Tuesday, 6 August 2019

कविता - *कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो....*

कविता - *कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो....*

कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो,
कठिन चुनौतियों को स्वीकारो,
संघर्षों की अग्नि में स्नान करके,
निज कुंदन सा व्यक्तित्व निखारो।

कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो....

यदि सुरक्षित माहौल तलाशते रहे तो,
सर्कस के शेर बन जाओगे,
कोड़ो की बारिश सह के,
बंदर से करतब दिखलाओगे।

कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो....

जो शेर शिकार करना भूल गया तो,
जंगली कुत्तों से भी हार जाएगा,
सुरक्षित माहौल में रहने का जो आदी हुआ तो,
छोटी सी मुसीबत में भी हार जाएगा।

कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो....

घर की चहारदीवारी के पेड़,
जंगल के पेड़ो से कमज़ोर होते है,
आँधितूफ़ानों को सहकर ही,
जंगल के पेड़ मजबूत बनते है।

कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो....

कम्फर्ट ज़ोन बोरियत देता है,
चैलेंजिंग ज़ोन नित्य किक देता है,
कुछ न कुछ नया होता रहता है,
दिलोदिमाग में उत्साह छाया रहता है।

कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो....

कुछ नया अचीव करने का,
अपना अलग अनुभव रहता है,
हार जीत से परे हर संघर्ष,
जीवन में नित नूतनता भरता है।

कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो....

चलो जीवन में नई चुनौतियाँ स्वीकारें,
अपना व्यक्तित्व कुंदन सा निखारें,
चलो कुछ ऐसा चैलेंजिंग कर के दिखाएं,
दुनियाँ में अपनी एक नई पहचान बनाएं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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