Thursday, 22 August 2019

प्रश्न - *प्रणाम दीदी,जब भी मैं गायत्री मंत्र का जप किसी कारण बस छूट जाता है तो मन बैचैन हो जाता है और कुछ समझ में नही आता है कि मैं क्या करूँ क्या न करूं कभी कभी बिना बजह से भी किसी पर गुस्सा आ जाता है।कृप्या मार्गदर्शन प्रदान करे।*

प्रश्न - *प्रणाम दीदी,जब भी मैं गायत्री मंत्र का जप किसी कारण बस छूट जाता है तो मन बैचैन हो जाता है और कुछ समझ में नही आता है कि मैं क्या करूँ क्या न करूं कभी कभी बिना बजह से भी किसी पर गुस्सा आ जाता है।कृप्या मार्गदर्शन प्रदान करे।*

उत्तर - आत्मीय भाई, यह बताओ मन्त्र कौन जपता है शरीर या मन?

 पेट को भोजन न मिले तो वो कचोटता है, और मन को तप ऊर्जा न मिलेगी तो वो बेचैनी महसूस करता है। अतः मौन मानसिक जप का अभ्यास कीजिये समस्या का समाधान मिल जाएगा। असली आनन्द तो हर वक्त जप व ध्यान में है, कण कण में गायत्री दर्शन से है, श्वांस श्वांस से स्मरण से है।

मंत्र वह ध्वनि है जो अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनती है। यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक तरंगात्मक ऊर्जा से व्याप्त है जिसके दो प्रकार हैं - नाद (शब्द) एवं प्रकाश। आध्यात्मिक धरातल पर इनमें से कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र मात्र वह ध्वनियाँ नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते हैं, यह ध्वनियाँ तो मंत्रों का लौकिक स्वरुप भर हैं।

ध्यान की उच्चतम अवस्था में साधक का आध्यात्मिक व्यक्तित्व पूरी तरह से प्रभु के साथ एकाकार हो जाता है जो अन्तर्यामी है। वही सारे ज्ञान एवं 'शब्द' (ॐ) का स्रोत है। प्राचीन ऋषियों ने इसे शब्द-ब्रह्म की संज्ञा दी - वह शब्द जो साक्षात् ईश्वर है! इस ब्रह्मांडीय ऊर्जा को मन्त्र द्वारा अंतर्नाद  में झंकृत कर प्रकाश ऊर्जा को एक्टिवेट किया जाता है, और प्राणों को ब्रह्मांडीय ऊर्जा से चार्ज करने का उत्तम मार्ग है। इसीलिए गायत्री मन्त्र जप के बाद बहुत अच्छा लगता है, ऊर्जा महसूस होती है।

जिस दिन गायत्री जप पूजन स्थल में न कर सको, उस दिन सोचो आज भगवान ने तुम्हें मन के दर पर अर्थात अंतर्जगत के मंदिर में जप हेतु बुलाया है। तुम मौन मानसिक जप करो, यह भी उतनी ऊर्जा खींचने में समर्थ है और समान उपकारी है।

माना केलकुलेटर हो तो गणित हल करना आसान हो जाता है, लेकिन भाई पेन कॉपी में भी बुद्धि प्रयोग से गणित हल हो ही जाता है। स्थूल घर का पूजन स्थल कैलकुलेटर है, मन आपका पेन कॉपी है। काम होने से मतलब है, प्रयास थोड़ा ज्यादा लगेगा लेकिन सफलता जरूर मिलेगी।

पूजन स्थल का जो कर्मकांड है वो वस्तुतः मन को सेट करने में मदद करता है, लेकिन असली काम तो मन को ही करना है। मन को अभ्यस्त कर लो तो ऑफिस में भी जप हो सकता है और घर से बाहर भी।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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