Wednesday 28 August 2019

प्रश्न - *भारतीय संस्कृति के मूल भूत तत्व एवं भारतीय संस्कृति का आधार क्या है?*

प्रश्न - *भारतीय संस्कृति के मूल भूत तत्व एवं भारतीय संस्कृति का आधार क्या है?*

उत्तर - आत्मीय भाई,

*"संस्कृति" का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो*।। व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है एवं इसी क्षेत्र पर हमारे ऋषिगणों ने सर्वाधिक ध्यान दिया है ।।

भारतीय संस्कृति हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है ।। इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं ।। हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है ।। मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पायें, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है ।। भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है ।। सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।

भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस- मन्यु, पितरों की तृप्ति हेतु तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार तथा अवतारवाद का हेतु समझते हुए तदनुसार अपनी भूमिका निर्धारण सभी पक्षों का बड़ा ही तथ्य सम्मत- तर्क विवेचन पूज्यवर ने इसमें प्रस्तुत किया है ।।

वर्णाश्रम पद्धति हमारी संस्कृति की विशेषता है एवं समाज की सुव्यवस्था की एक सुदृढ़ आधार शिला है ।। आज इस संबंध में अनेकानेक भ्रान्तियाँ फैला दी गयी हैं पर वस्तुतः यह सारी विधि व्यवस्था मानवी जीवन को व उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों को एक निर्धारित क्रम में बाँधने के लिए बनी थीं ।। इसी सामाजिक पक्ष में संस्कृति के खान- पान, जाति- पाँति, ऊँच- नीच, भाषा वेश, गुण- कर्म की परिष्कार से समाज की आराधना जैसे अनेकानेक पक्ष आ जाते हैं इनका वर्णन विस्तार से हुआ है ।। गुरु, गायत्री, गंगा, गौ व गीता ये पाँच हमारी संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आधारस्तंभ माने जाते हैं ।। इनके प्रति श्रद्धा रख हम अपनी सांस्कृतिक गौरव गरिमा का अभवर्धन करते हैं एवं इनके माध्यम से अनेकानेक अनुदान भी दैनन्दिन जीवन में पाते हैं ।।

संक्षेप में,  हमारी भारतीय संस्कृति मनुष्य को निम्नलिखित बनाती है:-


*आस्तिक* - स्वयं पर और स्वयं को बनाने वाले परमात्मा पर भरोसा करना। सर्वशक्तिमान परमात्मा के हम सर्वशक्तिमान सन्तान हैं।

*धार्मिक* - धर्म अर्थात कर्तव्य पालन - स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति समाज के प्रति व राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों और उत्तरदायित्व का पालन करना।

*गायत्री मन्त्र की दीक्षा* - श्रेष्ठता का वरण, सही मार्ग पर आरूढ़ रहना। स्वयं की बुद्धि में परमात्मा को धारण करना और उनके अनुशासन में श्रेष्ठ जीवन जीना। आत्म अनुशासन पालना और स्वयं के विचारों का प्रबंधन करना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...