्षक को बच्चों पर क्रोध की चाकू का स्तेमाल कुशल चिकित्सक की सावधानी और पूर्ण स्व नियंत्रण के साथ करना चाहिए। यदि स्वयं पर नियंत्रण नहीं तो क्रोध न करें।
लोहे की कील से अनुनय विनय करने पर वह दीवार में प्रवेश नहीं करेगी, हथौड़ी की चोट चाहिए। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि प्रहार इतनी अनियंत्रित ढंग से हो कि दीवार ही टूट जाए। बच्चों को पढ़ने के लिए और उनमें सँस्कार गढ़ने के लिए डांट फटकार और क्रोध का सहारा लीजिये लेकिन वह नियंत्रित होना चाहिए। एक हाथ प्यार से सम्हाले और सहारा दे और दूसरा हाथ फटकारे।
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एक बार नारद जी ने सर्प को अहिंसा का उपदेश दिया। सर्प ने काटना, लोगों को डराना और फुफकारना छोड़ दिया। कुछ दिन बाद नारद शिष्य सर्प का हाल चाल लेने पहुंचे तो देखा लड़के उसे पत्थर मारकर उसे लहूलुहान कर रहे हैं। नारद ने उन्हें भगाया और सर्प को बचाया। शिष्य सर्प को समझाया मैंने अहिंसा का पालन करने को कहा था कि स्वार्थ सिद्धि और अहं प्रदर्शित करने के लिए काटो नहीं। लेकिन युगधर्म पालन और स्वरक्षा के लिए फुफकारने को मना नहीं किया था। स्वयं की रक्षा करो।
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ईश्वर ने संसार मे कोई भी वस्तु या भाव गलत नहीं बनाया है। चाकू और क्रोध स्वयं में न अच्छा है और न बुरा। इनका उपयोगकर्ता किस उद्देश्य से इनका प्रयोग कर रहा है, इस पर इसकी अच्छाई या बुराई निर्भर करेगी।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
प्रश्न 1- *परशुराम और दुर्वासा ऋषि को क्रोध क्यों आता था, जबकि दोनों भगवान के अंशावतार और उच्च कोटि के साधक थे?*
उत्तर - आत्मीय बहन, सैनिक भी वध करता है और डाकू भी, लेक़िन दोनों के उद्देश्य भिन्न है। एक राष्ट्र रक्षा में वध करता है और दूसरा स्वार्थपूर्ति में... सैनिक वीरता के लिए पुरस्कृत होता है और डाकू दंडित होता है।
परशुराम जी विष्णु जी का अंशावतार थे तो दुर्बासा ऋषि भगवान भोलेनाथ का अंशावतार थे। एक ने धर्म स्थापना के लिए परशु उठाया और दूसरे ने धर्म स्थापना के लिए क्रोधाग्नि को साधा। कभी भी इनका प्रयोग स्वार्थसिद्धि या निरपराध पर नहीं किया। अतः दोनों के क्रोध और दोनों के धर्म रक्षार्थ प्रयत्न सराहनीय हैं। यह क्रोध वरदान है।
प्रश्न- 2 *मैं जब किसी गलत बात पर क्रोध करती हूँ, तो मेरे पति कहते हैं कि कैसी गायत्री साधक हो? खुद पर नियंत्रण नहीं और क्रोध करती हो?*
उत्तर - बहन भैया से कहिये, गृहस्थ धर्म पालन की मर्यादा है। माता को साधक और पालक दोनों का धर्म निभाना है। एक आंख प्यार और दूसरी फटकार की रखनी पड़ती है। गृहस्थ धर्म पालन में अनीति का प्रतिकार करना होता है, अहिंसक होते हुए भी घर के मक्खी-मच्छर-कॉकरोच तो मारना ही पड़ता है।
युगऋषि कहते हैं, जिस साधक को धर्म और युगधर्म क्लियर है, वही अध्यात्म पथ पर न्याय कर सकेगा।
धर्म मे क्रोध नहीं करना चाहिए, विपरीत परिस्थिति और लोककल्याण के लिए उचित क्रोध युगधर्म है। गायत्री साधक युगधर्म का पालन करता है।
यदि मैं मेरे स्वार्थपूर्ति और केवल और केवल अहं प्रदर्शित करने के लिए क्रोध करती हूँ तो यह अनुचित है।
आन्याय करना जितना बड़ा गुनाह है, उससे अधिक गुनाह अन्याय सहना है। दुराचार अट्हास तब करता है जब सदाचार मौन रहता है।
प्रश्न 3- *क्या गायत्री साधक माता पिता यक अध्यापक को बच्चों को क्रोध करके डाँटना फटकारना चाहिए?*
उत्तर - चिकित्सक के चाकू के उपयोग और डाकू के चाकू के उपयोग में भिन्नता उनके उद्देश्य के कारण है।चिकित्सक को बड़ी सूझबूझ से कट करके उपचार करना होता है। अतः केवल चयनित जगह और निर्धारित कट ही सावधानी पूर्वक करता है। कुशलता और नियंत्रण की जरूरत है। डाकू तो कहीं भी धूम धड़ाम चाकू चलाता है, कुशलता और नियंत्रण की जरूरत नहीं। क्योंकि जान लेना है।
गायत्री साधक माता-पिता या शिक्षक को बच्चों पर क्रोध की चाकू का स्तेमाल कुशल चिकित्सक की सावधानी और पूर्ण स्व नियंत्रण के साथ करना चाहिए। यदि स्वयं पर नियंत्रण नहीं तो क्रोध न करें।
लोहे की कील से अनुनय विनय करने पर वह दीवार में प्रवेश नहीं करेगी, हथौड़ी की चोट चाहिए। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि प्रहार इतनी अनियंत्रित ढंग से हो कि दीवार ही टूट जाए। बच्चों को पढ़ने के लिए और उनमें सँस्कार गढ़ने के लिए डांट फटकार और क्रोध का सहारा लीजिये लेकिन वह नियंत्रित होना चाहिए। एक हाथ प्यार से सम्हाले और सहारा दे और दूसरा हाथ फटकारे।
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एक बार नारद जी ने सर्प को अहिंसा का उपदेश दिया। सर्प ने काटना, लोगों को डराना और फुफकारना छोड़ दिया। कुछ दिन बाद नारद शिष्य सर्प का हाल चाल लेने पहुंचे तो देखा लड़के उसे पत्थर मारकर उसे लहूलुहान कर रहे हैं। नारद ने उन्हें भगाया और सर्प को बचाया। शिष्य सर्प को समझाया मैंने अहिंसा का पालन करने को कहा था कि स्वार्थ सिद्धि और अहं प्रदर्शित करने के लिए काटो नहीं। लेकिन युगधर्म पालन और स्वरक्षा के लिए फुफकारने को मना नहीं किया था। स्वयं की रक्षा करो।
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ईश्वर ने संसार मे कोई भी वस्तु या भाव गलत नहीं बनाया है। चाकू और क्रोध स्वयं में न अच्छा है और न बुरा। इनका उपयोगकर्ता किस उद्देश्य से इनका प्रयोग कर रहा है, इस पर इसकी अच्छाई या बुराई निर्भर करेगी।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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