प्रश्न - *बक़रीद क्या है? क्या स्वार्थ लाभ के जीव हत्या न्याय संगत है? क्या अल्लाह जीव हत्या पसन्द करता है? क्या अल्लाह मनुष्य और सभी जीवों का पिता नहीं है?*
उत्तर- *बलिप्रथा जो कि भारतीय संविधान में गैर कानूनी है, उसका उल्लंघन बक़रीद है* , बक़रीद में किसी निरीह जीव बकरे की हत्या करके उसके मांस को धर्म के नाम पर खाया जाता है। जन्नत जो कि एक कल्पना के अतिरिक्त कुछ नहीं उसे पाने में इसे सहायक माना जाता है। अल्लाह जब सृष्टि में सबका पालक पिता है तो वो बकरे का भी पालक पिता हुआ, तो भला इस जीव हत्या व बलि से वो प्रशन्न कैसे हो सकता है?
*बक़रीद के अवसर पर कानून की अवहेलना खुले आम होती है, उदाहरण संविधान अनुच्छेद 15(A) के अनुसार मांस को लेकर निर्देश के अनुसार कोई भी पशु (मुर्गी समेत) सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा*
बीमार और गर्भ धारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा. प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी ऑन एनिमल्स एक्ट और फूड सेफ्टी रेगुलेशन में इस बात पर स्पष्ट नियम हैं। लेकिन बक़रीद के दिन खुले आम संविधान का उलंघन होता है।
*स्लॉटरहाउस रूल्स 2001 के मुताबिक देश के किसी भी हिस्से में पशु बलि देना गैरकानूनी है।*
भारतीय कानून की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाना व पढ़े लिखे लोगों द्वारा भी इस अन्धविश्वास बकरे की बलि से जन्नत मिलेगी व अल्लाह खुश होगा की मान्यता को मानना बड़े प्रश्न चिन्ह खड़े करता है?
हमारे लिबरल मीडिया और लिबरल नेता आंखों में कुछ धर्म विशेष के लिए पट्टीयाँ बॉन्ध लेते हैं, कानून अंधा है यह स्वीकार कर लेते हैं। पशु अधिकारों व पशु उत्पीड़न के लिए काम करने वाली संस्थाओं को भी बकरों का दर्द नहीं दिखता। पर्यावरण संरक्षण के लिए आवाज उठाने वाली संस्थाएं भी मौन है। सब सत्य बोलने से डरते हैं कि ग्रीन हाउस गैसें ग्रह के वातावरण या जलवायु में परिवर्तन और अंततः भूमंडलीय ऊष्मीकरण के लिए उत्तरदायी होती हैं। मांसाहार के कारण सबसे ज्यादाउत्सर्जन कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओजोन आदि करती हैं। कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जनपिछले १०-१५ सालों में ४० गुणा बढ़ गया है।
*मांसाहार धरती को बीमार कर रहा है, सबसे ज़्यादा प्रदूषण कारक माँसाहार, DNA Analysis Report Zee TV :-*
https://youtu.be/iTHerRYLKlc
*माँसाहार क्यों नहीं करना चाहिए? इसके लिये निम्नलिखित पोस्ट पढ़ें:-*
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10156428576846753&id=770486752
सर अल्बर्ट आइंस्टाइन की *Pain wave theory* कहती है, हलाल के दौरान लाखों बकरे एक साथ दर्द में एक समय मे पीड़ा की ध्वनि निकालेंगे जो दर्द व पीड़ा की तरंग उतपन्न करेगी। जो आपदाओं विपदाओं जैसे भूकम्प, बाढ़ व महामारी को आमंत्रित करेगी।
*किसी जीव को स्वार्थवश पीड़ा देने वाला व्यक्ति सुखी और निरोगी कभी नहीं रह सकता। मनुष्य का बच्चा हो या पशुपक्षी-जलचर का अंडा हो या पशुओं के बच्चे सब ही बड़े क्यूट प्यारे और चेतन जीव है, इनको ध्यान से देखो तो सब में चेतन रूप में परमात्मा ही झलकता है।*
*जब संसार मे जज भी मृत्यु दंड देने से पहले हत्या का इरादा चेक करता है कि अमुक इंसान ने किस इरादे (intention) से कत्ल किया गया। जीवन रक्षा के लिए किये कत्ल पर बाइज्जत बरी कर देता है, लेकिन स्वार्थ हेतु किये कत्ल पर फांसी देता है। मांसाहारी जीव का सॉफ्टवेयर-हार्डवेयर मांस की डिमांड करता है, वो जीव शाकाहार द्वारा जीवित और स्वस्थ नहीं रह सकते, अतः जीवन रक्षा के लिए वो मांस खाता है तो भगवान की न्यायालय में बाइज्जत बरी होगा, लेकिन मनुष्य का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर शाकाहार को सपोर्ट करता है, पूरा जीवन वो शाकाहार करके जी सकता है। अतः स्वाद और स्वार्थ के लिए हिंसा करता है तो कुकर्मी और पापी अवश्य कहलायेगा और दण्ड का भागी ईश्वरीय न्याय के अंतर्गत माना जायेगा।*
Reference Article -
http://literature.awgp.org/ akhandjyoti/1968/March/v2.19
Reference Book - http:// vicharkrantibooks .org/ vkp_ecom/Mansahar_Manavata_Ka_Apaman?search=मां&limit=75
उत्तर- *बलिप्रथा जो कि भारतीय संविधान में गैर कानूनी है, उसका उल्लंघन बक़रीद है* , बक़रीद में किसी निरीह जीव बकरे की हत्या करके उसके मांस को धर्म के नाम पर खाया जाता है। जन्नत जो कि एक कल्पना के अतिरिक्त कुछ नहीं उसे पाने में इसे सहायक माना जाता है। अल्लाह जब सृष्टि में सबका पालक पिता है तो वो बकरे का भी पालक पिता हुआ, तो भला इस जीव हत्या व बलि से वो प्रशन्न कैसे हो सकता है?
*बक़रीद के अवसर पर कानून की अवहेलना खुले आम होती है, उदाहरण संविधान अनुच्छेद 15(A) के अनुसार मांस को लेकर निर्देश के अनुसार कोई भी पशु (मुर्गी समेत) सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा*
बीमार और गर्भ धारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा. प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी ऑन एनिमल्स एक्ट और फूड सेफ्टी रेगुलेशन में इस बात पर स्पष्ट नियम हैं। लेकिन बक़रीद के दिन खुले आम संविधान का उलंघन होता है।
*स्लॉटरहाउस रूल्स 2001 के मुताबिक देश के किसी भी हिस्से में पशु बलि देना गैरकानूनी है।*
भारतीय कानून की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाना व पढ़े लिखे लोगों द्वारा भी इस अन्धविश्वास बकरे की बलि से जन्नत मिलेगी व अल्लाह खुश होगा की मान्यता को मानना बड़े प्रश्न चिन्ह खड़े करता है?
हमारे लिबरल मीडिया और लिबरल नेता आंखों में कुछ धर्म विशेष के लिए पट्टीयाँ बॉन्ध लेते हैं, कानून अंधा है यह स्वीकार कर लेते हैं। पशु अधिकारों व पशु उत्पीड़न के लिए काम करने वाली संस्थाओं को भी बकरों का दर्द नहीं दिखता। पर्यावरण संरक्षण के लिए आवाज उठाने वाली संस्थाएं भी मौन है। सब सत्य बोलने से डरते हैं कि ग्रीन हाउस गैसें ग्रह के वातावरण या जलवायु में परिवर्तन और अंततः भूमंडलीय ऊष्मीकरण के लिए उत्तरदायी होती हैं। मांसाहार के कारण सबसे ज्यादाउत्सर्जन कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओजोन आदि करती हैं। कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जनपिछले १०-१५ सालों में ४० गुणा बढ़ गया है।
*मांसाहार धरती को बीमार कर रहा है, सबसे ज़्यादा प्रदूषण कारक माँसाहार, DNA Analysis Report Zee TV :-*
https://youtu.be/iTHerRYLKlc
*माँसाहार क्यों नहीं करना चाहिए? इसके लिये निम्नलिखित पोस्ट पढ़ें:-*
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10156428576846753&id=770486752
सर अल्बर्ट आइंस्टाइन की *Pain wave theory* कहती है, हलाल के दौरान लाखों बकरे एक साथ दर्द में एक समय मे पीड़ा की ध्वनि निकालेंगे जो दर्द व पीड़ा की तरंग उतपन्न करेगी। जो आपदाओं विपदाओं जैसे भूकम्प, बाढ़ व महामारी को आमंत्रित करेगी।
*किसी जीव को स्वार्थवश पीड़ा देने वाला व्यक्ति सुखी और निरोगी कभी नहीं रह सकता। मनुष्य का बच्चा हो या पशुपक्षी-जलचर का अंडा हो या पशुओं के बच्चे सब ही बड़े क्यूट प्यारे और चेतन जीव है, इनको ध्यान से देखो तो सब में चेतन रूप में परमात्मा ही झलकता है।*
*जब संसार मे जज भी मृत्यु दंड देने से पहले हत्या का इरादा चेक करता है कि अमुक इंसान ने किस इरादे (intention) से कत्ल किया गया। जीवन रक्षा के लिए किये कत्ल पर बाइज्जत बरी कर देता है, लेकिन स्वार्थ हेतु किये कत्ल पर फांसी देता है। मांसाहारी जीव का सॉफ्टवेयर-हार्डवेयर मांस की डिमांड करता है, वो जीव शाकाहार द्वारा जीवित और स्वस्थ नहीं रह सकते, अतः जीवन रक्षा के लिए वो मांस खाता है तो भगवान की न्यायालय में बाइज्जत बरी होगा, लेकिन मनुष्य का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर शाकाहार को सपोर्ट करता है, पूरा जीवन वो शाकाहार करके जी सकता है। अतः स्वाद और स्वार्थ के लिए हिंसा करता है तो कुकर्मी और पापी अवश्य कहलायेगा और दण्ड का भागी ईश्वरीय न्याय के अंतर्गत माना जायेगा।*
Reference Article -
http://literature.awgp.org/ akhandjyoti/1968/March/v2.19
Reference Book - http:// vicharkrantibooks .org/ vkp_ecom/Mansahar_Manavata_Ka_Apaman?search=मां&limit=75
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