प्रश्न - *चन्द्र या सूर्य ग्रहण के दौरान गर्भवती बहनों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए और क्यों? पका हुआ भोजन ग्रहण के दौरान क्यों नहीं खाते? इसके पीछे का आध्यात्मिक वैज्ञानिक कारण बतायें।*
उत्तर- श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भोजन पकने के तीन पहर के अंदर भोजन कर लेना चाहिए। एक प्रहर(तीन घण्टे) तक भोजन में प्राण रहता है। दूसरे प्रहर(चौथे घण्टे) से भोजन प्राणहीन होने लगता है। पाँचवे घण्टे के बाद वह प्राणहीन हो जाता है। ऐसे तामसिक प्राणहीन भोजन खाने से चर्बी तो बनती है, लेकिन प्राणऊर्जा (तेजस,ओजस,वर्चस) में भोजन नहीं बदलता।
स्वयं जांचने के लिए तीन दिन रोज भोजन पकने के तीन घण्टे के अंदर भोजन करें। और तीन दिन वही आइटम के भोजन पकने के पाँच घण्टे बाद खाएँ। स्वयं पाएंगे कि तीन घण्टे के भीतर जब खाया तो उन तीन दिनों में दिमाग़ और शरीर ऊर्जावान अधिक रहा। जबकि पांच घण्टे बाद खाने पर आलस्य और प्रमाद के साथ सुस्ती छाई।
सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण में एक घण्टे में एक महीने के बराबर सूक्ष्म जगत में बीत जाता है। अतः जो भोजन चन्द्र या सूर्य ग्रहण से पहले पकाया था वो वस्तुतः एक महीने पुराना भोजन हो गया। अतः वह प्राणहीन भोजन नकारात्मक ऊर्जा से भर गया। अतः नहीं खाना चाहिए।
यदि मान लो बालक, वृद्ध और रोगी को भूख लगे तो वो क्या खाएं, शास्त्र कहते है ऐसे भोजन जो एक महीने पुराने हों तो भी खा सकते हों वो खाएं अर्थात फ़ल। फल यदि अग्नि में उबाला/या पकाया गया तो वो भी तीन घण्टे में प्राणहीन होने लगेगा। अतः फल कच्चा ही खाएं। पानी मे तुलसी की पत्तियां डालकर पियें। तुलसी की पत्ती नकारात्मक ऊर्जा का शमन करती है। जल मिट्टी के बर्तन से पिये या प्लास्टिक की बोतल से पी ले।
*माना जाता है कि किसी भी ग्रहण असर सबसे ज्यादा गर्भवती महिलाओं पर होता है।*
इसका कारण है कि ग्रहण के वक्त वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा काफी ज्यादा रहती है। ज्योतिषाचार्यों द्वारा ग्रहण काल के दौरान गर्भवती स्त्रियों को घर से बाहर खुले आसमान के नीचे नहीं निकलने की सलाह दी जाती है। घर मे बैठकर मौन मानसिक जप एवं ध्यान करना चाहिए।
बाहर निकलना जरूरी हो तो गर्भ पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर नहीं होगा। पेट मे गाय का गोबर भी रेडिएशन व नकारात्मक ऊर्जा रोकता है।
गर्भवती महिलाएं ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ सकता है। इस दौरान सुई धागे का प्रयोग भी वर्जित है। धातु नकारात्मक ऊर्जा के लिए सुचालक का कार्य करता है। अतः आप ज्यों ही कोई धातु हाथ मे लेंगे वो नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करके आपके मानवीय विद्युत ऊर्जा में प्रवेश करा देगी। नकारात्मक ऊर्जा को यदि गर्भ में पल रहा बालक न सह पाया तो अपाहिज भी हो सकता है। या मानसिक रूप से डिस्टर्ब हो सकता है।
ग्रहण काल के दौरान भगवान का नाम लेने के अलावा कोई दूसरा काम न करें। जितना जप व ध्यान करेंगे वो कई गुना फल देगा। यदि एक बार मंन्त्र जपोगे तो सूक्ष्म में वो 1 मंन्त्र 30 गुना जप का फल देगा। एक घण्टे का ध्यान 30 घण्टे के ध्यान का फल देगा।
वैसे 9 दिन लग जाते हैं अनुष्ठान में, सूतक के दिन 3 घण्टे मौन मानसिक जप एक अनुष्ठान के समान फलदायी है।
ग्रहण के सूतक काल के दौरान न मन्दिर जाएं, न ही घर के देवी देवता का स्पर्श करें। न हीं यज्ञ इत्यादि स्थूल पूजन करें। सूतक समाप्ति पर स्वयं नहाएं, देव प्रतिमा नहलाएं, घर मे गंगा जल या तुलसी मिलाकर जल छिड़के। फिंर यज्ञ इत्यादि करें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भोजन पकने के तीन पहर के अंदर भोजन कर लेना चाहिए। एक प्रहर(तीन घण्टे) तक भोजन में प्राण रहता है। दूसरे प्रहर(चौथे घण्टे) से भोजन प्राणहीन होने लगता है। पाँचवे घण्टे के बाद वह प्राणहीन हो जाता है। ऐसे तामसिक प्राणहीन भोजन खाने से चर्बी तो बनती है, लेकिन प्राणऊर्जा (तेजस,ओजस,वर्चस) में भोजन नहीं बदलता।
स्वयं जांचने के लिए तीन दिन रोज भोजन पकने के तीन घण्टे के अंदर भोजन करें। और तीन दिन वही आइटम के भोजन पकने के पाँच घण्टे बाद खाएँ। स्वयं पाएंगे कि तीन घण्टे के भीतर जब खाया तो उन तीन दिनों में दिमाग़ और शरीर ऊर्जावान अधिक रहा। जबकि पांच घण्टे बाद खाने पर आलस्य और प्रमाद के साथ सुस्ती छाई।
सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण में एक घण्टे में एक महीने के बराबर सूक्ष्म जगत में बीत जाता है। अतः जो भोजन चन्द्र या सूर्य ग्रहण से पहले पकाया था वो वस्तुतः एक महीने पुराना भोजन हो गया। अतः वह प्राणहीन भोजन नकारात्मक ऊर्जा से भर गया। अतः नहीं खाना चाहिए।
यदि मान लो बालक, वृद्ध और रोगी को भूख लगे तो वो क्या खाएं, शास्त्र कहते है ऐसे भोजन जो एक महीने पुराने हों तो भी खा सकते हों वो खाएं अर्थात फ़ल। फल यदि अग्नि में उबाला/या पकाया गया तो वो भी तीन घण्टे में प्राणहीन होने लगेगा। अतः फल कच्चा ही खाएं। पानी मे तुलसी की पत्तियां डालकर पियें। तुलसी की पत्ती नकारात्मक ऊर्जा का शमन करती है। जल मिट्टी के बर्तन से पिये या प्लास्टिक की बोतल से पी ले।
*माना जाता है कि किसी भी ग्रहण असर सबसे ज्यादा गर्भवती महिलाओं पर होता है।*
इसका कारण है कि ग्रहण के वक्त वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा काफी ज्यादा रहती है। ज्योतिषाचार्यों द्वारा ग्रहण काल के दौरान गर्भवती स्त्रियों को घर से बाहर खुले आसमान के नीचे नहीं निकलने की सलाह दी जाती है। घर मे बैठकर मौन मानसिक जप एवं ध्यान करना चाहिए।
बाहर निकलना जरूरी हो तो गर्भ पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर नहीं होगा। पेट मे गाय का गोबर भी रेडिएशन व नकारात्मक ऊर्जा रोकता है।
गर्भवती महिलाएं ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ सकता है। इस दौरान सुई धागे का प्रयोग भी वर्जित है। धातु नकारात्मक ऊर्जा के लिए सुचालक का कार्य करता है। अतः आप ज्यों ही कोई धातु हाथ मे लेंगे वो नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करके आपके मानवीय विद्युत ऊर्जा में प्रवेश करा देगी। नकारात्मक ऊर्जा को यदि गर्भ में पल रहा बालक न सह पाया तो अपाहिज भी हो सकता है। या मानसिक रूप से डिस्टर्ब हो सकता है।
ग्रहण काल के दौरान भगवान का नाम लेने के अलावा कोई दूसरा काम न करें। जितना जप व ध्यान करेंगे वो कई गुना फल देगा। यदि एक बार मंन्त्र जपोगे तो सूक्ष्म में वो 1 मंन्त्र 30 गुना जप का फल देगा। एक घण्टे का ध्यान 30 घण्टे के ध्यान का फल देगा।
वैसे 9 दिन लग जाते हैं अनुष्ठान में, सूतक के दिन 3 घण्टे मौन मानसिक जप एक अनुष्ठान के समान फलदायी है।
ग्रहण के सूतक काल के दौरान न मन्दिर जाएं, न ही घर के देवी देवता का स्पर्श करें। न हीं यज्ञ इत्यादि स्थूल पूजन करें। सूतक समाप्ति पर स्वयं नहाएं, देव प्रतिमा नहलाएं, घर मे गंगा जल या तुलसी मिलाकर जल छिड़के। फिंर यज्ञ इत्यादि करें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment