प्रश्न - *सद्गुरु हमारे भीतर प्रेरणा कब कैसे और क्यों जगाता है? कब वह हमसे कार्य करवाता है?*
उत्तर- आत्मीय भाई,
शिकागो में विवेकानंद ने नहीं ठाकुर रामकृष्ण ने बोला था, समुद्र में राम सेतु वानरों ने नहीं वस्तुतः श्री राम कृपा ने बनाया था, महाभारत में विजय अर्जुन ने नहीं बल्कि श्री कृष्ण ने दिलाया था। यह समझने के लिए तत्वदृष्टि चाहिए।
भगवान व गुरु तब तक हमें अपना अंग अवयव नहीं बनाता, जब तक हम उस पर श्रद्धा विश्वास करके स्वयं को समर्पित न कर दें। जब हम समर्पण करते हैं तब वह हमारे भीतर प्रेरणा जगाता है और क्या करना है बताता है। हमें हमारी मर्ज़ी चुनने के लिए स्वतंत्र रखा गया है, हम जब अंग अवयव बनने के लिए तैयार होंगे तब स्वतः हमसे गुरुकार्य होते चलेंगे।
समुद्र में पत्थर राम के प्रति भक्तों का विश्वास तैराता है। राम कृपा बिना भक्ति के असर नही दिखा सकती। जब भक्त नहीं होंगे तो भगवान भी नहीं होगा, सोलर सिस्टम नहीं तो सौर ऊर्जा भी नहीं।
सूर्य को दोष देने वाले बहुत हैं कि इसमें इतनी ताकत नहीं कि एक बल्ब तक जला सके, लेक़िन जो सूर्य की ऊर्जा को उपयोग करना जानते हैं वो सोलरसिस्टम लगा के बल्ब जला लेते हैं, वृक्ष वनस्पतियां प्रकाशसंश्लेषण से भोजन बना लेते हैं, सभी जीवों की त्वचा उससे विटामिन डी ले लेती है। इसी तरह भगवान व गुरु को न मानने वाले भी बहुत हैं और भक्त व शिष्य भी बहुत है जो परमात्म चेतना व गुरुचेतना को स्वयं में धारण किये हुए हैं।
सूर्य का प्रकाश तब तक घर के भीतर प्रवेश नहीं करेगा जब तक हम स्वयं खिड़की न खोलें, गुरु तब तक हृदय में प्रेरणा नहीं जगायेगा जब तक हम स्वयं हृदय का द्वार उसके लिए न खोलें।
इसे विस्तार से पुस्तक 📖 *अध्यात्मविद्या के प्रवेश द्वार* को पढ़कर समझ सकते हैं।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय भाई,
शिकागो में विवेकानंद ने नहीं ठाकुर रामकृष्ण ने बोला था, समुद्र में राम सेतु वानरों ने नहीं वस्तुतः श्री राम कृपा ने बनाया था, महाभारत में विजय अर्जुन ने नहीं बल्कि श्री कृष्ण ने दिलाया था। यह समझने के लिए तत्वदृष्टि चाहिए।
भगवान व गुरु तब तक हमें अपना अंग अवयव नहीं बनाता, जब तक हम उस पर श्रद्धा विश्वास करके स्वयं को समर्पित न कर दें। जब हम समर्पण करते हैं तब वह हमारे भीतर प्रेरणा जगाता है और क्या करना है बताता है। हमें हमारी मर्ज़ी चुनने के लिए स्वतंत्र रखा गया है, हम जब अंग अवयव बनने के लिए तैयार होंगे तब स्वतः हमसे गुरुकार्य होते चलेंगे।
समुद्र में पत्थर राम के प्रति भक्तों का विश्वास तैराता है। राम कृपा बिना भक्ति के असर नही दिखा सकती। जब भक्त नहीं होंगे तो भगवान भी नहीं होगा, सोलर सिस्टम नहीं तो सौर ऊर्जा भी नहीं।
सूर्य को दोष देने वाले बहुत हैं कि इसमें इतनी ताकत नहीं कि एक बल्ब तक जला सके, लेक़िन जो सूर्य की ऊर्जा को उपयोग करना जानते हैं वो सोलरसिस्टम लगा के बल्ब जला लेते हैं, वृक्ष वनस्पतियां प्रकाशसंश्लेषण से भोजन बना लेते हैं, सभी जीवों की त्वचा उससे विटामिन डी ले लेती है। इसी तरह भगवान व गुरु को न मानने वाले भी बहुत हैं और भक्त व शिष्य भी बहुत है जो परमात्म चेतना व गुरुचेतना को स्वयं में धारण किये हुए हैं।
सूर्य का प्रकाश तब तक घर के भीतर प्रवेश नहीं करेगा जब तक हम स्वयं खिड़की न खोलें, गुरु तब तक हृदय में प्रेरणा नहीं जगायेगा जब तक हम स्वयं हृदय का द्वार उसके लिए न खोलें।
इसे विस्तार से पुस्तक 📖 *अध्यात्मविद्या के प्रवेश द्वार* को पढ़कर समझ सकते हैं।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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