प्रश्न - *दी, हमारे क्षेत्र में परिजनों के मन मुटाव के चलते दो ग्रुप बन गए हैं? मतभेद अब मनभेद में बदल गया है। अहंकार और क्रोध ने बुद्धि का हरण कर लिया है कि जिस प्रोग्राम में गुरुदेव के प्राणदीक्षा लिए केंद्र प्रतिनिधि आते हैं, लोग उस प्रोग्राम का भी बहिष्कार कर देते हैं। क्या करें..*
उत्तर - आत्मीय भाई, आपका प्रश्न गुरुदेव की पीड़ा को व्यक्त कर रहा है।
जो लोग गुरुदेव की सोच व गुरु की शक्ति से जुड़े हैं, स्वयं को गुरु के निमित्त मानकर मिशन का कार्य करेंगे वो ऐसी मूर्खता नहीं करेंगे। लेकिन जो व्यक्ति से जुड़े हैं और स्वयं को कर्ता मानकर कार्य कर रहे हैं, उनसे यह मूर्खता जरूर होगी।
*सभी को स्वयं से कुछ निम्नलिखित प्रश्न करना चाहिए*:-
1- क्या आप स्वयं को और सबको गुरु के हाथों की पतंग और गुरु को डोर सम्हालने वाला मानते हैं? यदि हाँ, तो गुरु जिसको जहां जैसे उड़ा रहा है ऊंचा या नीचा तो इसमें ईर्ष्या व अहंकार की भावना क्यों आ रही है? जब हम स्वयं नहीं उड़ रहे गुरु उड़ा रहा है तो फिर मन भेद क्यों?
2- गुरु दीक्षा में अपनी इच्छा दान दी थी, तो फ़िर स्वयं की इच्छापूर्ति की चाहत क्यों? मान-सम्मान-प्रतिष्ठा की चाहत क्या गुरु सेवा से बड़ी है?
3- मिशन में किसी ने मूर्खता व अहंकार वश आप का अपमान किया या किसी ने श्रद्धा व भक्ति से सम्मान किया तो दोनों ही आपके हैं क्या? जब आप गुरु के निमित्त हो तो मान भी गुरु का और अपमान भी गुरु का ही हुआ न... तो प्रसंशा में फूलों मत और अनुसन्सा में टूटो मत..
4- गुरुदेव ने कहा था, मेरे जाने के बाद शान्तिकुंज ही मेरा शरीर है। यहाँ के दिशा निर्देश मानना सबका कर्तव्य है। फ़िर जिस स्थान में केंद्र प्रतिनिधि हैं तो गुरु आदेश है कि आप वहां उपस्थित हों, चाहे आपकी किसी लोकल कार्यकर्ता हो या मुख्य ट्रस्टी उससे बनती हो या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता। यदि स्वास्थ्य कारणों को छोड़कर यदि आप वहां अहंकारवश या ग्लानिवश नहीं जाते तो और गुरु के आदेश की अवज्ञा के दोषी माने जाएंगे।
5- देशभक्त देश के लिए लाठी-डंडे खाये, गोली खाये व फाँसी पर लटक गए। लेकिन क्या हम गुरुभक्ति के लिए चन्द गालियाँ, अपमान, स्वाभिमान को पहुंचाया ठेस नहीं सह सकते।
6- जब हम किसी से पूँछते है कि आप शान्तिकुंज केंद्रीय गोष्ठी या शांतिकुंज तत्वाधान व स्वीकृति से हुए शिविर या आयोजन में क्यों नहीं आये? तो जब कोई परिजन यह बहाना बताता है कि दी इसके पीछे लम्बी स्टोरी है। तब हम समझ जाते है यह कार्यकर्ता स्वयं को कर्ता समझता है निमित्त नहीं। इसलिए तो केंद्रीय कार्यक्रम व शांतिकुंज प्रतिनिधियों की उपस्थिति में भी न आकर गुरु अवज्ञा करने की धृष्टता कर रहा है। आप सीधे सीधे *लोकसेवियो के लिए दिशा बोध* की गाइड लाइन का उल्लंघन स्वयं अहंकार किये बिना नहीं कर सकते। जब दूसरे में दोष ज्यादा दिखने लगे तो समझ लेना हमारा स्वयं का मन दोषी और कलुषित हो गया है।
*उदाहरण* - एक संत के घर चोर घुसा, सन्त इस बात से दुःखी हो गए कि चोर चुरा सके ऐसा कोई सामान उनके पास न था। चोर की मेहनत नष्ट होने पर वह व्यथित हो गए। उन्होंने उसे भोजन करवाया और थोड़ा चावल रखा था उसे दे दिया कहा इसे स्वीकार करें। कुछ दिन बाद वह चोर पकड़ा गया, सन्त को भी गवाही के लिए बुलाया गया। सन्त ने कहा इसने मेरे घर चोरी नहीं की, मेरा आतिथ्य स्वीकार किया। चोर को मुक्त कर दिया गया। चोर आकर सन्त के चरणों मे गिर पड़ा बोला क्षमा करें, मुझ चोर में भी चोर न देख सकने की दृष्टि आपकी धन्य है, मैं यह कुकर्म त्यागता हूँ और आपकी शरण मे हूँ। सन्त मुस्कुराये बोले जब मन का चोर मिट गया तो चोर कहाँ से दिखेगा। मन में जो भरा है वैसा ही संसार दिखेगा।
लोग अहंकारी व चोर दिख रहे है मतलब समस्या स्वयं के भीतर है..
7- उन्हें समझाने से पूर्व लोकसेवियों के लिए दिशाधारा पुस्तक पढ़िए, व उसका सन्दर्भ देते हुए समझाईये पाप से घृणा करो लेकिन पापी से नहीं। अहंकार से घृणा करो लेकिन अहंकारी से नहीं। अहंकारी स्वयं अपने पूण्य नष्ट कर रहा है और भवसागर में डूबने की तैयारी कर रहा है। उस पर दया करो, उस पर क्रोध मत करो।
8- धन व पद के अहंकार से भी घातक और पाप देने वाला कर्म तप और गुरुकार्य करने का अहंकार है। स्वयं को कर्ता समझने का अहंकार है।
9- निज अहंकार को गलाने व जलाने का उत्तम उपाय है, उस व्यक्ति के चरण छुओ जिससे सबसे ज्यादा घृणा व नफ़रत करते हो। उसके समक्ष अच्छे से बात करो जिसे देखना तुम पसन्द भी नहीं करते हो। जिस प्रोग्राम का तुम का बहिष्कार करने को तुम्हारा मन बोल रहा है उस प्रोग्राम में जरूर जाओ और चप्पल जूते सम्हालने में लगो। घर मे मेड हो तो भी बर्तन माँजो।
10- मन यदि किसी भी परिजन की गलती बताये तो मन से पूंछो क्या तुम सभी बुराइयों से ऊपर उठ चुके हो। तुम क्या निर्मल हृदय हो? यदि निर्मल हृदय होते तो तुम्हें गुरु का मंदिर व गुरु का कार्य दिखता न कि अमुक कार्यकर्ता का मंदिर व अमुक कार्यकर्ता का कार्य दिखता।
11- किस बात का अहंकार है? किये क्या हो आज तक? गुरु ने जो तुम्हे दिया है क्या उससे ज्यादा गुरु कार्य करने का दावा रखते हो? मोदी या ट्रम्प के घर यज्ञ कराने का अहंकार है? या विश्व की शिक्षा नीति में बाल संस्कार शाला जोड़ने का श्रेय तुम्हारे पास है? या वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन में यग्योपैथी और गर्भ संस्कार को इंक्लूड करवा दिए हो? या अपने पैसे से गुरुदेव की मूर्ति विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति बनाने का श्रेय आपके पास है? हो क्या तुम किस बात का अहंकार भाई व बहन जी?????
12- शर्म नहीं आती दूसरे को अहंकारी बोलते वक्त जब खुद अहंकार से मुक्त नहीं। शर्म नहीं आती दूसरे को ईर्ष्यालु बोलते वक्त जब खुद का हृदय ईर्ष्या से भरा है। गुरु अन्तर्यामी व न्यायकारी है क्या इस बात पर भरोसा नहीं बचा है? खुद न्याय करने व दण्ड देने निकल पड़े हो?
13- खुद को बड़े ज्ञानी समझते हो? तो जरा बताना 24 वर्षो तक तप करके ज्ञान अर्जित किये हो? जिस गुरु साहित्य से कॉपी पेस्ट करके प्रवचन में बोलते या लिखते हो उसका मूल सूत्रधार कौन है भूल गए? उस सूत्रधार गुरु की आज्ञा की अवहेलना का दुस्साहस कैसे कर रहे हो? गुरु की अवज्ञा के पाप को करने का साहस कर रहे हो? गुरु से बड़ा अहंकार?
14- जिस परिजन ने गुरु के खिलाफ उल्टा सीधा छापा और दिल्ली कोर्ट में केस किया। जानते हो गुरु जी उसी के घर जाकर रुके और उससे प्रेम से मिले... जो पण्डे तपोभूमि में धरना देने आते और गालियां देते... उनको पानी व नाश्ता गुरु जी व माता जी करवाते। ऐसे गुरु के शिष्य होने की बात करते हो और आपस मे मन भेद करते हो? किसी परिजन ने तुम्हारी पर्सनल प्रोपर्टी छीनी, किसी ने तुम्हे पर्सनली चोट पहुंचाई? यदि नहीं तो फिर किस बात का गुस्सा?
15- जो बोवोगे वही काटोगे। आत्मीयता व प्रेम दोगे तभी पाओगे।
16- समस्या का समाधान मन से पूंछोगे तब तो मिलेगा, यदि अहंकार की चाशनी में पख लिपटाकर रहना है तो एक दिन मिशन से स्वतः अलग हो जाओगे। बार बार शांतिकुंज प्रतिनिधियों की अवहेलना से गुरु के हाथ की डोर छूट जाएगी। ज़िन्दगी एक कटी पतंग बनकर रह जायेगी।
अभी भी समय है, दूसरों का मूल्यांकन छोड़कर स्वयं का मूल्यांकन करें।
क्यों नहीं आये इसके पीछे की लंबी कहानी बताने की बजाय और दूसरों की गलतियां गिनने के बजाय - हिम्मत है तो बहादुरी से यह स्वीकारें कि मेरे अहंकार की तुष्टिकरण में वह प्रोग्राम बाधक था इसलिए नहीं आया/आयी। मेरी मान्यता है कि गुरु शक्ति नहीं है व्यक्ति है, बिना मेरे युगपरिवर्तन नहीं होगा क्योंकि मैं ही कर्ता धर्ता हूँ। यदि मुझे किसी प्रोग्राम मे बुलाना है तो पहले मेरे अहंकार के तुष्टिकरण की व्यवस्था की जाय। देव मंच पर गुरुदेव के साथ मेरी भी फोटो लगाओ क्योंकि मेरी मान्यता है कि इस जगह की स्थान देवता मैं हूँ। एक मन्त्र यज्ञ में मेरे नाम का भी डालो क्योंकि गायत्री माता मेरे बिना कुछ नहीं।
रावण से ज्यादा वेद उपनिषद के ज्ञानी और रावण से ज्यादा बड़े भक्त व शक्तिशाली और आर्थिक सम्पन्न आप नही होंगे। जब अहंकार उसको ले डूबा तो आपको अहंकार नहीं डुबोयेगा यह कैसे गारन्टी ले सकते हैं।
गुरु को उसका दास भक्त पसन्द है, अहंकारी नहीं। जितनी जल्दी समझ जाएं उतना अच्छा है।
यह पोस्ट सभी को फारवर्ड कर दो, जिसे तुम समझाना चाहते हो...
मेरा क्या है..मुझे पोस्ट पढ़कर ख़ूब गाली जो देंगे देने दो, हम गाली खाने को तैयार है, मग़र प्लीज यदि कोई भी इस पोस्ट को पढ़कर सुधर गया तो लिखने की मेहनत सार्थक हो जाएगी।
भगवान रूपी गुरु हनुमान जी जैसे शिष्य को भी सराहता है और गिलहरी जैसे शिष्य को भी सराहता है। गिलहरी हो तो हनुमान से ईर्ष्या मत करो और हनुमान स्तर के हो तो गिलहरी को हेय तुच्छ मत समझो।
पत्ता टूटा डाल से ले गयी पवन उड़ाय,
कटी पतंग व टूटा पत्ते का फिर कोई न होय सहाय।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, आपका प्रश्न गुरुदेव की पीड़ा को व्यक्त कर रहा है।
जो लोग गुरुदेव की सोच व गुरु की शक्ति से जुड़े हैं, स्वयं को गुरु के निमित्त मानकर मिशन का कार्य करेंगे वो ऐसी मूर्खता नहीं करेंगे। लेकिन जो व्यक्ति से जुड़े हैं और स्वयं को कर्ता मानकर कार्य कर रहे हैं, उनसे यह मूर्खता जरूर होगी।
*सभी को स्वयं से कुछ निम्नलिखित प्रश्न करना चाहिए*:-
1- क्या आप स्वयं को और सबको गुरु के हाथों की पतंग और गुरु को डोर सम्हालने वाला मानते हैं? यदि हाँ, तो गुरु जिसको जहां जैसे उड़ा रहा है ऊंचा या नीचा तो इसमें ईर्ष्या व अहंकार की भावना क्यों आ रही है? जब हम स्वयं नहीं उड़ रहे गुरु उड़ा रहा है तो फिर मन भेद क्यों?
2- गुरु दीक्षा में अपनी इच्छा दान दी थी, तो फ़िर स्वयं की इच्छापूर्ति की चाहत क्यों? मान-सम्मान-प्रतिष्ठा की चाहत क्या गुरु सेवा से बड़ी है?
3- मिशन में किसी ने मूर्खता व अहंकार वश आप का अपमान किया या किसी ने श्रद्धा व भक्ति से सम्मान किया तो दोनों ही आपके हैं क्या? जब आप गुरु के निमित्त हो तो मान भी गुरु का और अपमान भी गुरु का ही हुआ न... तो प्रसंशा में फूलों मत और अनुसन्सा में टूटो मत..
4- गुरुदेव ने कहा था, मेरे जाने के बाद शान्तिकुंज ही मेरा शरीर है। यहाँ के दिशा निर्देश मानना सबका कर्तव्य है। फ़िर जिस स्थान में केंद्र प्रतिनिधि हैं तो गुरु आदेश है कि आप वहां उपस्थित हों, चाहे आपकी किसी लोकल कार्यकर्ता हो या मुख्य ट्रस्टी उससे बनती हो या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता। यदि स्वास्थ्य कारणों को छोड़कर यदि आप वहां अहंकारवश या ग्लानिवश नहीं जाते तो और गुरु के आदेश की अवज्ञा के दोषी माने जाएंगे।
5- देशभक्त देश के लिए लाठी-डंडे खाये, गोली खाये व फाँसी पर लटक गए। लेकिन क्या हम गुरुभक्ति के लिए चन्द गालियाँ, अपमान, स्वाभिमान को पहुंचाया ठेस नहीं सह सकते।
6- जब हम किसी से पूँछते है कि आप शान्तिकुंज केंद्रीय गोष्ठी या शांतिकुंज तत्वाधान व स्वीकृति से हुए शिविर या आयोजन में क्यों नहीं आये? तो जब कोई परिजन यह बहाना बताता है कि दी इसके पीछे लम्बी स्टोरी है। तब हम समझ जाते है यह कार्यकर्ता स्वयं को कर्ता समझता है निमित्त नहीं। इसलिए तो केंद्रीय कार्यक्रम व शांतिकुंज प्रतिनिधियों की उपस्थिति में भी न आकर गुरु अवज्ञा करने की धृष्टता कर रहा है। आप सीधे सीधे *लोकसेवियो के लिए दिशा बोध* की गाइड लाइन का उल्लंघन स्वयं अहंकार किये बिना नहीं कर सकते। जब दूसरे में दोष ज्यादा दिखने लगे तो समझ लेना हमारा स्वयं का मन दोषी और कलुषित हो गया है।
*उदाहरण* - एक संत के घर चोर घुसा, सन्त इस बात से दुःखी हो गए कि चोर चुरा सके ऐसा कोई सामान उनके पास न था। चोर की मेहनत नष्ट होने पर वह व्यथित हो गए। उन्होंने उसे भोजन करवाया और थोड़ा चावल रखा था उसे दे दिया कहा इसे स्वीकार करें। कुछ दिन बाद वह चोर पकड़ा गया, सन्त को भी गवाही के लिए बुलाया गया। सन्त ने कहा इसने मेरे घर चोरी नहीं की, मेरा आतिथ्य स्वीकार किया। चोर को मुक्त कर दिया गया। चोर आकर सन्त के चरणों मे गिर पड़ा बोला क्षमा करें, मुझ चोर में भी चोर न देख सकने की दृष्टि आपकी धन्य है, मैं यह कुकर्म त्यागता हूँ और आपकी शरण मे हूँ। सन्त मुस्कुराये बोले जब मन का चोर मिट गया तो चोर कहाँ से दिखेगा। मन में जो भरा है वैसा ही संसार दिखेगा।
लोग अहंकारी व चोर दिख रहे है मतलब समस्या स्वयं के भीतर है..
7- उन्हें समझाने से पूर्व लोकसेवियों के लिए दिशाधारा पुस्तक पढ़िए, व उसका सन्दर्भ देते हुए समझाईये पाप से घृणा करो लेकिन पापी से नहीं। अहंकार से घृणा करो लेकिन अहंकारी से नहीं। अहंकारी स्वयं अपने पूण्य नष्ट कर रहा है और भवसागर में डूबने की तैयारी कर रहा है। उस पर दया करो, उस पर क्रोध मत करो।
8- धन व पद के अहंकार से भी घातक और पाप देने वाला कर्म तप और गुरुकार्य करने का अहंकार है। स्वयं को कर्ता समझने का अहंकार है।
9- निज अहंकार को गलाने व जलाने का उत्तम उपाय है, उस व्यक्ति के चरण छुओ जिससे सबसे ज्यादा घृणा व नफ़रत करते हो। उसके समक्ष अच्छे से बात करो जिसे देखना तुम पसन्द भी नहीं करते हो। जिस प्रोग्राम का तुम का बहिष्कार करने को तुम्हारा मन बोल रहा है उस प्रोग्राम में जरूर जाओ और चप्पल जूते सम्हालने में लगो। घर मे मेड हो तो भी बर्तन माँजो।
10- मन यदि किसी भी परिजन की गलती बताये तो मन से पूंछो क्या तुम सभी बुराइयों से ऊपर उठ चुके हो। तुम क्या निर्मल हृदय हो? यदि निर्मल हृदय होते तो तुम्हें गुरु का मंदिर व गुरु का कार्य दिखता न कि अमुक कार्यकर्ता का मंदिर व अमुक कार्यकर्ता का कार्य दिखता।
11- किस बात का अहंकार है? किये क्या हो आज तक? गुरु ने जो तुम्हे दिया है क्या उससे ज्यादा गुरु कार्य करने का दावा रखते हो? मोदी या ट्रम्प के घर यज्ञ कराने का अहंकार है? या विश्व की शिक्षा नीति में बाल संस्कार शाला जोड़ने का श्रेय तुम्हारे पास है? या वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन में यग्योपैथी और गर्भ संस्कार को इंक्लूड करवा दिए हो? या अपने पैसे से गुरुदेव की मूर्ति विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति बनाने का श्रेय आपके पास है? हो क्या तुम किस बात का अहंकार भाई व बहन जी?????
12- शर्म नहीं आती दूसरे को अहंकारी बोलते वक्त जब खुद अहंकार से मुक्त नहीं। शर्म नहीं आती दूसरे को ईर्ष्यालु बोलते वक्त जब खुद का हृदय ईर्ष्या से भरा है। गुरु अन्तर्यामी व न्यायकारी है क्या इस बात पर भरोसा नहीं बचा है? खुद न्याय करने व दण्ड देने निकल पड़े हो?
13- खुद को बड़े ज्ञानी समझते हो? तो जरा बताना 24 वर्षो तक तप करके ज्ञान अर्जित किये हो? जिस गुरु साहित्य से कॉपी पेस्ट करके प्रवचन में बोलते या लिखते हो उसका मूल सूत्रधार कौन है भूल गए? उस सूत्रधार गुरु की आज्ञा की अवहेलना का दुस्साहस कैसे कर रहे हो? गुरु की अवज्ञा के पाप को करने का साहस कर रहे हो? गुरु से बड़ा अहंकार?
14- जिस परिजन ने गुरु के खिलाफ उल्टा सीधा छापा और दिल्ली कोर्ट में केस किया। जानते हो गुरु जी उसी के घर जाकर रुके और उससे प्रेम से मिले... जो पण्डे तपोभूमि में धरना देने आते और गालियां देते... उनको पानी व नाश्ता गुरु जी व माता जी करवाते। ऐसे गुरु के शिष्य होने की बात करते हो और आपस मे मन भेद करते हो? किसी परिजन ने तुम्हारी पर्सनल प्रोपर्टी छीनी, किसी ने तुम्हे पर्सनली चोट पहुंचाई? यदि नहीं तो फिर किस बात का गुस्सा?
15- जो बोवोगे वही काटोगे। आत्मीयता व प्रेम दोगे तभी पाओगे।
16- समस्या का समाधान मन से पूंछोगे तब तो मिलेगा, यदि अहंकार की चाशनी में पख लिपटाकर रहना है तो एक दिन मिशन से स्वतः अलग हो जाओगे। बार बार शांतिकुंज प्रतिनिधियों की अवहेलना से गुरु के हाथ की डोर छूट जाएगी। ज़िन्दगी एक कटी पतंग बनकर रह जायेगी।
अभी भी समय है, दूसरों का मूल्यांकन छोड़कर स्वयं का मूल्यांकन करें।
क्यों नहीं आये इसके पीछे की लंबी कहानी बताने की बजाय और दूसरों की गलतियां गिनने के बजाय - हिम्मत है तो बहादुरी से यह स्वीकारें कि मेरे अहंकार की तुष्टिकरण में वह प्रोग्राम बाधक था इसलिए नहीं आया/आयी। मेरी मान्यता है कि गुरु शक्ति नहीं है व्यक्ति है, बिना मेरे युगपरिवर्तन नहीं होगा क्योंकि मैं ही कर्ता धर्ता हूँ। यदि मुझे किसी प्रोग्राम मे बुलाना है तो पहले मेरे अहंकार के तुष्टिकरण की व्यवस्था की जाय। देव मंच पर गुरुदेव के साथ मेरी भी फोटो लगाओ क्योंकि मेरी मान्यता है कि इस जगह की स्थान देवता मैं हूँ। एक मन्त्र यज्ञ में मेरे नाम का भी डालो क्योंकि गायत्री माता मेरे बिना कुछ नहीं।
रावण से ज्यादा वेद उपनिषद के ज्ञानी और रावण से ज्यादा बड़े भक्त व शक्तिशाली और आर्थिक सम्पन्न आप नही होंगे। जब अहंकार उसको ले डूबा तो आपको अहंकार नहीं डुबोयेगा यह कैसे गारन्टी ले सकते हैं।
गुरु को उसका दास भक्त पसन्द है, अहंकारी नहीं। जितनी जल्दी समझ जाएं उतना अच्छा है।
यह पोस्ट सभी को फारवर्ड कर दो, जिसे तुम समझाना चाहते हो...
मेरा क्या है..मुझे पोस्ट पढ़कर ख़ूब गाली जो देंगे देने दो, हम गाली खाने को तैयार है, मग़र प्लीज यदि कोई भी इस पोस्ट को पढ़कर सुधर गया तो लिखने की मेहनत सार्थक हो जाएगी।
भगवान रूपी गुरु हनुमान जी जैसे शिष्य को भी सराहता है और गिलहरी जैसे शिष्य को भी सराहता है। गिलहरी हो तो हनुमान से ईर्ष्या मत करो और हनुमान स्तर के हो तो गिलहरी को हेय तुच्छ मत समझो।
पत्ता टूटा डाल से ले गयी पवन उड़ाय,
कटी पतंग व टूटा पत्ते का फिर कोई न होय सहाय।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
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