Monday, 5 August 2019

प्रश्न - *उपासना क्या है विस्तार से उदाहरण सहित बताइये।*

प्रश्न - *उपासना क्या है विस्तार से उदाहरण सहित बताइये।*

उत्तर - आत्मीय बहन,

👉🏼 *उपासना* - अर्थात पास बैठना और उसका अनुसरण करना। केवल पास बैठने से रूपांतरण नहीं होता, जिसके पास बैठे हो उसके चरित्र, चिंतन एवं शिक्षण को धारण करने से परिवर्तन होता है। जिस देवता के पास नित्य बैठे उसके गुणों को स्वयं में धारण किया तो रूपांतरण होगा।

👉🏼 भगवान हमारी मर्जी से नहीं चलता, हमें भगवान की मर्जी से चलना होता है। ईंधन अग्नि से जुड़कर उसके समस्त गुणों को धारण कर लेता है। लेकिन ध्यान रखें अग्नि ईंधन नहीं बनता, ईंधन को अग्नि बनना पड़ता है।

👉🏼 भ्रमवश लोग पूजा पाठ व कर्मकांड को उपासना समझ लेते हैं, वस्तुतः ऐसा नहीं है। चेतना को परिष्कृत, मानवी अन्तःकरण को पुष्ट और प्रमाणिक बनाने का शशक्त माध्यम ईश्वर उपासना है।

👉🏼 सूर्य की धूप की तरह ब्रह्मांडीय एनर्जी सर्वत्र है, सोलर सिस्टम व आतिशी सीसे की तरह उपासना से ब्रह्मांडीय ऊर्जा का संग्रह करने का शशक्त सिस्टम उपासना है।

👉🏼 *उपासना* - का द्वितीय अर्थ उप अर्थात दूसरे + आसन अर्थात स्थान पर, उदाहरण मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री। हमने अपने शरीर व जीवन में स्वयं को द्वितीय और भगवान को प्रथम बना दिया। भगवान के अनुसाशन में जीने की स्वीकृति दी है।

👉🏼 *उपासना* - अर्थात पास बैठना और उसका अनुसरण करना, समीपता। जिस देवता के पास नित्य बैठे उसके गुणों को स्वयं में धारण किया। सिद्ध संत के नित्य नाई द्वारा बाल काटने से भी वो नाई उनके जैसा नहीं बनता, रिश्तेदार जो संत के साथ रहते हैं उनमें यदि संत के प्रति समर्पण व शिष्य भाव नहीं है तो उनका भी रूपांतरण नहीं होगा। संत या गुरु या ईष्ट देव  के जैसा बनने के लिए समर्पण, श्रद्धा विश्वास व उनके जैसा बनने का भक्तिभाव अनिवार्य है, उनके शरीर के पास नहीं बैठना है, उनकी चेतना के समीप अपनी चेतना को बिठाना उपासना है।

👉🏼 *उपासना* - अर्थात संगति, जैसी संगत वैसी रँगत। देवताओं की संगति में देवता बनने के गुण धारण करना। सत्संग और कुसंग के सुखद-दुःखद परिणामों में समीपता के कारण ही होता है।

*उपासना* - अर्थात जिसे आपने महान और श्रेष्ठ माना उसका अनुसरण(फॉलो) करने का निश्चय किया उसी का चिंतन करना और उसके गुणों को स्वयं में धारण करना। उसके जैसा चरित्र चिंतन व्यवहार अपनाते हैं।

👉🏼👉🏼👉🏼 *उपासना/समीपता के कुछ उदाहरण* -

1- नित्य तीन महीने  तक आप शराबियों के साथ मयखाने(बार) मे जाइये, शराबियों का चरित्र चिंतन व्यवहार आपमें उतरने लगेगा। आप शराबी बन जाएंगे।

२- नित्य तीन महीने तक  आप भक्तों के साथ मन्दिर जाइये। भक्तों का चरित्र चिंतन व्यवहार आपमें उतरने लगेगा और आप भक्त बन जाएंगे।

3- नित्य तीन महीने टीवी सीरियल देखिए, विक्षिप्त मानसिकता व शकी व्यक्तित्व बन जायेगा। जैसा सीरियल देख रहे हो वैसे चरित्र चिंतन व्यवहार आपमें उतरने लगेगा।

4- नित्य तीन महीने पार्लर का शौक रखने वालों के साथ पार्लर जाइये, सजने संवरने शौक उतपन्न हो जाएगा। शरीर को ही सब कुछ मानने वाला चरित्र चिंतन व्यवहार आपमें उतरने लगेगा। आत्मा की उपेक्षा करने लगोगे।

5- नित्य तीन महीने योगियों के साथ उनके सान्निध्य में रहिए, वैराग्य भाव उतपन्न हो जाएगा।योगियों का चरित्र चिंतन व्यवहार आपमें उतरने लगेगा। शरीर से परे देखने की क्षमता पर काम करने लगोगे।

6- नित्य तीन महीने तक आवारा लड़कों के साथ उनके सान्निध्य में रहिए, आवारापन उतपन्न हो जाएगा। पढ़ने वालों के साथ रहोगे तो उनका का चरित्र चिंतन व्यवहार आपमें उतरने लगेगा, पढ़ाई में मन लगने लगेगा।

🙏🏻उपासना अर्थात समीपता के साथ उसके जैसा बनने की चेष्टा व समर्पण से चेतना का रूपांतरण  संभव होता है, ईष्ट देवता की भक्तिमय चिंतन से उनके अनुसार चेतना का रूपांतरण होता है। सत्य आचरण में उतरता है, भगवान की शक्तियो से भक्त जुड़ता है। भक्ति चमत्कार करती है, भक्ति से शक्ति मिलती है।  आत्मशोधन एवं देवपूजन में भावना प्रधान है,उपासना के दौरान मन पर अपेक्षित प्रभाव डालने के लिए विचार एवं कर्म का समन्वय करना पड़ता है।🙏🏻

👉🏼 *ईश्वरीय उपासना के तीन आधार* 👈🏻

1- एक उपासना का निश्चित स्थान, कक्ष, अंतरंग और बहिरंग स्तर का ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे व्यक्ति का भावनात्मक स्तर में उत्कृष्टता की अभिवृद्धि हो।

2- उपासना के दूसरे आधार में चेतना को बदलने एवं ढालने में असाधारण सहायता के लिए कर्मकांडो, क्रिया कृत्य और दिव्य समर्पित भावनाओं का सहारा लेना चाहिए।

3- निरन्तर चिंतन मनन से, नित्य ईश्वर ध्यान से चित्त पर ईश्वरीय सत्ता का छाप पड़ने लगता है। चित्त शांत होता है तो जीवन की समस्याओं का समाधान दिखता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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