प्रश्न - *मेरी नीचे लिखी एक समस्या है कृपया इसका समाधान करें :-*
*मैं कभी-कभी आत्म विश्वास से परिपूर्ण अपने आप को सत्य के निकट पाता हूँ तो देखता हूं कि मेरा जीवन झूठ छ्ल फरेब व्यभिचार भ्रष्टाचार लालच आदी न जाने कितने अवगुणो से भरा पड़ा है जिनको ना लिख सकता हूँ ना ही सुना सकता हूं । सबसे बड़ी विडम्बना तो ये है कि मेरा आत्म सम्मान,इज्ज़त इतना है की मेरे सामने भगवान भी छोटे हैं ।कोई सुई की नोक जितनी बात मेरी इच्छा के विरुद्ध कुछ कह दे तो मेरे अन्दर बाहर आग लग जाती है। बस ये है मेरा सब से बड़ा कष्ट ।*
उत्तर - आत्मीय भाई, आपका प्रश्न यह बताता है कि जन्मजात मिली सम्पत्ति और कुसंस्कारी साथियों की गलत संगति में आपका नैतिक पतन हो गया।
लेकिन राजा जनक की तरह आपकी आत्मा कोई पूर्वजन्म की श्रेष्ठ आत्मा है जो इस कीचड़ से ऊपर आने के लिए व्याकुल है।
वर्तमान स्टेट्स व पद के साथ अय्याशी भरा वर्तमान जीवन आपकी आत्मा को रास नहीं आ रहा है, आपकी आत्मा आपको कचोट रही है। आपकी आत्मा सांसारिक भोग-विलास से संतुष्ट नहीं हो सकती। जिस प्रकार शरीर व मन की जरूरतों में अंतर है, वैसे ही मन एवं आत्मा की जरूरतों में अंतर है। इसके कारण बाहर से आप जितने सांसारिक रूप से सुखी दिख रहे हो अंदर से उतने ही अशांत, व्याकुल एवं व्यग्र हैं। क्रोध व तन मन में आग अंतर्जगत की अशांति को दर्शाते हैं।
अजामिल, अंगुलिमाल, रत्नाकर, विश्वरथ(विश्वामित्र) सबके सब आत्मबोध होने के बाद एक ही जन्म में निकृष्ट से महान बन गए। यह आत्मबोध पाने की प्यास दिन ब दिन आपकी बढ़ रही है। आत्मबोध एवं आत्मशांति के लिए निम्नलिखित प्रयास करें:-
आपको वर्तमान व्यस्तता से 10 दिन की छुट्टी लेकर अपना वक़्त किसी जागृत तीर्थ में व्यतीत करना होगा। ऐसा ही एक दिव्य जागृत तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार है, जिसके संस्थापक परमपूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी हैं। यहां 24 लाख गायत्री मंन्त्र जप नित्य होते हैं। जैसे ही आप आश्रम में पहुंचे अपनी चप्पल व जूते निकाल दें। पैदल 9 दिन वहां की मिट्टी में चलें, 9 दिन आश्रम के बने अत्यंत साधारण बिना लहसन प्याज का भोजन करें। कुछ भी बाहर का न खाएं। यहां अपने सांसारिक जीवन को भूलकर 9 दिन शिष्यभाव से बिताएं। आने से पूर्व 9 दिन की साधना शिविर का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन करके आएं:-
http://www.awgp.org/social_initiative/shivir
इस दिव्य ऊर्जा क्षेत्र में 9 दिवसीय जीवन संजीवनी साधना करके आपकी आत्मा 9 दिन में बलवती हो जाएगी। आपको क्लियर हो जाएगा कि कैसे धन, संपदा, पद, प्रतिष्ठा एवं ऐश्वर्य के बीच रहते हुए भी अपने आत्मकल्याण के लिए कैसे प्रयास करना है।
कुछ पुस्तक ऑनलाईन निम्नलिखित साइट से मंगवा लें, जो आपका पथ प्रदर्शन करेंगी:-
URL - https://www.awgpstore.com
1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- मैं क्या हूँ?
3- जीवन जीने की कला
4- मानसिक संतुलन
5- हारिये न हिम्मत
मेरा एक विनम्र अनुरोध है कि आप हमारे गुरुभाई बन जाइए, एवं शीघ्रातिशीघ्र गुरुदीक्षा लेकर स्वयं में देवत्व जगाकर, आत्मशांति व आत्मतृप्ति हेतु प्रयास कीजिये। आत्मकल्याण के साथ साथ कृपया मातृभूमि के कल्याण में जुट जाइये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
*मैं कभी-कभी आत्म विश्वास से परिपूर्ण अपने आप को सत्य के निकट पाता हूँ तो देखता हूं कि मेरा जीवन झूठ छ्ल फरेब व्यभिचार भ्रष्टाचार लालच आदी न जाने कितने अवगुणो से भरा पड़ा है जिनको ना लिख सकता हूँ ना ही सुना सकता हूं । सबसे बड़ी विडम्बना तो ये है कि मेरा आत्म सम्मान,इज्ज़त इतना है की मेरे सामने भगवान भी छोटे हैं ।कोई सुई की नोक जितनी बात मेरी इच्छा के विरुद्ध कुछ कह दे तो मेरे अन्दर बाहर आग लग जाती है। बस ये है मेरा सब से बड़ा कष्ट ।*
उत्तर - आत्मीय भाई, आपका प्रश्न यह बताता है कि जन्मजात मिली सम्पत्ति और कुसंस्कारी साथियों की गलत संगति में आपका नैतिक पतन हो गया।
लेकिन राजा जनक की तरह आपकी आत्मा कोई पूर्वजन्म की श्रेष्ठ आत्मा है जो इस कीचड़ से ऊपर आने के लिए व्याकुल है।
वर्तमान स्टेट्स व पद के साथ अय्याशी भरा वर्तमान जीवन आपकी आत्मा को रास नहीं आ रहा है, आपकी आत्मा आपको कचोट रही है। आपकी आत्मा सांसारिक भोग-विलास से संतुष्ट नहीं हो सकती। जिस प्रकार शरीर व मन की जरूरतों में अंतर है, वैसे ही मन एवं आत्मा की जरूरतों में अंतर है। इसके कारण बाहर से आप जितने सांसारिक रूप से सुखी दिख रहे हो अंदर से उतने ही अशांत, व्याकुल एवं व्यग्र हैं। क्रोध व तन मन में आग अंतर्जगत की अशांति को दर्शाते हैं।
अजामिल, अंगुलिमाल, रत्नाकर, विश्वरथ(विश्वामित्र) सबके सब आत्मबोध होने के बाद एक ही जन्म में निकृष्ट से महान बन गए। यह आत्मबोध पाने की प्यास दिन ब दिन आपकी बढ़ रही है। आत्मबोध एवं आत्मशांति के लिए निम्नलिखित प्रयास करें:-
आपको वर्तमान व्यस्तता से 10 दिन की छुट्टी लेकर अपना वक़्त किसी जागृत तीर्थ में व्यतीत करना होगा। ऐसा ही एक दिव्य जागृत तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार है, जिसके संस्थापक परमपूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी हैं। यहां 24 लाख गायत्री मंन्त्र जप नित्य होते हैं। जैसे ही आप आश्रम में पहुंचे अपनी चप्पल व जूते निकाल दें। पैदल 9 दिन वहां की मिट्टी में चलें, 9 दिन आश्रम के बने अत्यंत साधारण बिना लहसन प्याज का भोजन करें। कुछ भी बाहर का न खाएं। यहां अपने सांसारिक जीवन को भूलकर 9 दिन शिष्यभाव से बिताएं। आने से पूर्व 9 दिन की साधना शिविर का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन करके आएं:-
http://www.awgp.org/social_initiative/shivir
इस दिव्य ऊर्जा क्षेत्र में 9 दिवसीय जीवन संजीवनी साधना करके आपकी आत्मा 9 दिन में बलवती हो जाएगी। आपको क्लियर हो जाएगा कि कैसे धन, संपदा, पद, प्रतिष्ठा एवं ऐश्वर्य के बीच रहते हुए भी अपने आत्मकल्याण के लिए कैसे प्रयास करना है।
कुछ पुस्तक ऑनलाईन निम्नलिखित साइट से मंगवा लें, जो आपका पथ प्रदर्शन करेंगी:-
URL - https://www.awgpstore.com
1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- मैं क्या हूँ?
3- जीवन जीने की कला
4- मानसिक संतुलन
5- हारिये न हिम्मत
मेरा एक विनम्र अनुरोध है कि आप हमारे गुरुभाई बन जाइए, एवं शीघ्रातिशीघ्र गुरुदीक्षा लेकर स्वयं में देवत्व जगाकर, आत्मशांति व आत्मतृप्ति हेतु प्रयास कीजिये। आत्मकल्याण के साथ साथ कृपया मातृभूमि के कल्याण में जुट जाइये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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